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व्यक्ति विशेष

भाग – 345.

क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ मुखर्जी

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे. उन्हें “बाघा जतिन” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने एक बार निहत्थे ही एक बाघ का सामना किया और उसे मार गिराया था. यह उनकी वीरता और साहस का प्रतीक बन गया.

जतीन्द्रनाथ का जन्म 7 दिसंबर 1879 को बंगाल के कुस्टिया जिले (अब बांग्लादेश में) के कायाग्राम के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम उपेंद्रनाथ मुखर्जी और माता का नाम शारदा देवी था. बाल्यकाल से ही उनमें साहस और नेतृत्व के गुण दिखने लगे थे.

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युगांतर दल के प्रमुख नेता थे. इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना था. उन्होंने जर्मन योजना के तहत प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई. इस योजना के तहत जर्मनी से हथियारों की आपूर्ति की व्यवस्था की गई थी. हालांकि, यह योजना सफल नहीं हो पाई, लेकिन इससे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष पैदा हुआ.

जतीन्द्रनाथ मुखर्जी स्वदेशी आंदोलन के सक्रिय समर्थक थे और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार को प्रोत्साहित करते थे.उन्होंने युगांतर दल को मजबूत किया और इसे क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बनाया.उनके द्वारा बाघ का वध उनकी साहसिकता का प्रतीक बन गया। इस घटना के कारण उन्हें “बाघा जतिन” का उपनाम मिला था.

 9 सितंबर 1915 को उड़ीसा के बालासोर में ब्रिटिश सैनिकों के साथ एक मुठभेड़ में वह बुरी तरह घायल हो गए. उनकी वीरता और संघर्ष ब्रिटिश अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा का विषय था. इस संघर्ष के बाद वह गिरफ्तार कर लिए गए और 10 सितंबर 1915 को उनकी  मृत्यु हो गई.

बाघा जतिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमिट नाम हैं. उनकी वीरता, संगठन कौशल और बलिदान आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है. उनके सम्मान में भारत के विभिन्न हिस्सों में स्मारक और संस्थान स्थापित किए गए हैं. जतीन्द्रनाथ मुखर्जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि व्यक्तिगत साहस और संगठन शक्ति के माध्यम से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं.

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अभिनेत्री नेहा जोशी

नेहा जोशी एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से मराठी और हिंदी टेलीविजन और सिनेमा में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने अभिनय कौशल और स्वाभाविक प्रदर्शन से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है.

नेहा जोशी का जन्म 07 दिसम्बर 1986 को पुणे में हुआ और उनकी परवरिश महाराष्ट्र में हुई थी.  उनका झुकाव बचपन से ही कला और अभिनय की ओर था. उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद थिएटर के माध्यम से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की.

नेहा ने अपने कैरियर की शुरुआत मराठी रंगमंच और फिल्मों से की. धीरे-धीरे उन्होंने हिंदी टेलीविजन और फिल्मों की ओर रुख किया और अपने काम के लिए सराहना अर्जित की.

टेलीविजन शो: –

“दो घुट प्यार के”: – इस शो में उनकी भूमिका ने उन्हें हिंदी टीवी दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया.

“घर एक मंदिर कृपा अग्रसेन महाराज की”: – इस शो में भी उन्होंने शानदार अभिनय किया.

“बावल”: – उन्होंने इस शो में एक चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाई, जो दर्शकों के बीच खासा लोकप्रिय हुआ.

नेहा ने मराठी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं और अपने अभिनय कौशल के लिए सराही गईं.

फिल्में: – पोष्टर गर्ल, जिंदगी विरुद्ध, देऊळ”.

नेहा ने कई नाटक और थिएटर प्रोडक्शन में भी काम किया है. उनका थिएटर बैकग्राउंड उनके अभिनय को स्वाभाविक और प्रभावी बनाता है. नेहा जोशी को उनके प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. मराठी और हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को उद्योग में सराहा जाता है.

नेहा की खासियत उनकी विविधता और गहराई है, जो वह अपनी हर भूमिका में लाती हैं. चाहे वह पारंपरिक मराठी किरदार हो या आधुनिक हिंदी शो, वह हर भूमिका में अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ती हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी दीप नारायण सिंह

दीप नारायण सिंह एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे.उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में अपना अमूल्य योगदान दिया. बिहार के रहने वाले दीप नारायण सिंह का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में साहस और देशभक्ति के लिए जाना जाता है.

दीप नारायण सिंह का जन्म 25 नवंबर 1894 को पुरानतांड, हाजीपुर, बिहार एक साधारण परिवार में हुआ था. उनका झुकाव बाल्यकाल से ही देशभक्ति और सामाजिक न्याय की ओर था. उन्होंने शिक्षा के दौरान भारतीय समाज की विषमताओं और ब्रिटिश शासन के अन्याय के प्रति जागरूकता प्राप्त की, जो उनके जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करने वाला प्रमुख कारण बना.

