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व्यक्ति विशेष

भाग – 371.

भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन

सुकुमार सेन भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) थे. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के पहले आम चुनाव (वर्ष 1951-52) को सफलतापूर्वक संपन्न कराया था.

सुकुमार सेन का जन्म 2 जनवरी 1899 को बंगाली बैद्य-ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे सिविल सेवक अक्षय कुमार सेन के बड़े बेटे थे. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से गणित में उच्च शिक्षा प्राप्त की. वे भारतीय सिविल सेवा (ICS) के अधिकारी थे और वर्ष 1921 में सेवा में शामिल हुए.

सुकुमार सेन ने 21 मार्च 1950 को भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला. उनका कार्यकाल 21 दिसंबर 1958 तक रहा. उनके नेतृत्व में स्वतंत्र भारत देश का पहला आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुआ था. यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव था, जिसमें 17.3 करोड़ से अधिक मतदाता थे. चुनाव में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ मतदान हुआ. यह प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि अधिकांश मतदाता निरक्षर थे और पहली बार वोट डाल रहे थे.

सुकुमार सेन ने चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार की, जो एक विशाल कार्य था. उन्होंने मतदाताओं के लिए प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल शुरू किया, जिससे निरक्षर मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार को पहचान सकें. चुनाव के निष्पक्ष संचालन के लिए आदर्श आचार संहिता की नींव रखी. उन्होंने वर्ष 1953 में सूडान में एक संवैधानिक जनमत संग्रह  का संचालन भी किया. सुकुमार सेन के नेतृत्व में आयोजित पहला चुनाव भारतीय लोकतंत्र की सफलता का प्रतीक बन गया. उनके प्रयासों ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया को वैश्विक स्तर पर एक मानक के रूप में स्थापित किया. उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है, खासकर भारतीय चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए.

सुकुमार सेन का निधन 13 मई 1963 को हुआ था. उन्होंने यह साबित किया कि विशाल और विविध भारत में लोकतांत्रिक चुनावों को सफलतापूर्वक संपन्न कराना संभव है. उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र की नींव को सुदृढ़ करने में अतुलनीय है.

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उपन्यासकार जैनेन्द्र कुमार

जैनेन्द्र कुमार हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कहानीकार और चिंतक थे. वे हिंदी कथा साहित्य में एक नए युग के प्रवर्तक माने जाते हैं. उनका लेखन गहन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीय संवेदनाओं और समाज के नैतिक प्रश्नों की पड़ताल के लिए जाना जाता है.

जैनेन्द्र कुमार का जन्म 02  जनवरी 1905 को अलीगढ़ के कौड़ियागंज गांव में हुआ था. उनके बचपन का नाम आनंदीलाल था. उनकी शिक्षा वाराणसी और कोलकाता में हुई थी. जैनेन्द्र कुमार गांधीजी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वर्ष 1921 में पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. वर्ष 1923 में राजनीतिक संवाददाता हो गए.

जैनेन्द्र कुमार ने भारतीय समाज में व्यक्तित्व और नैतिकता के प्रश्नों पर गहन चिंतन किया. उनका साहित्य परंपरागत कथानक से हटकर मनोवैज्ञानिक और अस्तित्ववादी दृष्टिकोण अपनाता है. उनके पात्र अपने भीतर की दुविधाओं, संघर्षों, और आत्ममंथन से जूझते नजर आते हैं.

जैनेन्द्र के उपन्यासों और कहानियों में नारी के व्यक्तित्व और स्वतंत्रता का गहन चित्रण मिलता है. उनके कई नारी पात्र समाज के बने-बनाए ढाँचों को चुनौती देते हैं. उनके लेखन में विवाह, प्रेम, नैतिकता और स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर गहन विचार किया गया है.

प्रमुख कृतियाँ: –  उपन्यास: – परख (1929), सुनीता (1935), त्यागपत्र (1937), विवर्त (1949), कल्याणी, कहानी संग्रह: – फटा हुआ लिफ़ाफ़ा, पाजेब, ज्वार और भाटा, निबंध: – नयी राहें, आत्म-साक्षी.

जैनेन्द्र ने हिंदी साहित्य को आधुनिक दृष्टिकोण और मनोवैज्ञानिक गहराई से समृद्ध किया. उन्होंने हिंदी उपन्यास को केवल घटनाओं की प्रस्तुति से हटाकर विचारशील और आत्मा के गहन अन्वेषण का माध्यम बनाया. नारी स्वातंत्र्य और व्यक्तित्व विकास के प्रश्नों पर उनकी सोच प्रगतिशील थी. जैनेन्द्र कुमार को साहित्य सेवा के लिए कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1966) – उपन्यास त्यागपत्र के लिए, हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार.

