
उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी
उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सक थे, जिन्होंने विशेष रूप से कालाजार की दवा बनाकर लाखों की जिंदगी बचाई. फिर भी उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिल सका.
उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का जन्म 19 दिसम्बर, 1873 को बिहार के मुंगेर जिले के जमालपुर कस्बे में हुआ था. उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने 1899 में राज्य चिकित्सा सेवा में प्रवेश किया और ढाका मेडीकल कॉलेज में औषधि के शिक्षक के रूप में चार वर्षों तक काम किया. सेवानिवृति के बाद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी अवैतनिक प्रोफेसर के रूप में कोलकाता विश्वविद्यालय के विज्ञान महाविद्यालय में जैवर सायन विभाग में सेवा देते रहे. कई प्रयासों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी ने कालाजार को नियंत्रित करने वाली दवा तैयार किया और उसका नाम ‘यूरिया स्टीबामीन’ नाम दिया.
भारत की तरफ से सबसे पहले 1929 में दो भारतीयों का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था जिनमें एक नाम उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी का भी था. उसके बाद 1942 में दोबारा नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुआ लेकिन, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के कारण उस साल नोबेल पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया.
उपेन्द्रनाथ ब्रह्मचारी पेशे से डॉक्टर थे और वे अनुसंधान द्वारा उपचार को सहज व पूर्ण प्रभावी बनाने में विश्वास करते थे. उनका निधन 6 फरवरी 1946 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था.
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अभिनेता ओम प्रकाश
ओम प्रकाश भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित अभिनेता थे, जिन्होंने अपने लंबे फिल्मी कैरियर में विविध भूमिकाएं निभाईं. उनका जन्म 19 दिसंबर 1919 को हुआ था, और उनका निधन 21 फरवरी 1998 को हुआ. ओम प्रकाश ने अपनी प्रतिभा के बल पर भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने चरित्र अभिनेता, कॉमेडियन, और सहायक अभिनेता के रूप में कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं.
ओम प्रकाश की अभिनय क्षमता और उनका विशेष अभिनय शैली उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती थी. उन्होंने हास्य, ड्रामा, और रोमांस जैसी विविध शैलियों में काम किया और हर भूमिका में अपनी विशेषता सिद्ध की. उनकी उपस्थिति हर फिल्म में एक अलग पहचान बनाती थी, और उनके चरित्रों में एक गहराई और मानवीयता होती थी, जो दर्शकों को उनके प्रति आकर्षित करती थी.
ओम प्रकाश ने “दस लाख” (1966), “प्यार किये जा” (1966), “चुपके चुपके” (1975), “जूली” (1975), और “अमर अकबर एंथनी” (1977) जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से खास पहचान बनाई. उनकी क्षमता को उनके द्वारा निभाई गई विविध भूमिकाओं में देखा जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक में उन्होंने एक अलग छवि और गहराई प्रस्तुत की.
ओम प्रकाश का योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उनके अभिनय को आज भी सिनेमा प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है. उनकी फिल्में और उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं आज भी सिनेमा के शौकीनों के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं.
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अभिनेत्री माही गिल
माही गिल का वास्तविक नाम रिम्पी कौर गिल है वो एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो हिंदी और पंजाबी फिल्मों में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. माही का जन्म 19 दिसंबर 1975 को चंडीगढ़, पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था. अपने अनोखे अभिनय और दमदार किरदारों के कारण माही गिल ने फिल्म जगत में अपनी अलग पहचान बनाई है.
माही ने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से थिएटर में मास्टर डिग्री प्राप्त की. माही को बचपन से ही अभिनय का शौक था और उन्होंने थिएटर में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. माही ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में पंजाबी फिल्म “हवाएं” से की थीं. हिंदी फिल्मों में उनकी एंट्री वर्ष 2009 में अनुराग कश्यप की फिल्म “देव डी” से हुई. इस फिल्म में उन्होंने पारो का किरदार निभाया, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई.
फिल्में: –
देव डी (2009) – पारो का किरदार, जिसने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए.
गुलाल (2009) – एक राजनीतिक ड्रामा, जिसमें उनका अभिनय सराहनीय रहा.
साहेब, बीवी और गैंगस्टर (2011) – उन्होंने बीवी का किरदार निभाया, जो बेहद चर्चित हुआ.
