साहित्यकार बनारसीदास चतुर्वेदी
बनारसीदास चतुर्वेदी एक हिंदी साहित्यकार और पत्रकार थे. उनका जन्म 19 दिसंबर 1892 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में हुआ था. बनारसीदास चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में महत्वपूर्ण योगदान दिया और वे ‘कर्मयोगी’ नामक पत्रिका के संस्थापक और संपादक भी थे.
उनके लेखन में गहरी अंतर्दृष्टि और सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता का पता चलता है. चतुर्वेदी जी ने विशेष रूप से भारतीय समाज और राजनीति पर अपने विचार व्यक्त किए और उनका लेखन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद भी प्रासंगिक रहा.
बनारसीदास चतुर्वेदी ने अपने जीवनकाल में कई यात्राएँ कीं और विश्व के अनेक हिस्सों में भारतीय संस्कृति और साहित्य का प्रचार किया. उनके द्वारा किए गए साक्षात्कार और लेख उनकी पत्रिका ‘कर्मयोगी’ में प्रकाशित होते थे, जिसे हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में एक महत्वपूर्ण पत्रिका माना जाता है.
चतुर्वेदी जी का निधन 2 जुलाई 1985 को हुआ. उनके निधन के बाद भी, उनका लेखन और विचार आज भी साहित्यिक और पत्रकारिता क्षेत्र में प्रेरणा के स्रोत के रूप में माने जाते हैं.
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बाबा आम्टे
बाबा आम्टे जिनका वास्तविक नाम मुरलीधर देवराव आम्टे था, वो एक प्रसिद्ध भारतीय समाजसेवी थे, जो विशेष रूप से लेप्रोसी के लिए अपनी सेवाएँ और परिवर्तन कार्यों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने महाराष्ट्र के वारकाड गांव में एक अस्पताल और समाजसेवा संस्था अनुग्रह आश्रम की स्थापना की थी.
बाबा आम्टे का जन्म 24 दिसम्बर, 1914 को वर्धा महाराष्ट्र के निकट एक ब्राह्मण जागीरदार परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन के दौरान अस्पताल में उपचार, शिक्षा, और समाजसेवा के क्षेत्र में काम किया, विशेष रूप से उन्होंने लेप्रोसी पीड़ितों के लिए योगदान दिया. उन्होंने समाज में जागरूकता फैलाने के लिए भी काम किया और उनकी सेवाएं ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कराई. उन्हें भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया.
बाबा आम्टे का उद्धारणीय योगदान सामाजिक न्याय, मानवता, और समाजसेवा के क्षेत्र में रहा है, और उनकी प्रेरणादायक कहानी लोगों को अनेकों तरीकों से प्रेरित करती है. बाबा आम्टे का निधन 9 फ़रवरी, 2008 को महाराष्ट्र में हुआ था.
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पार्श्वगायक मोहम्मद रफ़ी
मोहम्मद रफ़ी भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित पार्श्वगायकों में से एक थे. उनका जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर जिले के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था. वे अपनी अविश्वसनीय आवाज़, विविध गायकी शैली और संगीतमय योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं.
रफ़ी का संगीत के प्रति रुझान बचपन से ही था. उनके बड़े भाई की सैलून में काम करने वाले एक संगीतकार ने उन्हें संगीत सिखाना शुरू किया. बाद में, रफ़ी ने उस्ताद बड़े गुलाम अली खान और उस्ताद अब्दुल वहिद खान जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों से भी प्रशिक्षण लिया.
रफ़ी ने अपना पहला गीत 1941 में पंजाबी फिल्म “गुल बलोच” के लिए गाया. वर्ष 1944 में, वे मुंबई (तत्कालीन बंबई) आए और अपने कैरियर की शुरुआत की. वर्ष 1946 में आई फिल्म “जुगनू” में उनके गाए गीत “ये ज़िंदगी के मेले” से उन्हें पहचान मिली.
प्रमुख गीत और हिट फिल्में: –
आसमान (1952) – “शाम-ए-ग़म की कसम”
बरसात की रात (1960) – “ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी”
मुग़ल-ए-आज़म (1960) – “प्यार किया तो डरना क्या”
ताज महल (1963) – “जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा”
अराधना (1969) – “बागों में बहार है”
धर्मात्मा (1975) – “क्यांकि हमको उनसे है प्यार”
रफ़ी ने नौशाद, शंकर-जयकिशन, एस.डी. बर्मन, आर.डी. बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, और ओ.पी. नैयर जैसे संगीतकारों के साथ काम किया. उन्होंने शकील बदायूनी, मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी, और आनंद बक्शी जैसे प्रसिद्ध गीतकारों के लिखे गीत गाए.
रफ़ी को कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्होंने 6 फिल्मफेयर पुरस्कार और 1 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. भारत सरकार ने उन्हें 1967 में पद्म श्री से सम्मानित किया. रफ़ी की शादी बिलकिस बानो से हुई थी और उनके चार बेटे और तीन बेटियां थीं. वे अपने शांत और विनम्र स्वभाव के लिए भी प्रसिद्ध थे.
