
समाज सुधारक जी० सुब्रह्मण्यम अय्यर
जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक और पत्रकार थे. उनका जन्म 19 जनवरी 1855 को तिरुवायुर के सनातनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने तंजौर में शिक्षा प्राप्त की थी. शिक्षा पूर्ण करने के बाद जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर आंग्ल-वर्नाक्यूलर स्कूल में प्रधानाध्यापक बन गए. अय्यर ने आर्य हाईस्कूल की भी स्थापना की थी.
अय्यर ने आपने ‘हिंदू’ तथा ‘स्वदेश मित्रम’ नामक समाचार पत्र निकाल कर तमिलनाडु में राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने का प्रयास भी किया. उन्होंने सामाजिक समानता पर बल दिया तथा स्त्रियों की स्थिति में सुधार पर बल दिया. उन्होंने भारत से ब्रिटेन में होने वाली धन की निकासी के संबंध में आंकड़े दिए तथा भारत में ब्रिटिश शासन के स्वरूप की आलोचना भी की थी.
अय्यर एक समाज सुधारक भी थे और लघु उद्योगों को बढ़ावा दिए जाने के समर्थक भी थे.जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर का निधन 18 अप्रैल 1916 को हुआ था.
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स्वतंत्रता सेनानी विष्णु सखाराम खांडेकर
विष्णु सखाराम खांडेकर का जन्म 19 जनवरी, 1898 को महाराष्ट्र के सांगली ज़िले में हुआ था और उनका निधन 2 सितंबर, 1976 को हुआ. वे मराठी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व मेधावी छात्र थे. नौ वर्ष बाद विष्णु सखाराम खांडेकर का ‘मनु मनेरीकर’ से विवाह हुआ था. स्कूल के दिनों में खांडेकर को नाटकों में काफी रूचि थी और उन्होंने कई नाटकों में अभिनय भी किया.
वर्ष 1913 में बंबई विश्वविद्यालय से मैट्रिक में अच्छे अंकों से वे उत्तीर्ण होकर फ़र्ग्युसन कॉलेज(पुणे) में प्रवेश लिया. इसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया. उन्होंने अध्यापन को अपना पेशा बनाया और वर्ष 1938 तक स्कूल में अध्यापन कार्य किया. वर्ष 1938 में खांडेकर कोल्हापुर आकर फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, अभिनेता मास्टर विनायक के लिए फ़िल्मी पटकथा लिखने में लग गए. कुछ वर्षों बाद पटकथा लेखन से उनकी रुचि हट गई और फिर वह अपने लेखन-कार्य में संलग्न हो गए. वर्ष 1941 में खांडेकर को ‘मराठी साहित्य सम्मेलन’ का अध्यक्ष चुना गया.
उनकी रचनाओं पर मराठी में ‘छाया’, ‘ज्वाला’, ‘देवता’, ‘अमृत’, ‘धर्मपत्नी’ और ‘परदेशी’ आदि फ़िल्में भी बनीं साथ ही ‘ज्वाला’, ‘अमृत’ और ‘धर्मपत्नी’ नाम से हिन्दी भाषा में भी फ़िल्में बनाई गईं.
विष्णु सखाराम खांडेकर को अनेक पुरस्कार और सम्मान मिलें जिनमे… ययाति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी ने भी पुरस्कृत किया और बाद में फ़ेलोशिप भी प्रदान की. भारत सरकार ने साहित्यिक सेवाओं के लिए पद्मभूषण उपाधि से अलंकृत किया. ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित होने वाले वह प्रथम मराठी साहित्यकार थे. भारत सरकार ने विष्णु सखाराम खांडेकर के सम्मान में 1998 में एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था.
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उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी, जिनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था, एक उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर और गीतकार थे, जिनका जन्म 19 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में हुआ था. कैफ़ी आज़मी ने अपनी पहली गज़ल 11 साल की उम्र में लिखी थी और वे साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे.
