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व्यक्ति विशेष

भाग – 386.

साहित्यकार बाबू गुलाबराय


बाबू गुलाबराय एक हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने आत्मकथा, निबंध, आलोचना, और इतिहास लेखन जैसी विविध विधाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 17 जनवरी 1888 को हुआ था और उनका निधन 13 अप्रैल 1963 को हुआ. गुलाबराय को हिंदी साहित्य में व्यंग्य और आत्मकथात्मक लेखन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.

बाबू गुलाबराय की साहित्यिक शैली उनकी विद्वता और विचारशीलता को दर्शाती है. उनके निबंधों में भाषा की सरलता और प्रवाह के साथ-साथ गहरी अंतर्दृष्टि और मनोरंजन का तत्व भी शामिल होता है. उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’, ‘मानस का हंस’ और ‘आत्मकथा’ शामिल हैं. ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ एक व्यापक और गहन विश्लेषण प्रदान करता है जो हिंदी साहित्य के विकास को विस्तार से बताता है.

गुलाबराय की आत्मकथा भी उनके जीवन के विविध अनुभवों और साहित्यिक जगत के साथ उनके संबंधों का जीवंत चित्रण करती है. उनका व्यंग्य लेखन उनकी तीव्र बुद्धि और समाज के प्रति उनकी सूक्ष्म दृष्टि को प्रकट करता है, जिससे वे हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं. बाबू गुलाबराय के काम ने हिंदी साहित्य की धारा को प्रभावित किया और उन्हें आज भी एक महत्वपूर्ण साहित्यिक हस्ती के रूप में याद किया जाता है.

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गणितज्ञ डी. आर. कापरेकर


डॉ. डी. रघुनाथ अनंत कापरेकर, जिन्हें डॉ. डी. आर. कापरेकर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय गणितज्ञ थे. उन्होंने गणित और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हुए थे. कापरेकर का जन्म 17 जनवरी, 1905 को हुआ था. उन्होंने भारतीय गणित समाज को अपनी शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से योगदान किया.

उन्होंने संख्या गणित, संख्या सिद्धांत, और अद्वितीय संख्याओं के बारे में अपने अनुसंधान के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की. उन्होंने भारतीय गणित में अपने अद्वितीय योगदान के लिए कई पुरस्कार जीते, जैसे कि श्रीधराचार्य पुरस्कार और रामानुजन पुरस्कार. डॉ. डी. आर. कापरेकर का योगदान भारतीय गणित और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहा और उन्हें भारतीय गणित समुदाय में गणितज्ञ के रूप में बहुत प्रमुख माना जाता है. दत्तात्रय रामचन्द्र कापरेकर का निधन 1986 को देवळाली, महाराष्ट्र में हुआ था.

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निर्माता-निर्देशक और अभिनेता एल. वी. प्रसाद


एल. वी. प्रसाद (लक्ष्मणवरपुंड्री वेंकटरमणैया प्रसाद) भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे. उनका जन्म 17 जनवरी 1908 को आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में हुआ था. एल. वी. प्रसाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के अग्रणी व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है.

एल. वी. प्रसाद ने अपने कैरियर की शुरुआत 1930 के दशक में की थी. वे मूक फिल्मों के समय से ही सिनेमा से जुड़े थे. उनका अभिनय कैरियर 1930 में मूक फिल्म “कलिदास” से शुरू हुआ. हालांकि, वे बाद में निर्देशन और निर्माण की ओर मुड़े और इस क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त की.

प्रमुख फिल्में:

शारदा (1957) – यह फिल्म एक भावनात्मक ड्रामा थी जिसने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता प्राप्त की.

मिलन (1967) – इस फिल्म ने भी बड़ी सफलता पाई और इसे बहुत सराहा गया.

खिलौना (1970) – यह फिल्म भी बेहद सफल रही और इसमें संजीव कुमार और मुमताज मुख्य भूमिकाओं में थे.

एल. वी. प्रसाद ने 1956 में ‘प्रसाद प्रोडक्शंस’ नामक अपना प्रोडक्शन हाउस स्थापित किया, जो बाद में भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउसों में से एक बना. उनके प्रोडक्शन हाउस ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया और भारतीय फिल्म उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

उन्हें भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें 1982 में ‘दादासाहेब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान है. एल. वी. प्रसाद का निधन 22 जून 1994 को हुआ. उनके योगदान और उनके द्वारा स्थापित प्रसाद ग्रुप की विरासत आज भी भारतीय सिनेमा में जीवित है. उनका नाम भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.

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राजनेता एवं अभिनेता एम जी रामचंन्द्रन


एम. जी. रामचंद्रन, जिन्हें पॉलिटिकली और सिनेमा के क्षेत्र में “माना” जाता है, एक प्रमुख भारतीय राजनेता और अभिनेता थे. उन्होंने केरल राज्य के सीनियर पॉलिटिकल नेता के रूप में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हुए थे, साथ ही सिनेमा में भी एक उल्लेखनीय अभिनय कैरियर बनाया.

एम. जी. रामचंद्रन का जन्म 17 जनवरी, 1917 को कैंडी, श्रीलंका में हुआ था. उन्होंने तमिलनाडु राज्य के राजनीतिक दायरों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का सही समय पर निभाया. उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया और राज्य के विकास में अपना योगदान दिया.

सिनेमा के क्षेत्र में भी एम. जी. रामचंद्रन को “माना” के नाम से जाना जाता है. उन्होंने तमिल सिनेमा में कई महत्वपूर्ण फ़िल्मों में अभिनय किया और उनका अभिनय सिनेमा इंडस्ट्री में प्रसिद्ध हुआ. उन्होंने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी जीते. एम. जी. रामचंद्रन का कार्यकाल राजनीति और सिनेमा के बीच एक अनोखा संघर्ष था, और उन्होंने दोनों क्षेत्रों में अपना योगदान दिया. उनकी भूमिका और योगदान के लिए उन्हें भारतीय समाज द्वारा सम्मानित किया गया है.

एम.जी.आर. ने तीन विवाह किये थे  उनकी पहली पत्नी तंगामणी , दूसरी सतनन्दवती और तीसरी जानकी रामचन्द्रन. एम. जी. रामचन्द्रन का निधन 24 दिसंबर 1987 को हुआ था. 

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निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही


कमाल अमरोही एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म निर्माता और निर्देशक हैं. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया है. वे भारतीय सिनेमा में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रसिद्ध हैं.

कमाल अमरोही का जन्म 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा के ज़मींदार परिवार में  हुआ था. उनका वास्तविक नाम सैयद आमिर हैदर है. कमाल अमरोही के काम पर उनके व्यक्तित्व की छाप रहती थी.

प्रसिद्ध फिल्में: –

महल – रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल से बनी यह फ़िल्म सुपरहिट रही. इस फिल्म का निर्देशन कमाल अमरोही ने किया था.

पाकीज़ा – पाकीज़ा कमाल की ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी और इस फिल्म का भी निर्देशन कमाल ने ही  किया था. फिल्म पाकीजा की बेहतरीन संवाद, गीत-संगीत, दृश्यांकन और अभिनय से सजी इस फ़िल्म ने रिकार्डतोड़ कामयाबी हासिल की और आज यह फ़िल्म इतिहास की क्लासिक फ़िल्मों में गिनी जाती है.

जेलर (1938), मैं हारी (1940), भरोसा (1940), मज़ाक (1943), फूल (1945), शाहजहां (1946), महल (1949), दायरा (1953), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), मुग़ले आजम (1960), पाकीज़ा (1971), शंकर हुसैन (1977) और रज़िया सुल्तान (1983), भरोसा (1940) आदि.

कमाल अमरोही ने अपने कलात्मक दृष्टिकोण और कला के प्रति उनकी समर्पणशीलता के लिए सिनेमा उद्योग में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है. कमाल अमरोही का निधन  11 फरवरी 1993 को हुआ था.

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साहित्यकार रांगेय राघव


रांगेय राघव एक भारतीय साहित्यकार और कवि थे, जो अपनी रचनाओं में भारतीय साहित्य और संस्कृति को महत्वपूर्ण भूमिका देने के लिए प्रसिद्ध थे. उनका जन्म 17 जनवरी 1923, आगरा में हुआ था और उनका निधन 12 सितम्बर 1962 को आगरा में हुआ था. 

रांगेय राघव का साहित्यिक कार्य प्राचीन भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति उनके गहरे रुझान को प्रकट करता था. उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, और निबंध लिखे और उनके काव्य में धार्मिक और आध्यात्मिक तत्वों को महत्व दिया. रांगेय राघव का काव्य और साहित्य कृतियों में संस्कृत भाषा का बहुत अद्वितीय और सुंदर उपयोग था, जो उनके रचनाओं को विशेष बनाता था. उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनेक पहलुओं को उनके लेखों में प्रकट किया, जैसे कि धार्मिकता, भक्ति, और मानवता.

रांगेय राघव के लेखन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति को उनकी कविता और निबंधों के माध्यम से बढ़ावा देना और भारतीय समाज को संवेदनशील बनाना था. उनका साहित्य भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से में शामिल है और उन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है.

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जैन लेखक महावीर सरन

महावीर सरन एक प्रमुख जैन लेखक और जैन धर्म के प्रति अपनी गहरी समर्पणा के लिए प्रसिद्ध थे. वे जैन धर्म, जैन सिद्धांतों, और जैन साहित्य के प्रस्तावना और व्याख्यान करने के लिए मशहूर थे. महावीर सरन का जन्म 17 जनवरी 1941 को बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ था.

महावीर सरन ने अपनी जीवन के दौरान जैन धर्म के महत्वपूर्ण विषयों पर विभिन्न पुस्तकें लिखीं और जैन धर्म के सिद्धांतों को समझाने का प्रयास किया. उनके लेखन के क्षेत्र में जैन दर्शन, जीवन का तात्त्विक पहलु, और अहिंसा के महत्व के विषयों पर ख़ासा जोर दिया गया. महावीर सरन की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें उनके जैन धर्म से संबंधित थीं, जैसे कि “जैन दर्शन के मूल सिद्धांत” और “जैन धर्म का मूल”. उनके लेखन के माध्यम से वे जैन धर्म के महत्वपूर्ण विचारों को व्याख्यान करके लोगों को जैन धर्म के माध्यम से जीवन के मूल तत्वों की समझ में मदद करते थे.

महावीर सरन का योगदान जैन समुदाय में बड़ा माना जाता है, और उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से जैन धर्म को गहरी रूप से समझाने में मदद की. उनके लेखन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जैन धर्म के महत्वपूर्ण प्रामाणिक उपनिषद्द के बारे में था, जिन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को समर्थन दिया.

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गीतकार जावेद अख़्तर


जावेद अख़्तर एक प्रमुख भारतीय गीतकार, गीतकार, और लेखक हैं, जो भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने हिंदी सिनेमा में कई बड़ी हिट फ़िल्मों के लिए गीत लिखे हैं, जिनमें “दिल चाहता है,” “काल हो ना हो,” “कभी अलविदा ना कहना,” और “रोका कैसे बताओं तुम्हें” जैसी फ़िल्में शामिल हैं.

जावेद अख़्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 को हुआ था. उनके माता-पिता के बीच भी गीतकारी और साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान था, जिसका वे अच्छी तरह से इस्तेमाल करते आए हैं. उनका पिता काव्य रचना में मशहूर फ़िल्म लेखक और गीतकार थे, जबकि उनकी मां एक महत्वपूर्ण हिंदी फ़िल्म अभिनेत्री थीं.

