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मानसिक वेदना…

राष्ट्रीय दस्तक

विकाश के प्रयासों की गूँज धीरे-धीरे बड़े मंचों तक पहुँचने लगी. “अपनी बात” ऑनलाइन मंच पर बढ़ती सक्रियता और विक्रम की प्रेरणादायक कहानी के बारे में समाचार पत्रों और कुछ स्थानीय टेलीविजन चैनलों ने रिपोर्ट करना शुरू कर दिया. लोगों ने उसकी ईमानदारी और दूसरों की मदद करने के जज्बे की सराहना की.

एक दिन विकाश को एक प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठन से संपर्क किया गया जो मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर काम करता था. उन्होंने विकाश के काम को देखा था और उससे साझेदारी करने की इच्छा व्यक्त की.

शुरुआत में विकाश थोड़ा हिचकिचाया. राष्ट्रीय स्तर पर काम करना एक बड़ी जिम्मेदारी थी. लेकिन अनिता  और डॉ. नैना के प्रोत्साहन से उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.

उस संगठन के साथ जुड़कर विकाश को एक बड़ा मंच मिला. अब वह अपनी बात और भी अधिक लोगों तक पहुँचा सकता था. उसने देश भर में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू कर दिया. वह कॉलेजों, स्कूलों और कॉर्पोरेट संस्थानों में जाकर अपने अनुभव साझा करता था और लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बताता था.

उसके भाषण सरल और सीधे होते थे, जो लोगों के दिलों को छू जाते थे. वह अपनी कमजोरी को छिपाता नहीं था, बल्कि उसे अपनी ताकत के रूप में प्रस्तुत करता था. उसने लोगों को बताया कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ किसी को भी हो सकती हैं और इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण है मदद माँगना और एक-दूसरे का समर्थन करना.

विकाश के प्रयासों से धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा. मानसिक स्वास्थ्य अब एक बंद कमरे में चर्चा का विषय नहीं रहा, बल्कि इस पर खुलकर बात होने लगी। सरकार ने भी इस दिशा में कुछ नई नीतियाँ बनानी शुरू कीं.

विकाश ने अनिता के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ लोग संकट की स्थिति में तुरंत मदद के लिए कॉल कर सकते थे. इस हेल्पलाइन ने अनगिनत लोगों को सही समय पर सहायता पहुँचाई.

रीना अब विकाश के काम में पूरी तरह से शामिल हो गई थी. उसने एक टीम बनाई जो “अपनी बात” मंच और हेल्पलाइन का प्रबंधन करती थी. उसका संगठनात्मक कौशल और लोगों से जुड़ने की क्षमता इस पहल के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई.

एक दिन विकाश को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मंच पर खड़े होकर उसने अपने संघर्ष और अपनी यात्रा के बारे में बात की. उसने उन सभी लोगों को धन्यवाद दिया जिन्होंने उसका साथ दिया और उन सभी लोगों को उम्मीद दी जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे.

उसने कहा, “हमारी पीड़ा हमें कमजोर नहीं बनाती, बल्कि हमें दूसरों के प्रति अधिक संवेदनशील और करुणामय बनाती है. आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहाँ हर कोई अपनी मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रख सके और ज़रूरत पड़ने पर मदद माँगने में संकोच न करे.”

विकाश की कहानी अब एक राष्ट्रीय प्रेरणा बन चुकी थी. उसने अपनी मानसिक वेदना को न केवल जीता था, बल्कि उसे दूसरों के लिए उम्मीद और करुणा के स्रोत में बदल दिया था. उसका काम अनगिनत जिंदगियों को छू रहा था और समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला रहा था.

यह विकाश की यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जहाँ उसकी व्यक्तिगत लड़ाई एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लेती है.

शेष भाग अगले अंक में…,

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