
राजनीतिज्ञ सम्पूर्णानन्द
डॉ. सम्पूर्णानन्द भारत के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, लेखक, और राजनीतिज्ञ थे. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (वर्ष 1954-60) और बाद में राजस्थान के राज्यपाल रहे. उनकी विद्वता, सरल जीवनशैली, और सामाजिक सुधार के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया.
सम्पूर्णानन्द का जन्म 01 जनवरी 1891 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की और प्रारंभ से ही शिक्षा और समाज सुधार में गहरी रुचि ली. वे भारतीय संस्कृति, दर्शन और साहित्य के गहन अध्येता थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़े. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल गए.कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वर्ष 1954 में, वे उत्तर प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने. उनके शासनकाल में शिक्षा और संस्कृति को प्रोत्साहन दिया गया साथ ही ग्रामीण विकास और सहकारी आंदोलन को भी बल मिला. उन्होंने धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने पर जोर दिया. वर्ष 1962 में, उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया. उन्होंने राज्य में शिक्षा और प्रशासन को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए.
सम्पूर्णानन्द एक कुशल लेखक और विचारक थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, और शिक्षा पर कई लेख और पुस्तकें लिखीं. उन्होंने शिक्षा को आधुनिक और प्रगतिशील बनाने के लिए कई सुधार किए. डॉ. सम्पूर्णानन्द का निधन 10 जनवरी 1969 को हुआ था. उनकी स्मृति में वाराणसी में कई संस्थानों और स्थानों का नामकरण किया गया है.
सम्पूर्णानन्द का जीवन भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणादायक था. वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने सत्ता को सेवा का माध्यम माना और हमेशा समाज के उत्थान के लिए कार्य किया. डॉ. सम्पूर्णानन्द की शिक्षा, राजनीति, और समाज सुधार में उनकी भूमिका आज भी प्रासंगिक है.
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क्रांतिकारी महादेव देसाई
महादेव देसाई भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी, लेखक, और महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे. उन्होंने न केवल गांधीजी के सचिव के रूप में कार्य किया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी लेखनी और संगठन क्षमता से एक अमूल्य योगदान दिया.
महादेव देसाई का जन्म 01 जनवरी 1892 को गुजरात के सूरत जिले के सरस गांव में हुआ था. उनकी शिक्षा मुख्य रूप से मुंबई में हुई, जहां उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की. कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे एक वकील के रूप में काम करने लगे, लेकिन जल्दी ही उन्होंने यह पेशा छोड़ दिया और गांधीजी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए.
वर्ष 1917 में, महादेव देसाई ने गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह में भाग लिया और यहीं से उनके और गांधीजी के बीच घनिष्ठ संबंध शुरू हुए. वे गांधीजी के निजी सचिव बन गए और उनके आंदोलनों, लेखन, और विचारधारा को प्रभावशाली तरीके से फैलाने में सहायता की. महादेव देसाई को गांधीजी का “दायां हाथ” कहा जाता था.
नमक सत्याग्रह (वर्ष 1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (वर्ष 1942) जैसे आंदोलनों में महादेव देसाई की भूमिका महत्वपूर्ण थी. वे गांधीजी के संदेशों और आंदोलनों को भारत और विश्व भर में फैलाने के लिए अपने लेखन और भाषणों का उपयोग करते थे. उन्होंने कई बार जेल यात्राएं कीं और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल में ही रहकर लेखन कार्य किया.
महादेव देसाई एक प्रखर लेखक और अनुवादक थे. उन्होंने गांधीजी की आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” (The Story of My Experiments with Truth) का गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद किया. वे गांधीजी के साप्ताहिक पत्र “यंग इंडिया” और “हरिजन” के संपादक भी थे. उनकी लेखनी सरल, प्रभावशाली और प्रेरक थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनता को जागरूक किया.
महादेव देसाई का निधन 15 अगस्त 1942 को अहमदनगर जेल में हुआ था. यह समय भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान का था, जब गांधीजी और उनके कई सहयोगियों को जेल में बंद किया गया था. गांधीजी ने महादेव देसाई की मृत्यु को “अपूरणीय क्षति” बताया था और उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया.
महादेव देसाई ने गांधीजी के जीवन और विचारों को लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जीवन सादगी, सेवा और समर्पण का प्रतीक था. उनकी स्मृति में कई संस्थानों का नामकरण किया गया है और उनके योगदान को आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है. महादेव देसाई ने अपने विचारों और कर्मों से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो प्रभाव छोड़ा, वह अविस्मरणीय है.
