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व्यक्ति विशेष

भाग – 385.

सिक्खों के सातवें गुरु गुरु हरराय


गुरु हरराय सिक्खों के सातवें गुरु थे. उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को पंजाब में हुआ था. वे गुरु हरगोबिंद के पोते और बाबा गुरदित्त के पुत्र थे. गुरु हरराय ने 1644 में, 14 साल की उम्र में, सिक्ख धर्म के गुरु का पद संभाला और 1661 तक इस पद पर रहे.

गुरु हरराय ने सिक्ख धर्म के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को करुणा, सेवा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. उन्होंने एक औषधालय (हर्बल डिस्पेंसरी) स्थापित किया, जहां वे रोगियों का इलाज करते थे. उन्होंने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण पर भी जोर दिया.

 गुरु हरराय ने मुगल शासक शाहजहां और उनके पुत्र औरंगज़ेब के समय में सतर्कता और विवेक के साथ कार्य किया. उन्होंने सिखों की सुरक्षा और धर्म की रक्षा सुनिश्चित की. उन्होंने सिख धर्म के मूल सिद्धांतों का प्रचार किया और गुरुग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया. वे सिख समुदाय को संगठित और मजबूत करने में सफल रहे.

गुरु हरराय ने युद्ध के समय शांति और करुणा की शिक्षा दी. हालांकि वे अपने दादा गुरु हरगोबिंद के समान योद्धा नहीं थे, फिर भी उन्होंने सिख समुदाय को आत्मनिर्भर और संगठित बनाए रखा. उन्होंने दयालुता और सेवा की मिसाल पेश की और किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने का संदेश दिया.

गुरु हरराय की मृत्यु  6 अक्टूबर 1661 को हुई थी. गुरु हरराय ने अपने सबसे छोटे पुत्र गुरु हरकिशन को अपना उत्तराधिकारी चुना, जो सिक्खों के आठवें गुरु बने. गुरु हरराय का जीवन सिख इतिहास में एक शांतिपूर्ण और दयालु नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है.

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संगीतकार ओ. पी. नैय्यर


ओ. पी. नैय्यर एक प्रमुख भारतीय संगीतकार थे, जो भारतीय सिनेमा के लिए संगीत बनाने में प्रसिद्ध थे। वह 16 जनवरी 1926 को पाकिस्तान के कराची में पैदा हुए थे और 28 जनवरी 2007 को दुनिया से चले गए.

ओ. पी. नैय्यर ने अपनी संगीतकारी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1952 में की और वे जल्द ही एक प्रमुख संगीतकार बन गए. उन्होंने हिन्दी सिनेमा के लिए कई प्रमुख गीतों की संगीतकारी की, और उनका संगीत आमतौर पर लोकप्रिय था.

ओ. पी. नैय्यर के प्रसिद्ध गीत : – बाबूजी धीरे चलना प्यार में ज़रा संभलना, ये लो मैं हारी पिया, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना, लेके पहला पहला प्यार, ये देश है वीर जवानों का, उड़े जब जब ज़ुल्फ़ें तेरीरेशमी सलवार कुर्ता जाली का, इक परदेसी मेरा दिल ले गया.

ओ. पी. नैय्यर का संगीत अक्सर आसान मेलोडीज़ और लोकप्रियता के लिए जाना जाता है, और उनके संगीत में उनकी ख़ास तालमेल और गाने की आवाज़ का महत्वपूर्ण भूमिका थी.

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अभिनेत्री कामिनी कौशल


कामिनी कौशल एक फ़िल्म अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत बॉलीवुड से की थी. उन्होंने कई हिट फ़िल्मों में काम किया है और अपनी अदाकारी के लिए प्रशंसा प्राप्त की है. कामिनी कौशल का जन्म 16 जनवरी, 1927 को लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था. कामिनी कौशल का का वास्तविक नाम ‘उमा कश्यप’ था.

कौशल ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत ‘नीचा नगर’ से की थी. कामिनी कौशल ने कई यादगार फ़िल्में दी हैं, किंतु फ़िल्म ‘नीचा नगर’ (1946) और ‘बिराज बहू’ (1955) में निभाई गई भूमिका के लिए उन्हें ख़ासतौर पर जाना जाता है. इन फ़िल्मों में निभाई गई भूमिका के लिए कामिनी कौशल को पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे.

उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं:- ‘जेलयात्रा’, ‘जिद्दी’, ‘नीचा नगर’, ‘बिराज बहू’, ‘हीरालाल पन्नालाल’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘लागा चुनरी में दाग’, ‘शहीद’ आदि. कामिनी कौशल ने टीवी की दुनिया में कई धारावाहिकों में भी कार्य किया है. कामिनी कौशल ने अपने कैरियर में अपनी विशेष प्रतिभा के लिए महत्वपूर्ण प्रशंसा प्राप्त की है और वह भारतीय सिनेमा में अपनी योगदान से जानी जाती हैं।

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‘प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी’ के जनक चिकित्सक सुभाष मुखोपाध्याय


‘प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी’ के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय थे. वे एक प्रमुख भारतीय गर्भवती विज्ञानी और चिकित्सक थे जिन्होंने पहले विश्व भर में प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी का प्राणन्त करने का प्रयास किया था.

सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1931 को हज़ारीबाग़, झारखण्ड में हुआ था. सुभाष मुखोपाध्याय की पढ़ाई लिखाई कोलकाता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी. डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने 3 अक्तूबर 1978 को कोलकाता के निष्क्रिय चिकित्सालय में एक टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिलाने का प्रयास किया था, जिसका नाम ” दुर्गा ” था. इस प्रयास में उन्होंने विज्ञान और तकनीक के माध्यम से गर्भावस्था को प्रारंभ से पाया गया था, और इसका परिणामस्वरूप ‘दुर्गा”  का जन्म हुआ.

हालांकि इस प्रयास के बाद भी विश्व स्तर पर इसे मान्यता नहीं दी गई और डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का काम पहचान नहीं पाया, लेकिन उनका प्रयास बच्चे की जान बचाने में सफल रहा. वे एक महत्वपूर्ण मानविकी और चिकित्सा महात्मा के रूप में याद किए जाते हैं और उनके काम ने टेस्ट ट्यूब बेबी की जनक के रूप में उन्हें स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मान्यता प्राप्त की. डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का निधन 19 जून, 1981 को पश्चिम बंगाल में हुआ था.

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अभिनेता कबीर बेदी


कबीर बेदी एक फ़िल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं, जिन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत भारतीय सिनेमा से की और फिर अंतरराष्ट्रीय सीन में अपनी पहचान बनाई.

कबीर बेदी का जन्म 16 जनवरी 1946 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. उन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत हिन्दी फ़िल्म “हकीकत” (1971) से डेब्यू की थी. उनकी अद्वितीय अदाकारी और छवि ने उन्हें जल्दी ही सिनेमा के माध्यम से मान्यता प्राप्त करने में मदद की.

कबीर बेदी ने अंतरराष्ट्रीय फिल्मों व प्रोग्रामों पर भी अपने कदम रखे. उन्होंने हॉलीवुड फ़िल्म “ओक्टोपस” (Octopussy) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अपने अंतरराष्ट्रीय काम के लिए भी प्रसिद्ध हुए.

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स्वतंत्रता सेनानी महादेव गोविन्द रानाडे


महादेव गोविन्द राणाडे एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 18 जनवरी 1842 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के सातारा शहर में हुआ था, और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

महादेव गोविन्द राणाडे का विशेष ध्यान समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में था. उन्होंने भारतीय समाज के उन्नति और सुधार के लिए विभिन्न प्रकार के समाज सेवा कार्य किए, जैसे कि शिक्षा, महिला शिक्षा, और जाति-वर्ग समाज के निषेध के खिलाफ लड़ा. राणाडे का नाम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. वे बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, और अगरकर समर्थक थे और स्वतंत्रता संग्राम के नेता महात्मा गांधी के साथ भी काम किये थे.

महादेव गोविन्द राणाडे ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी समर्पितता और समाज सुधार के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा हासिल की. उनकी समाज सुधार की यात्रा ने भारतीय समाज को समृद्धि और समाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान किया है. महादेव गोविंद रानाडे का निधन 16 जनवरी 1901 को हुआ था.

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साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार और कहानीकार थे. उनका साहित्यिक योगदान न केवल बंगाली साहित्य में बल्कि पूरे भारतीय साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. शरतचंद्र ने समाज की गहरी संवेदनाओं और मानव मन के जटिल पहलुओं को अपने लेखन में बखूबी उकेरा, और उनकी रचनाएँ आज भी जनमानस में प्रासंगिक हैं.

शरतचंद्र का जन्म 15 सितंबर 1876 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के देवघर में हुआ था. उनका बचपन गरीबी और कठिनाइयों में बीता, और यही अनुभव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनकी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं हो सकी. गरीबी और संघर्ष के बीच भी उन्होंने लेखन जारी रखा और अपने लेखन के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों पर प्रहार किया.

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कई रचनाएँ भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती हैं. उनकी कहानियों में समाज के पीड़ित वर्ग, महिलाओं की स्थिति और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण मिलता है.

प्रमुख कृतियाँ: –

देवदास: – शरतचंद्र की सबसे प्रसिद्ध कृति, जो एक त्रासदीपूर्ण प्रेम कहानी है. इस उपन्यास पर कई फिल्मों का निर्माण किया गया है और यह आज भी लोकप्रिय है.

