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व्यक्ति विशेष

भाग – 369.

स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण बल्लभ सहाय

कृष्ण बल्लभ सहाय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे और उनका कार्यकाल वर्ष 1963 – 67 तक था. उनका जन्म 31 दिसम्बर, 1898 को पटना ज़िले के  सेखपुर नामक गांव में हुआ था और उनका निधन  3 जून, 1974, को हजारीबाग, झारखण्ड में हुआ.

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रियता के दौरान, कृष्ण बल्लभ सहाय ने कई बार जेल यात्रा की. वे एक कुशल वकील थे और उन्होंने अपनी विधिक योग्यता का उपयोग करते हुए राष्ट्रीय आंदोलन की सेवा की. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के एक सक्रिय सदस्य के रूप में काम किया और विभिन्न स्तरों पर पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल विकासोन्मुखी और सुधारात्मक नीतियों से भरा था. उन्होंने बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई पहल कीं. उनकी नीतियों ने राज्य के समाजिक और आर्थिक ढांचे में सुधार किया. कृष्ण बल्लभ सहाय की विरासत एक प्रेरणादायक नेता के रूप में याद की जाती है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता और बिहार के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उनका जीवन और कार्य आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल हिंदी साहित्य के प्रमुख व्यंग्यकार और उपन्यासकार थे. उन्हें मुख्यतः उनके विख्यात उपन्यास राग दरबारी के लिए जाना जाता है, जो भारतीय ग्रामीण समाज और उसकी समस्याओं पर गहरा और चुटीला व्यंग्य प्रस्तुत करता है. राग दरबारी वर्ष 1968 में प्रकाशित हुआ था और इसने हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर स्थापित किया. यह उपन्यास न केवल साहित्यिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं को भी उजागर करता है.

श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसम्बर 1925 को अतरौली गाँव, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद प्रशासनिक सेवा (IAS) में कार्य किया और उसी दौरान वे समाज की गहरी समझ के साथ अपने लेखन को विकसित कर सके. उनके लेखन का केंद्र आम भारतीय समाज, विशेषकर ग्रामीण भारत की जटिलताएँ और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार, राजनीति, और विडंबनाएँ थीं.

उनकी अन्य प्रमुख कृतियों में आदमी का ज़हर, मकान, पहला पड़ाव, विश्रामपुर का संत और सुनीता शामिल हैं. श्रीलाल शुक्ल का व्यंग्य गहरे सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ था, और उन्होंने बहुत ही सजीव और सरल भाषा में ग्रामीण और शहरी जीवन की सच्चाइयों को चित्रित किया.

उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2009 में भारतीय साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान “ज्ञानपीठ पुरस्कार” प्रदान किया गया. इसके अलावा, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। श्रीलाल शुक्ल का लेखन आज भी प्रासंगिक है और समाज की वास्तविकता पर सोचने के लिए प्रेरित करता है. श्रीलाल शुक्ल का निधन 28 अक्टूबर 2011को हुआ था.

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अभिनेत्री कविता राधेश्याम

कविता राधेश्याम एक भारतीय अभिनेत्री, मॉडल, और नर्तकी हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों और वेब सीरीज में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने बोल्ड और संवेदनशील विषयों पर आधारित किरदारों के कारण लोकप्रियता हासिल की है.

कविता राधेश्याम का जन्म 31 दिसंबर 1985 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने निर्देशक विक्रम भट्ट की थ्रिलर टीवी सीरीज़ “हू डन इट उल्झन” से अपने कैरियर की शुरुआत थी और बाद में फिल्मों और वेब सीरीज में अभिनय किया.उनकी पहचान ज़्यादातर उनकी बोल्ड इमेज और विवादास्पद भूमिकाओं से हुई.

कविता ने “स्वतंत्रता आंदोलन” नामक एक शॉर्ट फिल्म के माध्यम से लोकप्रियता हासिल की. वे वेब सीरीज “भूमिका” और “अनफ्रीडम” में अपने प्रदर्शन के लिए चर्चा में रहीं. उनकी भूमिका में अक्सर समाज के मुद्दों और रूढ़िवादिता को चुनौती देने वाले तत्व शामिल होते हैं. कविता को उनकी बोल्ड ऑन-स्क्रीन उपस्थिति के कारण “भारत की किम कार्दशियन” भी कहा जाता है. उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी बेबाक राय और तस्वीरों के लिए काफी फॉलोअर्स हासिल किए हैं.

कविता अपने निजी जीवन को लेकर भी चर्चा में रहती हैं. उनकी सामाजिक मुद्दों पर खुलकर राय रखने की आदत उन्हें अलग बनाती है.

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अभिनेत्री सोहिनी पॉल

सोहिनी पॉल एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो बंगाली सिनेमा में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं. वह दिग्गज अभिनेता और निर्देशक सौमित्र चटर्जी की बेटी हैं. अभिनय की दुनिया में उनका सफर उत्कृष्टता और विविधता से भरा हुआ है.

सोहिनी पॉल का जन्म 31 दिसंबर 1986 को कोलकाता के एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध परिवार में हुआ. उनके पिता सौमित्र चटर्जी भारतीय सिनेमा और थिएटर के महान कलाकारों में से एक थे.एक प्रतिष्ठित परिवार से आने के बावजूद, सोहिनी ने अपने अभिनय कौशल से अपनी खुद की पहचान बनाई है.

सोहिनी पॉल ने बंगाली फिल्मों और थिएटर में कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं. उन्होंने न केवल मुख्यधारा की फिल्मों में काम किया है, बल्कि सामाजिक और कलात्मक सिनेमा में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. उनकी अभिनय शैली में गहराई और संवेदनशीलता होती है, जो उनके किरदारों को यादगार बनाती है.

