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जेठ की अल्हड़ पवन…

पहली बारिश की दस्तक

जेठ की तपती दोपहरी में जब धरती आग उगलती थी, तब हर कोई आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठा रहता. खेतों की सूखी मिट्टी, आम के बाग़ की झुलसी हुई पत्तियाँ, और गाँव की गलियों में पसरा सन्नाटा—सबको बस एक ही इंतजार था, पहली बारिश की दस्तक.

एक शाम, जब सूरज ढलने को था, अचानक हवा का रुख बदल गया. जेठ की अल्हड़ पवन अब पहले से कहीं अधिक तेज़ हो गई थी. दूर कहीं बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई दी, और गाँव के बच्चे खुशी से उछल पड़े। “बारिश आने वाली है!” वे चिल्लाए और घरों से बाहर दौड़ पड़े.

गाँव के बुजुर्ग पीपल के नीचे बैठे थे. रामू काका ने मुस्कुराकर कहा, “यही तो है जेठ की सबसे बड़ी सौगात—पहली बारिश!”

कुछ ही देर में आसमान में काले बादलों का साम्राज्य फैल गया. बिजली चमकी, और फिर अचानक—पहली बूंदें धरती पर गिरने लगीं. मिट्टी से उठती सोंधी खुशबू ने पूरे गाँव को महका दिया. बच्चे नाचने लगे, और खेतों में काम करने वाली औरतें अपनी चुनरियों को समेटकर बारिश का आनंद लेने लगीं.

गाँव के तालाब में पानी की पहली लहरें उठीं, और आम के पेड़ों ने अपनी पत्तियों को धोकर फिर से हरा रंग पहन लिया. रामू काका ने गहरी सांस ली और कहा, “यह बारिश सिर्फ़ पानी नहीं है, यह जीवन की नई शुरुआत है.”

पहली बारिश की दस्तक ने गाँव को फिर से जीवंत कर दिया. जेठ की अल्हड़ पवन अब ठंडी हो चुकी थी, और हर किसी के चेहरे पर मुस्कान थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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