जैनेन्द्र कुमार का निधन 24 दिसंबर 1988 को हुआ था.  जैनेन्द्र कुमार ने अपने लेखन से हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान बनाई. वे केवल एक साहित्यकार नहीं, बल्कि एक दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे. उनकी कृतियाँ आज भी समाज और मनुष्य की जटिलता को समझने के लिए पढ़ी जाती हैं.

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भारतीय अमरीकी गणितज्ञ एस. आर. श्रीनिवास वर्द्धन

एस. आर. श्रीनिवास वर्द्धन भारतीय-अमेरिकी गणितज्ञ हैं, जो मुख्य रूप से सन्निकटन सिद्धांत (Theory of Large Deviations) और प्रायिकता सिद्धांत (Probability Theory) में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए जाने जाते हैं. उन्हें गणित और सांख्यिकी के क्षेत्र में किए गए उनके अभूतपूर्व कार्यों के लिए वर्ष 2007 में एबेल पुरस्कार (Abel Prize) से सम्मानित किया गया, जिसे गणित के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार माना जाता है.

श्रीनिवास का जन्म 02 जनवरी 1940 में चेन्नई (भूतपूर्व मद्रास) हुआ था. उन्होंने वर्ष 1959 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान चले गए. श्रीनिवास वर्द्धन ने वर्ष 1963 में न्यूयॉर्क स्थित कूरैंट इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज (Courant Institute of Mathematical Sciences, NYU) में प्रोफेसर के रूप में काम करना शुरू किया. उनके शोध कार्य ने प्रायिकता सिद्धांत और सांख्यिकी को गहराई से प्रभावित किया.

श्रीनिवास वर्द्धन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक दुर्लभ घटनाओं का वर्णन करने में सक्षम एक शक्तिशाली विश्लेषणात्मक और भविष्य कहने वाला संभाव्यता सिद्धांत का विकास था. उन्होंने सन्निकटन सिद्धांत (Large Deviations Theory) दिया. यह सिद्धांत जटिल प्रणालियों में दुर्लभ घटनाओं के लिए प्रायिकता का अध्ययन करता है. इसका उपयोग वित्त, भौतिकी, सांख्यिकी, और कंप्यूटर विज्ञान सहित कई क्षेत्रों में होता है.

श्रीनिवास वर्द्धन ने स्टोकेस्टिक प्रक्रियाओं (Stochastic Processes) के व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके कार्य ने आधुनिक गणित और प्रायिकता के बीच की खाई को पाटने का काम किया. उनका शोध न केवल सैद्धांतिक है बल्कि वास्तविक जीवन की समस्याओं जैसे नेटवर्क थ्योरी, क्लाइमेट मॉडलिंग, और सुरक्षा प्रणालियों में भी उपयोगी है.

श्रीनिवास वर्द्धन को गणित के क्षेत्र में काम करने के लिए कई सम्मानों से सम्मानित किया गया जिनमें –

एबेल पुरस्कार (वर्ष 2007) – सन्निकटन सिद्धांत में योगदान के लिए.

भारतीय विज्ञान अकादमी और अमेरिकी गणित सोसायटी के सम्मानित सदस्य.

कई विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट.

गणित में उनके योगदान को आधुनिक प्रायिकता सिद्धांत का आधार माना जाता है.

श्रीनिवास वर्द्धन का काम गणितीय अनुसंधान और शिक्षण में एक प्रेरणा स्रोत है. उनके शोध का उपयोग आधुनिक तकनीकी प्रणालियों, फाइनेंसियल मार्केट्स, और डेटा साइंस में किया जाता है. वे गणितीय अनुसंधान के साथ-साथ छात्रों और युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित करने में सक्रिय रहे हैं.

एस. आर. श्रीनिवास वर्द्धन न केवल गणित के क्षेत्र में भारत का गौरव हैं, बल्कि वैश्विक विज्ञान समुदाय में भी एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं. उनके कार्य ने गणित और प्रायिकता सिद्धांत को एक नई दिशा दी है.

