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जेठ की अल्हड़ पवन…

गाँव में नई उम्मीद की पहली बारिश

गाँव की गलियों में अब खुशहाली लौट आई थी. पहली बारिश के बाद मिट्टी में सोंधी महक भर गई थी, और हर किसी के चेहरे पर संतोष की झलक थी.

बारिश के बाद खेतों में नमी आ गई थी। किसान अपने हल और बीज लेकर खेतों की ओर चल पड़े. “अब फसल अच्छी होगी!” रामू काका ने उत्साह से कहा. गाँव के छोटे बच्चे भी अपने बुजुर्गों के साथ खेतों में दौड़ने लगे, मिट्टी को महसूस करने लगे.

पहली बारिश के बाद तालाब में नई लहरें उठी थीं. जल से भरा तालाब गाँव की तिजोरी की तरह था—जो पूरे साल गाँव को पानी देता. कुछ बच्चे तालाब के किनारे बैठकर उसमें कंकड़ फेंकने लगे, तो कुछ अपने छोटे-छोटे नाव बहाकर खेल रहे थे.

गाँव की औरतें बारिश के बाद पहली बार घरों के बाहर बैठकर गीत गाने लगीं. हलवाई की दुकान पर जलेबी और समोसे की महक फैल गई थी, और हर कोई इस नए मौसम का जश्न मनाने में व्यस्त था.

बारिश की इन बूंदों ने सिर्फ़ खेतों को नहीं, बल्कि दिलों को भी सींच दिया था. यह बारिश सिर्फ़ पानी नहीं थी, बल्कि नई उम्मीदों की पहली दस्तक थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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