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मां ब्रह्मचारिणी

रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि। मां भक्त मनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि॥

विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि। ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणी॥

नव रात्री के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना होती है. ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है ब्रह्म और चारिणी या यूँ कहें कि, ब्रह्म का अर्थ है “तपस्या” और चारिणी का अर्थ है “आचरण करने वाली”. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है साथ ही, इन्हें ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी भी माना जाता है. कठोर साधना और ब्रह्म में लीन रहने के कारण ही इनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. छात्रों के लिए माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा बहुत ही फलदायी होता है, साथ ही जिनका चन्द्रमा कमजोर हो, उन साधकों को मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना उपयुक्त माना जाता है. माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं, जिससे कि उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें.

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और दिव्य है. वे आमतौर पर सफेद वस्त्र धारण करती हैं और उनके हाथों में जप माला (जप करने की माला) और कमल का फूल होता है. उनका चेहरा शांत और ध्यानमग्न होता है, जो साधना और तप का प्रतीक है. मां ब्रह्मचारिणी तपस्वियों और साधकों की आराधना की देवी हैं. वे ध्यान और साधना के माध्यम से उच्च ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा देती हैं. उन्हें समर्पण और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति से व्यक्ति को सफलता, ज्ञान, और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पूजा के नियम: –

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनें और माँ को सफेद वस्तुएं हीं अर्पित करें जैसे मिश्री, शक्कर या पंचामृत. उसके बाद माँ का ध्यान करते हुए, उनके मन्त्रों का जाप करें. पूजा समाप्ति के बाद क्षमा प्रार्थना पढ़े और आरती करें.

कथा: –

माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी. तपस्या के पहले चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया, उसके बाद बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया. देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों को अमोघ फल देने वाला है. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है, साथ ही माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की भी प्राप्ति होती है, तथा जीवन में आने वाली समस्याओं व परेशानियों का नाश होता है. नवरात्र के दूसरी पूजा के दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को दान में चीनी ही देनी चाहिए. कहा जाता है कि, ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है.

मां ब्रह्मचारिणी का पूजा और स्मरण करने से व्यक्ति को आंतरिक शक्ति, ध्यान और ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित करती है.

संकलन:           –   ज्ञानसागरटाइम्स टीम.

Video Link:    –   https://youtu.be/_uiXoNbICps 

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