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वैज्ञानिक प्रोफेसर सत्येंद्रनाथ बोस
प्रोफेसर सत्येंद्रनाथ बोस भारत के महान भौतिक वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे, जिन्हें उनके द्वारा किए गए असाधारण शोध और “बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी” के विकास के लिए विश्वभर में याद किया जाता है. उनके नाम पर ही भौतिकी में “बोसॉन” नामक कण का नाम रखा गया. सत्येंद्रनाथ बोस ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को गर्व और पहचान दिलाई.
सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 01 जनवरी 1894 को कलकत्ता (अब कोलकाता), पश्चिम बंगाल में हुआ था. वे शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे और गणित और विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे.उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कोलकाता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और गणित में प्रथम श्रेणी में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की.
सत्येंद्रनाथ बोस ने भौतिकी में महत्वपूर्ण शोध किए. उन्होंने वर्ष 1924 में “प्लैंक का विकिरण सिद्धांत” पर एक शोधपत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कणों की सांख्यिकीय गणना का नया तरीका प्रस्तुत किया. उनके शोधपत्र को अल्बर्ट आइंस्टीन ने पढ़ा और इसकी बहुत प्रशंसा की. आइंस्टीन ने इसे आगे बढ़ाया और इसे “बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी” के रूप में विकसित किया. उनके इस शोध ने क्वांटम मैकेनिक्स के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सत्येंद्रनाथ बोस ने परमाणु कणों के व्यवहार को समझाने के लिए सांख्यिकीय सिद्धांत विकसित किया. उनके योगदान के आधार पर उन कणों को “बोसॉन” नाम दिया गया जो इस सांख्यिकी का पालन करते हैं. “बोस-आइंस्टीन कंडेंसेशन” की खोज, जो पदार्थ की पांचवी अवस्था को दर्शाता है, उन्हीं के शोध से प्रेरित है. बोस ने क्वांटम यांत्रिकी और सांख्यिकी को एक नई दिशा दी. उन्होंने कई वर्षों तक ढाका विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया. सत्येंद्रनाथ बोस को गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, संगीत, साहित्य और भाषा विज्ञान में गहरी रुचि थी.
सत्येंद्रनाथ बोस को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया. भले ही उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन उनके कार्यों की प्रशंसा आज भी वैज्ञानिक जगत में होती है. उनके सम्मान में “बोसॉन” और “बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी” उनके योगदान का प्रतीक बने हुए हैं. प्रोफेसर सत्येंद्रनाथ बोस का निधन 4 फरवरी 1974 को हुआ था. उनका जीवन विज्ञान, शिक्षा और अनुसंधान के प्रति समर्पण का आदर्श उदाहरण है.
सत्येंद्रनाथ बोस ने भारतीय विज्ञान और विश्व वैज्ञानिक समुदाय में जो स्थान बनाया, वह अमूल्य है. उनका योगदान भौतिकी और गणित में नई दिशाओं का उद्घाटन करने वाला था. आज भी उनकी खोजों और सिद्धांतों का अध्ययन और अनुसंधान किया जाता है.
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राजनीतिज्ञ ओम प्रकाश चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला भारतीय राजनीति के एक प्रमुख और अनुभवी नेता हैं. वे हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चार बार (वर्ष 1989-1990, 1990-1991, 1991, 1999-2005) सेवा कर चुके हैं. चौटाला भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (आईएनएलडी) के प्रमुख नेता हैं और देश में किसान राजनीति के एक प्रमुख चेहरे के रूप में जाने जाते हैं.
ओम प्रकाश चौटाला का जन्म 01 जनवरी 1935 को हरियाणा के सिरसा जिले के चौटाला गांव में हुआ था. वे चौधरी देवी लाल के पुत्र हैं, जो हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के उपप्रधानमंत्री रह चुके हैं. चौटाला परिवार हरियाणा में जाट समुदाय के प्रभावशाली और राजनीतिक रूप से सक्रिय परिवारों में से एक है.
ओम प्रकाश चौटाला ने अपने पिता देवी लाल के मार्गदर्शन में राजनीति में कदम रखा. उन्होंने किसानों और ग्रामीणों के मुद्दों को अपने राजनीतिक एजेंडे का केंद्र बनाया. वर्ष 1980 के दशक में, वे हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हो गए और धीरे-धीरे भारतीय लोकदल (बाद में इंडियन नेशनल लोकदल) के नेता के रूप में उभरे.