मोहम्मद रफ़ी का निधन 31 जुलाई 1980 को हृदयाघात के कारण हुआ. उनके निधन पर पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ गई. उनके गीत आज भी सुनने वालों के दिलों में बसे हुए हैं और वे भारतीय संगीत के इतिहास में एक अमर गायक के रूप में याद किए जाते हैं. मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ और संगीत ने भारतीय सिनेमा को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया. उनके गाए गीत सदाबहार हैं और उन्होंने अपनी कला के माध्यम से अनगिनत दिलों को छुआ है.
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अभिनेता अनिल कपूर
अनिल कपूर भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक हैं. उन्होंने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स में भी काम किया है. उनका कैरियर चार दशकों से भी अधिक समय तक फैला हुआ है, और वे अपने ऊर्जावान प्रदर्शन और सदाबहार व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध हैं.
अनिल कपूर का जन्म 24 दिसंबर 1956 को चेंबूर, मुंबई में हुआ था. उनके पिता का नाम सुरिंदर कपूर और मां का नाम निर्मला कपूर है. उनके दो भाई भी हैं- बड़े भाई का नाम बोनी कपूर और छोटे भाई का नाम संजय कपूर है. उन्होंने ऑवर लेडी ऑफ परपिच्युल सकर हाईस्कूल, चेंबूर से पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से पढ़ाई की.अनिल की शादी सुनीता कपूर से हुई है जिनसे उन्हें तीन बच्चे हैं- दो लड़कियां: सोनम कपूर और रिया कपूर और एक लड़का हर्षवर्धन है.
अनिल कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1979 में हिंदी फिल्म हमारे तुम्हारे से की. फिल्म ‘वो सात दिन’ में उनकी पहली अग्रणी भूमिका थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाईं और आलोचकों के साथ साथ दर्शकों का काफी मनोरंजन कियाा.
प्रमुख फिल्में: – मशाल (1984), मेरी जंग (1985), मिस्टर इंडिया (1987), तेज़ाब (1988), राम लखन (1989), लम्हे (1991), 1942: अ लव स्टोरी (1994), विरासत (1997), ताल (1999), नायक (2001), वेलकम (2007), स्लमडॉग मिलियनेयर (2008) (ऑस्कर विजेता फिल्म), दिल धड़कने दो (2015), मुबारकां (2017), मलंग (2020), जुग जुग जीयो (2022).
अनिल कपूर ने हॉलीवुड में भी काम किया है. स्लमडॉग मिलियनेयर (2008) में उनका अभिनय सराहा गया. टीवी सीरीज 24 के भारतीय संस्करण में भी उन्होंने अभिनय और निर्माण किया. अनिल कपूर को पुरस्कार और सम्मानों से सम्मानित किया गया जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: पुकार (2000) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, फिल्मफेयर पुरस्कार: कई श्रेणियों में विजेता, भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार,
अनिल कपूर अपनी फिटनेस और युवा दिखने के लिए मशहूर हैं. उन्हें अक्सर “एवरग्रीन हीरो” कहा जाता है. उनका ऊर्जा भरा प्रदर्शन और करिश्माई व्यक्तित्व उन्हें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बनाता है. अनिल कपूर अपने परिवार के बहुत करीब हैं और अपने बच्चों के कैरियर का समर्थन करते हैं. वे एक सफल अभिनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे पति और पिता भी हैं.
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अभिनेत्री प्रीति सप्रू
प्रीति सप्रू भारतीय फिल्म और टेलीविजन उद्योग की एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री और लेखिका हैं. उन्होंने मुख्य रूप से पंजाबी और हिंदी फिल्मों में काम किया है. प्रीति सप्रू 1980- 90 के दशक में अपने काम के लिए प्रसिद्ध थीं, खासकर पंजाबी सिनेमा में.
प्रीति सप्रू का जन्म 24 दिसंबर 1960 को मुंबई, महाराष्ट्र के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उनका परिवार भारतीय फिल्म उद्योग से जुड़ा हुआ है. प्रीति सप्रू ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म हबरी से की लेकिन उनकी लोकप्रियता पंजाबी फिल्मों में अधिक रही. प्रीति सप्रू ने पंजाबी सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद की.
हिंदी फिल्में: – लावारिस (1981), अवतार (1983), जगतारनी, यूपीएससी चीटिंग.
पंजाबी फिल्में: – चन्न परदेस (1981), कर्बला (1987), कुदरत, गुड़िया. प्रीति को पंजाबी सिनेमा की सबसे खूबसूरत और बहुमुखी अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है.