नॉट ए लव स्टोरी (2011) – एक थ्रिलर फिल्म.
पान सिंह तोमर (2012) – एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म में दमदार अभिनय.
साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स (2013) और इसके अन्य सीक्वल.
माही ने पंजाबी सिनेमा में भी कई चर्चित फिल्में की हैं, जैसे “मिट्टी वाजां मारदी” और “कैरी ऑन जट्टा”.
माही गिल को फिल्म देव डी के लिए वर्ष 2009 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें बेहतरीन अभिनय के लिए कई अन्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया और कई नमांकित किया गया.
माही अपनी निजी जिंदगी को लेकर चर्चा में रहती हैं. उन्होंने वर्ष 2019 में बताया कि उनकी एक बेटी है, जिसका नाम वेरोनिका है. माही एक सशक्त और स्वतंत्र व्यक्तित्व की मिसाल हैं, जो अपनी शर्तों पर जीवन जीने में विश्वास रखती हैं.
माही गिल को उनके बोल्ड और वास्तविक किरदारों के लिए जाना जाता है. उन्होंने व्यावसायिक और समानांतर सिनेमा में अपनी भूमिकाओं से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई है. माही गिल ने अपने अभिनय के दम पर भारतीय सिनेमा में एक खास मुकाम हासिल किया है.
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अभिनेत्री ओक्साना रसूलोवा
ओक्साना रसूलोवा एक अभिनेत्री, नृत्यांगना और कोरियोग्राफर हैं, जो मूल रूप से आज़रबाइजान से हैं. वह अपने शानदार नृत्य कौशल और अभिनय प्रतिभा के लिए जानी जाती हैं. ओक्साना ने भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से तेलुगु फिल्मों में भी काम किया है और भारतीय संस्कृति तथा नृत्य के प्रति अपने प्रेम के लिए जानी जाती हैं.
ओक्साना रसूलोवा का जन्म 19 दिसंबर 1982 को शबरन, अज़रबैजान में हुआ था. उन्हें बचपन से ही नृत्य में रुचि थी और उन्होंने शास्त्रीय भारतीय नृत्य शैलियों (खासकर कथक और भरतनाट्यम) में प्रशिक्षण लिया. उनकी नृत्य यात्रा ने उन्हें भारत और भारतीय सिनेमा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन किया.
ओक्साना रसूलोवा की नृत्य प्रस्तुतियां उनकी गहरी कला और तकनीकी निपुणता को दर्शाती हैं. वह कई नृत्य महोत्सवों और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल रही हैं. ओक्साना ने तेलुगु फिल्मों में अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की. वह भारतीय फिल्मों में अपने आकर्षक व्यक्तित्व और नृत्य कौशल के कारण पहचानी जाती हैं. उनके अभिनय में भारतीय नृत्य की झलक दिखती है, जो उनके प्रदर्शन को और खास बनाती है.
भारतीय सिनेमा और संस्कृति के लिए ओक्साना की गहरी रुचि ने उन्हें न केवल एक अभिनेत्री के रूप में बल्कि भारतीय नृत्य को बढ़ावा देने वाली एक सांस्कृतिक राजदूत के रूप में भी स्थापित किया है। ओक्साना रसूलोवा भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कला के संगम की एक सशक्त मिसाल हैं. उनकी कला भारतीय संस्कृति को एक वैश्विक मंच पर पेश करने का बेहतरीन जरिया है.
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क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह
क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे. 22 जनवरी, 1892 कोउत्तर प्रदेश के ख्याति प्राप्त जनपद शाहजहाँपुर में स्थित गांव ‘नबादा’ में पैदा हुए थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था.
वर्ष 1929 के आस-पास ‘असहयोग आन्दोलन’ से पूरी तरह प्रभावित हो गए थे. वे देश सेवा की और झुके और अंतत: रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आकर क्रांति पथ के यात्री बन गए. 9 अगस्त, 1925 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास ‘काकोरी’ स्टेशन के निकट ‘काकोरी काण्ड’ के अंतर्गत सरकारी खजाना लूटा गया था. जिसके बाद ठाकुर रोशन सिंह को 26 सितम्बर, 1925 को गिरफ़्तार किये गए थे. जेल में रहने के दौरान जेल अधिकारीयों ने मुखबिर बनाने की कोशिस की परन्तु असफल रहे. ज्ञात है कि, काकोरी काण्ड’ के सन्दर्भ में रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की तरह ठाकुर रोशन सिंह को भी फ़ाँसी की सज़ा दी गई थी.