आज़मी ने अपने लेखन में गहरी सामाजिक चेतना का प्रदर्शन किया और अपनी कविताओं में अक्सर न्याय, गरीबी, और सामाजिक असमानताओं के विषयों को उठाया. कैफ़ी आज़मी प्रगतिशील लेखक संघ के सक्रिय सदस्य भी थे, जो उस समय के साहित्यिक आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाते थे.
आज़मी ने उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘आवारा सज़दे’, ‘इंकार’, और ‘आख़िर-ए-शब’ शामिल हैं. उनकी कविताएँ न सिर्फ उर्दू साहित्य में, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी उनके गीतों के रूप में व्यापक प्रभाव छोड़ीं. फिल्मों में उनके लिखे कुछ प्रमुख गीतों में “कर चले हम फ़िदा” (हकीकत), “वक्त ने किया क्या हसीन सितम” (कागज़ के फूल), और “ये दुनिया ये महफिल” (हीर रांझा) शामिल हैं. उनकी रचनात्मकता और समर्पण ने उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलाए, जिनमें पद्म श्री भी शामिल है.
कैफ़ी आज़मी का 10 मई 2002 को निधन मुंबई में हुआ था. लेकिन, उनकी रचनाएँ और उनके द्वारा छोड़ी गई साहित्यिक विरासत आज भी उर्दू और हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई है.
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अभिनेता सौमित्र चटर्जी
सौमित्र चटर्जी एक प्रमुख भारतीय अभिनेता और बंगाली सिनेमा के महान कलाकारों में से एक थे. उनका जन्म 19 जनवरी 1935 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत में हुआ था, और उनकी मृत्यु 15 नवम्बर 2020 को हुई.
सौमित्र चटर्जी को भारतीय सिनेमा के एक महत्वपूर्ण अभिनेता के रूप में माना जाता है, और वे सत्यजित रय की चर्चित फिल्मों में काम करने के लिए प्रसिद्ध हैं, जैसे कि “पाथेर पांचाली,” “अपुर संसार,” “चारुलता,” “प्रतिद्वंद्वी,” और “जोकर.” सौमित्र चटर्जी ने बंगाली सिनेमा के साथ ही हिंदी सिनेमा में भी अद्वितीय कौशल और अभिनय की दिशा में अपनी प्रतिष्ठितता कमाई. उन्होंने भारतीय फिल्मों के कई प्रमुख निर्माता-निर्देशकों के साथ काम किया और उन्हें कई पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया.
सौमित्र चटर्जी का अभिनय और कला में उनका योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में अद्वितीय है, और उन्हें एक श्रेष्ठ अभिनेता के रूप में याद किया जाएगा.
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देवेन्द्रनाथ टैगोर
देवेन्द्रनाथ टैगोर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पूर्व संगठनकर्ता और भारतीय धार्मिक और सामाजिक विचारक थे. उनका जन्म 15 मई 1817 को कोलकाता, बंगाल प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब कोलकाता, भारत) में हुआ था, और उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1905 को हुई थी. वे नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के पिता थे.
देवेन्द्रनाथ टैगोर को ब्रह्म समाज के प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भारतीय समाज में सामाजिक सुधार और सामाजिक सुधार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज की स्थापना की और इसके माध्यम से मानवता, सामाजिक समानता, और जाति व्यवस्था के खिलाफ उठे मुद्दों को प्रमोट किया. उन्होंने धर्म में व्यक्तिगत अनुषासन को महत्वपूर्ण धार्मिक अवधारणाओं के रूप में स्वीकार किया और उनके द्वारा प्रबंधित समाज को “ब्रह्म समाज” कहा जाने लगा.
उनकी उच्च चरित्र और आध्यात्मिक ज्ञान के कारण उन्हें ‘महर्षि’ की उपाधि दी गई. उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की, जो बाद में उनके पुत्र रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ.
