टीपू सुल्तान
टीपू सुल्तान, जिन्हें टीपू साहब या टाइगर ऑफ मैसूर भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक हैं. वे मैसूर के सुल्तान थे और वर्ष 1782 -99 तक शासन किया. उनका शासन काल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ उनके संघर्ष के लिए विख्यात है. टीपू सुल्तान ने अपने पिता हैदर अली के साथ मिलकर मैसूर की सैन्य शक्ति को मजबूत किया और कई युद्धों में ब्रिटिश सेनाओं का सामना किया.
टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में आधुनिकीकरण की दिशा में कई कदम उठाए. उन्होंने सिल्क और संदलवुड उत्पादन में वृद्धि की, साथ ही कृषि में सुधार के लिए नवीन तकनीकी का इस्तेमाल किया. उनके शासन काल में मैसूर एक महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र के रूप में उभरा.
टीपू की विदेश नीति भी काफी सक्रिय थी. उन्होंने दूसरे देशों, जैसे कि फ्रांस, तुर्की, और अफगानिस्तान के साथ संबंध स्थापित करने की कोशिश की ताकि ब्रिटिश शक्ति का मुकाबला कर सकें. उनकी मृत्यु 4 मई 1799 को चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान हुई थी, जब ब्रिटिश और उनके सहयोगियों ने मैसूर को जीत लिया.
टीपू सुल्तान अपने नेतृत्व और साहस के लिए आज भी याद किए जाते हैं. उनकी विरासत भारतीय इतिहास में एक विवादास्पद और प्रेरणादायक चरित्र के रूप में मानी जाती है.
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धावक मिलखा सिंह
मिल्खा सिंह, जिन्हें “फ्लाइंग सिख” के नाम से जाना जाता है, भारत के सबसे महान धावकों में से एक थे. उनका जन्म 20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा (अब पंजाब, पाकिस्तान) में हुआ था. उन्होंने अपनी युवावस्था में विभाजन के दौरान परिवार के सदस्यों को खो दिया और भारत में शरण ली.
कैरियर और उपलब्धियाँ: –
वर्ष 1958 एशियाई खेल: – मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीते.
वर्ष 1958 राष्ट्रमंडल खेल: – 440 यार्ड में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने.
वर्ष 1960 ओलंपिक: – रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहे. इस दौड़ में उनका समय 45.73 सेकंड था, जो उस समय एक भारतीय रिकॉर्ड था.
वर्ष 1962 एशियाई खेल: – फिर से 400 मीटर और 4×400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीते.
मिल्खा सिंह को “फ्लाइंग सिख” का खिताब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने दिया, जब उन्होंने वर्ष 1960 में पाकिस्तान में अब्दुल खालिक को हराया था. मिल्खा सिंह ने भारतीय वॉलीबॉल खिलाड़ी निर्मल कौर से शादी की. उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह एक प्रसिद्ध गोल्फ खिलाड़ी हैं.
मिल्खा सिंह का जीवन संघर्ष, धैर्य और दृढ़ता की मिसाल है. विभाजन के दर्द और गरीबी के बावजूद, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया. उनकी आत्मकथा “The Race of My Life” में उनके जीवन की कहानी विस्तार से बताई गई है.
मिल्खा सिंह का निधन 18 जून 2021 को COVID-19 संबंधित जटिलताओं के कारण हुआ. उनके निधन से भारत ने एक महान एथलीट और प्रेरणा स्रोत खो दिया. मिल्खा सिंह पर आधारित फिल्म “भाग मिल्खा भाग” (2013) बनी, जिसमें फरहान अख्तर ने मुख्य भूमिका निभाई. यह फिल्म उनकी प्रेरक यात्रा को दर्शाती है.
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अभिनेता तुषार कपूर
तुषार कपूर एक भारतीय अभिनेता और निर्माता हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम करते हैं. उनका जन्म 20 नवंबर 1976 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ. वह प्रसिद्ध अभिनेता जीतेंद्र और शोभा कपूर के बेटे और टीवी और फिल्म निर्माता एकता कपूर के भाई हैं. तुषार कपूर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2001 में की और अपनी विविध भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं.
