
रमेश एक अनुभवी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर था. उसने वर्षों तक एक पुरानी तकनीक पर काम किया था और उसमें उसकी अच्छी पकड़ थी. जब कंपनी ने नई और आधुनिक तकनीकों को अपनाया, तो रमेश थोड़ा हिचकिचाया. उसे लगा कि इस उम्र में नई चीजें सीखना मुश्किल है. उसके युवा सहकर्मी तेज़ी से नई चीजें सीख रहे थे और रमेश कहीं पीछे छूटता जा रहा था. उसे महसूस होने लगा था कि यह नया युग उसकी पकड़ से बाहर जा रहा है.
एक दिन, उसकी युवा टीम लीड ने रमेश को एक नई परियोजना पर काम करने के लिए कहा जिसमें बिल्कुल नई तकनीक का इस्तेमाल होना था. रमेश घबरा गया, लेकिन उसने चुनौती स्वीकार की. उसने अपने युवा साथियों से मदद मांगी, ऑनलाइन ट्यूटोरियल देखे और कड़ी मेहनत की. धीरे-धीरे, उसने नई तकनीक को समझना शुरू कर दिया.
इस प्रक्रिया में रमेश ने एक बड़ी सीख हासिल की – युग बदलता है और हमें भी उसके साथ बदलना होता है. उम्र सीखने की राह में बाधा नहीं बनती, बल्कि अनुभव हमें नई चीजों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है. उसने देखा कि उसके युवा साथियों में उत्साह और नई सोच थी, जबकि उसके पास वर्षों का अनुभव था. दोनों का संयोजन किसी भी चुनौती को पार कर सकता है. अंततः रमेश न केवल उस नई परियोजना में सफल हुआ, बल्कि उसने कंपनी के अन्य कर्मचारियों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बना. परिवर्तन अपरिहार्य है, और हर पीढ़ी के पास देने और सीखने के लिए कुछ न कुछ होता है, मिलकर चलने में ही प्रगति है.
शेष भाग अगले अंक में…,