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मानसिक वेदना…

करुणा का विस्तार

विकाश का स्वयं सेवा कार्य धीरे-धीरे बढ़ने लगा. स्थानीय सहायता समूह में उसकी बातें सुनकर औरों को भी अपनी कहानियाँ साझा करने की हिम्मत मिली. उसने महसूस किया कि जब लोग अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करते हैं, तो एक अजीब सा बंधन बनता है, एक साझा समझ का भाव पैदा होता है जो अकेलेपन को दूर करता है.

उसने अनिता के साथ मिलकर एक छोटा सा ऑनलाइन मंच शुरू करने का विचार किया, जहाँ लोग गुमनाम रूप से अपनी भावनाओं और अनुभवों को साझा कर सकें और एक-दूसरे का समर्थन कर सकें. अनिता, जो तकनीकी मामलों में अच्छी थी, ने इस मंच को बनाने में उसकी मदद की.

“अपनी बात” नाम से शुरू हुआ यह ऑनलाइन मंच धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगा. लोग अपनी चिंताएँ, डर और उदासी वहाँ लिखते थे, और उन्हें दूसरों से सहानुभूति और सलाह मिलती थी. विकाश अक्सर खुद भी वहाँ अपनी प्रतिक्रियाएँ देता था, अपनी यात्रा के बारे में बताता था और लोगों को उम्मीद रखने के लिए प्रेरित करता था.

इस काम के माध्यम से विकाश को एक नया उद्देश्य मिला. अब उसकी अपनी पीड़ा उसे दूसरों के दर्द को समझने और उनके प्रति करुणा दिखाने की क्षमता देती थी. उसे लगता था कि जैसे उसके अपने अंधेरे दिनों का अब एक अर्थ है, क्योंकि वह उस अनुभव का उपयोग दूसरों के लिए रोशनी बनने के लिए कर रहा है.

एक दिन, “अपनी बात” मंच पर एक युवक ने लिखा कि वह आत्महत्या करने के विचार से जूझ रहा है. विकाश ने तुरंत उस युवक से संपर्क किया और उसे थेरेपी लेने के लिए प्रोत्साहित किया. उसने उसे अपनी कहानी बताई और उसे विश्वास दिलाया कि चीजें बेहतर हो सकती हैं. कुछ हफ्तों बाद, उस युवक ने मंच पर वापस आकर लिखा कि थेरेपी से उसे बहुत मदद मिली है और अब वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा है। यह देखकर विकाश को बहुत संतोष हुआ.

विकाश का यह काम उसके कार्यालय तक भी पहुँचा. कुछ सहकर्मियों ने उससे निजी तौर पर संपर्क किया और अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बात की. विक्रम ने उन्हें धैर्य से सुना और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन किया.

रीना भी अपने भाई के इस बदलाव को देखकर बहुत खुश थी. उसने विकाश के काम में उसका समर्थन किया और कभी-कभी सहायता समूह की बैठकों में भी शामिल हुई.

एक शाम विकाश ने अनिता से कहा, “मुझे लगता है कि मैंने आखिरकार अपनी पीड़ा का अर्थ ढूंढ लिया है.”

अनिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम हमेशा से ही एक अच्छे इंसान थे, विकाश. अब तुम दूसरों को भी अच्छा महसूस करा रहे हो.”

विकाश का जीवन अब एक नई दिशा में बढ़ रहा था. उसकी अपनी मानसिक वेदना अब उसे कमजोर नहीं करती थी, बल्कि उसे दूसरों के प्रति अधिक संवेदनशील और मजबूत बनाती थी. वह जानता था कि चुनौतियाँ हमेशा रहेंगी, लेकिन अब उसके पास उनसे लड़ने की ताकत और दूसरों का साथ भी था.

विकाश की कहानी दिखाती है कि मानसिक वेदना से जूझ रहे व्यक्ति भी न केवल ठीक हो सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन सकते हैं. करुणा और साझा अनुभवों की शक्ति से अंधेरे को भी रोशनी में बदला जा सकता है.

शेष भाग अगले अंक में…,

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