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व्यक्ति विशेष

भाग – 355.

अभिनेता जॉन अब्राहम

जॉन अब्राहम एक भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्माता और पूर्व मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम करते हैं. उनका वास्तविक नाम फ़ारुख अब्राहम है. वे अपनी फिटनेस, एक्शन भूमिकाओं और गंभीर अभिनय के लिए जाने जाते हैं.

जॉन अब्राहम का जन्म 17 दिसंबर 1972 को मुंबई में हुआ था. जॉन की माता पारसी और पिता क्रिश्चियन हैं, जिससे उनकी परवरिश एक मिश्रित संस्कृति में हुई. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल, माहिम से की और बाद में एम.एम.के. कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. उन्होंने मुंबई एजुकेशनल ट्रस्ट से एमबीए किया.

जॉन ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. वर्ष 1999 में, उन्होंने “ग्लैडरैग्स मैनहंट कॉन्टेस्ट” जीता और इंटरनेशनल मॉडलिंग असाइनमेंट्स के लिए सिंगापुर, हांगकांग और लंदन गए. उन्होंने कई विज्ञापनों और म्यूजिक वीडियो में काम किया.

जॉन ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में फिल्म जिस्म से डेब्यू किया. यह एक थ्रिलर फिल्म थी, जिसमें उनके अभिनय को सराहा गया और इस फिल्म की अभिनेत्री बिपाशा बसु थीं. इस फिल्म ने जॉन  को पहचान दिलाई. उसके बाद वर्ष 2004 में फिल्म धूम में उनके एंटी-हीरो किरदार को बड़ी सफलता मिली.

फिल्में: –

एक्शन फिल्में: – फोर्स (2011), शूटआउट एट वडाला (2013),  पठान (2023) – “जिम” के किरदार में शाहरुख खान के साथ

कॉमेडी: – गरम मसाला (2005), दोस्ताना (2008)

सामाजिक और देशभक्ति फिल्में: –  मद्रास कैफे (2013), परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण (2018), सत्यमेव जयते (2018).

जॉन अब्राहम ने वर्ष 2012 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी “जे.ए. एंटरटेनमेंट” शुरू की और उनके द्वारा प्रोड्यूस की गई फिल्में  – विक्की डोनर (2012) – सामाजिक विषय पर बनी इस फिल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, मद्रास कैफे (2013),  परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण (2018). जॉन को उनकी फिल्मों और फिटनेस के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उन्होंने विक्की डोनर के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता.

जॉन अब्राहम न केवल एक शानदार अभिनेता हैं, बल्कि फिटनेस और सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी जागरूकता उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाती है.

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अभिनेता रितिश देशमुख

रितेश देशमुख एक लोकप्रिय भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्माता और वास्तुकार हैं. वे मुख्य रूप से हिंदी और मराठी फिल्मों में काम करते हैं. अपनी हास्य भूमिकाओं और बहुमुखी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध रितेश ने अपने अभिनय के दम पर बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है.

रितेश देशमुख का वास्तविक नाम रितेश विलासराव देशमुख है और उनका जन्म 17 दिसंबर 1978 को लातूर, महाराष्ट्र में हुआ था. उनके पिता का नाम विलासराव देशमुख (महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री) और उनकी माता का नाम वैशाली देशमुख है. उन्होंने कमला रहेजा स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, मुंबई से आर्किटेक्चर में डिग्री प्राप्‍त की है.रितेश ने एक आर्किटेक्ट के रूप में अपना करियर शुरू किया और आज भी वे इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.उन्‍होंने अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा से वर्ष 2012 में शादी की और उनको एक बच्‍चा भी है.

रितेश ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में फिल्म तुझे मेरी कसम से डेब्यू किया और इस फिल्म की अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा थीं. उन्होंने वर्ष 2004 में फिल्म मस्ती से पहचान मिली. इसके बाद, उन्होंने क्या कूल हैं हम, धमाल, और हाउसफुल जैसी फिल्मों में अपनी हास्य प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता.

प्रमुख फिल्में

कॉमेडी फिल्में: –  मस्ती (2004), क्या कूल हैं हम (2005), धमाल (2007), हाउसफुल (2010, 2012, 2016), ग्रैंड मस्ती (2013).

गंभीर भूमिकाएं: –  एक विलेन (2014) – विलेन के किरदार में उन्हें काफी सराहना मिली, मरजावां (2019).

मराठी फिल्में: –  लय भारी (2014) – इस फिल्म ने मराठी सिनेमा में भी रितेश को स्थापित किया.

एनीमेशन: –  अलादीन (2009), बैंजो (2016).