देवेन्द्रनाथ टैगोर का अनुभव, उनके बेटे रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों को प्रभावित करता है, जिन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता कविता “गीतांजलि” और अन्य उपन्यास और कविताएँ लिखी. रवींद्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य के महान कवि और दर्शनिक के रूप में प्रसिद्ध हुए और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय गीत “जन गण मन” की रचना की.
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आचार्य रजनीश
आचार्य रजनीश जिनका असली नाम चंद्र मोहन जैन था. वो गुरु, धार्मिक विचारक, और स्वतंत्रता संग्रामकार थे. वे अपने अनुयायियों द्वारा “ओशो” के नाम से भी जाने जाते थे, और उन्होंने विशेष रूप से ध्यान और ज्ञान के क्षेत्र में अपनी शिक्षा और गुरुत्व के लिए प्रसिद्ध हुए.
ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाडा गांव में हुआ था, और उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1990 को हुई. उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारे धार्मिक और दार्शनिक विचारों का प्रसार किया, और उनके शिष्यों को ध्यान, समय का महत्व, और मनोबल को सुधारने के लिए उपायों की प्रेरणा दी. ओशो ने अपने जीवनकाल में कई विवादास्पद विचार प्रस्तुत किए और धार्मिक रूढ़िवादिता के प्रखर आलोचक रहे. उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक खुले रवैये की वकालत की, जिसके कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में उनके विचार अधिक स्वीकार्य हो गए.
उन्होंने वर्ष 1960 के दशक में भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वर्ष 1970 के दशक में पुणे में एक आश्रम स्थापित किया. बाद में उन्होंने अमेरिका में भी अपने विचारों का प्रचार किया, लेकिन वहां भी उन्हें विवादों का सामना करना पड़ा. ओशो के उपदेशों का मुख्य ध्यान ध्यान प्रौढ़ता, सच्चे जीवन का अनुभव, और जीवन के सभी पहलुओं को पूरी तरह से अपनाने का था. वे अपने उपासकों के साथ संज्ञाना की विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते थे, जैसे कि नाटक, संगीत, और झूला.
ओशो के विचारों और उनके विचारधारा के साथ, उनके व्यक्तिगत रूप की अपनी अनूठी शैली के लिए वे प्रसिद्ध थे. हालांकि उनके दृष्टिकोण और उनका अच्छंदा तरीका उन्हें विशेष चर्चा में लाए और उनके अनुयायियों को प्रभावित किया, वे भारतीय समाज के कुछ हिस्सों में विवादित रूप से जाने जाते हैं.
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साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क
उपेंद्रनाथ अश्क भारतीय हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे. उनका जन्म 14 दिसंबर 1910 को उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था, और उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1996 को हुई.
उपेंद्रनाथ अश्क उर्दू और हिंदी के प्रमुख कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार और एकांकीकार थे. अश्क ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उर्दू लेखक के रूप में की थी, लेकिन बाद में वे हिंदी के लेखक के रूप में प्रसिद्ध हुए.उनकी कहानियाँ और उपन्यास जीवन के अलग-अलग पहलुओं को छूने वाली कहानियाँ होती थीं और वे आम आदमी के जीवन और समस्याओं को विवेचने में महिर थे.
उपेंद्रनाथ अश्क की प्रमुख रचनाओं में ‘गिरती दीवारें’, ‘शहर में घूमता आईना’, ‘गर्म राख’, ‘सत्तर श्रेष्ठ कहानियां’, ‘काले साहब’, ‘लौटता हुआ दिन’, ‘बड़े खिलाड़ी’, ‘स्वर्ग की झलक’ आदि शामिल हैं. उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखा और उनकी रचनाओं में समाजवादी परंपरा का विशेष स्थान है. उपेन्द्रनाथ अश्क को 1972 में ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था.
