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मन का टिस…

अध्याय 3: अप्रत्याशित मुलाक़ात

बरसों बाद, नियति ने एक अप्रत्याशित मोड़ लिया. शीला एक साहित्यिक कार्यक्रम में गई हुई थी. मंच पर एक जाने-माने लेखक अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. जब उन्होंने अपना परिचय दिया, तो शीला का दिल तेज़ धड़कने लगा. वह नाम… वह आवाज़… कहीं सुनी हुई लग रही थी.

कार्यक्रम के बाद, जब लोगों की भीड़ छंटने लगी, शीला हिम्मत करके उस लेखक के पास गई. वह कुछ हिचकिचाई, फिर धीरे से पूछा, “क्या… क्या आपका नाम रवि है?” उस व्यक्ति ने मुड़कर देखा. उसकी आँखों में क्षण भर के लिए आश्चर्य का भाव आया, फिर एक हल्की सी पहचान की चमक उभरी. “हाँ. और आप… क्या आप शीला हैं?”

शीला का गला रुंध गया. बरसों बाद उस नाम को सुनना, उस चेहरे को देखना… यह सब एक सपने जैसा लग रहा था. “हाँ,” वह बड़ी मुश्किल से कह पाई.

कुछ पल के लिए वहाँ एक अजीब सी खामोशी छा गई. बरसों की दूरी, अनकही बातें, सब कुछ हवा में तैर रहा था.

रवि ने ही चुप्पी तोड़ी. “शीला… तुम्हें देखकर बहुत अच्छा लगा. तुम… तुम बिल्कुल वैसी ही हो.”

शीला के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई. “तुम भी… थोड़े बदल गए हो, पर तुम्हारी आँखें… वैसी ही हैं.”

फिर बातें शुरू हुईं. पहले थोड़ी हिचकिचाहट भरी, फिर धीरे-धीरे पुरानी यादों के गलियारों में भटकती हुई. रवि ने बताया कि उसके पिता का तबादला होने के बाद परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि वह कभी वापस नहीं आ सका. उसने यह भी बताया कि उसने हमेशा शीला को याद किया.

शीला ने अपने अकेलेपन के बारे में बताया, उस दबी हुई टीस के बारे में जो हमेशा उसके मन के एक कोने में मौजूद रही. रवि ने ध्यान से उसकी बातें सुनीं, उसकी आँखों में एक पछतावे का भाव था.

उस मुलाक़ात के बाद, दोनों मिलने लगे. पुरानी बातें ताज़ा हुईं, कुछ नए रिश्ते जुड़े. शीला को यह जानकर सुकून मिला कि रवि ने कभी उसे भुलाया नहीं था. पर कहीं न कहीं, बरसों की दूरी एक दीवार बनकर खड़ी थी. वे अब वह कॉलेज के बेफिक्र युवा नहीं थे. ज़िंदगी ने दोनों को अपने-अपने रास्तों पर बहुत दूर कर दिया था.

एक शाम, जब वे एक साथ बैठे चाय पी रहे थे, तब शीला ने पूछा, “रवि, क्या तुम्हें कभी… कभी ऐसा लगा कि कुछ अधूरा रह गया?”

रवि ने उसकी आँखों में देखा और कहा “हाँ, शीला, हमेशा से एक टीस मेरे मन में भी थी. शायद… हमने उस वक़्त अपने प्यार को खुलकर जिया नहीं.”

उस पल, शीला को लगा कि जैसे उसके मन का बरसों पुराना बोझ थोड़ा हल्का हो गया हो. उस टीस को, जिसे वह अकेले सह रही थी, अब उसे भी एक साथी मिल गया था.

शेष भाग अगले अंक में…,

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