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राजनीतिज्ञ अश्विनी कुमार चौबे

अश्विनी कुमार चौबे एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े हुए हैं. वे बिहार से आते हैं और भारतीय राजनीति में अपने लंबे अनुभव और सामाजिक सेवा के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न जिम्मेदारियाँ निभाई हैं. अश्विनी कुमार चौबे का जन्म 02  जनवरी 1953 को भागलपुर, बिहार में हुआ था. उन्होंने विज्ञान में स्नातक (बीएससी) किया है. बचपन से ही वे आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़े थे और सामाजिक सेवा में सक्रिय भूमिका निभाई.

अश्विनी कुमार चौबे ने वर्ष 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव जीतकर अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया. वे लगातार पांच बार विधायक चुने गए. बिहार के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उन्होंने ‘अटल स्वास्थ्य मिशन’ की शुरुआत की. अपने कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कई योजनाएँ चलाईं. वर्ष 2014 में, उन्होंने बिहार के बक्सर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता. उसके बाद वर्ष 2019 में फिर से बक्सर से सांसद चुने गए. वे नरेंद्र मोदी सरकार में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे. बाद में उन्हें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का राज्य मंत्री नियुक्त किया गया.

अश्विनी चौबे ने राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और अयोध्या आंदोलन के लिए जेल भी गए. वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ के दौरान उन्होंने बचाव कार्यों में सक्रिय योगदान दिया. अश्विनी चौबे ने “गंगा बचाओ अभियान” चलाया और गंगा सफाई के लिए सक्रिय प्रयास किए. स्वच्छता अभियान और पर्यावरण संरक्षण में विशेष रुचि रखते हैं. अश्विनी चौबे को अपने सादगी भरे जीवन और धर्मनिष्ठता के लिए जाना जाता है. वे आयुर्वेद, योग, और भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक हैं. अश्विनी कुमार चौबे कभी-कभी अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं. हालांकि, वे हमेशा अपने कार्यों और समाज सेवा के लिए सुर्खियों में रहे हैं.

अश्विनी कुमार चौबे भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता हैं जो सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के प्रति समर्पित हैं और अपने कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करते हैं.

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अभिनेत्री रूपल पटेल

रूपल पटेल एक जानी-मानी भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से स्टार प्लस के लोकप्रिय धारावाहिक “साथ निभाना साथिया” में कोकिला मोदी की भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं. अपने दमदार अभिनय और प्रभावशाली संवाद अदायगी के कारण वे भारतीय टेलीविजन की प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.

रूपल पटेल का जन्म 02 जनवरी 1975 को मुंबई के एक गुजराती परिवार में हुआ था. उन्होंने कॉमर्स में डिग्री हासिल की साथ ही दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग ट्रेनिंग ली. रूपल पटेल का झुकाव बचपन से ही अभिनय और नाटकों की ओर था. उन्होंने अभिनेता राधा कृष्ण दत्त से शादी की.जो खुद भी एक थिएटर और टेलीविजन कलाकार हैं.वो पैनोरमा आर्ट थिएटर्स की माल्किन भी हैं.

रूपल पटेल ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1985 में फिल्म महक से की थी. वे नाटकीय और गहन भूमिकाएँ निभाने के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अंर्तनाद (1991), सूरज का सातवां घोड़ा (1992), पपीहा (1993), मम्मो (1994) और समर (1999) जैसी फिल्मों में काम किया.

रूपल पटेल ने टेलीविजन कैरियर की शुरुआत वर्ष 2001 में स्टार प्लस पर जरीना मेहता की शगुन में लखी की भूमिका से की. साथ निभाना साथिया 2 (2020) की लोकप्रियता को देखते हुए, 2020 में इसका दूसरा सीज़न लाया गया, जिसमें रूपल पटेल ने फिर से कोकिला मोदी की भूमिका निभाई. “रसोड़े में कौन था?” डायलॉग ने सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा बटोरी और उन्हें नई पीढ़ी के बीच भी लोकप्रिय बना दिया.

रूपल पटेल एक प्रशिक्षित थिएटर कलाकार हैं और उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया है. उनका मंच अनुभव उनके टीवी और फिल्मी कैरियर में साफ झलकता है. रूपल पटेल को उनकी भूमिकाओं के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. जिनमें : – स्टार परिवार अवार्ड्स: फेवरेट सास (साथ निभाना साथिया के लिए), इंडियन टेली अवार्ड्स, गोल्ड अवार्ड्स.

रूपल पटेल भारतीय टेलीविजन में सशक्त और प्रतिष्ठित महिला पात्रों को निभाने के लिए जानी जाती हैं.उनका अभिनय और उनका व्यक्तित्व कई उभरते कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत है. उनकी छवि एक सशक्त महिला की है, जो पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों का संगम प्रस्तुत करती है. रूपल पटेल का योगदान भारतीय टेलीविजन उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण और यादगार है.

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पार्श्व गायिका शाल्‍मली खोलगडे

शाल्मली खोलगडे एक भारतीय पार्श्व गायिका, गीतकार, और संगीतकार हैं. वे मुख्य रूप से बॉलीवुड और अन्य भारतीय फिल्म उद्योगों में अपने हिट गानों के लिए जानी जाती हैं. शाल्मली का गायन विभिन्न शैलियों में माहिर है, और उनकी आवाज़ में एक खास ताजगी और ऊर्जा है, जिसने उन्हें युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बनाया है.

शाल्‍मली खोलगडे का जन्म 02 जनवरी 1988 को पुणे, महाराष्ट्र के एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था. उनकी माँ, उमा खोलगडे, शास्त्रीय गायिका हैं, जिन्होंने शाल्मली को संगीत की शिक्षा दी. उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा बचपन से प्राप्त की और बाद में पॉप और जैज़ संगीत में भी रुचि विकसित की. शाल्मली ने संगीत की गहराई से शिक्षा प्राप्त करने के लिए लॉस एंजेलेस म्यूज़िक एकेडमी में भी पढ़ाई की.

शाल्‍मली खोलगडे ने अपने सिंगिंग कैरियर की शुरुआत फिल्म इश्कजादे के गाने मै परेशान से की थी और जल्दी ही अपनी अलग पहचान बनाई. उसके बाद उन्होंने ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म कॉकटेल का दारू देशी और फिल्म अइय्या का आगा बाई गाया. उसके बाद  वर्ष 2013 में फिल्म रेस 2 के गाने लत लग गयी और फिल्म ये है जवानी  बाम पिचकारी के लिए एक बार फिर से फिल्मफेयर अवार्ड्स में नामंकन मिला था.

प्रसिद्ध गानें: –  मै परेशान , बाम पिचकारी, शुद्ध देसी रोमांस, दारू देसी, बेश्रमी की हाइट, शनिवार रात्रि.

शाल्मली ने मराठी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, और कन्नड़ फिल्मों में भी गाने गाए हैं. उनकी आवाज़ इन भाषाओं में भी उतनी ही प्रभावशाली रही है.उन्होंने न केवल गाया है, बल्कि गाने लिखे और संगीत तैयार भी किए हैं. उन्होंने अपने एल्बम और सिंगल्स भी रिलीज़ किए हैं, जो पॉप और जैज़ शैलियों से प्रभावित हैं. शाल्मली की गायन शैली पश्चिमी पॉप और जैज़ से प्रेरित है. वे शास्त्रीय संगीत को अपनी आवाज़ की जड़ों के रूप में मानती हैं.

 शाल्मली ने अपने सफल व्यावसायिक जीवन के दौरान एक फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिल चुका है और उन्होंने खुद को भारत के अग्रणी पार्श्वगायकों में शामिल किया है. उन्हें इसके अलावा ज़ी सिने अवार्ड और  ग्लोबल इंडियन म्यूज़िक अवार्ड्स (GIMA) सम्मान से सम्मानित किया गया.

शाल्मली स्वतंत्र व्यक्तित्व की धनी हैं और अपने कैरियर को लेकर बेहद समर्पित हैं. वे संगीत के अलावा नृत्य और कला में भी रुचि रखती हैं. उन्होंने कम समय में भारतीय संगीत उद्योग में एक मजबूत पहचान बनाई है. उनकी आवाज़ में जो जोश और ताजगी है, वह उन्हें भीड़ से अलग बनाती है. उनकी गायकी ने भारतीय संगीत में नई ऊर्जा और विविधता लाई है, और वे आज की युवा गायिकाओं के लिए प्रेरणा हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मज़हरुल हक़

मौलाना मजहरुल हक एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए प्रसिद्ध हुए थे. वे एक मुस्लिम लीडर और इस्लामिक विद्वान भी थे. मजहरुल हक ने भारतीय मुस्लिमों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने भारतीय सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ा.

