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व्यक्ति विशेष

भाग – 361.

साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी

रामवृक्ष बेनीपुरी हिन्दी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. वे एक उत्कृष्ट लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे. उनकी लेखनी में राष्ट्रीयता, समाजवाद, मानवीयता और ग्रामीण भारत की माटी की महक स्पष्ट रूप से झलकती है.

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था. वे ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े और उनकी शिक्षा-दीक्षा भी सामान्य रही, लेकिन स्वाध्याय और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण वे गहरे विचारक और लेखक बने. बेनीपुरी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सदस्य थे. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह में भाग लिया. इस कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जेल के दिनों ने उनकी लेखनी को और अधिक संवेदनशील और प्रखर बनाया.

रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्य बहुआयामी है. उन्होंने नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और पत्रकारिता में योगदान दिया. उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, सामाजिक बदलाव और मानवीय मूल्य प्रमुखता से दिखाई देते हैं.

प्रमुख कृतियाँ: –

अम्बपाली: – प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नर्तकी अम्बपाली पर आधारित यह नाटक उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है.

जयंती:  – देशभक्ति और समाज सुधार की भावना से प्रेरित.

माटी की मूरतें: –ग्रामीण भारत की साधारण लेकिन संघर्षशील जिंदगी का चित्रण.

ग्राम्य जीवन: – ग्रामीण संस्कृति और समाज का जीवंत वर्णन.

पगली: – समाज की हृदयहीनता पर आधारित मार्मिक कहानी.

मेरा जीवन संघर्ष: – उनके जीवन के संघर्षों और विचारधारा का जीवंत चित्रण.

रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी थी. उन्होंने अपनी लेखनी में हिंदी को ग्रामीण और शहरी दोनों स्वरूपों में प्रस्तुत किया. उनकी शैली में भावनाओं की गहराई और विचारों की स्पष्टता होती थी. बेनीपुरी ने पत्रकारिता में भी बड़ा योगदान दिया. उन्होंने ‘जनता’ नामक पत्रिका का संपादन किया और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर लेख लिखे. उनकी पत्रकारिता में समाज सुधार और राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

रामवृक्ष बेनीपुरी को हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता है. उनका साहित्य आज भी समाज और साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार स्थापित किए गए हैं. रामवृक्ष बेनीपुरी का निधन 07 सितंबर 1968 को हुआ. उनके विचार और रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हिन्दी साहित्य में एक अनमोल धरोहर के रूप में जीवित हैं.

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पाँचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक इस पद पर कार्य किया. वे भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता और किसानों के अधिकारों के प्रबल समर्थक थे.

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के नूरपुर गांव में हुआ था. उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और वकालत के पेशे में प्रवेश किया. चरण सिंह ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ की और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया. वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

चरण सिंह को “किसानों का नेता” कहा जाता था. उन्होंने हमेशा किसानों के अधिकारों और उनके हितों की वकालत की. उनके प्रयासों से ही भूमि सुधार और जमींदारी प्रथा उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण कानून पारित हुए.  वे 1952 में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री बने और बाद में 1967 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उनकी सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ लागू कीं.

चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला. उनकी सरकार अल्पमत में थी, जिसके कारण वे सिर्फ कुछ महीनों तक ही इस पद पर रहे. उन्होंने किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर भारतीय लोकदल की स्थापना की. उनके नेतृत्व में यह पार्टी किसानों और ग्रामीण समाज के मुद्दों को प्रमुखता से उठाती रही.

चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ. उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है, विशेषकर किसानों के अधिकारों के प्रति उनके समर्पण के लिए. उन्हें भारत के किसानों का सच्चा नेता माना जाता है. चौधरी चरण सिंह के सम्मान में भारत सरकार ने 23 दिसंबर को ‘किसान दिवस’ के रूप में घोषित किया है. चौधरी चरण सिंह के नाम पर लखनऊ का हवाई अड्डा ‘चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ और मेरठ का विश्वविद्यालय ‘चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय’ नामित किया गया है.

चौधरी चरण सिंह को राजनीतिक और सामाजिक योगदान उन्हें भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट स्थान दिलाता है. उनके प्रयासों ने किसानों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके सिद्धांत और विचार आज भी प्रासंगिक हैं.

