
स्वतंत्रता सेनानी अश्विनी कुमार दत्त
अश्विनी कुमार दत्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता, शिक्षाविद, समाज सुधारक और राष्ट्रभक्त थे. वे बंगाल के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे और स्वदेशी आंदोलन के अग्रदूतों में गिने जाते हैं.
अश्विनी कुमार दत्त का जन्म 20 जनवरी 1856 को बंगाल (अब बांग्लादेश) के बारीसाल जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से प्राप्त की और बाद में कानून की पढ़ाई कर वकालत शुरू की. वे वकालत में सफल होने के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में गहराई से जुड़े रहे.
वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में उन्होंने स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया. अश्विनी कुमार ने महिलाओं की शिक्षा, बाल विवाह विरोध, और छुआछूत उन्मूलन जैसे सामाजिक सुधारों पर बल दिया. उन्होंने बारीसाल जिले में कई स्कूल और शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए.
अश्विनी कुमार ने युवाओं में देशभक्ति की भावना जागृत करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए “स्वदेश बांधव समिति” की स्थापना की. उन्होंने “स्वदेश बांधव समाचार” नामक एक पत्रिका का संपादन किया, जो राष्ट्रवाद और स्वदेशी आंदोलन का प्रचार करने का प्रमुख माध्यम थी. अंग्रेज सरकार ने उनके क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों को देखते हुए उन्हें गिरफ्तार किया और लंबे समय तक नजरबंद रखा. उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित किया.
अश्विनी कुमार दत्त का निधन 7 नवंबर 1923 को हुआ था. उनका जीवन प्रेरणादायक था, और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. अश्विनी कुमार का समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा.
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स्वतंत्रता सेनानी सैफ़ुद्दीन किचलू
सैफ़ुद्दीन किचलू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्य थे. वे पंजाब के एक प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सैफुद्दीन किचलू का जन्म 15 जनवरी 1888 को पंजाब के अमृतसर में एक प्रतिष्ठित कश्मीरी मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड और जर्मनी गए. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और बर्लिन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की.
किचलू महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया. उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहन देने के लिए स्वदेशी उत्पादों का समर्थन किया. वर्ष 1919 में, जब रॉलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ, तो सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल अमृतसर में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे. 10 अप्रैल 1919 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे जनता में रोष फैल गया और इसके परिणामस्वरूप जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. उन्होंने खिलाफत आंदोलन में भाग लिया और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
किचलू कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सदस्य थे और वर्ष 1924 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. उन्होंने कांग्रेस के मंच से हिंदू-मुस्लिम एकता और स्वराज के लिए अपनी आवाज बुलंद की. उन्होंने शिक्षा के प्रसार और सामाजिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया. वे भारत में सांप्रदायिक सौहार्द्र और समाजवाद के समर्थक थे. उन्होंने धार्मिक कट्टरता के खिलाफ अपनी बात रखी और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को साम्प्रदायिकता से बचाने का प्रयास किया.
वर्ष 1952 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया. सैफुद्दीन किचलू का निधन 9 अक्टूबर 1963 को हुआ. किचलू का जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पण और हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. उनकी देशभक्ति, बलिदान और समाज सुधार के प्रति उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
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साहित्यकार ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर
ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर एक प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार, कवि, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे. उन्होंने पंजाबी साहित्य को समृद्ध बनाने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
गुरमुख सिंह मुसाफिर का जन्म 15 जनवरी 1899 को पंजाब के अमृतसर जिले के अधियां गांव में हुआ था. वे बचपन से ही साहित्य और अध्यात्म में रुचि रखते थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय गुरुद्वारों से प्राप्त की और बाद में पंजाबी और गुरुमुखी साहित्य में गहन अध्ययन किया.
ज्ञानी गुरमुख सिंह ने पंजाबी भाषा में कविताएं, कहानियां और उपन्यास लिखे. उनके साहित्य में समाज सुधार, भारतीय संस्कृति और देशभक्ति की भावना का गहरा प्रभाव दिखता है. उनकी कविताओं में आम जनता की समस्याओं और राष्ट्रीय आंदोलन के संघर्ष का चित्रण मिलता है. उनकी प्रमुख रचनाओं में “मुसाफिर दी डायरी” और “कहानी संग्रह” शामिल हैं.
गुरमुख सिंह ने पंजाबी साहित्य को एक नई दिशा दी और इसे जनसामान्य के बीच लोकप्रिय बनाया. वे पंजाबी साहित्य सम्मेलन के सक्रिय सदस्य थे. गुरमुख सिंह मुसाफिर महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और जेल भी गए. उनकी लेखनी और भाषणों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनता को जागरूक करने का कार्य किया.
स्वतंत्रता के बाद, गुरमुख सिंह मुसाफिर ने राजनीति में कदम रखा. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और पंजाब के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 1966 – 67 तक वे पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने राजनीति में रहते हुए शिक्षा और समाज कल्याण के लिए अनेक कार्य किए. गुरमुख सिंह के साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया. उनका साहित्य और उनके द्वारा किए गए समाज सुधार के कार्य आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं. पंजाबी साहित्य में उनका योगदान अमूल्य माना जाता है. ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर का निधन 18 मार्च 1976 को हुआ.
ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर का जीवन एक बहुआयामी व्यक्तित्व का उदाहरण है. वे साहित्य, स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में एक महान योगदानकर्ता थे. उनका जीवन और कार्य भारतीय इतिहास और पंजाबी संस्कृति में हमेशा स्मरणीय रहेंगे.
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राजनीतिज्ञ कुमारी मायावती
कुमारी मायावती जो उत्तर प्रदेश राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री रही हैं. वह बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष भी हैं. मायावती बीएसपी के प्रमुख चेहरे के रूप में बहुजन समाज के वर्गों के लिए लड़ी हैं.
मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को नई दिल्ली के हिन्दू परिवार में हुआ था. उनके पिता, प्रभु दास, गौतम बुद्ध नगर में एक डाकघर कर्मचारी थे.उन्होंने वर्ष 1975 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कालेज से कला में स्नातक की. वर्ष 1976 में उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से बी॰एड॰ और वर्ष1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई की.
वर्ष 1977 में कांशीराम के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने एक पूर्ण कालिक राजनीतिज्ञ बनने का निर्णय ले लिया. कांशीराम के संरक्षण के अन्तर्गत वे उस समय उनकी कोर टीम का हिस्सा रहीं, जब वर्ष 1984 ई० में बसपा की स्थापना हुई थी. वर्ष 1989 में इन्होने लोकसभा के चुनाव में पहली जीत हासिल की जहां यह बिजनौर सीट से खड़ी हुई और भारी मतों से जीता इसके बाद इन्होने वर्ष 1994 में भी लोकसभा का चुनाव जीता.
मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर कई बार कार्यभार संभाला है, और उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुजन समुदाय के लिए विभिन्न कार्यों को प्रमोट किया है. उन्होंने दलित, अनुसूचित जाति, और अनुसूचित जनजाति के वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित सीटों का प्रस्ताव और उनके सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं.
मायावती का राजनैतिक कैरियर बहुत ही विवादास्पद रहा है, और उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
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अभिनेत्री भानुप्रिया
भानुप्रिया एक भारतीय अभिनेत्री और नर्तकी हैं. अपने चार दशक के कैरियर में, वह 155 फीचर फिल्मों में काम किया हैं, उन्होंने मुख्य रूप से तेलुगु और तमिल में और कुछ मलयालम, कन्नड़ और हिंदी फिल्मों में काम किया है.
भानुप्रिया का जन्म 15 जनवरी 1967 को राजमुंदरी (रंगमपेटा गांव), आंध्र प्रदेश में हुआ था. भानुप्रिया का असली नाम मंगा भामा है. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 17 वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म ‘मेल्ला पेसुन्गल’ से की थी. भानुप्रिया ने 90 के दशक में बॉलीवुड में कदम रखा.
फ़िल्में: – “स्वर्णकमल” (1985), “भूतकालं” (1985), “जैसी करनी वैसी भरनी” (1989), “सीता और गीता” (1992), “मणिक्यम्मा” (1993), “काजल” (1995), और “सजन चले ससुराल” (1996) आदि.
भानुप्रिया ने 14 जून, 1998 को एनआरआई आदर्श कौशल से विवाह किया. विवाह के पांच साल बाद वर्ष 2003 में भानुप्रिया को बेटी हुई उसके दो वर्ष बाद भानुप्रिया और कौशल का तलाक हो गया. भानुप्रिया का अभिनय कैरियर लंबा है और उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी प्रतिष्ठित स्थान बनाया है.
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अभिनेता नील नितिन मुकेश
नील नितिन मुकेश भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं, जिन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा और प्रभावशाली स्क्रीन प्रेजेंस के लिए लोकप्रियता हासिल की. वे एक बहुमुखी कलाकार हैं और अपने अलग-अलग किरदारों के लिए जाने जाते हैं.
नील नितिन मुकेश का जन्म 15 जनवरी 1982 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे एक प्रतिष्ठित संगीत परिवार से आते हैं. उनके दादा मुकेश चंद माथुर भारतीय सिनेमा के दिग्गज पार्श्वगायक थे, और उनके पिता नितिन मुकेश भी एक प्रसिद्ध गायक हैं. उनका नाम दो महान गायक, लता मंगेशकर और मुकेश के प्रति उनके परिवार के सम्मान का प्रतीक है.
नील ने अपनी स्कूली शिक्षा एच.आर. कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स, मुंबई से पूरी की. उन्होंने अभिनय की बारीकियां सीखने के लिए अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल में प्रशिक्षण लिया. नील ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में सुजॉय घोष की फिल्म “जॉनी गद्दार” से की. इस थ्रिलर फिल्म में उनके प्रदर्शन को खूब सराहा गया और उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता (डेब्यू) के लिए नामांकित किया गया.
फिल्में: –
“न्यूयॉर्क” (2009): – यशराज फिल्म्स की इस फिल्म में नील ने जॉन अब्राहम और कैटरीना कैफ के साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई.
“लफंगे परिंदे” (2010): – इसमें उन्होंने एक बॉक्सर की भूमिका निभाई.
“7 खून माफ” (2011): – इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा के साथ उनका किरदार बहुत चर्चित हुआ.
“प्रेम रतन धन पायो” (2015): – सलमान खान और सोनम कपूर के साथ इस फिल्म में उन्होंने एक नकारात्मक भूमिका निभाई.
“साहो” (2019): – प्रभास और श्रद्धा कपूर के साथ इस एक्शन फिल्म में नील ने एक खलनायक की भूमिका निभाई.
अन्य फिल्में: – प्लेयर्स (2012), डेविड (2013), बाईपास रोड (2019) – यह उनकी पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने कहानी और निर्देशन में भी योगदान दिया.
नील अपने किरदारों में गहराई लाने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने नायक और खलनायक दोनों भूमिकाओं में खुद को साबित किया है. उनके अभिनय में एक सहजता और भावनात्मक तीव्रता है जो उन्हें खास बनाती है. नील नितिन मुकेश ने रुक्मिणी सहाय से 9 फरवरी 2017 को विवाह किया. उनकी एक बेटी है जिसका नाम नुरवी नील मुकेश है. नील अपने पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता देते हैं और अक्सर अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं.
नील नितिन मुकेश भी संगीत में रुचि रखते हैं और अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए संगीत के प्रति प्रेम बनाए रखते हैं. नील नितिन मुकेश ने अपने अभिनय कौशल और मेहनत से बॉलीवुड में अपनी एक खास पहचान बनाई है. वे एक प्रतिभाशाली अभिनेता हैं.
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अभिनेत्री स्टेफी पटेल
स्टेफी पटेल भारतीय अभिनेत्री, मॉडल, और ब्यूटी पेजेंट प्रतियोगी हैं, जिन्होंने अपनी खूबसूरती और अभिनय कौशल से ध्यान आकर्षित किया है. वे मुख्य रूप से हिंदी और क्षेत्रीय फिल्मों में काम करती हैं. स्टेफी को उनके ग्लैमरस अंदाज और अद्वितीय शैली के लिए जाना जाता है.
स्टेफी पटेल का जन्म 15 जनवरी 1996 को झारखंड के हजारीबाग में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा झारखंड से पूरी की और इसके बाद स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उनका बचपन से ही फैशन और ग्लैमर इंडस्ट्री की ओर रुझान था.
स्टेफी ने वर्ष 2015 में “फेमिना मिस इंडिया” प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और विभिन्न खिताब अपने नाम किए. उन्होंने “फेमिना मिस इंडिया ईस्ट” में अपनी छाप छोड़ी. वर्ष 2016 में, उन्होंने “मिस ग्लैम वर्ल्ड” का खिताब जीता. स्टेफी ने भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई फैशन शो और ब्रांड्स के लिए काम किया. उन्होंने कई बड़े फैशन डिजाइनरों के लिए रैंप वॉक किया है.
मॉडलिंग में सफलता के बाद स्टेफी ने अभिनय की दुनिया में कदम रखा. उन्होंने हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में काम किया और धीरे-धीरे एक अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई. स्टेफी ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी काम किया है, जिसमें वेब सीरीज और म्यूजिक वीडियो शामिल हैं. स्टेफी ने कुछ लोकप्रिय वेब सीरीज में काम किया, जहां उनके अभिनय को सराहा गया. उन्होंने म्यूजिक वीडियोज़ में भी काम किया, जो दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुए.
उपलब्धियां: –
मिस ग्लैम वर्ल्ड 2016: यह खिताब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण रहा. विभिन्न फैशन और ब्यूटी इवेंट्स में उनकी मौजूदगी ने उन्हें फैशन आइकन बना दिया.
स्टेफी पटेल एक उभरती हुई अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा से मनोरंजन उद्योग में अपनी जगह बनाई है. उनकी सुंदरता, अभिनय और फैशन के प्रति उनका जुनून उन्हें और ऊंचाइयों पर ले जाएगा.
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भूतपूर्व कार्यकारी प्राधानमंत्री गुलज़ारीलाल नन्दा
गुलज़ारीलाल नन्दा एक भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के कार्यकारी प्रधान मंत्री के रूप में दो बार कार्य किया. गुलज़ारीलाल नन्दा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उन्होंने लाहौर, आगरा, और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की.
नन्दा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भागीदार थे. वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और वर्ष 1932 में सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल गए थे. नन्दा ने श्रम और रोजगार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया. वे वर्ष 1946 में भारत सरकार के श्रम मंत्री बने और श्रम सुधारों के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए. नन्दा ने दो बार कार्यकारी प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया: –
पहली बार 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद,
दूसरी बार 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद.
इन दोनों अवसरों पर उन्होंने जिम्मेदारी से देश का नेतृत्व किया, जब तक कि नए प्रधान मंत्री की नियुक्ति नहीं हुई.
नन्दा ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भी सेवा की और देश की योजनाबद्ध विकास नीतियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1957 -67 तक भारत के गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया. वर्ष 1997 में गुलज़ारीलाल नन्दा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, से सम्मानित किया गया. उनका निधन 15 जनवरी 1998 को हुआ था.
गुलज़ारीलाल नन्दा अपने सरल जीवन, नैतिकता और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं. उनके योगदान ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला.
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फ़िल्म निर्देशक तपन सिन्हा
तपन सिन्हा एक प्रमुख भारतीय फ़िल्म निर्देशक हैं. उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1924 को हुआ था. तपन ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म निर्देशन से की.
तपन द्वारा निर्देशित पहली फिल्म “तुम बिन” जिसमें सुरजीत चोपड़ा और प्रियंका चोपड़ा को मुख्य भूमिका में थे. इसके बाद, उन्होंने कई और सफल फ़िल्में डायरेक्ट की, जैसे कि “सिंगल्स” (2004), “आप की क्षमता” (2005), और “करीब करीब सिंगल” (2017).
तपन सिन्हा का निधन 15 जनवरी 2009 को कोलकाता में हुआ था. उन्होंने अपने फ़िल्मों में समाजिक मुद्दों पर ध्यान दिया है. उन्होंने फ़िल्म निर्देशन के साथ-साथ लेखन कार्य भी किया है और उनकी कविताएँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं.
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महिला फ़ोटो पत्रकार होमाई व्यारावाला
होमाई व्यारावाला एक भारतीय फ़ोटो पत्रकार थीं और वे भारतीय प्रेस फ़ोटोग्राफ़ी की पहली महिला फ़ोटोग्राफ़र मानी जाती हैं. उनका जन्म 9 दिसंबर 1913 को हुआ था और उनका निधन 15 जनवरी 2012 को हुआ था.
होमाई व्यारावाला का फ़ोटोग्राफ़ी कैरियर वर्ष 1930 के दशक में शुरू हुआ जब वे बॉम्बे (अब मुंबई) के स्टेर्लिंग स्टूडियो में काम करने लगीं. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण मोमेंट्स को कैमरे के माध्यम से कैद किया और फ़ोटोग्राफ़ी के माध्यम से भारतीय इतिहास के अनमोल छवियों को उजागर किया. होमाई व्यारावाला ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेताओं, आम जनता के साथ होने वाली घटनाओं, और अन्य महत्वपूर्ण समाचार क्षणों की छवियों को दर्ज किया. उनकी कई फ़ोटो ने नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (NGMA) और अन्य स्थलों में भी प्रदर्शित किए गए हैं.
होमाई व्यारावाला को “भारतीय प्रेस की पहली डेयरी कॉरेस्पॉन्डेंट” के रूप में सम्मानित किया गया और उन्होंने अपने योगदान के लिए अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए, जैसे कि पद्मा भूषण (2011) और रामन मैगसेसे पुरस्कार (1998)। वे महिला फ़ोटो पत्रकारों के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहीं और उनका काम आज भी सराहा जाता है.
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मराठा वीर ई. – सदाशिवराव भाऊ
मराठा वीर ई. सदाशिवराव भाऊ एक मराठा सेनानायक थे. उनका जन्म 3 अगस्त 1730 को हुआ था और उनका निधन 14 जनवरी 1761 को हुआ था.
सदाशिवराव भाऊ ने पानिपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठा सेना की कमान संभाली थी, जो वर्ष 1761 में लड़ी गई थी. इस लड़ाई में मराठा सेना अफगान और मुगल सम्राट अहमद शाह अब्दाली के ख़िलाफ़ लड़ रही थी. यह लड़ाई एक बड़ी और घातक संघर्ष था और मराठों के लिए बड़ी हानि के साथ समाप्त हुआ.
सदाशिवराव भाऊ को वीरता, योद्धात्मक उपलब्धियों और वीर शहीद के रूप में याद किया जाता है, और वे मराठा साम्राज्य के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनके योद्धा स्वभाव और उनका संघर्ष भारतीय इतिहास का हिस्सा बन गया है.
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कुश्ती खिलाड़ी खाशाबा जाधव
खाशाबा जाधव भारतीय कुश्ती के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक थे. उनका जन्म 15 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के कराड नामक स्थान पर हुआ था और उनका निधन 14 अक्टूबर 1984 को हुआ. खाशाबा जाधव को भारतीय खुदाई इतिहास में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी माना जाता है.
खाशाबा जाधव का सफर वर्ष 1948 में लंदन ओलिंपिक में चांदी पदक जीतने तक पहुँचा. वे विज्ञानगर के अंबेडकर विद्यापीठ से पढ़े और फिर वर्ष 1948 में भारतीय खुदाई टीम के सदस्य के रूप में लंदन ओलिंपिक में प्रतिनिधिता की. खाशाबा जाधव ने भारत के लिए कुश्ती में 125 पाउंड्स कैटेगरी में चांदी पदक जीता, जिससे वे भारत के पहले ओलिंपिक में इस मेडल को जीतने वाले खिलाड़ी बने. खाशाबा जाधव का यह उपलब्धि भारतीय कुश्ती और खेल के क्षेत्र में गर्वपूर्ण मोमेंट रहा है.