रितेश पर्यावरण और ग्रामीण विकास से जुड़े कई सामाजिक अभियानों में सक्रिय रहते हैं. अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए, वे महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यों में योगदान देते हैं. रितेश को कई बार अपनी हास्य भूमिकाओं के लिए फिल्मफेयर और अन्य पुरस्कार मिले हैं.एक विलेन के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार. मराठी फिल्मों में उनके

रितेश देशमुख एक बहुमुखी कलाकार हैं, जिन्होंने हास्य, नकारात्मक भूमिकाओं और मराठी सिनेमा में अपने योगदान से दर्शकों का दिल जीता है. उनका सरल स्वभाव और अभिनय के प्रति लगन उन्हें खास बनाती है.

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फिल्म निर्देशक,निर्माता,लेखिका जपिंदर कौर

जपिंदर कौर एक भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता और लेखिका हैं, जो पंजाबी और हिंदी सिनेमा में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं. उनकी कहानियों और फिल्मों में सामाजिक मुद्दों, महिलाओं के सशक्तिकरण और सांस्कृतिक विषयों को प्रमुखता दी जाती है.

जपिंदर कौर का जन्म 17 दिसंबर 1988 को दुबई के एक सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता नरेंद्र पाल दुबई और माँ मंजीत दुबई में अपना कारोबार चलातें हैं.  उनका एक भाई है-तरणप्रीत कौर.जपिंदर ने अपनी  शुरुआती पढ़ाई इंडियन हाईस्कूल दुबई से संपन्न की. उसके बाद वो दुबई की मणिपाल यूनिवर्सिटी से टेलीविजन प्रोडक्शन में ग्रेजुएट किया. उन्हें साहित्य और कला में उनकी विशेष रुचि है. उन्होंने फिल्म निर्माण और लेखन का औपचारिक प्रशिक्षण भी लिया है.

जपिंदर कौर ने भारतीय सिनेमा में अपने निर्देशन कौशल के जरिए अपनी पहचान बनाई. उनकी कहानियां अक्सर सामाजिक मुद्दों और मानवीय भावनाओं पर केंद्रित होती हैं. उन्होंने फिल्मों में मजबूत महिला किरदारों को प्रस्तुत किया है.

जपिंदर कौर ने अपनी प्रोडक्शन हाउस के जरिए उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण किया, जो व्यावसायिक और आलोचनात्मक रूप से सफल रही हैं. उन्होंने कई फिल्मी स्क्रिप्ट और उपन्यास भी लिखे हैं. उनकी लेखनी में पंजाब की मिट्टी, संस्कृति और महिलाओं की स्थिति की झलक मिलती है.

 फिल्में:  –

कौड़ियां खड़क जाणगी: –  यह फिल्म पंजाब की ग्रामीण महिलाओं के संघर्ष और सशक्तिकरण पर आधारित है. इस फिल्म ने पंजाबी सिनेमा में आधुनिक दृष्टिकोण को पेश किया.

ब्लॉसम्स ऑफ़ पंजाब: – पंजाब की सांस्कृतिक धरोहर पर केंद्रित.

जपिंदर कौर न केवल एक फिल्म निर्माता हैं, बल्कि सामाजिक मुद्दों, जैसे महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, और ग्रामीण विकास, के लिए भी काम करती हैं. उन्होंने पंजाबी साहित्य और सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं.

जपिंदर कौर को उनकी फिल्मों और लेखन के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है. उन्हें पंजाबी सिनेमा में उनके योगदान के लिए विशेष पुरस्कार मिले हैं. जपिंदर कौर अपने सशक्त दृष्टिकोण, सिनेमा और साहित्य में योगदान के कारण सिनेमा जगत में एक प्रभावशाली नाम बन चुकी हैं.

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अभिनेत्री प्रतिभा रंता

प्रतिभा रंता एक उभरती हुई भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. वह अपनी प्रतिभा, सुंदरता और सादगी के लिए जानी जाती हैं. प्रतिभा ने अपने छोटे से कैरियर में दर्शकों के दिलों में खास जगह बना ली है.

प्रतिभा रंता का जन्म 17 दिसंबर 2000 को शिमला, हिमाचल प्रदेश के एक साधारण हिमाचली परिवार में हुआ था.  उन्होंने स्कूली शिक्षा शिमला से प्राप्त की. अभिनय में रुचि होने के कारण, उन्होंने थिएटर और मॉडलिंग में भाग लेना शुरू किया।

प्रतिभा रंता ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत छोटे पर्दे से की. उन्होंने टीवी सीरियल्स और मॉडलिंग प्रोजेक्ट्स के जरिए अपनी पहचान बनाई. उनके अभिनय और मेहनत ने उन्हें जल्दी ही सफलता दिलाई. प्रतिभा ने ज़ी टीवी के शो “क्यों रिश्तों में कट्टी बट्टी” (2020) से अपनी शुरुआत की. इस शो में उन्होंने “श्रुति” की मुख्य भूमिका निभाई थी.

सीरियल्स और फिल्में:  –

“क्यों रिश्तों में कट्टी बट्टी” (2020-2021)  –  कहानी में उनके किरदार को संघर्षशील और दृढ़ दिखाया गया, जिसे काफी सराहना मिली.

“छोटी सरदारनी” (2021) –  प्रतिभा ने इस लोकप्रिय शो में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

प्रतिभा ने कई ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग की है और फैशन शोज़ में भाग लिया है. प्रतिभा हिमाचली संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से गहराई से जुड़ी हुई हैं. उन्हें डांस, यात्रा और योग का शौक है. वह अपनी खूबसूरती और अभिनय प्रतिभा के लिए उभरती हुई अभिनेत्रियों में मानी जाती हैं.

प्रतिभा रंता अपनी सादगी और कड़ी मेहनत के लिए जानी जाती हैं. वह भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री की एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, जिनसे दर्शकों को और भी बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद है.

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क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य थे और काकोरी कांड में अपनी भागीदारी के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं.

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पबना जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. उनका परिवार बाद में वाराणसी (बनारस) आ गया. लाहिड़ी की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई, जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू किया और जल्द ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ गए.

काकोरी कांड 9 अगस्त 1925 को हुआ था, जब HRA के क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई थी ताकि ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन जुटाया जा सके. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने इसमें सक्रिय भाग लिय.।

काकोरी कांड के बाद लाहिड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें और अन्य क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने कड़ी सजा दी. लाहिड़ी को 19 दिसंबर 1927 को फांसी की सजा सुनाई गई और उन्हें 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दी गई, जो निर्धारित तिथि से दो दिन पहले दी गई थी.

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है. उनका बलिदान और साहस भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना रहा. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था. उनके साहस और बलिदान ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और उनकी विरासत आज भी भारतीय इतिहास में एक महान प्रेरणा स्रोत के रूप में जीवित है.

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अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू

डॉ. श्रीराम लागू भारतीय थिएटर और फिल्म के एक प्रतिष्ठित अभिनेता, निर्देशक और पेशेवर डॉक्टर थे. उन्होंने मुख्य रूप से मराठी, हिंदी, और कुछ गुजराती थिएटर और सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान दिया. अपनी गहन अदाकारी और प्रभावशाली संवाद अदायगी के कारण वे भारतीय कला क्षेत्र में एक आदर्श व्यक्तित्व माने जाते हैं.

श्रीराम लागू का जन्म 16 नवंबर 1927 को सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और बाद में ईएनटी (कान, नाक, गला) सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल की. अपनी मेडिकल प्रैक्टिस के दौरान भी वे थिएटर और अभिनय के प्रति बेहद उत्सुक रहे.

श्रीराम लागू ने अपने थिएटर कैरियर की शुरुआत मराठी नाटकों से की. उनका नाम मराठी थिएटर के “दिग्गज” अभिनेताओं में गिना जाता है.

नाटक: –  नटसम्राट, घासीराम कोतवाल, हिमालयाची सावली, प्रीतम, और सूर्य पाहिला

डॉ. श्रीराम लागू ने 100 से अधिक हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया. उनकी भूमिकाएँ आमतौर पर गंभीर, प्रभावशाली और सामाजिक संदेश देने वाली होती थीं.

हिंदी फिल्में: –  घरोंदा (1977), आंधी (1975), लावारिस (1981), मुक्ति (1977), सौदागर (1973)…

मराठी फिल्में: – पिंजरा (1972), सिंहासन (1979).

डॉ. श्रीराम लागू को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया जिनमें वर्ष 1978 में थिएटर के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कई हिंदी फिल्मों में बेहतरीन सहायक भूमिकाओं के लिएफिल्मफेयर अवार्ड्स नामांकित किया. मराठी थिएटर और सिनेमा में उनके योगदान को सराहते हुए उन्हें कई राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. डॉ. लागू को  “नटसम्राट” के मंचीय प्रदर्शन के लिए हमेशा याद किया जाता है.

डॉ. लागू ने रैशनलिस्ट मूवमेंट (तर्कवादी आंदोलन) का समर्थन किया और अंधविश्वास, धार्मिक रूढ़िवादिता के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने विज्ञान और तार्किकता के प्रचार में भी योगदान दिया.

डॉ. श्रीराम लागू का निधन 17 दिसंबर 2019 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था.  उनकी कला, वैचारिक दृष्टिकोण, और सामाजिक प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय समाज और सिनेमा में एक अलग स्थान दिया.

 

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