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मानसिक वेदना…

रोशनी की ओर

विकाश ने डॉ. नैना के साथ नियमित रूप से मिलना शुरू कर दिया. हर सेशन उसके लिए एक नई राह खोलता था. डॉ. नैना ने उसे अपनी भावनाओं को पहचानना और उन्हें व्यक्त करना सिखाया. उन्होंने उसे बताया कि अपनी कमजोरियों को स्वीकार करना कमजोरी नहीं, बल्कि साहस की निशानी है.

धीरे-धीरे विकाश को यह समझ आने लगा कि उसके भीतर जो उदासी और खालीपन महसूस होता है, वह सिर्फ ‘मन का वहम’ नहीं है, बल्कि एक वास्तविक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके लिए मदद की ज़रूरत होती है.

डॉ. नैना ने उसे कुछ आसान व्यायाम और तकनीकें सिखाईं, जैसे कि गहरी साँस लेना और माइंडफुलनेस, जिससे उसे अपने विचारों को शांत करने में मदद मिली. शुरू में उसे यह सब अजीब लगा, लेकिन धीरे-धीरे उसे इनका महत्व समझ आने लगा.

अनिता का साथ उसके लिए एक बड़ी ताकत था. वह उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने देती थी. वे साथ में पार्क में घूमने जाते, कभी-कभी फिल्में देखते, और बस एक-दूसरे के साथ समय बिताते। अनिता की सकारात्मकता विकाश के भीतर भी थोड़ी उम्मीद जगाने लगी थी.

रीना के जन्मदिन पर विकाश थोड़ा घबराया हुआ था. उसे डर था कि कहीं उसकी उदासी उत्सव के माहौल को खराब न कर दे. लेकिन जब उसने रीना को खुश देखा, तो उसे भी थोड़ी खुशी महसूस हुई. रीना ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “भैया, मुझे खुशी है कि तुम यहाँ हो.”

उस दिन विकाश ने महसूस किया कि वह अकेला नहीं है. उसके आसपास ऐसे लोग हैं जो उसे प्यार करते हैं और उसकी परवाह करते हैं.

थेरेपी के कुछ महीनों बाद, विकाश में धीरे-धीरे बदलाव आने लगे थे. वह अब सुबह थोड़ा जल्दी उठने लगा था. उसने फिर से अपनी पुरानी शौक, जैसे कि किताबें पढ़ना और पेंटिंग करना, शुरू कर दिए थे. उसे अभी भी मुश्किल होती थी, बुरे दिन आते थे, लेकिन अब उसके पास उनसे निपटने के लिए कुछ उपकरण थे.

कार्यालय में भी उसके प्रदर्शन में सुधार हुआ था. वह बैठकों में अधिक आत्मविश्वास से अपनी राय रखता था, और अपने काम पर अधिक ध्यान केंद्रित कर पाता था. मिस्टर शर्मा ने भी उसके इस बदलाव को नोटिस किया था.

एक दिन मिस्टर शर्मा ने उसे अपने केबिन में बुलाया. ” विकाश, मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूँ. पिछले कुछ महीनों में तुमने काफी प्रगति की है.”

विकाश ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “धन्यवाद, सर.”

उस पल उसे एहसास हुआ कि वह धीरे-धीरे उस अँधेरे से बाहर निकल रहा है. रास्ता अभी भी लंबा था, लेकिन अब उसे उस रास्ते पर चलने की हिम्मत मिल गई थी.

एक शाम विकाश अनिता के साथ बालकनी में बैठा चाय पी रहा था. सूरज डूब रहा था और आकाश नारंगी और गुलाबी रंगों से भर गया था.

“तुम्हें पता है, अनीता,” विकाश ने कहा, “मुझे अब पहले से बेहतर महसूस होता है.”

अनिता ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ा. “मुझे खुशी है, विकाश. मुझे हमेशा से पता था कि तुम इससे बाहर निकल सकते हो.”

विकाश ने आकाश की ओर देखा. अँधेरा धीरे-धीरे छा रहा था, लेकिन इस बार उस अँधेरे में उसे डर नहीं लग रहा था. उसे पता था कि सुबह फिर से रोशनी आएगी.

यह अंत नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है. विकाश की यात्रा अभी जारी है.

शेष भाग अगले अंक में…,

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