News

श्रम देश की आत्मा तो श्रमिक उसकी धड़कन: डॉ. गौरी शंकर

“श्रमिक किसी भी राष्ट्र की प्रगति के आधार स्तंभ तथा प्रेरणा व श्रम के जीवंत प्रतीक हैं “

———————————————

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के अवसर पर “श्रमिकों का महत्व व राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका” विषय पर एक परिचर्चा नगर परिषद जमुई स्थित आनंद विहार कॉलोनी में हुई, जिसकी अध्यक्षता गवर्नमेंट महिला डिग्री कॉलेज, जमुई के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने की.

अपने अध्यक्षीय प्रबोधन में डॉ. गौरी शंकर पासवान ने कहा कि श्रमिक किसी भी राष्ट्र की प्रगति के आधार स्तंभ, प्रेरणा एवं श्रम के जीवंत प्रतीक होते हैं. देश निर्माण में श्रमिकों के महत्व और भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. क्योंकि श्रम देश की आत्मा है, तो श्रमिक उसकी धड़कन हैं. श्रमिक एक मात्र मजदूर नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के संवाहक हैं. यदि उनके अधिकारों, स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मान की अनदेखी की जाती है, तो सुख, शांति और प्रगति असमान होगा. अतः मजदूरों का सम्मान और श्रम की गरिमा को बनाए रखना केवल सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिरता की आवश्यक शर्त भी है. श्रमिकों के कल्याण और उन्हें सुविधाएं  प्रदान किए बिना समावेशी विकास की कल्पना अधूरी  है.

प्रो. पासवान ने कहा कि धरती पर श्रम से बड़ा कोई धर्म नहीं, और श्रमिक से बड़ा कोई कर्मयोगी नहीं है. श्रम की गरिमा सभ्य समाज की नींव है. भारत जैसे  विकासशील देश की विकास की नींव जिन कंधों पर है, वह कोई दूसरा नहीं, बल्कि मजबूर ही हैं. वही देश को खिलाते हैं, देश बनाते हैं और देश चलाते भी है. कहते हैं कि ‘जो पसीना बहाता है, वही देश चलता है. जो कल की इमारत का निर्माण करता है, आज वही फूस में रहता है. देश में मजदूर दिवस मनाते आज 102 वर्ष (1923) हो गए हैं, लेकिन मजदूरों का जीवन आज भी बदहाल और उनकी स्थिति दयनीय है. यह दिवस उनके अधिकार और  योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है.

डॉ. (प्रो) निरंजन कुमार दुबे ने कहा कि श्रमिक श्रम का दीपक होता है, जिस घर में श्रम का दीप जलता है वहां हर अंधकार दूर भागता है. वे समाज और राष्ट्र के रीढ़ हैं। श्रम वह धर्म है, जो मानव को कर्मशील बनाता है। श्रमिकों के महत्व और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को विस्मृत नहीं कर सकते हैं.

प्रो. आनंद कुमार सिंह ने कहा कि मजदूर समाज एवं देश के निर्माता हैं ,किंतु उनकी मेहनत और श्रम चट्टानों को भी आकर देता है. हमें चाहिए कि हम सभी श्रमिकों की महिमा को सम्मान पूर्वक पहचाने। देश निर्माण में उनके योगदान को भला कोई कैसे भूल सकता है? प्रो. संजीव कुमार सिंह ने कहा कि श्रमिक के बिना कुछ भी संभव नहीं है. श्रम कई प्रकार के हैं- मानसिक और शारीरिक श्रम. शारीरिक श्रम करने वाले मजदूर गरीब, कमजोर और उपेक्षित होते हैं. उनकी दशा ज्यादा खराब रहती है. क्योंकि वह दिहाड़ी मजबूर होते हैं. उनकी मजदूरी में वृद्धि होनी चाहिए. जिस समाज में श्रम और मेहनत की कद्र नहीं होती वह दीर्घकाल तक प्रगति नहीं करता.

वरिष्ठ अधिवक्ता रामचंद्र रविदास ने कहा कि श्रमिक दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उन हाथों का उत्सव है, जो हमारी दुनिया बनाते हैं. संविधान में प्रदत मजदूरों के अधिकारों का सदुपयोग होना चाहिए. वरिष्ठ शिक्षक दिनेश मंडल ने कहा कि श्रम भी शिक्षा की भांति समाज निर्माण की नींव है. एक श्रमिक की भूमिका एक शिक्षक के समान है क्योंकि वह भी समाज को गढ़ता है. इसलिए मजदूरों को भी अधिकार, सुविधाएं और सम्मान मिलनी चाहिए.

 इस मौके पर प्रो. डी. के. गोयल, प्रो. सरदार राय, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभात कुमार भगत, वरिष्ठ अधिवक्ता मुरारी झा, शिक्षक मंटू पासवान आदि कई वक्ताओं ने मजदूरों के महत्व और योगदान को आवश्यक और अद्वितीय बताया.

प्रभाकर कुमार, (जमुई).

:

Related Articles

Back to top button