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व्यक्ति विशेष

भाग - 99.

सिक्खों के तीसरे गुरु गुरु अमरदास

सिख धर्म के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास का जन्म 1479 में हुआ था और उन्होंने 1552 – 74 तक गुरु के रूप में सेवा की. उन्हें सिख धर्म की परंपराओं और रीतियों में कई महत्वपूर्ण बदलावों के लिए जाना जाता है. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म में एकता और समाजिक न्याय के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उन्होंने लंगर (सामूहिक भोजन) की प्रथा को मजबूत किया, जिसमें सभी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग समान रूप से भोजन करते हैं, जिससे समाज में बराबरी और एकता को बढ़ावा मिलता है. इस प्रथा ने समाजिक विभाजन को कम करने और समानता को बढ़ावा देने में मदद की.

गुरु अमरदास जी ने अनुष्ठानिक पवित्रता और बाहरी रूप से अधिक आंतरिक भक्ति और नैतिकता पर जोर दिया. उन्होंने सिख धर्म की शिक्षाओं को व्यवस्थित करने और उन्हें व्यापक बनाने में भी योगदान दिया. गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को फैलाने के लिए वारिस (धार्मिक उत्तराधिकारी) और मंजी (धार्मिक केंद्र) की व्यवस्था की स्थापना की.

गुरु अमरदास जी के कार्यकाल में, उन्होंने विभिन्न धार्मिक यात्राओं (तीर्थ) के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई, जोर देकर कहा कि सच्चा तीर्थ गुरु के प्रति समर्पण और आत्मिक पवित्रता में है.

उन्होंने गोइंदवाल साहिब में एक विशेष कुआँ, बाउली साहिब का निर्माण करवाया, जो आज भी सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. उनके निधन के बाद, उनके पोते गुरु राम दास जी सिख धर्म के चौथे गुरु बने.

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न्यायाधीश अन्ना चंडी

अन्ना चंडी भारतीय न्यायिक इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं, जो भारत की पहली महिला जज बनीं. उनका जन्म 1905 में हुआ था, और उन्होंने एक ऐसे समय में कानून के क्षेत्र में प्रवेश किया जब महिलाओं का इस पेशे में होना बेहद दुर्लभ माना जाता था.

अन्ना चंडी ने 1937 में त्रावणकोर हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में अपनी नियुक्ति प्राप्त की, जो कि भारत में किसी भी महिला के द्वारा हासिल की गई इस पद की पहली नियुक्ति थी. उनकी इस उपलब्धि ने न केवल महिलाओं के लिए कानून के क्षेत्र में नए द्वार खोले, बल्कि यह भी दिखाया कि समर्पण और कड़ी मेहनत के साथ, महिलाएं किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकती हैं.

उनके कैरियर में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर 1959 में आया, जब वह केरल हाई कोर्ट की न्यायाधीश बनीं. यह भारत के नवगठित राज्य केरल में इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं. अन्ना चंडी ने अपने न्यायिक कैरियर के दौरान महिलाओं के अधिकारों, समाजिक न्याय और बराबरी के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया.

अन्ना चंडी की उपलब्धियां उस समय के समाज में महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बनीं और आज भी हैं. उनका निधन 1996 में हुआ, लेकिन उनकी विरासत भारतीय कानूनी प्रणाली और समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण के रूप में जारी है.

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रानीतिज्ञ जगजीवन राम

जगजीवन राम, जिन्हें आमतौर पर बाबू जगजीवन राम के नाम से जाना जाता है.  उनका जन्म 5 अप्रैल 1908 को हुआ था और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया था. वह एक अग्रणी दलित नेता थे और उन्होंने समाज में नीचे से उठकर ऊंचाईयों तक का सफर तय किया।

जगजीवन राम ने भारत की आज़ादी के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कार्य किया। उन्होंने भारतीय राजनीति में विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अद्वितीय छाप छोड़ी, जिसमें कृषि, शिक्षा, और रक्षा शामिल हैं.1977 में, उन्हें भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया, जो उनके राजनीतिक कैरियर का चरम था.

जगजीवन राम ने समाजिक न्याय और बराबरी के लिए अपने पूरे जीवन काम किया. वह दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित थे और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की. उन्होंने भारतीय समाज में वर्ण और जाति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सक्रिय रूप से आवाज उठाई.

जगजीवन राम की राजनीतिक और सामाजिक योगदान को भारत में व्यापक रूप से सराहा गया है, और उनके नाम पर कई संस्थान और सम्मान स्थापित किए गए हैं. उनका निधन 6 जुलाई 1986 को हुआ था, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय राजनीति और समाज में जीवित है.

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समाज सुधारक पंडिता रमाबाई

रमाबाई का जन्म 23 अप्रैल 1858 को संस्कृत विद्वान अनंत शास्त्री डोंगरे के घर हुआ और उनका निधन 5 अप्रैल 1922 को हुआ था. पंडिता रमाबाई भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद्, और महिला अधिकारों की प्रमुख प्रवर्तक थीं, वे उन शुरुआती महिला अग्रदूतों में से एक थीं, जिन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए काम किया.

