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अवस्थिति…

वाहन में सवार जब मैं आगे भाग रहा होता हूँ,

तब खिड़की से चीजें दिखाई देती हैं निकट की पीछे भागती हुई कुछ दूर की स्थिर और बहुत दूर की साथ चलती हुई जबकि हर चीज़ की अवस्थिति रहती है वही नहीं पड़ता है कुछ फ़र्क़ उसमें मेरे भागने से

और देखा जाए तो मैं भी कहाँ भाग रहा होता हूँ,

भाग रहा होता है मात्र मेरा प्राकृत शरीर सीमित गति से निश्चित गंतव्य की ओर भाग रहा होता है अनंत गति से मन अनिश्चित दिशाओं में निरंतर इन यथार्थ एवं आभासी गतियों के बीच मेरी चेतना की अवस्थिति रहती है बहुधा वही जो है जन्मना या कदाचित् जन्म-जन्मांतर से.

प्रभाकर कुमार.

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Location…

In the vehicle when I am running ahead,

Then things are visible from the window running behind the near, some far away stationary and far away moving along while everything remains in position it doesn’t make any difference if I run away from it

And if you see where I am also running,

Only my natural body is running towards a certain destination with a limited speed, and the mind is running at an infinite speed, in indefinite directions, between these real and virtual movements, my consciousness is located, which is often the same as birth or perhaps birth after birth. From.

Prabhakar Kumar.

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