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व्यक्ति विशेष

भाग - 55.

वैज्ञानिक शान्ति स्वरूप भटनागर

डॉ. शान्ति स्वरूप भटनागर (21 फरवरी, 1894 – 1 जनवरी, 1955) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और रसायनशास्त्री थे. उन्हें भारत में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के पितामह के रूप में जाना जाता है. भटनागर ने भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई थी और उसके पहले महानिदेशक थे.

उनके शोध कार्य मुख्य रूप से रसायनशास्त्र के क्षेत्र में थे, जिसमें औद्योगिक रसायनशास्त्र, फार्मास्यूटिकल्स, और द्रव्यों के भौतिक गुणों का अध्ययन शामिल है. उन्होंने विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं और पदार्थों की खोज में भी योगदान दिया था.

भटनागर पुरस्कार, जिसे भारत में विज्ञान और तकनीकी में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है, उनके नाम पर स्थापित किया गया था. उनकी याद में हर वर्ष शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भारत में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जाता है.

डॉ. भटनागर ने अपने जीवनकाल में भारतीय विज्ञान और तकनीकी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें इस क्षेत्र में अपने अद्वितीय योगदान के लिए याद किया जाता है.

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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, उपन्यासकार, निबंधकार और आलोचक थे. वे छायावादी युग के महान कवियों में से एक माने जाते हैं. निराला का जन्म 21 फरवरी, 1896 को बंगाल के महिषादल में हुआ था और उनका निधन 15 अक्टूबर, 1961 को हुआ. उनके साहित्य में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और व्यक्तित्व की मजबूती के विचार प्रमुखता से पाए जाते हैं.

निराला की रचनाएँ विविधतापूर्ण हैं और उन्होंने कविता, उपन्यास, निबंध, संस्मरण और आलोचना में योगदान दिया है. उनकी कविताओं में अनूठी शैली और भाषा का प्रयोग देखने को मिलता है. उन्होंने पारंपरिक शैली से हटकर नए प्रयोग किए, जिससे हिंदी कविता में नई दिशा और ऊर्जा का संचार हुआ.

निराला के कुछ प्रमुख उपन्यासों में ‘अप्सरा’, ‘प्रभावती’, ‘अलका’ और ‘निरुपमा’ शामिल हैं. उनकी कविताओं में ‘सरोज स्मृति’, ‘अनामिका’, ‘परिमल’ और ‘कुकुरमुत्ता’ जैसी कृतियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं. उन्होंने ‘तुलसीदास की आत्मकथा’ जैसे महत्वपूर्ण निबंध भी लिखे। निराला की रचनाओं में आदर्शवादी विचारों के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक चेतना की भी झलक मिलती है. उनके साहित्य में विद्रोही भावना और सामाजिक असमानताओं के प्रति आक्रोश भी स्पष्ट रूप से व्यक्त हुआ है.

निराला का काम उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का एक गहन अध्ययन प्रस्तुत करता है और आज भी हिंदी साहित्य में उनका काम बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.

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पार्श्वगायिका ज़ोहराबाई अम्बालेवाली

ज़ोहराबाई अम्बालेवाली भारतीय संगीत इतिहास में एक प्रमुख पार्श्वगायिका थीं, जिन्होंने 1940 और 1950 के दशक में अपनी मधुर आवाज़ से हिंदी सिनेमा को समृद्ध किया. उनका संगीत करियर उस समय के कुछ सबसे यादगार और प्रतिष्ठित गीतों का निर्माण करने में सहायक था. उनकी गायन शैली उनके समकालीनों से अलग थी, और उन्होंने अपनी विशिष्ट आवाज़ और गायन कौशल के साथ उस समय के संगीत प्रेमियों के दिलों को छुआ.

ज़ोहराबाई अम्बालेवाली ने नौशाद, खेमचंद प्रकाश, और अन्य प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया और उनके संगीत निर्देशन में कई लोकप्रिय गीत गाए. उनकी आवाज़ में एक खास तरह की मिठास और गहराई थी, जो उन्हें उनके समय की अन्य पार्श्वगायिकाओं से अलग करती थी.