जावेद अख़्तर ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते हैं, जैसे कि नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड, फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड, और फ़िल्मफ़ेयर फ़िल्मक्रिटिक्स अवॉर्ड आदि. उन्हें उनके गीतकारी के लिए सम्मानित किया गया है और वे हिंदी सिनेमा के महत्वपूर्ण गीतकारों में से एक माने जाते हैं. उनके गीत उनकी शानदार गीतकारी कौशल और विचारशीलता को प्रकट करते हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के अद्वितीय योगदान के लिए याद किया जाता है.

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अभिनेत्री सोनिया बिंद्रा

सोनिया बिंद्रा एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में काम किया है. उनका जन्म 17 जनवरी 1985 को नई दिल्ली में हुआ था. सोनिया ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2012 में फिल्म “प्राग” से की, जिसमें उन्होंने ‘सुभांगी’ की भूमिका निभाई. इसके बाद वर्ष 2013 में उन्होंने फिल्म “किस्सा: द टेल ऑफ अ लोनली घोस्ट” में ‘कुलबीर’ की भूमिका निभाई.

फ़िल्में: – 

प्राग (2012): – इस मनोवैज्ञानिक थ्रिलर में सोनिया ने सुभांगी की भूमिका निभाई, जो एक उभरते वास्तुकार की कहानी है.

किस्सा द टेल ऑफ अ लोनली घोस्ट (2013): – इस पोस्ट-पार्टिशन ड्रामा में उन्होंने कुलबीर की भूमिका निभाई.

सोनिया बिंद्रा ने अपने अभिनय कौशल से हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई है. उनकी फिल्मों को समीक्षकों द्वारा सराहा गया है, और उन्होंने अपने प्रदर्शन से दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया है.

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अभिनेत्री रसिका दुग्‍गल


रसिका दुग्गल भारतीय फिल्म, टेलीविज़न और वेब सीरीज़ की एक चर्चित अभिनेत्री हैं. वह अपने विविध और प्रभावशाली अभिनय के लिए जानी जाती हैं. रसिका ने स्वतंत्र फिल्मों से लेकर बड़े प्रोजेक्ट्स और वेब सीरीज़ तक कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं.

रसिका दुग्गल का जन्म 17 जनवरी 1985 को जामशेदपुर, झारखंड में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा जामशेदपुर में पूरी की. उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली से स्नातक किया. इसके बाद सोफिया पॉलिटेक्निक, मुंबई से सोशल कम्युनिकेशन मीडिया में डिप्लोमा किया. उन्होंने एक्टिंग का अध्ययन फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से किया.

रसिका ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म अनवर में एक छोटी भूमिका से की थी. धीरे-धीरे अपने अभिनय कौशल से उद्योग में पहचान बनाई.

फिल्में: –

“मंटो” (2018): – रसिका ने इस फिल्म में सआदत हसन मंटो की पत्नी सफिया का किरदार निभाया. उनके अभिनय को काफी सराहा गया.

“लंचबॉक्स” (2013): – इस बहुचर्चित फिल्म में भी रसिका ने एक सहायक भूमिका निभाई.

“किस्सा” (2015): – एक पारिवारिक ड्रामा जिसमें उन्होंने दमदार अभिनय किया.

“हामिद” (2019): – इस फिल्म में उनकी भावुक भूमिका ने दर्शकों का दिल जीत लिया.

वेब सीरीज़: –

“मिर्जापुर” (2018-2023): – रसिका ने “बीना त्रिपाठी” की भूमिका निभाई, जो उनकी सबसे चर्चित भूमिकाओं में से एक है.

“दिल्ली क्राइम” (2019): – इस नेटफ्लिक्स सीरीज़ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना प्राप्त की-

“आउट ऑफ लव” (2019-2021): – इसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई.

टीवी शोज: –

“Permanent Roommates”, “Powder”.

रसिका ने अभिनेता मुकुल चड्ढा से शादी की है. वह सोशल मुद्दों पर अपनी राय रखने और स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए भी जानी जाती हैं. रसिका को “मंटो” और “हामिद” के लिए कई पुरस्कार मिले. “मिर्जापुर” में उनके प्रदर्शन ने उन्हें व्यापक लोकप्रियता मिली.