श्रीकांत: – यह उनकी एक और प्रमुख कृति है, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं और अनुभवों को सुंदरता से उकेरा गया है.

परिणीता: – एक प्रेम कहानी जो समाज के जातिगत भेदभाव और महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालती है.

चरित्रहीन: – इस उपन्यास में उन्होंने समाज की नैतिकता और महिलाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण पर गहन प्रश्न उठाए हैं.

बिंदुर छेले और पथेर दाबी: – ये उनकी कुछ अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं, जो समाज के उत्पीड़ित वर्ग और स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में लिखी गई हैं.

शरतचंद्र की लेखन शैली सरल, सजीव और दिल को छूने वाली थी. वे अपने पात्रों के माध्यम से समाज के दबे-कुचले लोगों, विशेषकर महिलाओं, की समस्याओं और संघर्षों को उजागर करते थे. उनके पात्र मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत होते थे, और वे समाज के दोहरे मापदंडों और जातिगत भेदभाव का तीखा आलोचक थे.

शरतचंद्र का लेखन समाज सुधार की दिशा में एक सशक्त प्रयास था. उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों में समाज में व्याप्त अन्याय, जातिगत भेदभाव, महिलाओं की दुर्दशा और अन्य सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया. उन्होंने अपने लेखन में महिलाओं के संघर्षों, उनकी भावनाओं और उनकी स्थिति को बहुत संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया. वे भारतीय साहित्य के कुछ प्रमुख लेखकों में से थे, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों की बात की.

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु 16 जनवरी सन् 1938 ई. को हुई थी. शरतचंद्र चट्टोपाध्याय एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने भारतीय समाज की समस्याओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया और पाठकों को मानवीय संवेदनाओं से जुड़ने का अवसर प्रदान किया. उनके उपन्यास और कहानियाँ आज भी जनमानस में प्रासंगिक हैं और उनके लेखन का प्रभाव साहित्यिक जगत में अमिट है.

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कवि रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी एक प्रसिद्ध हिन्दी कवि और साहित्यकार थे. उनका जन्म 4 मार्च 1881 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर (कुशभवनपुर) जिले के कोइरीपुर गाँव में हुआ था. उनके पिता, पं॰ रामदत्त त्रिपाठी, एक धार्मिक और सदाचारी ब्राह्मण थे जो भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर रह चुके थे. त्रिपाठी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के प्राइमरी स्कूल में हुई, लेकिन वह हाईस्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर सके और अट्ठारह वर्ष की आयु में पिता से अनबन होने पर वो कलकत्ता चले गए.

त्रिपाठी की कविता में रुचि बचपन से ही थी. उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, निबंध, आलोचना और लोकसाहित्य जैसे विविध विधाओं में लेखन कार्य किया. उनकी प्रमुख रचनाएँ – “पथिक”, “मिलन”, “स्वप्न”, “मानसी”, “ग्राम्यगीत”, और “गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता” हैं. उन्होंने ‘स्वप्न’ पर हिंदुस्तान अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त किया. उनके काव्य में राष्ट्रीय भावों के उन्नायन की भावना मुखर है, जिसके कारण हिन्दी साहित्य में उनका एक विशेष स्थान है.

रामनरेश त्रिपाठी का निधन 16 जनवरी, 1962 को प्रयाग में हुआ था. रामनरेश त्रिपाठी ने अपने लेखन द्वारा भारतीय साहित्य की बड़ी सेवा की और उनकी रचनाओं में प्रकृति प्रेम, भक्ति और देशप्रेम की त्रिवेणी प्रवाहित होती है. उन्हें अपनी कविताओं में चरित्र और प्रकृति चित्रण में असाधारण सफलता मिली है.

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भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर एल. के. झा

एल. के. झा भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर थे. वे इस पद को 1 जुलाई, 1967 से 3 मई, 1970 तक सेवानिवृत्त होकर रहे. उनके कार्यकाल के दौरान, वे बैंक के नेतृत्व में बैंक की नीतियों और कार्यक्षेत्र के बदलाव को प्रबलतर बनाने का प्रयास किये.

एल. के. झा का जन्म 22 नवम्बर 1913 को दरभंगा, बिहार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा केंद्रीय विश्वविद्यालय, ओक्सफ़ोर्ड, और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से प्राप्त की थी. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय प्रशासनिक सेवा से की और फिर उन्होंने भारत सरकार के विभिन्न पदों पर सेवाएँ दीं, जिसमें उन्होंने आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में अपनी योगदान दी.

एल. के. झा के गवर्नर के पद पर रहते हुए, उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक की नीतियों को नए सोच और दिशा की ओर मोड़ दिया और आर्थिक प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया. उनका कार्यकाल आर्थिक संवर्धन और वित्तीय स्थिरता को मजबूती से बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था. एल. के. झा का निधन 16 जनवरी 1988 को हुआ था.

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