दीप नारायण सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण अभियानों में सम्मिलित हुए. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाने और लोगों को संगठित करने का काम किया. उन्होंने भारतीय जनता को स्वदेशी वस्त्रों और स्वदेशी उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित किया और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार में अहम भूमिका निभाई.

स्वतंत्र भारत में पहले भारतीय संसद के एक अहम् हिस्से रूप में भी दीप नारायण सिंह ने काम किया तथा बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे. बिहार केसरी कृष्ण सिंह के मृत्युपरांत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दीप नारायण सिंह को बिहार के मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त किया, हालाँकि इनका कार्यकाल मात्र 18 दिनों का ही था.

दीप नारायण सिंह ने सामाजिक सुधारों के लिए भी काम किया. उन्होंने शिक्षा, समानता, और सामाजिक न्याय पर जोर दिया। ग्रामीण इलाकों में उन्होंने शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने और गरीबों को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रयास किए. उनका निधन 7 दिसंबर 1977 को हाजीपुर में हुआ था.

दीप नारायण सिंह का जीवन देशभक्ति, त्याग, और सामाजिक न्याय के लिए प्रेरणादायक है. उनके संघर्ष और समर्पण ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी कहानी नई पीढ़ी के लिए साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बनी हुई है.

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बेगम आबिदा अहमद

बेगम आबिदा अहमद  भारत के पाँचवें राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की पत्नी थीं. आबिदा बेगम का जन्म 17 जुलाई, 1923 को उत्तर प्रदेश के हरदोई ज़िले में हुआ था और इनकी मृत्यु 7 दिसम्बर, 2003 को हुई थी.

आबिदा के पिता का नाम मुहम्मद सुल्तान हैदर ‘जोश’ था, जो ब्रिटिश हुकूमत की सिविल सर्विस में थे.  आबिदा बेगम ने ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ (ए.एम.यू.) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी.

बेगम आबिदा का विवाह भारत के पूर्व राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से 9 नवम्बर, वर्ष 1945 को हुआ था. विवाह के समय फ़ख.रुद्दीन अली अहमद इनसे उम्र में काफ़ी बड़े थे. उनकी उम्र 40 वर्ष थी, जबकि आबिदा बेगम मात्र 22 वर्ष की थीं.

आबिदा बेगम ने अपने राजनीतिक सफर के अंतर्गत कांग्रेस इं के टिकट पर बरेली, उत्तर प्रदेश की सीट से लोकसभा का उपचुनाव जीता और वर्ष 1981 में सांसद निर्वाचित हुईं थी.

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अभिनेत्री दिव्या भटनागर

दिव्या भटनागर एक भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी टेलीविज़न इंडस्ट्री में काम किया. उन्हें उनके धारावाहिकों और विभिन्न टेलीविजन शो में निभाई गई सहायक भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. अपने अभिनय कौशल और स्वाभाविक प्रदर्शन से उन्होंने दर्शकों के बीच पहचान बनाई.

दिव्या भटनागर का जन्म 15 सितंबर 1986 को दिल्ली, भारत में हुआ था. अभिनय के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था, और उन्होंने इसे अपने कैरियर के रूप में चुना. दिल्ली में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने मुंबई का रुख किया, जहां उन्होंने अपने सपने को साकार करने के लिए संघर्ष शुरू किया.

दिव्या ने छोटे पर्दे पर सहायक भूमिकाओं के माध्यम से अपने कैरियर की शुरुआत की.उनकी कड़ी मेहनत और बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें लोकप्रिय टीवी शोज़ में काम करने का मौका दिलाया.

प्रमुख धारावाहिक: – “ये रिश्ता क्या कहलाता है”,  “उड़ान”,  “जीत गई तो पिया मोरे”  “सजन रे झूठ मत बोलो”.

दिव्या ने टेलीविज़न के अलावा थिएटर में भी काम किया और अपनी कला को निखारा. उन्होंने फिल्मों में भी छोटे किरदार निभाए और इंडस्ट्री में विविधता दिखाई. दिव्या ने वर्ष  2020 में गगन गबरू से शादी की थी. हालांकि, उनकी शादीशुदा जिंदगी विवादों और संघर्षों से भरी रही. व्यक्तिगत समस्याओं के बावजूद, उन्होंने अपने कैरियर में अच्छा प्रदर्शन किया और अपनी पहचान बनाए रखी.

दिव्या भटनागर का निधन 7 दिसंबर 2020 को COVID-19 से संबंधित जटिलताओं के कारण हुई थी. उनके असमय निधन से टेलीविजन इंडस्ट्री और उनके प्रशंसकों को गहरा सदमा लगा.

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