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फिल्म अभिनेता अरुण बाली

अरुण बाली एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं, जिनका जन्म 23 दिसंबर 1942 को हुआ था. उन्हें भारतीय सिनेमा और टेलीविजन उद्योग में उनकी विशिष्ट भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. अरुण बाली ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है और उन्हें एक प्रतिभाशाली और अनुभवी अभिनेता माना जाता है.

अरुण बाली का जन्म जालंधर, पंजाब में हुआ. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक थिएटर कलाकार के रूप में की थी और बाद में उन्होंने फिल्म और टेलीविजन में काम करना शुरू किया। उनका अभिनय कौशल और व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत जल्द ही दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।

अरुण बाली ने कई हिंदी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएँ निभाई हैं. उन्हें अक्सर गंभीर और प्रभावशाली भूमिकाओं के लिए चुना गया. कुछ प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं: –

“धरम वीर” (1977):  – इस फिल्म में उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई.

“कर्मा” (1986): – इस फिल्म में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी.

“फिल्म बेताब” (1983): – यह एक प्रमुख फिल्म थी जिसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई.

अरुण बाली ने टेलीविजन पर भी अपनी छाप छोड़ी है. उन्होंने कई धारावाहिकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, जैसे: –

“महाभारत”: – इस महाकाव्य धारावाहिक में उन्होंने धृतराष्ट्र की भूमिका निभाई, जो एक प्रमुख और यादगार किरदार था.

“कहानी घर घर की”: – इसमें भी उनकी भूमिका को दर्शकों ने सराहा.

**”सहारा One” पर बेताब होने का मेरा नाम जैसे शो में भी उनकी उपस्थिति रही है.

अरुण बाली को उनकी प्रभावी आवाज और अभिनय के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार और प्रभावशाली भूमिकाएँ निभाई हैं, जो दर्शकों के दिलों में गहराई से बसी हैं. उनकी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा और टेलीविजन में एक सम्मानित स्थान दिलाया.

अरुण बाली का व्यक्तिगत जीवन साधारण और शांतिपूर्ण है. उन्होंने अपने कैरियर में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन वे हमेशा अपने काम के प्रति समर्पित रहे. अरुण बाली का निधन 07 अक्टूबर 2022 को मुंबई में हुआ था. बाली ने भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण से एक मजबूत विरासत छोड़ी है. उनकी अभिनय की शैली और चरित्र चित्रण ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है, और वे भारतीय मनोरंजन उद्योग के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं. उनके कार्य को आने वाली पीढ़ियों द्वारा याद किया जाएगा.

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स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द जिन्हें मूल रूप से मुंशीराम के नाम से जाना जाता था, भारतीय समाज सुधारक, आर्य समाज के एक प्रमुख नेता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सक्रिय सदस्य थे. उनका जन्म 22 फ़रवरी, 1856 ई. को पंजाब प्रान्त के जालंधर ज़िले में तलवान नामक ग्राम में हुआ था. स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने जीवन को भारतीय समाज के उत्थान और सुधार में समर्पित किया, विशेषकर आर्य समाज के माध्यम से.

उन्होंने शिक्षा के प्रसार, जाति प्रथा के उन्मूलन, और धार्मिक पुनर्जागरण के लिए काम किया. स्वामी श्रद्धानन्द ने शुद्धि आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसका उद्देश्य हिन्दू धर्म में वापस आने के इच्छुक उन लोगों को समर्थन प्रदान करना था जिन्होंने अन्य धर्मों को अपना लिया था.

स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आज भी भारतीय शिक्षा के एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में कार्यरत है. उनका मानना था कि शिक्षा लोगों को सशक्त बनाती है और उन्हें अपने धार्मिक और सामाजिक अधिकारों के प्रति जागरूक बनाती है.

23 दिसम्बर 1926 को उनकी हत्या एक ऐसी घटना थी जिसने न केवल आर्य समाज बल्कि पूरे भारतीय समाज को हिला कर रख दिया. उनकी मृत्यु ने धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सुधार के लिए उनके संघर्ष को और भी अधिक प्रमुखता प्रदान की. स्वामी श्रद्धानन्द का जीवन और कार्य आज भी भारतीय समाज में एक प्रेरणास्रोत है, और उन्हें एक महान समाज सुधारक, धार्मिक नेता, और देशभक्त के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेत्री और गायिका नूरजहाँ

नूरजहाँ जिनका असली नाम अल्लाह वासयाई था, एक मशहूर पाकिस्तानी गायिका और अभिनेत्री थीं, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में संगीत और फिल्म उद्योग में अद्वितीय योगदान दिया. उनका जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. नूरजहाँ ने हिंदी, उर्दू और पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया और अपनी शानदार गायकी के लिए विशेष रूप से जानी गईं.