प्रीति सप्रू ने लेखिका और निर्देशक के रूप में भी काम किया. उन्होंने पंजाबी सिनेमा में कई सामाजिक मुद्दों पर आधारित फिल्में बनाईं.प्रीति सप्रू को पंजाबी सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उन्हें पंजाबी फिल्मों में महिला सशक्तिकरण और सामाजिक संदेशों को बढ़ावा देने के लिए सराहा गया. प्रीति सप्रू का विवाह फिल्म उद्योग से जुड़े एक प्रमुख व्यक्ति से हुआ है. वह अपने पारिवारिक जीवन और प्रोफेशनल कैरियर में संतुलन बनाए रखने के लिए जानी जाती हैं.
प्रीति सप्रू पंजाबी सिनेमा की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने इस उद्योग में महिलाओं की भूमिका को सशक्त किया. उनकी फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं.
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वैज्ञानिक सतीश चंद्र दासगुप्ता
सतीश चंद्र दासगुप्ता का जन्म 14 जून, 1880 को बंगाल स्थित कूरिग्राम गांव के रंगपुर में हुआ था. वर्तमान समय में यह गांव अभी बांग्लादेश की सीमा में आता है.सतीश चंद्र दासगुप्ता ने अपनी स्नातक शिक्षा अपने गांव से पूर्ण करने के बाद, रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर कोलकाता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से वर्ष 1906 में पूरा किया.
उन्होंने यह डिग्री जाने-माने वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के मार्गदर्शन में पूर्ण कर दासगुप्ता आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की लेबोरेट्री में ही काम करने लगे. ज्ञात है कि,बीसवीं शताब्दी के पूर्व में महंगा एवं बहुत सारा माल विदेश से आयात किया जाता था लेकिन, सतीश चंद्र दासगुप्ता ने स्ट्राइसनाईन अल्कलॉइड्स का आविष्कार कर चाय के खराब पत्तों से कैफीन निकालना, कई तरह की प्राकृतिक स्याही का आविष्कार, तेल के साथ -साथ कई रासायनिक औज़ारों का भी आविष्कार किया.
सतीश चंद्र दासगुप्ता ने 86 वर्ष की उम्र में, गोगरा गांव में कृषि रिसर्च फॉर्म की स्थापना भी की. सतीश चंद दासगुप्ता जी की मृत्यु 24 दिसम्बर, 1989 को हुई थी.
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राजनेता एवं अभिनेता एम जी रामचंन्द्रन
एम. जी. रामचंद्रन, जिन्हें पॉलिटिकली और सिनेमा के क्षेत्र में “माना” जाता है, एक प्रमुख भारतीय राजनेता और अभिनेता थे. उन्होंने केरल राज्य के सीनियर पॉलिटिकल नेता के रूप में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हुए थे, साथ ही सिनेमा में भी एक उल्लेखनीय अभिनय कैरियर बनाया.
एम. जी. रामचंद्रन का जन्म 17 जनवरी, 1917 को कैंडी, श्रीलंका में हुआ था. उन्होंने तमिलनाडु राज्य के राजनीतिक दायरों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का सही समय पर निभाया. उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया और राज्य के विकास में अपना योगदान दिया.
सिनेमा के क्षेत्र में भी एम. जी. रामचंद्रन को “माना” के नाम से जाना जाता है. उन्होंने तमिल सिनेमा में कई महत्वपूर्ण फ़िल्मों में अभिनय किया और उनका अभिनय सिनेमा इंडस्ट्री में प्रसिद्ध हुआ. उन्होंने अपने अभिनय के लिए कई पुरस्कार भी जीते. एम. जी. रामचंद्रन का कार्यकाल राजनीति और सिनेमा के बीच एक अनोखा संघर्ष था, और उन्होंने दोनों क्षेत्रों में अपना योगदान दिया. उनकी भूमिका और योगदान के लिए उन्हें भारतीय समाज द्वारा सम्मानित किया गया है.
एम.जी.आर. ने तीन विवाह किये थे उनकी पहली पत्नी तंगामणी , दूसरी सतनन्दवती और तीसरी जानकी रामचन्द्रन. एम. जी. रामचन्द्रन का निधन 24 दिसंबर 1987 को हुआ था.
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चित्रकार दीनानाथ भार्गव
दीनानाथ भार्गव एक प्रसिद्ध भारतीय चित्रकार और मूर्तिकार थे. उनका जन्म 01नवंबर, 1927 को मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई में हुआ था. वे विशेष रूप से अपनी शैव और शाक्त परंपराओं के साथ-साथ भारतीय लोक कला के अद्भुत मिश्रण के लिए जाने जाते हैं. भार्गव की कला में भारतीय संस्कृति, धार्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय समावेश होता है.
उनकी कई कृतियाँ भारत और विदेशों में प्रदर्शित की गई हैं. वे भारतीय कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं और उनकी कला के माध्यम से भारतीय परंपरा को आधुनिकता के साथ जोड़ा है. दीनानाथ भार्गव की कृतियों में जीवंत रंगों का उपयोग और प्रेरणादायक विषयों का चयन होता है.चित्रकार दीनानाथ भार्गव का निधन 24 दिसंबर, 2016 को हुआ था.