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जेठ की अल्हड़ पवन…

हलवाई की मिठास और बारिश

गाँव की गलियों में बारिश की पहली बूंदें गिरते ही हलवाई की दुकान पर भीड़ उमड़ पड़ी. गरमागरम जलेबी और समोसे की महक हवा में घुल गई थी, और हर कोई इस नए मौसम का जश्न मनाने में व्यस्त था.

बारिश की फुहारों के बीच हलवाई ने बड़े कढ़ाह में घी गरम किया. जैसे ही उसने जलेबी का घोल डाला, दुकान के बाहर खड़े बच्चे खुशी से उछल पड़े. “बारिश में गरम जलेबी खाने का मज़ा ही कुछ और है!” किसी ने कहा, और सभी ने सहमति में सिर हिलाया.

गाँव के बुजुर्गों ने हलवाई की दुकान पर बैठकर चाय की चुस्कियाँ लीं. बारिश की बूंदें छत से टपक रही थीं, और हलवाई अपनी कढ़ाही में मिठास घोलने में मग्न था. “यह बारिश सिर्फ़ खेतों को नहीं, बल्कि हमारी रसोई को भी ताज़गी देती है,” रामू काका ने मुस्कुराकर कहा.

हलवाई की दुकान पर काम करने वाले लोग बारिश की परवाह किए बिना मिठाई बनाने में जुटे थे. यह दिखाता है कि मेहनत और समर्पण किसी भी मौसम में कम नहीं होते.

बारिश की इन बूंदों ने सिर्फ़ गाँव की मिट्टी को नहीं, बल्कि दिलों को भी मिठास से भर दिया था. हलवाई की दुकान पर हर कोई इस मौसम का आनंद ले रहा था, और मिठाई की खुशबू ने पूरे गाँव को महका दिया था.

शेष भाग अगले अंक में…,

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