रसिका अपने किरदारों में गहराई और वास्तविकता लाने के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने सशक्त और जटिल महिला पात्रों को पर्दे पर बखूबी उतारा है.

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अकबर की सोतेली माँ बेगा बेगम

बेगा बेगम, मुग़ल सम्राट अकबर की सोतेली मां थी.  उनका जन्म 1523 में हुआ था, और उनके पिता का नाम मिर्ज़ा खान होता है, जो अकबर की मां हमीदा बानो की पुरानी सास रुक़ैया सुल्तान बेगम से शादी करते समय विधवा थे.

बेगा बेगम अकबर के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनका समर्थन और संजीवनी बोटी की कहानी बहुत प्रसिद्ध है. संजीवनी बोटी की कहानी के अनुसार, अकबर की जान बचाने के लिए उन्होंने अपनी सोतेली मां बेगा बेगम से उपाय के रूप में एक चमत्कारी पौध की मदद मांगी, जिससे अकबर की जान बचाई गई. इस कहानी से बेगा बेगम का सच्चा और गर्वनिय चरित्र प्रकट होता है, जिन्होंने अपने पुत्र की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया. बेगा बेगम का नाम भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है, और वह अकबर की जीवन की महत्वपूर्ण व्यक्ति थी, जिनका समर्थन और प्यार अकबर के लिए महत्वपूर्ण था.

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गायिका और नर्तकी गौहर जान

गौहर जान भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहली रिकॉर्डेड गायिका और नर्तकी थीं. उनका असली नाम एंजेलिना था, लेकिन वे गौहर जान के नाम से प्रसिद्ध हुईं. वे भारत की पहली गायिका थीं जिन्होंने वर्ष 1902 में ग्रामोफोन रिकॉर्ड पर अपनी आवाज रिकॉर्ड की.

गौहर जान का जन्म 26 जून 1873 को आजमगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनका परिवार आर्मेनियाई था और उनकी माता विक्टोरिया हेमिंग्सन, जो बाद में मलका जान के नाम से प्रसिद्ध हुईं, खुद भी एक नर्तकी और गायिका थीं. गौहर जान ने संगीत और नृत्य की शिक्षा अपनी माँ से प्राप्त की और बाद में कई प्रसिद्ध उस्तादों से भी संगीत सीखा.

गौहर जान ने वर्ष 1902 में कोलकाता में ग्रामोफोन कंपनी के साथ अपना पहला रिकॉर्डिंग किया. यह रिकॉर्डिंग भारतीय संगीत इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी. उन्होंने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती, और भजन जैसी विभिन्न शैलियों में अपनी कला का प्रदर्शन किया. गौहर जान ने पूरे भारत में प्रदर्शन किया और कई महत्वपूर्ण दरबारों में अपनी कला का प्रदर्शन किया.

गौहर जान भारत की पहली रिकॉर्डेड गायिका थीं, जिन्होंने ग्रामोफोन पर अपनी आवाज रिकॉर्ड की. उनका प्रसिद्ध उद्घोषण, “माय नेम इज़ गौहर जान,” उनके हर रिकॉर्ड के अंत में होता था. उनकी ख्याति इतनी अधिक थी कि उन्हें “कोलकाता की तारा” कहा जाता था. गौहर जान का गायन और नृत्य दोनों ही उच्च कोटि के थे. उन्होंने अपने समय के प्रमुख संगीतकारों और कलाकारों के साथ काम किया और अपनी शैली को एक नए मुकाम पर पहुंचाया.

गौहर जान का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाई. उनका निधन 17 जनवरी 1930 को मैसूर में हुआ था.  गौहर जान की कला और उनका योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में अमूल्य है. उन्होंने भारतीय संगीत को एक नया आयाम दिया और अपनी अनूठी प्रतिभा के माध्यम से अनेकों कलाकारों को प्रेरित किया.