मुख्यमंत्री कार्यकाल: –
दिसंबर 1989 – जुलाई 1990: पहली बार मुख्यमंत्री बने.
जुलाई 1990 – मार्च 1991: दूसरी बार सत्ता में आए.
मार्च 1991 – अप्रैल 1991: तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.
जुलाई 1999 – मार्च 2005: चौथी बार मुख्यमंत्री का कार्यकाल, जो सबसे लंबा रहा.
ओम प्रकाश चौटाला अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास किया. कृषि और सिंचाई योजनाओं पर जोर दिया. हरियाणा को औद्योगिक हब बनाने की दिशा में काम किया. सामाजिक कल्याण योजनाओं की शुरुआत की. उनका राजनीतिक जीवन विवादों से भी जुड़ा रहा है. जेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाले (2013) में, उन्हें अनियमितताओं का दोषी पाया गया. अदालत ने उन्हें 10 साल के कारावास की सजा सुनाई. इस प्रकरण ने उनकी राजनीतिक छवि पर गहरा प्रभाव डाला, लेकिन उनके समर्थकों ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताया.
ओम प्रकाश चौटाला का परिवार हरियाणा की राजनीति में सक्रिय है. उनके पुत्र अभय चौटाला और अजय चौटाला भी राजनीतिक नेता हैं. उनका परिवार हरियाणा में जाट समुदाय के प्रमुख राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में जाना जाता है. चौटाला हरियाणा की ग्रामीण राजनीति और किसान आंदोलनों के एक मजबूत समर्थक रहे हैं. उनका नाम हरियाणा की राजनीति में एक प्रभावशाली नेता और संगठनकर्ता के रूप में लिया जाता है. उन्होंने किसानों और ग्रामीण समुदाय के हितों के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए.
ओम प्रकाश चौटाला का निधन 20 दिसंबर 2024 को गुरगाँव में हुआ था. उनका जीवन संघर्ष, विवाद और सफलता की कहानी है. वे हरियाणा की राजनीति के ऐसे नेता हैं, जिनका प्रभाव राज्य की राजनीति में लंबे समय तक बना रहेगा.
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अभिनेत्री शकीला
शकीला एक भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1950 – 60 के दशक में हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई. वे अपनी खूबसूरती और अभिनय की सादगी के लिए जानी जाती थीं. खासतौर पर उनके द्वारा निभाए गए किरदारों ने उस दौर के सिनेमा प्रेमियों पर गहरी छाप छोड़ी.
शकीला का जन्म 1 जनवरी 1935 को हुआ था. वे एक फिल्मी परिवार से थीं और उनकी बहन नूर भी एक अभिनेत्री थीं. शकीला ने छोटी उम्र में ही फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और जल्द ही अपनी सुंदरता और प्रतिभा से लोगों का दिल जीत लिया. शकीला ने वर्ष 1950 के दशक में अपनी पहली फिल्म से अभिनय की दुनिया में प्रवेश किया. हालांकि उनका फिल्मी सफर बहुत लंबा नहीं रहा, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई हिट फिल्में दीं. वे विशेष रूप से अपने ग्लैमरस और खूबसूरत किरदारों के लिए जानी जाती थीं.
फिल्में: –
“आर पार” (1954): – गुरु दत्त के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने शकीला को बॉलीवुड में एक पहचान दिलाई. फिल्म का गाना “बाबूजी धीरे चलना” आज भी क्लासिक गानों में गिना जाता है, जिसमें शकीला पर यह गीत फिल्माया गया था.
“CID” (1956): – इस फिल्म में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई और यह फिल्म सुपरहिट रही. इसमें गुरु दत्त, देव आनंद और वहीदा रहमान के साथ काम करने का मौका मिला.
“चीनी जेजी” (1953): – शकीला को इस फिल्म में भी यादगार किरदार निभाते देखा गया.
“राजरानी महल”: – यह फिल्म भी उस समय के सफल फिल्मों में से एक थी.
शकीला मुख्यत रोमांटिक और ग्लैमरस किरदारों में नजर आईं, और उनकी फिल्मों में उनके गाने और डांस नंबर्स बहुत लोकप्रिय रहे. उन्होंने देव आनंद और गुरु दत्त जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम किया और उस समय की प्रमुख अभिनेत्रियों में शामिल हो गईं. वर्ष 1960 के दशक के अंत में शकीला ने फिल्म इंडस्ट्री से सन्यास ले लिया. उन्होंने अपने कैरियर को अलविदा कहकर एक साधारण जीवन को चुना और अपने परिवार के साथ समय बिताने लगीं.
शकीला का निधन 20 सितंबर 2017 को मुंबई में हुआ. उन्हें भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा. उनकी फिल्मों और गानों ने उन्हें बॉलीवुड के सुनहरे दौर की एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में अमर कर दिया है.
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शायर और गीतकार राहत इंदौरी
राहत इंदौरी मशहूर भारतीय शायर, गीतकार, और उर्दू साहित्य के प्रमुख हस्ती थे. वे अपनी अनूठी शैली, शक्तिशाली आवाज़, और प्रभावशाली शायरी के लिए जाने जाते थे. राहत इंदौरी ने न सिर्फ उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि हिंदी फिल्मों के लिए भी कई यादगार गीत लिखे. राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उनका असली नाम राहत कुरैशी था. वे एक साधारण परिवार से थे, और उनके पिता एक कपड़ा मिल में काम करते थे.
राहत इंदौरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में पूरी की. उन्होंने इंदौर के इस्लामिया करीमिया कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में उर्दू साहित्य में एम.ए. किया. इसके अलावा, उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की डिग्री हासिल की. राहत इंदौरी ने अपने शायरी के सफर की शुरुआत किशोरावस्था में ही कर दी थी. उन्होंने देश भर में विभिन्न मुशायरों में हिस्सा लेना शुरू किया और बहुत जल्द ही अपनी अनूठी शैली और पंक्तियों के कारण लोकप्रिय हो गए.
राहत इंदौरी की शायरी में एक अद्वितीय जोश और ऊर्जा थी. उनकी पंक्तियों में समाज की समस्याओं, राजनीतिक मुद्दों, और मानवीय भावनाओं का प्रतिबिंब मिलता था. उनकी शायरी में एक बगावती और स्वतंत्र सोच थी, जिसने उन्हें श्रोताओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया.
राहत इंदौरी के कई शेर आम लोगों की जुबान पर हैं, जैसे: –
” सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है.”
” मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.”
राहत इंदौरी ने कई हिंदी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे. वर्ष 1990 के दशक में, वे एक प्रमुख गीतकार के रूप में उभरे और उनकी लिखी गई गीतों ने फिल्मों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
फिल्मों के गीत: –
मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003) – “मामूली चीज़ें मत पूछा कर, हम बड़े लोग हैं!”
इश्क (1997) – “नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम”
कर्मा (1986) – “दिल दुवाओं का रोग है”
राहत इंदौरी ने अपने शायरी और साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए. वे देश के सबसे प्रतिष्ठित कवि सम्मेलनों और मुशायरों में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित होते थे. राहत इंदौरी का निधन 11 अगस्त 2020 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ. उनके निधन से साहित्य और शायरी जगत में शोक की लहर दौड़ गई. वे एक ऐसा नाम थे जिन्होंने अपनी कला से न केवल उर्दू साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय साहित्य के परिदृश्य को भी सजाया.
राहत इंदौरी की शायरी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है. वे अपनी बगावती शैली, सामाजिक मुद्दों पर बेबाक टिप्पणियों, और गहरी संवेदनशीलता के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. उनकी शायरी और गीत भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा बन चुके हैं.
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निर्माता निर्देशक, पटकथा लेखक दीपा मेहता
भारतीय सिनेमा के महत्वपूर्ण नामों में से एक हैं दीपा मेहता, जो एक प्रमुख निर्माता, निर्देशक, और पटकथा लेखक हैं.
दीपा ने अनेक उदारिता और साहस के साथ अनेक उत्कृष्ट फिल्मों को निर्मित किया है. उनकी फिल्मों में से कई ने समाज के मुद्दों पर चिन्ह रखा है और उन्होंने नए और साहसिक कथा-रूपांतरणों का सामना किया है. उन्होंने ‘रंग दे बसंती’, ‘बारीली की बर्फी’, और ‘आर्शी’ फिल्मों का निर्देशन कर चर्चा में रहीं. दीपा मेहता ने कई फिल्मों के लिए खुद ही पटकथा लिखी है जो दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर करती हैं.
फिल्में:–
‘रंग दे बसंती’: – इस फिल्म ने बहुत सारे पुरस्कार जीते और दर्शकों को एक सामाजिक संदेश देने में सफल रही।
‘बारीली की बर्फी’: – यह फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी है और इसने अच्छी प्रतिक्रिया प्राप्त की है।
दीपा मेहता ने अपने कैरियर में सिनेमा को विभिन्न दृष्टिकोण से देखा है और उनका योगदान सिनेमा में नई राहें खोलने में महत्वपूर्ण रहा है.
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अभिनेता नाना पाटेकर
नाना पाटेकर भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, और समाजसेवी हैं. वे अपनी बेहतरीन अभिनय शैली, वास्तविकता से जुड़े किरदार, और दमदार संवाद अदायगी के लिए जाने जाते हैं. हिंदी और मराठी फिल्मों में समान रूप से योगदान देने वाले नाना पाटेकर को भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली कलाकारों में से एक माना जाता है.
नाना पाटेकर का असली नाम विश्वनाथ पाटेकर है. उनका जन्म 01 जनवरी 1951 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में हुआ था. उन्होंने अपने संघर्षपूर्ण प्रारंभिक दिनों में थिएटर और अभिनय से जुड़कर अपने कैरियर की शुरुआत की. उनकी शिक्षा मुंबई के सर जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड आर्ट्स में हुई, जहां उन्होंने कला की पढ़ाई की.
नाना पाटेकर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1978 में फिल्म “गमन” से की. उन्हें मुख्यधारा में पहचान वर्ष 1989 में आई फिल्म “परिंदा” से मिली, जिसमें उनकी भूमिका बेहद प्रभावशाली थी. “क्रांतिवीर” (1994) में उनकी दमदार भूमिका ने उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया. नाना पाटेकर ने मराठी सिनेमा में भी कई उल्लेखनीय योगदान दिए. उन्होंने फिल्म “नटसम्राट” (2016) में मुख्य भूमिका निभाई, जो मराठी सिनेमा की सबसे चर्चित और प्रशंसित फिल्मों में से एक है.
फिल्में: –
“प्रहार” (1991) – उन्होंने निर्देशन भी किया,
“अब तक छप्पन” (2004),
“खामोशी: द म्यूजिकल” (1996),
“अपहरण” (2005),
“वेलकम” (2007) – उनकी कॉमिक टाइमिंग ने दर्शकों का दिल जीत लिया.
नाना पाटेकर अपनी अनोखी अभिनय शैली के लिए जाने जाते हैं, जो किरदार की गहराई को दर्शाती है. उनके संवाद अदायगी का तरीका बेहद प्रभावशाली और वास्तविकता के करीब होता है. वे सामाजिक मुद्दों से जुड़े गंभीर और चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने में माहिर हैं.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: –
“परिंदा” (1989) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता,
“क्रांतिवीर” (1994) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता,
फिल्मफेयर पुरस्कार: – कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सहायक अभिनेता के लिए नामांकित,
उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया.
नाना पाटेकर समाजसेवा के कार्यों में भी सक्रिय हैं. उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों के लिए “नाम फाउंडेशन” की स्थापना की, जो सूखा राहत और किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए काम करता है. वे अपनी सादगी और जमीन से जुड़े रहने के लिए जाने जाते हैं. नाना पाटेकर का विवाह नीलकांति पाटेकर से हुआ. उनका जीवन व्यक्तिगत और पेशेवर चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिबद्धता से भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी.
नाना पाटेकर ने अभिनय के माध्यम से भारतीय सिनेमा को नए मानक दिए हैं. उनकी बहुमुखी प्रतिभा और समाजसेवा की भावना उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बनाती है. “नाना पाटेकर सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं, जो कला और समाज दोनों के लिए समर्पित हैं.”
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ठुमरी गायिका शुभा मुद्गल
शुभा मुद्गल भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक प्रसिद्ध गायिका हैं, जो अपनी विशिष्ट शैली और गायन की गहराई के लिए जानी जाती हैं. ठुमरी, खयाल, दादरा, और अन्य शास्त्रीय संगीत शैलियों में माहिर शुभा मुद्गल ने पारंपरिक भारतीय संगीत को आधुनिक संदर्भ में एक नई पहचान दिलाई है.
शुभा मुद्गल का जन्म 1959 में एक शिक्षित और प्रगतिशील परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता दोनों अकादमिक क्षेत्र से जुड़े थे और संगीत के प्रेमी थे. शुभा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में प्राप्त की. शुभा मुद्गल ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्रारंभ में रामाश्रय झा और बाद में पंडित विनय चंद्र मौदगल्य और पंडित कुमार गंधर्व से प्राप्त की. उन्होंने ठुमरी और दादरा गायकी के क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण निर्मला देवी और गिरिजा देवी से लिया. उनकी शैली में खयाल गायकी की गहराई और ठुमरी की कोमलता का अनूठा मेल है.
शुभा मुद्गल ने अपने कैरियर की शुरुआत खयाल गायकी से की और जल्दी ही ठुमरी और दादरा में भी ख्याति प्राप्त की. उनकी गायकी में भारतीय शास्त्रीय संगीत की पारंपरिकता और आधुनिकता का संतुलन देखा जा सकता है.
शास्त्रीय गायन के साथ-साथ, शुभा ने कई फिल्मों और एल्बम के लिए भी गाया. “अभके सवन” और “अली मोरे अंगना” जैसे उनके गीत अत्यधिक लोकप्रिय हुए. उन्होंने फ्यूजन और पॉप म्यूजिक में भी प्रयोग किए और उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
प्रमुख रचनाएं
“पिया तोसे नैना लागे रे”
“अब के सवन ऐसे बरसे”
“सावन”
शुभा मुद्गल को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, पद्म श्री (2000) भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में, Sangeet Natak Akademi Award, वे कई अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोहों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. शुभा मुद्गल संगीत को आम जनता के बीच ले जाने के लिए भी जानी जाती हैं. वे कई सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों से जुड़ी हैं और संगीत के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाने का प्रयास करती हैं. उन्होंने युवा पीढ़ी को भारतीय शास्त्रीय संगीत के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है.
शुभा मुद्गल का विवाह प्रसिद्ध तबला वादक मुरलीधरन मुद्गल से हुआ. उनका जीवन संगीत और परिवार के प्रति समर्पित है. शुभा मुद्गल न केवल एक उत्कृष्ट गायिका हैं, बल्कि एक ऐसी कलाकार हैं, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को आधुनिक और युवा श्रोताओं के लिए प्रासंगिक बनाया. उनकी गायकी का जादू श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत की गहराइयों में डुबाने के साथ-साथ आधुनिकता का अनुभव भी कराता है.
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अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे
सोनाली बेंद्रे फिल्म इंडस्ट्री की एक प्रमुख अभिनेत्री हैं. उनका जन्म 1 जनवरी 1975 को महाराष्ट्र के मुंबई शहर में हुआ था. सोनाली बेंद्रे ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी और फिर बॉलीवुड में एक्टिंग करना शुरू किया.
उनका पहला फिल्मी देव्यभूमि था, जो वर्ष 1994 में रिलीज हुई थी, और उसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया. कुछ प्रमुख फिल्में जिनमें सोनाली ने अच्छे प्रदर्शन किए हैं.
फिल्में: –
सरकार (1997)
हम साथ-साथ हैं (1999)
सरफारोश (1999)
हेरा फेरी (2007)
दिल जो भी कहे (2005)
सोनाली बेंद्रे ने अपने कैरियर में अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कारों को जीता है और उनका योगदान बॉलीवुड में महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके अलावा, सोनाली बेंद्रे ने अपने जीवन में कैंसर से जूझने के बाद भी आत्म-समर्पण और साहस का परिचय दिया है और उन्होंने इस मुश्किल समय से बाहर आने के लिए सकारात्मक रूप से लोगों को प्रेरित किया है.
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अभिनेत्री विद्या बालन
विद्या बालन, एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार और सम्मान जीते हैं. उनका जन्म 1 जनवरी 1979 को मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था.
विद्या बालन का फिल्मी कैरियर 2003 में हिन्दी फिल्म “परिनीति” के साथ शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने अपने पहले फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए बेस्ट डेब्यू अभिनेत्री का पुरस्कार जीता. उनका अभिनय इस फिल्म के लिए सराहनीय था और वह तुरंत फिल्म इंडस्ट्री की एक नई चेहरा बन गईं.
फिल्में: –
“भूल भुलैया” (2007)
“परिणीती” (2005)
“कहानी” (2012)
“त्यारी जना है” (2017)
“शेरनी” (2021)
उन्होंने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी जीते हैं, जैसे कि एक नेशनल फिल्म अवॉर्ड, एक फिल्मफेयर पुरस्कार. विद्या बालन एक सुशिक्षित और प्रतिबद्ध अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने योगदान से बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.