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स्वतंत्रता सेनानी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जो विशेष रूप से काकोरी कांड के लिए प्रसिद्ध हैं. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन सेनानियों में से थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में योगदान दिया. उनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था. अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाते हैं और उन्होंने अपने जीवन का बलिदान भारत की आज़ादी के लिए दिया.
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. बचपन से ही वे देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित थे. वे शुरू से ही भारत को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए. अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के बेहद करीबी सहयोगी थे, जो हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के नेता थे. अशफ़ाक़ और बिस्मिल की मित्रता हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानी जाती थी. दोनों ने मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई योजनाओं पर काम किया.
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी ट्रेन डकैती में था. इस डकैती का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटकर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना था. अशफ़ाक़ और उनके साथी राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद, और अन्य क्रांतिकारियों ने यह योजना बनाई. डकैती के बाद ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों के खिलाफ कड़ा अभियान चलाया, जिसमें अशफ़ाक़ और उनके कई साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को वर्ष 1926 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के सामने कभी झुकने से इनकार कर दिया और देश के लिए अपने जीवन का बलिदान देने को तैयार हो गए. उन्हें काकोरी कांड के अन्य सहयोगियों के साथ फांसी की सजा सुनाई गई. 19 दिसंबर 1927 को, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को भी फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई.
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होने दिया. वे वीरता, साहस और देशभक्ति के प्रतीक माने जाते हैं. उनकी दोस्ती और बलिदान ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक महत्वपूर्ण दिशा दी. उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम के कई युवाओं को प्रेरित किया और उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श स्थापित किया कि कैसे धार्मिक और सामाजिक विभाजन से ऊपर उठकर देश की सेवा की जा सकती है.
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क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’
पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी और शहीद थे. वे एक कवि, लेखक और बहुभाषाविद थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भी स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म 11 जून 1897, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. बालक रामप्रसाद की धर्म में भी रुचि थी, जिसमें उन्हें अपनी माताजी का पूरा सहयोग मिलता था. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के व्यक्तित्व पर उनकी माता का गहरा प्रभाव था. रामप्रसाद बिस्मिल अपने बचपन में बहुत शरारती तथा उद्दण्ड स्वभाव के थे और उन्हें अपने पिताजी के क्रोध का भी सामना करना पड़ता था.
राम प्रसाद की धर्म में अभिरुचि देखकर मुंशी इन्द्रजीत ने उन्हें संध्या उपासना करने का परामर्श दिया. राम प्रसाद को आर्य समाज के सिद्धान्तों के बारे में भी बताया और पढ़ने के लिए सत्यार्थ प्रकाश दिया. जिसके पढ़ने के बाद राम प्रसाद के विचार में एक अभूतपूर्व परिवर्तन आया. आर्य समाज से प्रभावित युवकों ने आर्य समाज मन्दिर में कुमार सभा की स्थापना की थी.राम प्रसाद बिस्मिल जिन दिनों मिशन स्कूल में विद्यार्थी थे, तथा कुमार सभा की बैठकों में भाग लेते थे, उन्हीं दिनों मिशन स्कूल के एक अन्य विद्यार्थी से उनका परिचय हुआ.
लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए जाने पर रामप्रसाद बिस्मिल कुछ क्रांतिकारी विचारों वाले युवकों के सम्पर्क में आए. उन्होंने 9 अगस्त 1925 को बिस्मिल और उनके साथियों ने काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया. यह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रमुख हिस्सा था. इस घटना में उन्होंने सरकारी खजाने को लूटा था, जिससे ब्रिटिश सरकार को भारी नुकसान हुआ.
बिस्मिल ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को समाप्त करना और भारत को स्वतंत्रता दिलाना था. बिस्मिल ने अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से भी स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को प्रेरित किया. उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं: – “मेरा रंग दे बसंती चोला”, “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है”, “बिस्मिल अज़ीमाबादी” (तख़ल्लुस).
काकोरी काण्ड के बाद बिस्मिल और उनके कई साथियों को गिरफ्तार कर ब्रिटिश सरकार ने उन पर मुकदमा चलाया और उन्हें फांसी की सजा दी गई.19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई. राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों में सम्मानपूर्वक लिया जाता है. उनका जीवन और बलिदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.