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स्वतंत्रता सेनानी ज्योति प्रसाद अग्रवाल

ज्योति प्रसाद अग्रवाल एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और असमिया साहित्यकार थे. उनका जन्म 17 जून 1903 को असम के गोलाघाट जिले के तामुलीपाथर गांव में हुआ था. उन्होंने असम के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने साहित्यिक योगदान के लिए भी प्रसिद्ध हुए.

ज्योति प्रसाद अग्रवाल एक उत्कृष्ट कवि, नाटककार, फिल्म निर्माता और संगीतकार थे. उन्होंने असमिया सिनेमा के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और असमिया फिल्म “जॉयमती” (1935) का निर्देशन किया, जो असम की पहली फीचर फिल्म मानी जाती है.

उनके प्रमुख कार्यों में “शोनित कुंवर” और “कैरेंग” जैसे नाटक और “रूपकुंवर” नामक गीत संग्रह शामिल हैं. ज्योति प्रसाद अग्रवाल का योगदान न केवल साहित्य और सिनेमा में है, बल्कि असमिया संस्कृति और समाज के विकास में भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के सिद्धांतों का पालन किया और असमिया भाषा और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार में अपने जीवन को समर्पित किया.

ज्योति प्रसाद अग्रवाल का निधन 17 जनवरी 1951 को हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी असम के लोगों द्वारा श्रद्धा के साथ याद किया जाता है.

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अभिनेत्री सुचित्रा सेन


सुचित्रा सेन, भारतीय सिनेमा की एक अत्यंत प्रसिद्ध और सम्मानित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से बंगाली फिल्मों में काम किया. उनका जन्म 6 अप्रैल 1931 को पबना जिले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है, और उनका निधन 17 जनवरी 2014 को हुआ. सुचित्रा सेन को उनकी गहरी अभिव्यक्तियों, खूबसूरती और उत्कृष्ट अभिनय प्रतिभा के लिए जाना जाता है.

सुचित्रा सेन ने वर्ष 1950 – 60 के दशकों में अपने कैरियर के चरम पर बंगाली और हिंदी सिनेमा पर राज किया. उन्होंने उत्तम कुमार के साथ कई फिल्मों में अभिनय किया, जो बंगाली सिनेमा के स्वर्ण युग के दौरान उनके सबसे प्रसिद्ध और सफल सह-कलाकार थे. दोनों की जोड़ी को बेहद लोकप्रिय माना जाता था और उनकी फिल्मों को आज भी बहुत पसंद किया जाता है.

सुचित्रा सेन की कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में “आगमन”, “देवदास”, “सप्तपदी”, “इंद्राणी”, “उत्तर फाल्गुनी”, और “दीप ज्वेले जाई” शामिल हैं. उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी, जिसमें “देवदास” (1955 में दिलीप कुमार के साथ) और “बम्बई का बाबू” जैसी फिल्में शामिल हैं.

सुचित्रा सेन का निधन 17 जनवरी 2014 को कोलकाता में हुआ था. उनके अभिनय कैरियर के अलावा, सुचित्रा सेन का जीवन उनकी गोपनीयता और सार्वजनिक जीवन से दूरी के लिए भी जाना जाता था. वह अपने अंतिम वर्षों में बहुत कम ही सार्वजनिक रूप से दिखाई दीं, जिससे उनके चारित्रिक और निजी जीवन के बारे में एक रहस्यमयी आभा बनी रही. उनके निधन पर, भारतीय सिनेमा और बंगाली समुदाय ने एक महान कलाकार और आइकॉन को खो दिया.

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मार्क्सवादी राजनितिज्ञ ज्योति बसु


ज्योति बसु भारतीय राजनीति के एक प्रभावशाली नेता थे, जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य थे. वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने और लगातार 23 वर्षों तक इस पद पर रहे. ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई 1914 को  पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के एक समृद्ध मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनका पुरा नाम ज्योतिंद्र नाथ बसु है. उन्होंने कलकत्ता के एक कैथोलिक स्कूल और सेंट जेविर्यस कॉलेज से पढ़ाई की. वकालत की पढ़ाई बसु ने लंदन में की.