उनकी सादगी और प्रभावशाली अभिनय क्षमता दर्शकों को जोड़ने में सक्षम है. वह थिएटर और सिनेमा दोनों में सक्रिय रही हैं और उन्होंने अपने पिता के मानकों को बनाए रखा है.

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मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल

विशंकर शुक्ल एक प्रमुख भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जो मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई थी.

रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर जिले की रहली तहसील के गुड़ा ग्राम में एक  कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित जगन्नाथ शुक्ल और माता का नाम तुलसी देवी था. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा चार वर्ष की आयु में सागर स्थित ‘सुन्दरलाल पाठशाला’ में दाखिला लिया. रविशंकर ने  माध्यमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद अपने पिता के साथ राजनांदगाँव चले गये और अपने भाई पंडित गजाधर शुक्ल के साथ ‘बेंगाल नागपुर कॉटन मिल’ में सहभागी हो गए. कुछ वर्ष मिल चलाने के बाद वे रायपुर चले गये.

 इस दौरान रविशंकर शुक्ल ने अपनी स्कूली शिक्षा रायपूर  हाईस्कूल से पूर्ण की. शुक्ल ने इंटर की परीक्षा जबलपुर के ‘रॉबर्टसन कॉलेज’ से उत्तीर्ण की और फिर स्नातक की पढ़ाई नागपुर के ‘हिसलोप कॉलेज’ से पूर्ण की.  वर्ष 1898 में संपन्न हुए कांग्रेस के 13वें अधिवेशन में भाग लेने आप अपने अध्यापक के साथ अमरावती गये थे. शुक्ल ने वर्ष 1906 से रायपुर में वकालत प्रारंभ की साथ ही वे स्वतंत्रता आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे. वर्ष 1926-37 तक आप ‘रायपुर ज़िला बोर्ड’ के सदस्य भी रहे. वर्ष 1952 में प्रथम आम चुनावों के बाद रविशंकर मुख्यमंत्री बने.

रविशंकर शुक्ल की मृत्यु 31 दिसंबर 1956 को हुई. उनके योगदानों को स्मरण करने के लिए भोपाल में उनके नाम पर रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई. उन्हें भारतीय राजनीति और मध्य प्रदेश के विकास में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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अभिनेता कादर खान

कादर खान भारतीय सिनेमा के अभिनेता, संवाद लेखक, पटकथा लेखक, और हास्य कलाकार थे. उन्होंने बॉलीवुड में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया और अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते थे. उनके योगदान ने न केवल फिल्मी जगत को समृद्ध किया, बल्कि उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे चहेते और आदरणीय कलाकारों में से एक बना दिया.

कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था. उनके पिता का नाम अब्दुल रहमान खान और मां का नाम इकराम खानम था. कादर खान का परिवार बाद में मुंबई आकर बस गया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में ही पूरी की. कादर खान ने मुंबई के इस्माइल यूसुफ कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और कुछ समय तक एक कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया.

कादर खान का फिल्मी कैरियर वर्ष 1970 के दशक में शुरू हुआ. उन्होंने अभिनेता दिलीप कुमार की प्रेरणा से फिल्म “दाग” (1973) में अभिनय किया. इसके बाद उन्होंने कई बड़ी फिल्मों में काम किया और वर्ष 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड के मुख्य हास्य और सहायक अभिनेताओं में से एक बन गए.

कादर खान का विशेष योगदान फिल्मों में संवाद लेखन में भी था. उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों के संवाद लिखे, जैसे: –  अमर अकबर एंथनी (1977), कुली (1983), शराबी (1984), लावारिस (1981), सत्ते पे सत्ता (1982). उनकी संवाद लेखन शैली ने उन्हें सदी के सबसे प्रतिभाशाली लेखकों में शामिल कर दिया. उनके संवाद आज भी बॉलीवुड के प्रशंसकों के बीच प्रसिद्ध हैं।

कादर खान की अभिनय शैली विविध थी. उन्होंने न केवल हास्य भूमिकाओं में अपनी पहचान बनाई, बल्कि नकारात्मक और गंभीर भूमिकाओं में भी अपना लोहा मनवाया. उनके हास्य संवाद और समय पर की गई कॉमेडी ने उन्हें जनता के बीच खासा लोकप्रिय बनाया. कादर खान और गोविंदा की जोड़ी ने वर्ष 1990 के दशक में कई हिट कॉमेडी फिल्में दीं, जिनमें: –  दूल्हे राजा (1998), हीरो नंबर 1 (1997), हसीना मान जाएगी (1999), आंटी नंबर 1 (1998). उनकी कॉमिक टाइमिंग और एक्सप्रेशंस ने इन फिल्मों को यादगार बना दिया.

कादर खान ने कई यादगार फिल्मों में काम किया, जिनमें उनकी प्रमुख भूमिकाओं और संवादों के लिए उन्हें सराहा गया.

प्रमुख फिल्में:कुली, हिम्मतवाला,बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, दूल्हे राजा, बोल राधा बोल.

कादर खान ने अपने लंबे कैरियर में कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए. उन्हें वर्ष 2013 में साहित्य शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए दिया गया. इसके अलावा, उन्होंने कई फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी जीते. कादर खान का स्वास्थ्य वर्ष 2010 के दशक के अंत में बिगड़ गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और कनाडा में अपने परिवार के साथ रह रहे थे. 31 दिसंबर 2018 को 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.

कादर खान ने अपने संवाद लेखन और अभिनय के माध्यम से भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान को सदा याद किया जाएगा, और वे बॉलीवुड के सबसे चहेते और सम्मानित कलाकारों में से एक के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.

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