मज़हरुल हक़ का जन्म पटना ज़िले के बाहपुरा गांव में 22 दिसंबर 1866 को एक धनी ज़मींदार परिवार में हुआ था. आरंभिक शिक्षा के बाद कुछ समय तक पटना और लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड चले गए. मजहरुल हक ने वर्ष 1942 में कुछ अन्य मुस्लिम नेताओं के साथ मिलकर ‘अल्ल इंडिया मुस्लिम मजलिस’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था मुस्लिमों के हक़ में लड़ना और उनकी आवश्यकताओं की सुरक्षा करना. उन्होंने भी ‘भारतीय मुस्लिम लीग’ का समर्थन किया और मुस्लिम समुदाय को संगठित करने में मदद की.

मजहरुल हक ने स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी भूमिका के लिए चर्चा में भी हिस्सा लिया और उन्होंने भारतीय सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ा. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेना में भी अपनी भूमिका निभाई. स्वतंत्रता के बाद, मजहरुल हक ने भारतीय सियासत में भी अपना योगदान दिया और वे विभिन्न जनपदों में नेतृत्व की भूमिका में रहे. उन्होंने मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के हक़ में लड़ने में अपना समय दिया और समाज में सामाजिक सुधार के लिए काम किया.

मज़हरुल हक़ का निधन 02 जनवरी, 1950 को हुआ था. मौलाना मजहरुल हक ने अपने जीवनभर भारतीय समाज में सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समर्थन किया और उनका योगदान स्वतंत्र भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण रहा.

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निर्देशक एवं गीतकार सफ़दर हाशमी

सफदर हाशमी एक भारतीय नाटककार, गीतकार, और नाट्य निर्देशक थे, जिन्हें उनके सामाजिक और राजनीतिक रंगमंच के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 12 अप्रैल 1954 को हुआ था. हाशमी ने ‘जन नाट्य मंच’ (जनम) की स्थापना की, जो एक सामाजिक यथार्थवादी रंगमंच समूह है, जिसका उद्देश्य सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालना और जनता के बीच जागरूकता फैलाना था. उनके नाटकों और प्रदर्शनों में अक्सर श्रमिक वर्ग के अधिकारों, न्याय, और सामाजिक असमानताओं के विषय शामिल होते थे.

सफदर हाशमी की कला और राजनीति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें एक अत्यंत प्रभावशाली और चर्चित व्यक्तित्व बना दिया. उनका मानना था कि रंगमंच को सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं होना चाहिए बल्कि इसे समाज में परिवर्तन लाने के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

सफ़दर हाशमी का प्रसिद्ध नाटक “ये दाग़ दाग़ उजाला” है, जो उनके समाजवादी दृष्टिकोण और मार्क्सवादी विचारों को अभिव्यक्त करता है. इस नाटक का उन्होंने लेखन, निर्देशन, और अभिनय भी किया था. सफ़दर हाशमी ने बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया और उन्होंने फिल्म “हक़ीक़त” के लिए गीत लिखा था, जिसे संगीतकार मदन मोहन ने संगीत किया था.

दुर्भाग्यवश, सफदर हाशमी की जिंदगी एक त्रासदी से भरी थी. 01 जनवरी 1989 को, नई दिल्ली के सहीबाबाद इलाके में एक सड़क नाटक प्रदर्शन के दौरान, वे और उनके समूह पर हमला किया गया. सफदर हाशमी को गंभीर रूप से चोटें आईं, और अगले दिन, 02 जनवरी को, उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु ने भारतीय सामाजिक और राजनीतिक रंगमंच में गहरा प्रभाव छोड़ा और उनके जीवन और कार्य को सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए संघर्ष के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है.

सफ़दर हाशमी का कार्य उर्दू साहित्य और सांस्कृतिक धाराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और उन्हें उर्दू साहित्य के कई पहलुओं में महान कलाकारों में से एक माना जाता है  उनकी विरासत आज भी जीवित है, जन नाट्य मंच और अन्य सामाजिक रंगमंच समूह उनकी भावना और उद्देश्यों को जीवित रखते हुए उनके पदचिह्नों पर चल रहे हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी बली राम भगत

बली राम भगत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी और स्वतंत्र भारत के एक अनुभवी राजनेता थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया, जिनमें लोकसभा के स्पीकर, केन्द्रीय मंत्री और बिहार के राज्यपाल के पद प्रमुख हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गए.

बली राम भगत का जन्म 7 अक्टूबर 1922 को बिहार के पटना जिले के एक छोटे से गाँव चांदी में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना से प्राप्त की और बाद में वे राजनीति विज्ञान में अध्ययन करने के लिए पटना विश्वविद्यालय चले गए. शिक्षा के दौरान ही उनका झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की ओर हो गया और वे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए.