बसु ने वर्ष 1930 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया की सदस्यता ले ली और जब पार्टी का विभाजन हुआ, तो वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हो गए. उन्होंने पहली बार 1946 में बंगाल विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया और जीत हासिल की.

 वर्ष 1977 में वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने और लगातार 23 वर्षों तक इस पद पर रहे, जो भारतीय इतिहास में किसी भी मुख्यमंत्री के सबसे लंबे कार्यकाल में से एक है. उनका कार्यकाल 2000 में समाप्त हुआ था. उनके शासनकाल के दौरान, भूमि सुधार और पंचायत प्रणाली के विकास जैसे कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए गए. उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में भी सुधार के लिए काम किया था.

ज्योति बसु का विवाह कमला बसु से हुआ था और उनका एक बेटा भी है. उनके जीवन की कई घटनाएँ और फैसले भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. ज्योति बसु का निधन 17 जनवरी 2010 को हुआ था. उनके निधन के बाद, उन्हें भारतीय राजनीति के एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक सुधारों के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया।.

ज्योति बसु का जीवन और कैरियर भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो उनके नेतृत्व और नीतियों के कारण लोगों के बीच लोकप्रियता और सम्मान प्राप्त करता है.

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शास्त्रीय संगीत गायक ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान   

ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान एक प्रमुख भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे, और वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने अपने जीवन के दौरान भारतीय संगीत के विभिन्न पहलुओं में माहिर होने का सबूत दिया और उन्होंने शास्त्रीय गायन की अद्वितीय भूमिका निभाई. ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान का जन्म 3 मार्च 1931 को हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत संगीत विद्यापीठ से की और वहां से शास्त्रीय संगीत में मास्टरी हासिल की. वे अल्गवादी संगीतकार और गायक रहे हैं, और उन्होंने अपने गायन की अद्वितीय भूमिका से भारतीय संगीत को नया दिशा देने में मदद की.

ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान का गायन अत्यंत गंभीर और भावपूर्ण होता था, और वे ख़ुद भी एक उच्च शिक्षक और गुरु थे. उन्होंने अपने जीवन में अनेक शिष्यों को शास्त्रीय संगीत का उच्च स्तर पर सिखाया और प्रशिक्षित किया.

ग़ुलाम मुस्तफ़ा ख़ान को भारत सरकार द्वारा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, और उन्हें भारतीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए बहुत प्रशंसा मिली. उनका निधन 17 जनवरी 2021 को हुआ, लेकिन उनका संगीत और उनकी शिक्षा आज भी भारतीय संगीत के अद्वितीय धरोहर के रूप में जीवित है.

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 नर्तक बिरजू महाराज


बिरजू महाराज भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रमुख और प्रसिद्ध नृत्यकार और कलाविद् हैं. उनका पूरा नाम बृजमोहन नाथ मिश्रा था. वे भरतनाट्यम और कथक दोनों के क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठित करियर बनाने में सफल रहे हैं.

बिरजू महाराज का जन्म 04 फरवरी 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन के दौरान भारतीय नृत्य को गहरी समझाने और प्रमोट करने में महत्वपूर्ण योगदान किया. उनकी नृत्य प्रस्तुतियां और उनका आदृश्य नृत्य कौशल काव्यान्जलि, कथक, और भरतनाट्यम में अद्वितीय थे. बिरजू महाराज ने भारतीय नृत्य को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया और इसकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने नृत्य कला को एक उच्च शृंगारिक और आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय संस्कृति को प्रमोट किया. उन्होंने अपने नृत्य कला के माध्यम से भारतीय तात्त्विकता, भक्ति, और भावनाओं को व्यक्त किया और लोगों के दिलों में जगह बनाई.

बिरजू महाराज का नाम भारतीय नृत्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और प्रशंसित नाम है, और उनके योगदान को सराहा जाता है जो भारतीय संस्कृति को नृत्य के माध्यम से विश्व के साथ साझा किया. बिरजू महाराज का निधन 17 जनवरी 2022 को नई दिल्ली में हुआ था.

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