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जेठ की अल्हड़ पवन…

रामू काका और बरगद का सपना

गाँव में बरसों पुराना एक बरगद का पेड़ था, जो किसी गवाह की तरह हर पीढ़ी के बदलाव को देख चुका था। रामू काका का उस पेड़ से गहरा लगाव था. वह कहते थे, “यह सिर्फ़ पेड़ नहीं है, यह हमारी यादों का पहरेदार है.”

एक समय की बात है, जब गाँव में पानी की किल्लत बढ़ने लगी. तालाब सूखने लगे और कुएँ में जल स्तर कम होने लगा. गाँव के लोग चिंतित थे, लेकिन किसी को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. इसी बीच, रामू काका ने एक पुरानी कहानी सुनाई – उनके पिता कहते थे कि बरगद सिर्फ़ छाया नहीं देता, बल्कि जमीन को भी पकड़कर रखता है, मिट्टी को बहने से रोकता है और पानी को संचित करने में मदद करता है.

गाँव वालों ने इस पर गौर किया, और रामू काका की सलाह पर गाँव के चारों ओर छोटे-छोटे पौधे लगाने शुरू कर दिए. बरगद के आस-पास भी कई नए पेड़ लगाए गए. धीरे-धीरे बारिश के दिनों में गाँव की मिट्टी पहले से अधिक नमी सोखने लगी. कुएँ का जलस्तर ऊपर आने लगा और तालाबों में पानी फिर से भरने लगा.

रामू काका जब भी बरगद के नीचे बैठते, तो कहते, “सपने देखने से ही सब कुछ संभव होता है. यह पेड़ हमारा सपना था, जिसे हमने सच कर दिखाया.”

गाँव के लोग अब भी उस बरगद को “रामू काका का सपना” कहते हैं. उनकी कहानी गाँव की नई पीढ़ी को भी यह सिखाती है कि प्रकृति की देखभाल करना ही सबसे बड़ा जीवन धर्म है.

शेष भाग अगले अंक में…,

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