ज़ोहराबाई के कुछ प्रसिद्ध गीतों में ‘अँखियां मिला के जिया भरमाके’,  ‘ऐ दीवाली, ऐ दिवाली’ , और ‘उड़न खटोले पे उड़ जाऊँ’  जैसे गीत शामिल हैं, हालांकि इन गीतों को कभी-कभी अन्य गायिकाओं के साथ गलती से जोड़ दिया जाता है. उनके गाने आज भी संगीत के शौकीनों द्वारा सराहे जाते हैं और उनकी आवाज़ भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग की एक यादगार ध्वनि के रूप में बनी हुई है.

ज़ोहराबाई अम्बालेवाली का कैरियर उस युग के संगीत में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है, और उनकी योगदान को भारतीय संगीत इतिहास में उच्च सम्मान के साथ देखा जाता है.

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अभिनेता ओम प्रकाश

ओम प्रकाश भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित अभिनेता थे, जिन्होंने अपने लंबे फिल्मी कैरियर में विविध भूमिकाएं निभाईं. उनका जन्म 19 दिसंबर 1919 को हुआ था, और उनका निधन 21 फरवरी 1998 को हुआ. ओम प्रकाश ने अपनी प्रतिभा के बल पर भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने चरित्र अभिनेता, कॉमेडियन, और सहायक अभिनेता के रूप में कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं.

ओम प्रकाश की अभिनय क्षमता और उनका विशेष अभिनय शैली उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती थी. उन्होंने हास्य, ड्रामा, और रोमांस जैसी विविध शैलियों में काम किया और हर भूमिका में अपनी विशेषता सिद्ध की. उनकी उपस्थिति हर फिल्म में एक अलग पहचान बनाती थी, और उनके चरित्रों में एक गहराई और मानवीयता होती थी, जो दर्शकों को उनके प्रति आकर्षित करती थी.

ओम प्रकाश ने “दस लाख” (1966), “प्यार किये जा” (1966), “चुपके चुपके” (1975), “जूली” (1975), और “अमर अकबर एंथनी” (1977) जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से खास पहचान बनाई. उनकी क्षमता को उनके द्वारा निभाई गई विविध भूमिकाओं में देखा जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक में उन्होंने एक अलग छवि और गहराई प्रस्तुत की.

ओम प्रकाश का योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उनके अभिनय को आज भी सिनेमा प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है. उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं आज भी सिनेमा के शौकीनों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं.

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अभिनेत्री नूतन

नूतन भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने 1950 से 1990 तक के दौरान अपनी अभिनय प्रतिभा से हिंदी फिल्म उद्योग में एक विशेष स्थान बनाया. उनका जन्म 4 जून 1936 को हुआ था, और उनका निधन 21 फरवरी 1991 को हुआ. नूतन को उनके समय की सबसे अभिव्यक्तिपूर्ण और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है. उन्होंने अपनी फिल्मों में विविध भूमिकाओं को निभाकर अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया.

नूतन की अभिनय शैली अत्यंत प्राकृतिक और सहज थी, और वह अपने पात्रों को गहराई और जीवंतता प्रदान करने में सक्षम थीं. उन्हें उनकी फिल्मों में जटिल भावनाओं और चरित्रों को सटीकता और गहराई के साथ चित्रित करने के लिए सराहा गया.

नूतन ने अपने कैरियर में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते, जिनमें फिल्मफेयर पुरस्कार भी शामिल हैं. उनकी कुछ यादगार फिल्मों में “सीमा” (1955), “सुजाता” (1959), “बंदिनी” (1963), और “मैं तुलसी तेरे आँगन की” (1978) शामिल हैं. इन फिल्मों में उनके अभिनय ने नूतन को हिंदी सिनेमा की सबसे विशिष्ट और सम्मानित अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित किया।

नूतन की अभिनय विरासत उनके निधन के वर्षों बाद भी बनी हुई है, और वह आज भी अपनी श्रेष्ठता, गरिमा और प्रतिभा के लिए सिनेमा प्रेमियों द्वारा याद की जाती हैं. उनका काम हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक योगदान के रूप में माना जाता है.

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