तुषार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई से प्राप्त की और फिर अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की डिग्री हासिल की. फिल्मों में कदम रखने से पहले, उन्होंने फिल्म निर्माता डेविड धवन के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम किया.
प्रमुख फिल्में: –
मुझे कुछ कहना है (2001): – करीना कपूर के साथ उनकी पहली फिल्म थी, जो एक हिट साबित हुई और उन्हें बेस्ट मेल डेब्यू का फिल्मफेयर अवार्ड मिला.
क्या कूल हैं हम (2005): – इस कॉमेडी फिल्म में उनका प्रदर्शन काफी सराहा गया. यह फिल्म उनकी लोकप्रियता का कारण बनी.
गोलमाल फ्रेंचाइजी में तुषार का मूक किरदार (लकी) बेहद मशहूर हुआ. उनकी कॉमिक टाइमिंग ने दर्शकों को खूब हंसाया.
शूटआउट एट लोखंडवाला (2007): – इस क्राइम थ्रिलर में उन्होंने एक गैंगस्टर का गंभीर किरदार निभाया, जिससे उनकी अभिनय क्षमताओं का एक नया पहलू सामने आया.
अन्य फिल्में: – डर्टी पिक्चर (2011), ढोल (2007), क्या सुपर कूल हैं हम (2012).
तुषार कपूर ने निर्माता के रूप में भी सफलता पाई. उन्होंने “लक्ष्मी” (2020) का निर्माण किया, जिसमें अक्षय कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई.
तुषार कपूर ने वर्ष 2016 में सरोगेसी के माध्यम से पिता बनने का फैसला किया और उनके बेटे का नाम लक्ष्य कपूर है. वह अपने बेटे के साथ एकल अभिभावक के रूप में जीवन का आनंद ले रहे हैं और इस फैसले के लिए उन्हें समाज से बहुत सराहना मिली. तुषार कपूर योग और फिटनेस के प्रति समर्पित हैं. उन्होंने अभिनय के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी भाग लिया है और अपनी फैमिली प्रोडक्शन कंपनी, बालाजी टेलीफिल्म्स, के साथ जुड़े रहते हैं.
तुषार कपूर को उनके मूक पात्र “गोलमाल” फ्रेंचाइजी के लिए खासतौर पर याद किया जाता है. वह अपने सरल और मृदु स्वभाव और बहुमुखी प्रतिभा के लिए बॉलीवुड में एक अलग पहचान रखते हैं.
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महिला फ्रीस्टाइल पहलवान बबीता फोगाट
बबीता फोगाट भारत की एक प्रसिद्ध महिला फ्रीस्टाइल पहलवान हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है. उनका जन्म 20 नवंबर 1989 को हरियाणा के बलाली गांव में हुआ. बबीता, भारतीय कुश्ती जगत में फोगाट बहनों में से एक हैं और उनके पिता महावीर सिंह फोगाट ने उन्हें और उनकी बहनों को पहलवानी की ट्रेनिंग दी.
कैरियर और उपलब्धियाँ: –
कॉमनवेल्थ गेम्स: –
वर्ष 2010 (दिल्ली): सिल्वर मेडल (51 किग्रा वर्ग),
वर्ष 2014 (ग्लासगो): गोल्ड मेडल (55 किग्रा वर्ग),
वर्ष 2018 (गोल्ड कोस्ट): सिल्वर मेडल (57 किग्रा वर्ग),
विश्व कुश्ती चैंपियनशिप: – वर्ष 2012 में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर विश्व स्तर पर पहचान बनाई.
एशियाई खेल और चैंपियनशिप: – एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में भी उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा है.
बबीता फोगाट का विवाह 1 दिसंबर 2019 को भारत के पहलवान विवेक सुहाग से हुआ. बबीता ने अपनी बहन गीता फोगाट के साथ हरियाणा में बेटियों को पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए एक मिसाल कायम की. वह सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय हैं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़ी हैं. उनकी कहानी प्रेरणादायक है, क्योंकि हरियाणा जैसे राज्य में, जहां लड़कियों को कुश्ती में आगे बढ़ाना असामान्य माना जाता था, बबीता और उनकी बहनों ने प्रचलित सामाजिक धारणाओं को बदल दिया। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी ने कई महिलाओं को प्रेरित किया है.