रमाबाई ने अपने पिता से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की और वे एक असाधारण विद्यार्थी थीं. उनकी शिक्षा ने उन्हें बाद में महिला शिक्षा की वकालत करने में मदद की. रमाबाई ने महिलाओं की शिक्षा के महत्व पर बल दिया. उन्होंने विशेष रूप से विधवाओं और अशिक्षित महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए काम किया.

रमाबाई ने 1889 में मुक्ति मिशन की स्थापना की, जो एक आश्रय और शिक्षा केंद्र था जो महिलाओं और बच्चों, विशेषकर विधवाओं की सहायता के लिए समर्पित था. रमाबाई ने शिक्षा और महिला सुधार के विचारों को गहराई से समझने के लिए इंग्लैंड और अमेरिका की यात्रा की. विदेश में उनके अनुभवों ने उन्हें भारत में अपने कार्य को और अधिक प्रेरित किया.

रमाबाई ने महिला सुधार के मुद्दों पर विस्तार से लिखा और भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों की वकालत की. उनके लेखन ने महिला सुधार आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

रमाबाई के कार्यों को व्यापक रूप से सराहा गया और उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें ‘पंडिता’ की उपाधि दी गई थी, जो उनके विद्वता और ज्ञान को दर्शाती है. पंडिता रमाबाई का जीवन और कार्य आज भी भारत में महिला शिक्षा और सुधार के प्रेरणास्रोत के रूप में याद किया जाता है. उनका अथक प्रयास और समर्पण महिलाओं के लिए बेहतर भविष्य की नींव रखने में मदद करता है.

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गाँधीजी के सहायक सी. एफ़. एंड्रयूज

चार्ल्स फ्रेर एंड्रयूज जिन्हें गरीबों के मित्र के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें  महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख सहयोगी के रूप में जानते हाँ. उनका जन्म 12 फरवरी 1871 को इंग्लैंड में हुआ था और उनकी मृत्यु 5 अप्रैल 1940 को हुई. वे एक अंग्रेज़ ईसाई मिशनरी, शिक्षाविद्, और समाज सुधारक थे जिन्होंने अपना जीवन भारत और अन्य उपनिवेशित देशों में सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता की खोज में समर्पित कर दिया.

एंड्रयूज 1904 में भारत आए और कोलकाता में सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में अध्यापन कार्य किया. उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म को समझने में गहरी रुचि दिखाई और भारतीय समाज में गहराई से शामिल हुए. उन्होंने महात्मा गांधी से मिलने के बाद उनके साथ गहरी मित्रता और सहयोग का संबंध विकसित किया. एंड्रयूज ने गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका समर्थन किया.

एंड्रयूज ने न केवल भारत में, बल्कि फिजी, दक्षिण अफ्रीका, और अन्य स्थानों पर भी श्रमिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए काम किया. उन्होंने विशेष रूप से भारतीय मजदूरों की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित किया जो विदेशी उपनिवेशों में काम कर रहे थे. एंड्रयूज ने अपने लेखन और व्याख्यानों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, और शांति के मुद्दों पर बात की. उन्होंने गांधीजी और अन्य भारतीय नेताओं के साथ मिलकर कई पुस्तकें और लेख लिखे.

एंड्रयूज ने विशेष रूप से भारत में जाति प्रथा और असमानता के खिलाफ बोला. वे अधिक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में विश्वास रखते थे. एंड्रयूज का जीवन और कार्य उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सहयोगी के रूप में पहचानते हैं. उनका समर्पण और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता आज भी प्रेरणादायक है.

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अभिनेत्री दिव्या भारती

दिव्या भारती एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में हिंदी, तेलुगु, और तमिल फिल्म उद्योग में अपनी छाप छोड़ी। उनका जन्म 25 फरवरी 1974 को मुंबई में हुआ था और दुखद रूप से उनकी मृत्यु केवल 19 वर्ष की उम्र में 5 अप्रैल 1993 को हो गई.

उनके छोटे कैरियर के दौरान, दिव्या भारती ने अपनी प्रतिभा, सौंदर्य, और जीवंत उपस्थिति के साथ फिल्म उद्योग में तेजी से सफलता प्राप्त की. उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में “विश्वात्मा”, “शोला और शबनम”, और “दीवाना” शामिल हैं, जिन्होंने उन्हें व्यापक पहचान और प्रशंसा दिलाई. “दीवाना” में उनके अभिनय के लिए उन्हें मरणोपरांत फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

उनके निधन ने फिल्म उद्योग और उनके प्रशंसकों को गहरे शोक में डुबो दिया. दिव्या भारती की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है, जिसके कारण और परिस्थितियों की जांच विविध अटकलों और सिद्धांतों का विषय बनी रहती है. उनके आकस्मिक निधन ने उन्हें एक त्रासदीपूर्ण आइकन बना दिया है, और वे भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक युवा, प्रतिभाशाली अभिनेत्री के रूप में याद की जाती हैं, जिनका करियर बहुत ही जल्दी और दुखद रूप से समाप्त हो गया.

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