उनका लेखन आम जनता के दर्द और अनुभवों को दर्शाने का काम करता था और उन्होंने समाज में गरीबी, असमानता, और न्याय के मुद्दों पर अपनी कविताएँ और कहानियाँ लिखी. उपेंद्रनाथ अश्क को भारतीय हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखकों में से एक माना जाता है, और उनका योगदान भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण है.
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लेखक रजनी कोठारी
रजनी कोठारी भारतीय राजनीतिक विज्ञान के प्रमुख और प्रमिनेंट विचारकों में से एक थे. उनका जन्म 16 अगस्त 1928 को भारतीय राजकोट, गुजरात में हुआ था, और उनकी मृत्यु 19 जनवरी 2015 को हुई.
रजनी कोठारी को भारतीय राजनीति, समाज, और शासन के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पहचाना जाता है. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के प्रस्तावना, समाज के विकास, और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अपने लेखन और विचारों के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान किया. रजनी कोठारी ने भारतीय राजनीति के कई पहलुओं को गहराई से अध्ययन किया और उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के विकास के मामूले में अपनी रचनाओं के माध्यम से साझा किया.
उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘पॉलिटिक्स इन इंडिया’ (1970), ‘कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स’ (1973), और ‘रीथिंकिंग डेमोक्रेसी’ (2005) शामिल हैं. रजनी कोठारी ने भारतीय राजनीति के सिद्धांतीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारतीय दलीय प्रणाली की मौलिक व्याख्या की.
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राजनीतिज्ञ माता प्रसाद
माता प्रसाद एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और साहित्यकार थे. उनका जन्म 11 अक्टूबर 1924 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. वे अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं.
माता प्रसाद ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की और वे जौनपुर के शाहगंज (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1957 – 74 तक लगातार पांच बार विधायक रहे. वे वर्ष 1980 – 92 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी रहे और उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री के रूप में भी कार्य किया.
साहित्यकार के रूप में, माता प्रसाद ने कई महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की. उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘अछूत का बेटा’, ‘धर्म के नाम पर धोखा’, ‘वीरांगना झलकारी बाई’, ‘वीरांगना उदा देवी पासी’, ‘तड़प मुक्ति की’, ‘धर्म परिवर्तन प्रतिशोध’, ‘जातियों का जंजाल’, और ‘अंतहीन बेड़ियां’ शामिल हैं. उनकी आत्मकथा ‘झोपड़ी से राजभवन’ भी काफी प्रसिद्ध है.उनका निधन 19 जनवरी 2021 को हुआ था.
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महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप, मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के 13वें राजा थे, जिनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में अमर हो गया है. उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया था और अपने पूरे जीवनकाल में मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया था.
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले में हुआ था. उन्हें बचपन में ‘कीका’ के नाम से बुलाया जाता था. वे बहुत ही शक्तिशाली थे. उनकी लंबाई 7 फीट से अधिक थी और वे 72 किलो का कवच, 81 किलो का भाला और 208 किलो की दो तलवारें आसानी से चला सकते थे.
महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच वर्ष 1576 में हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था. इस युद्ध में मुगल सेना संख्या में अधिक होने बाद भी महाराणा प्रताप ने मुगलों को कड़ी टक्कर दी. युद्ध अनिर्णायक रहा और महाराणा प्रताप जीत हासिल करने में चूक गए. यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इस युद्ध ने दिखाया कि एक छोटी सी सेना भी एक बड़ी सेना को कड़ी टक्कर दे सकती है. हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने मुगलों से बचने के लिए जंगलों में शरण ली और गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया.
महाराणा प्रताप के पास एक विश्वासपात्र घोड़ा था जिसका नाम चेतक था. हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने महाराणा प्रताप को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. महाराणा प्रताप सादा जीवन जीते थे. महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी, 1597 को चावंड में हुआ था. महाराणा प्रताप को भारत में स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है. उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाता है. वे भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और उनका नाम गर्व के साथ लिया जाता है.
महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में मुगल साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे. उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा.