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व्यक्ति विशेष

भाग – 372.

सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज में समाजसेविका और महात्मा ज्योतिराव फुले की पत्नी थीं, जिन्होंने 19वीं सदी के मध्य में महाराष्ट्र में जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ समर्थन किया. सावित्रीबाई फुले को “भारतीय महात्मा” कहा जाता है और उन्हें भारतीय समाज में शिक्षा, जातिवाद और महिला समाजसेवा के क्षेत्र में उनके प्रमुख योगदान के लिए याद किया जाता है.

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था.  सावित्रीबाई फुले का विवाह वर्ष 1841 में ज्योतिराव फुले से हुआ था.

सावित्रीबाई भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं. वर्ष 1848 में उन्होंने पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला. शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए उन्होंने महिलाओं और समाज के पिछड़े वर्गों को शिक्षित किया. उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा दिया और बाल विवाह का विरोध किया साथ ही विधवाओं और उनके बच्चों के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह की भी स्थापना की. सावित्रीबाई अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय रहीं.

सावित्रीबाई ने कविताओं के माध्यम से महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाई. उनकी कविताओं का संग्रह “काव्यफुले” और “भवानिकाव्य” के नाम से प्रसिद्ध है. वर्ष 1897 में पुणे में प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने मरीजों की सेवा के लिए एक केंद्र स्थापित कर मरीजों की सेवा करते हुए वह स्वयं प्लेग से संक्रमित हो गईं और उनकी मृत्यु हो गई.

सावित्रीबाई फुले का निधन 10 मार्च 1897 को हुआ था. सावित्रीबाई फुले भारतीय समाज में नारी शिक्षा और सामाजिक सुधारों की आधारशिला थीं. उन्हें भारत में महिलाओं की शिक्षा की ” माँ ” के रूप में सम्मानित किया जाता है.

सावित्रीबाई फुले की जयंती, 3 जनवरी, को भारत में महिला शिक्षा दिवस और समानता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. उनके संघर्ष और योगदान से प्रेरणा लेकर भारत में नारी सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में अनेक बदलाव आए हैं.

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फ़िल्म निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद

चेतन आनंद भारतीय फिल्म उद्योग के एक प्रमुख निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे. वे अपने समय के सबसे अग्रणी फिल्मकारों में से एक थे और भारतीय सिनेमा के “नई लहर” के जनकों में गिने जाते हैं. चेतन आनंद को उनकी फिल्मों में गहराई, कला और सामाजिक मुद्दों के चित्रण के लिए जाना जाता है.

चेतन आनंद का जन्म 03 जनवरी 1915 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था. चेतन आनंद का परिवार शिक्षित और समृद्ध था. उनके दो छोटे भाई—विजय आनंद (फिल्म निर्माता-निर्देशक) और देव आनंद (प्रसिद्ध अभिनेता)—भी भारतीय सिनेमा के जाने-माने नाम थे. उन्होंने लाहौर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की. वे कुछ समय के लिए दून स्कूल, देहरादून में अध्यापक भी रहे.

चेतन ने वर्ष 1940 के दशक के शुरू में सम्राट अशोक पर एक फ़िल्म की पटकथा लिखी थी. उनका फ़िल्मी सफर वर्ष 1944 में आई फणी मजूमदार की फ़िल्म ‘राजकुमार’ से शुरू हुआ. चेतन आनंद की पहली निर्देशित फिल्म “नीचा नगर” (1946) थी. यह भारतीय सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म थी जिसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली और कान्स फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री (सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार) जीता.

वर्ष 1949 में अपने भाइयों देव आनंद और विजय आनंद के साथ मिलकर नवकेतन प्रोडक्शंस की स्थापना की. यह स्टूडियो कई महत्वपूर्ण और सफल फिल्मों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध हुआ.

फिल्में: –

नीचा नगर (1946),

अफसर (1950),

काला बाजार ( वर्ष 1960) –  निर्देशक विजय आनंद, लेकिन चेतन आनंद का सहयोग रहा.

हकीकत ( वर्ष 1964): भारतीय युद्ध पर आधारित इस फिल्म को उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है. यह  वर्ष  वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध पर आधारित है और इसे भारत की बेहतरीन युद्ध फिल्मों में गिना जाता है.

हीर रांझा ( वर्ष 1970): – पंजाबी लोककथा पर आधारित इस फिल्म की पटकथा पूरी तरह कविता में लिखी गई थी.

चेतन आनंद की फिल्मों में साहित्यिक और सांस्कृतिक तत्वों का गहरा प्रभाव देखा गया. उन्होंने अपनी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया. चेतन आनंद के योगदान के लिए उन्हें भारतीय सिनेमा में उच्च स्थान दिया गया और कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले.वहीं , नीचा नगर के लिए कान्स फिल्म फेस्टिवल पुरस्कार (1946) मिला था. 

चेतन आनंद का विवाह उमा आनंद से हुआ था. हालांकि बाद में उनका संबंध अभिनेत्री प्रिया राजवंश से रहा, जो उनकी कई फिल्मों में प्रमुख अभिनेत्री थीं. प्रिया राजवंश की मृत्यु और उससे जुड़े विवादों ने उनके जीवन के अंतिम वर्षों को प्रभावित किया.

चेतन आनंद का निधन 6 जुलाई 1997 को मुंबई में हुआ था. चेतन आनंद भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने न केवल सिनेमा को एक नया दृष्टिकोण दिया, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई. उनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा में यथार्थवाद, गहराई और कलात्मकता की नई मिसाल कायम की.

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राजनीतिज्ञ जानकी बल्लभ पटनायक

जानकी बल्लभ पटनायक एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और ओडिशा के वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने तीन बार ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 3 जनवरी 1927 को हुआ था और उनका निधन 21 अप्रैल 2015 को हुआ. पटनायक ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ की और उन्होंने वर्ष 1961 – 67 तक और फिर वर्ष 1971 -72 तक, और बाद में वर्ष 1980 – 89 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया.

पटनायक को उनकी प्रगतिशील नीतियों और विकास के लिए ग्रामीण इलाकों में ध्यान केंद्रित करने के लिए सराहना मिली. उन्होंने ओडिशा के आधुनिकीकरण और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. जानकी बल्लभ पटनायक को साहित्य और संस्कृति में भी गहरी रुचि थी, और उन्होंने ओडिया भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में अपना समर्थन दिया.

उनके कार्यकाल में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई सुधारात्मक कदम उठाए गए, जिसने राज्य के समग्र विकास में योगदान दिया. जानकी बल्लभ पटनायक की विरासत ओडिशा में उनके नेतृत्व और उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों में देखी जा सकती है.

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राजनीतिज्ञ जसवंत सिंह

जसवंत सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता, राजनेता, और एक प्रसिद्ध लेखक थे. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारत के वित्त, विदेश, और रक्षा मंत्रालय जैसे प्रमुख विभागों का नेतृत्व किया.

जसवंत सिंह का जन्म 03 जनवरी 1938 को जसोल, राजस्थान के एक राजपूत परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज और नेशनल डिफेंस एकेडमी से प्राप्त की. भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक सैन्य सेवा की और फिर राजनीति में प्रवेश किया।

जसवंत सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार (वर्ष 1998-2004) में एक प्रमुख मंत्री रहे. उन्होंने कूटनीति में भारत की स्थिति को मजबूत किया. कारगिल युद्ध के समय और भारत-पाकिस्तान संबंधों में उनकी भूमिका अहम थी. पोखरण परमाणु परीक्षण (वर्ष 1998) के बाद के अंतरराष्ट्रीय दबाव को संभालने में उनकी कूटनीति प्रभावशाली रही.

वित्त मंत्री (1996, 2002-2004) के रूप में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार और उदारीकरण को बढ़ावा दिया. रक्षा मंत्री (2000-2001) के रूप में उन्होंने भारतीय रक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने में उनका योगदान रहा. वर्ष 1999 के भारतीय एयरलाइंस के फ्लाइट IC-814 के अपहरण के दौरान जसवंत सिंह ने अपहरणकर्ताओं से बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने तीन आतंकवादियों की रिहाई के बदले यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की, जो विवाद का विषय भी बना.

जसवंत सिंह अपने गहरे बौद्धिक दृष्टिकोण और लेखन के लिए जाने जाते थे. “Jinnah: India-Partition-Independence” (जिन्ना: भारत-विभाजन-स्वतंत्रता): – इस पुस्तक में उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया, जिससे भाजपा के साथ उनका मतभेद हुआ. वे भारत के विभाजन, कूटनीति, और राष्ट्रवाद जैसे विषयों पर लिखने के लिए प्रसिद्ध थे. जिन्ना पर उनकी पुस्तक के कारण राजस्थान सरकार ने उन्हें भाजपा से निलंबित कर दिया.

वर्ष 2014 में उन्हें पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद वे निर्दलीय चुनाव लड़े. जसवंत सिंह एक विद्वान राजनेता, कुशल वक्ता, और राष्ट्रवादी विचारक थे. उनके लेखन और उनके कूटनीतिक योगदान ने भारतीय राजनीति में उन्हें विशिष्ट स्थान दिलाया. सात वर्ष तक कोमा में रहने के बाद, 27 सितंबर 2020 को उनका निधन हो गया.

जसवंत सिंह को उनकी राजनैतिक सूझबूझ, कूटनीतिक कौशल और भारतीय राजनीति में सुधारवादी दृष्टिकोण के लिए याद किया जाता है. उनकी लेखनी और सेवा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी.

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अभिनेता संजय खान

संजय खान भारतीय फिल्म उद्योग के जाने-माने अभिनेता, निर्माता और निर्देशक हैं. वर्ष 1960 – 70 के दशक में उन्होंने कई लोकप्रिय फिल्मों और टेलीविज़न धारावाहिकों में काम किया. अपने समय के हैंडसम और प्रतिभाशाली कलाकारों में गिने जाने वाले संजय खान ने एक सफल अभिनेता के साथ-साथ निर्देशक और निर्माता के रूप में भी अपनी पहचान बनाई.

संजय खान का वास्तविक नाम शाह अब्बास खान है. उनका जन्म 3 जनवरी 1941 को  बंगलौर, कर्नाटक के एक पठान परिवार में हुआ था. उनके भाई फिरोज खान भी भारतीय फिल्म जगत के प्रमुख अभिनेता और निर्देशक थे. संजय खान ने वर्ष 1964 में फिल्म “हक़ीक़त” से अपने कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में अभिनय किया.

फ़िल्में: –  दूसरा आदमी (1966), एक फूल दो माली (1969), दोस्ती (1974), मेला (1971), चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर (1963).

संजय खान ने निर्देशन और निर्माण में भी हाथ आजमाया. वर्ष 1977 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म “चंडी सोना” का निर्देशन किया. वर्ष 1980 में फिल्म “काला धंधा गोरे लोग” का निर्देशन किया. उन्होंने “द स्वॉर्ड ऑफ़ टीपू सुल्तान” (1990) नामक ऐतिहासिक धारावाहिक का निर्देशन और निर्माण किया. यह शो बहुत लोकप्रिय हुआ लेकिन इसके सेट पर आग लगने की घटना के कारण विवादों में भी रहा. उन्होंने “जय हनुमान” और “1857 क्रांति” जैसे धारावाहिकों का निर्माण किया.

संजय खान का विवाह जरीन खान से हुआ. उनके चार बच्चे हैं, जिनमें उनकी बेटी सुजैन खान (जो अभिनेता ऋतिक रोशन की पूर्व पत्नी हैं) और बेटे जायेद खान (अभिनेता) हैं. वर्ष 1990 में “टीपू सुल्तान” धारावाहिक के सेट पर आग लगने की एक बड़ी दुर्घटना हुई, जिसमें संजय खान बुरी तरह झुलस गए. उन्हें 72 सर्जरी करवानी पड़ी, लेकिन उन्होंने इस कठिन समय को साहसपूर्वक झेला.

संजय खान ने अपने जीवन पर आधारित एक आत्मकथा लिखी है, जिसका शीर्षक है “द बिगेस्ट ब्लंडर माई लाइफ”. इसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभव, दुर्घटना, और कैरियर के बारे में खुलासा किया. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनके धारावाहिक “टीपू सुल्तान” को ऐतिहासिक टेलीविजन कार्यक्रमों में गिना जाता है. उनका व्यक्तित्व और उनका योगदान भारतीय सिनेमा में एक प्रेरणा का स्रोत है.

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अभिनेत्री गुल पनाग

गुल पनाग एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री, मॉडल, और सोशल अक्टिविस्ट हैं.  उनका जन्म 3 जनवरी 1979 को हुआ था. गुल पनाग ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और फिर बॉलीवुड में अभिनय करने लगी.

उनका पहला बॉलीवुड फिल्मों में आना 2003 में हुआ था, जब उन्होंने फिल्म ‘दर्द-ए-दिल’ में अभिनय किया. इसके बाद, उन्होंने कई और फिल्मों में अभिनय किया, जैसे कि ‘जादू की झप्पी’, ‘दृष्टि’, ‘वेलकम बैक’, और ‘मार जावां’. गुल पनाग को उनके अभिनय के लिए सराहा गया है और उन्होंने अपने कैरियर में एक विशेष पहचान बनाई है.

गुल पनाग ने अपने अभिनय के अलावा समाज सेवा में भी अपना योगदान दिया है और उन्हें सोशल इंजीनियरिंग और एक्टिविज्म के क्षेत्र में एक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है. वह राजनीति में भी रूचि रखती हैं और उन्होंने कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए हैं.

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अभिनेत्री नवनीत कौर

नवनीत कौर एक भारतीय अभिनेत्री और राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा और राजनीति दोनों में अपनी पहचान बनाई है. वे मुख्य रूप से तेलुगु, कन्नड़, और मलयालम फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. बाद में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और महाराष्ट्र में सांसद बनीं.

नवनीत कौर का जन्म 3 जनवरी 1986 को मुंबई के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके पिता भारतीय सेना में अधिकारी थे. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई में पूरी की. नवनीत कौर ने वर्ष 2004 में कन्नड़ फिल्म “दर्शन” से अपनी फिल्मी कैरियर की शुरुआत की.  इसके बाद उन्होंने तेलुगु फिल्मों में प्रमुख भूमिकाएं निभाईं और कई हिट फिल्मों में काम किया.

फ़िल्में: –  “चेतना” (2005), “जगपति” (2005), “गुड बॉय” (2005), “कालू” (2008), “भूमिका” (2009).

नवनीत कौर की सुंदरता और अभिनय कौशल ने उन्हें दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में एक खास पहचान दिलाई. वे आइटम गानों और ग्लैमरस भूमिकाओं के लिए भी जानी जाती थीं.

वर्ष  2010 के बाद नवनीत ने अभिनय से दूरी बना ली और सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय हो गईं. नवनीत कौर ने 2011 में महाराष्ट्र के राजनेता रवि राणा से शादी की. रवि राणा एक स्वतंत्र विधायक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनकी शादी अमरावती में 3,000 जोड़ों के सामूहिक विवाह कार्यक्रम के हिस्से के रूप में आयोजित की गई थी. शादी के बाद नवनीत ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा.

नवनीत कौर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुनी गईं. उन्होंने यह चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में शिवसेना उम्मीदवार को हराकर जीता. वे संसद में महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, और सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर मुखर रही हैं.

नवनीत और उनके पति ने सामाजिक कल्याण के लिए कई पहल की हैं, विशेष रूप से किसानों और गरीब वर्गों के लिए. उनके जाति प्रमाण पत्र को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें उन्हें कथित तौर पर फर्जी दस्तावेज़ों का उपयोग करने का आरोप लगा. इस मामले में अदालत का निर्णय उनके खिलाफ आया, लेकिन उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील की.

नवनीत कौर का सफर एक अभिनेत्री से एक प्रभावशाली सांसद तक का रहा है.उनकी सुंदरता, बुद्धिमत्ता, और मेहनत ने उन्हें हर क्षेत्र में सफलता दिलाई है. नवनीत कौर राणा अब अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों में सक्रिय हैं और सामाजिक सेवा में योगदान दे रही हैं.

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वायलिन वादक एम. एस. गोपालकृष्णन

मास्टर एम.एस. गोपालकृष्णन भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रमुख वायलिन वादकों में से एक थे. उनका जन्म 10 जून 1931 में तमिलनाडु के चेन्नई शहर में हुआ था और उनका नाम पहले महादेव शर्मा था, लेकिन उन्होंने बाद में अपने गुरु से प्रेरित होकर अपना नाम म.एस. गोपालकृष्णन रख लिया.

उन्होंने अपने संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया और अपने कार्यक्षेत्र को व्यापक बनाया. वे वायलिन के माहिर थे और उनकी शैली में क्लासिकल और सेमी-क्लासिकल संगीत का मिश्रण था. उन्होंने वायलिन पर अपने उत्कृष्ट नौसास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार जीते.

उन्होंने भारतीय संगीत में नए आयाम स्थापित किए और अपनी शैली में आधुनिकता और परंपरागत संगीत को मिलाकर एक नया संगीतीय अनुभव प्रदान किया. मास्टर एम.एस. गोपालकृष्णन का निधन 03 जनवरी 2013 में हुआ.

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लेखक व नाटककार मोहन राकेश

मोहन राकेश एक प्रमुख हिंदी भाषा के लेखक और नाटककार थे, जिन्होंने अपने योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं. उनका जन्म 8 जनवरी 1925 को महाराष्ट्र के मार्टंड नामक गाँव में हुआ था. मोहन राकेश ने अपनी शिक्षा को नागपुर और मुंबई में पूरा किया और फिर कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स, लंडन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स, और लंदन स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म में भी अध्ययन किया.

मोहन राकेश ने अपनी सर्वप्रथम रचना “आशाध का एक दिन” के साथ हिंदी साहित्य में अपना प्रवेश किया और इसे बहुत चर्चा मिली. इस के बाद, उन्होंने कई प्रमुख नाटक और कहानियाँ लिखीं, जिनमें “अधूरा आधा” और “आधुनिक कहानियाँ” शामिल हैं. उनका लेखन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित था और उन्होंने अपने कामों में समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया.

मोहन राकेश को उनके योगदान के लिए साहित्य में कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और साहित्य सम्मान शामिल हैं. उनका निधन 3 जनवरी 1972 को हुआ, लेकिन उनका योगदान हिंदी साहित्य में अजीवन भावनाओं को स्तुति और समर्पण के साथ याद किया जाता है.

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रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन

सतीश धवन एक प्रमुख भारतीय रॉकेट वैज्ञानिक थे जो अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थे. उनका जन्म 25 सितंबर 1920 को नैनीताल, उत्तराखंड, भारत में हुआ था और मृत्यु 3 जनवरी 2002 को बैंगलोर, कर्नाटक, भारत में हुई थी.

सतीश धवन ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने इसरो को विश्वस्तरीय रॉकेट प्रोग्राम में बदलने का कारगर कार्य किया. उन्होंने अपने प्रमुख अध्यक्ष के रूप में वर्ष  1972 – 84 तक कार्य किया और इस अवधि में विभिन्न सफल रॉकेट परियोजनाओं का संचालन किया.

उन्होंने विक्रम साराभाई के संगठन में काम करते हुए भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को मजबूती देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने SLV (Satellite Launch Vehicle) और ASLV (Augmented Satellite Launch Vehicle) जैसी अनेक सफल परियोजनाओं का संचालन किया.

सतीश धवन ने अपने योगदान के लिए कई सारे पुरस्कार प्राप्त किए और उन्हें भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक अद्वितीय नेता के रूप में माना जाता है.

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