बली राम भगत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के कई अभियानों में शामिल हुए. विशेष रूप से वर्ष 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ जन आंदोलन का हिस्सा बने. उनके क्रांतिकारी कार्यों के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा.

भारत की स्वतंत्रता के बाद, बली राम भगत ने राजनीति में अपनी सेवाएं जारी रखीं. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता बन गए और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. बली राम भगत वर्ष 1976 – 77 तक लोकसभा के स्पीकर रहे. इस दौरान उन्होंने भारतीय संसदीय प्रणाली को मज़बूत करने में योगदान दिया और निष्पक्षता से सदन का संचालन किया. उन्होंने कई बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे, जहाँ उन्होंने विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, और वित्त मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालीं. विशेष रूप से, वर्ष 1963 – 67 के दौरान वे विदेश राज्य मंत्री के पद पर थे और इस दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी सक्रिय भाग लिया.

वर्ष 1993 – 1995 तक बली राम भगत बिहार के राज्यपाल रहे. इस दौरान उन्होंने राज्य के प्रशासन को सुधारने और जनता के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए. बली राम भगत का निधन 2 जनवरी 2011 को हुआ. वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पण, राजनीति में ईमानदारी, और राष्ट्र की सेवा के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण है.

बली राम भगत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत की राजनीति में अपने योगदान के माध्यम से एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया. उनके काम और समर्पण ने उन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक सम्माननीय व्यक्तित्व बना दिया.

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शायर अनवर जलालपुरी

अनवर जलालपुरी भारतीय उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर, लेखक, और अनुवादक थे. उनका जन्म  6 जुलाई सन 1947 को उत्तर प्रदेश के जलालपुर में हुआ था. वे अपने उत्कृष्ट काव्य और अनुवाद कार्य के लिए प्रसिद्ध थे, विशेषकर “गीता” के उर्दू अनुवाद के लिए जाने जाते हैं.

अनवर जलालपुरी एक अद्वितीय शायर थे, जिनकी रचनाएँ प्रेम, दर्शन, और मानवता के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती थीं. उनकी शायरी में जीवन के विभिन्न रंग और अनुभव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.

अनवर जलालपुरी ने महाभारत और भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद किया. उनका अनुवाद “उर्दू शायरी में गीता” विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने भगवद गीता के श्लोकों का उर्दू शायरी में अनुवाद किया. यह कार्य उर्दू और हिंदी भाषी समुदायों के बीच सांस्कृतिक पुल बनाने का काम करता है. अनवर जलालपुरी ने अपनी रचनाओं और भाषणों के माध्यम से सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा दिया. वे धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रबल समर्थक थे.

अनवर जलालपुरी शिक्षण पेशे से भी जुड़े रहे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय तथा अन्य शैक्षणिक संस्थानों में साहित्यिक गतिविधियों का हिस्सा बने रहे. उन्होंने कई साहित्यिक सम्मेलनों और कवि सम्मेलनों में भाग लिया और अपने विचार साझा किए. अनवर जलालपुरी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उनकी रचनाएँ और अनुवाद कार्य साहित्यिक जगत में उच्च मान्यता प्राप्त हैं और उन्होंने उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

शायर अनवर जलालपुरी का निधन 02 जनवरी 2018 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अनवर जलालपुरी का योगदान भारतीय साहित्य और समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनकी रचनाएँ और अनुवाद कार्य आज भी पाठकों और साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी कृतियाँ और विचार भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे.

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राजनीतिज्ञ बूटा सिंह

बूटा सिंह एक अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति में कई वर्षों तक विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. उनका जन्म 21 मार्च 1934 को हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने भारत के गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया.

बूटा सिंह ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत बहुत ही युवा उम्र में की थी और उन्होंने विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर काम किया. उन्हें विशेष रूप से उनके अल्पसंख्यकों और निर्धन वर्गों के उत्थान के लिए किए गए कामों के लिए जाना जाता है. बूटा सिंह ने भारत के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया और वे बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं. उनकी राजनीतिक यात्रा में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और उनका राजनीतिक जीवन विविध और घटनापूर्ण रहा.

उनका निधन 2 जनवरी 2021 को हुआ. बूटा सिंह को उनके राजनीतिक योगदान और सामाजिक सेवा के लिए व्यापक रूप से याद किया जाता है. उनके निधन पर भारतीय राजनीति और समाज के विभिन्न वर्गों से शोक संदेश आए थे.

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