नूरजहाँ ने भारतीय सिनेमा में 1930 के दशक में बाल कलाकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. उन्होंने हिंदी और पंजाबी फिल्मों में काम किया और जल्दी ही एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो गईं.

फ़िल्में: –

ख़ानदान (1942) – इस फिल्म ने उन्हें स्टारडम दिलाया और वह एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में उभरीं.

अनमोल घड़ी (1946) – यह एक सफल म्यूजिकल फिल्म थी, जिसमें उन्होंने सुरैया और सुरेंद्र के साथ काम किया. इस फिल्म में उनके गाए गीत आज भी लोकप्रिय हैं।

जुगनू (1947) – यह एक बड़ी हिट फिल्म थी, जिसमें उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम किया था.

गायकी: –

नूरजहाँ ने न केवल भारतीय फिल्मों में अभिनय किया बल्कि अपनी मधुर आवाज़ से भी लोगों का दिल जीता. उनकी गायकी ने उन्हें “मल्लिका-ए-तरन्नुम” (गायकी की रानी) का खिताब दिलाया. उनका गायकी कैरियर पाकिस्तान के फिल्म उद्योग में विशेष रूप से फल-फूल गया, जहाँ उन्होंने कई यादगार गाने गाए. उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं: –

“आवाज़ दे कहां है” (फिल्म: अनमोल घड़ी),

“जवां है मोहब्बत” (फिल्म: अनमोल घड़ी),

“चाँदनी रातें” – यह गाना नूरजहाँ की आवाज़ में एक कालजयी रचना बन गया.

वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, नूरजहाँ पाकिस्तान चली गईं और वहां की फिल्म इंडस्ट्री में गायिका और अभिनेत्री के रूप में सक्रिय रहीं. उन्होंने पाकिस्तानी सिनेमा में कई फिल्मों में अभिनय किया और पार्श्व गायिका के रूप में काम जारी रखा. उनकी आवाज़ का जादू पाकिस्तानी सिनेमा में भी उतना ही चमकदार था जितना भारतीय सिनेमा में.

नूरजहाँ को उनकी अद्भुत प्रतिभा के लिए भारतीय और पाकिस्तानी संगीत और फिल्म उद्योग में अत्यंत सम्मान मिला. वह न केवल अपनी गायकी के लिए, बल्कि अपने अभिनय के लिए भी समान रूप से सराही जाती हैं. उनका योगदान भारतीय और पाकिस्तानी फिल्म संगीत में अमूल्य माना जाता है, और वह उपमहाद्वीप की सबसे महान गायिकाओं में से एक मानी जाती हैं. उनका निधन 23 दिसंबर 2000 को हुआ, लेकिन उनकी कला और संगीत आज भी जीवित है और लोगों को प्रेरित करता है.

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पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव

पी. वी. नरसिम्हा राव (पामुलपर्ती वेंकट नरसिम्हा राव) भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने वर्ष 1991 – 96 तक भारत के नौवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और सुधारों के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. उनके नेतृत्व में देश में कई महत्वपूर्ण आर्थिक और नीतिगत बदलाव आए.

पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के एक किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. राव का राजनीतिक जीवन काफी विस्तृत और प्रभावशाली रहा. वे कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता थे और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे. उन्होंने वर्ष 1971-73 के दौरान वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और अपने कार्यकाल में कई समाज सुधार और विकास योजनाओं को लागू किया.

नरसिम्हा राव ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में विभिन्न मंत्रालयों, जैसे गृह, विदेश, रक्षा और मानव संसाधन विकास, में मंत्री के रूप में कार्य किया. वर्ष 1991 में भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था उस दौर में प्रधानमंत्री बने. उनके नेतृत्व में, भारत ने आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया.

राव ने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए. इन सुधारों में लाइसेंस राज का अंत, विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, और कर सुधार शामिल थे. राव ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के लिए खोलने के प्रयास किए, जिससे भारतीय उद्योग और व्यापार में नए अवसर पैदा हुए. राव ने शिक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके कार्यकाल में उच्च शिक्षा और अनुसंधान को प्रोत्साहन मिला.

पी. वी. नरसिम्हा राव का निधन 23 दिसंबर 2004 को हुआ. उन्हें भारतीय राजनीति के एक दूरदर्शी नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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