बबीता और उनकी बहन गीता फोगाट की जिंदगी पर आधारित फिल्म “दंगल” (2016) सुपरहिट रही. इसमें आमिर खान ने उनके पिता महावीर फोगाट का किरदार निभाया, जबकि सान्या मल्होत्रा ने बबीता का रोल किया. इस फिल्म ने उनके संघर्ष को बड़े स्तर पर सबके सामने लाया. बबीता फोगाट न केवल एक कुशल पहलवान हैं, बल्कि महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं. उनकी मेहनत और सफलता ने भारतीय खेल जगत को नए आयाम दिए हैं.
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अभिनेत्री अपर्णा दीक्षित
अपर्णा दीक्षित एक लोकप्रिय भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपने अभिनय और खूबसूरत व्यक्तित्व से दर्शकों का दिल जीता है. उनका जन्म 20 अक्टूबर 1991 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था. वह हिंदी टेलीविज़न इंडस्ट्री में अपने विभिन्न किरदारों के लिए जानी जाती हैं. अपर्णा दीक्षित ने अपनी स्कूली शिक्षा आगरा से पूरी की. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स ऑनर्स में स्नातक किया. अभिनय के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था, लेकिन उन्होंने इसे कैरियर के रूप में अपनाने का फैसला पढ़ाई पूरी करने के बाद किया.
अपर्णा ने छोटे पर्दे पर अपनी शुरुआत वर्ष 2013 में की और कई लोकप्रिय धारावाहिकों में काम किया. उनकी प्रमुख भूमिकाएँ इस प्रकार हैं: – महाभारत (2013), प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा (2013-2014), काला टीका (2016-2017), कहीं तो होगा (2017), बेपनाह प्यार (2019-2020), राजा बेटा (2019), रिश्ता लिखेंगे हम नया (2017-2018).
अपर्णा दीक्षित को उनके किरदारों की गहराई और सरलता के लिए सराहा जाता है. वो एक फिटनेस फ्रीक हैं और योग एवं वर्कआउट को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा मानती हैं. अपर्णा दीक्षित की निजी जिंदगी में उनका ध्यान हमेशा अपने कैरियर पर केंद्रित रहा है. वह अक्सर अपने परिवार के करीब रहती हैं और अपनी जड़ों से जुड़ी रहती हैं.
अपर्णा दीक्षित ने टेलीविज़न इंडस्ट्री में अपनी मेहनत और लगन से एक मजबूत स्थान बनाया है. उनके द्वारा निभाए गए किरदार न केवल दिलचस्प बल्कि प्रेरणादायक भी हैं. वह नई पीढ़ी की अभिनेत्रियों के लिए एक प्रेरणा हैं.
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शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ उर्दू अदब के महान शायरों में से एक माने जाते हैं. उनका जन्म 13 फरवरी 1911 को ब्रिटिश भारत के सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. फ़ैज़ ने अपने काव्य में सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और साम्यवादी विचारधारा को प्रमुखता से शामिल किया. उनकी रचनाएँ न केवल उर्दू साहित्य में बल्कि विश्व साहित्य में भी उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाती हैं.
फ़ैज़ की शायरी में प्रेम, विद्रोह, और उम्मीद के विषय गहराई से उत्कीर्ण हैं. उनकी कविताओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं को बहुत ही संवेदनशीलता और शक्ति के साथ व्यक्त किया गया है. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में “नक्श-ए-फ़रियादी”, “दस्त-ए-सबा”, और “ज़िंदान-नामा” शामिल हैं. फ़ैज़ की एक विशेषता उनकी भाषा की सरलता और साथ ही उनके विचारों की गहराई है, जिसने उन्हें आम लोगों का शायर बना दिया.
उन्होंने अपने जीवनकाल में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की. फ़ैज़ को वर्ष 1962 में सोवियत संघ द्वारा लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके काम को व्यापक रूप से पढ़ा और सराहा जाता है, और उनकी शायरी को उर्दू अदब की अमूल्य धरोहर माना जाता है. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का निधन 20 नवंबर 1984 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था.