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व्यक्ति विशेष

भाग – 327.

रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई भारत के स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नायिकाओं में से एक थीं. उन्हें झाँसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था. उनका मूल नाम मणिकर्णिका था, लेकिन प्यार से लोग उन्हें मनु कहकर बुलाते थे.

मणिकर्णिका (रानी लक्ष्मीबाई ) के पिता का नाम मोरोपंत तांबे (पेशवा के दरबार में काम करते थे) और उनकी माता का नाम भागीरथीबाई (धार्मिक प्रवृत्ति की महिला) थीं. लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव नवालकर से हुआ. विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया.

रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र का नाम दामोदर राव था, लेकिन उनका बचपन में ही निधन हो गया. इसके बाद उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया, जिसका नाम भी दामोदर राव रखा. डालहौजी की हड़प नीति के तहत अंग्रेजों ने उनके दत्तक पुत्र को राजा मानने से इनकार कर दिया और झाँसी को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की.

रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया और झाँसी को बचाने के लिए वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेना का नेतृत्व किया. रानी ने झाँसी के किले से अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्वक युद्ध किया. उन्होंने तात्या टोपे और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ग्वालियर पर अधिकार किया. 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं.

उनके बारे में कहा जाता है: –  “खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी.”

रानी लक्ष्मीबाई भारत के स्वतंत्रता संग्राम की अमर प्रतीक हैं और आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.

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केशव चन्द्र सेन

केशव चंद्र सेन एक प्रख्यात भारतीय समाज सुधारक, धार्मिक चिंतक, और ब्रह्म समाज के अग्रणी नेता थे. उन्होंने 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में सुधार और महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए. केशव चंद्र सेन का जन्म 19 नवंबर 1838 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था. उनका परिवार धार्मिक और विद्वान था. उन्होंने हिंदू कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और कम उम्र में ही आधुनिक विचारों को आत्मसात किया.

वर्ष 1857 में केशव चंद्र सेन देबेंद्रनाथ ठाकुर के नेतृत्व वाले ब्रह्म समाज में शामिल हुए. उन्होंने वर्ष 1865 में ब्रह्म समाज के “आधुनिक शाखा” (ब्रह्म समाज ऑफ इंडिया) का नेतृत्व संभाला. वे मूर्तिपूजा, जातिवाद, और कर्मकांड का विरोध करते थे. उन्होंने बाल विवाह का विरोध और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया. केशव चंद्र सेन जातिगत भेदभाव समाप्त करने के लिए प्रयासरत रहे.

केशव चंद्र सेन मानते थे कि सभी धर्मों का मूल एक है और सभी का उद्देश्य समान है. उन्होंने ब्रह्म समाज को एक सार्वभौमिक धर्म के रूप में विकसित करने का प्रयास किया. वो ईसाई धर्म के विचारों से भी प्रभावित थे. महिलाओं की शिक्षा को प्राथमिकता देने के लिए स्कूल और शिक्षण संस्थानों की स्थापना की. उन्होंने अस्पृश्यता और जातिवाद का खुलकर विरोध किया. उनके विचार “समाज और धर्म के एकीकरण” पर केंद्रित थे.

उन्होंने अपने विचारों को लेखों और भाषणों के माध्यम से प्रचारित किया. उनके भाषण और लेख 19वीं सदी के बंगाल में सामाजिक और धार्मिक सुधारों का आधार बने. केशव चंद्र सेन का निधन 8 जनवरी 1884 को हुआ.

केशव चंद्र सेन भारतीय समाज सुधार आंदोलन के महान प्रतीक थे. उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता, मानवतावाद, और सामाजिक समानता के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया. उनका काम भारतीय समाज के आधुनिकीकरण और महिलाओं की स्थिति में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ.

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प्रथम महिला प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी

इंदिरा गांधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थीं और देश के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थीं. इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को हुआ था. वे जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं और उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री का पद संभाला: वर्ष 1966 – 77 तक और फिर वर्ष 1980  84 तक. उनकी राजनीतिक सोच, दृढ़ निश्चय, और साहसी निर्णयों के कारण उन्हें “आयरन लेडी ऑफ इंडिया” कहा जाता है.

इंदिरा गांधी ने हरित क्रांति को बढ़ावा दिया, जिससे भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका. यह निर्णय कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ और देश को खाद्यान्न संकट से उबरने में मदद मिली. वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की, जिससे बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया. यह भारत के लिए एक बड़ी सैन्य और राजनीतिक सफलता थी.

वर्ष 1969 में इंदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई. वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. इसे “स्माइलिंग बुद्धा” नाम दिया गया और इसने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया.

इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में देश में आपातकाल घोषित किया, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक विवादास्पद अध्याय माना जाता है. इसका उद्देश्य कानून व्यवस्था को बनाए रखना था, लेकिन इसे स्वतंत्रता पर अंकुश और राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा गया.  इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में “गरीबी हटाओ” योजना का नारा दिया और गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाओं का शुभारंभ किया. इससे वे गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो गईं.

इंदिरा गांधी को उनके अद्वितीय नेतृत्व और राष्ट्र के प्रति उनके योगदान के लिए मरणोपरांत कई सम्मान दिए गए. उन्हें “भारत रत्न” से भी सम्मानित किया गया. उनकी नीतियों और निर्णयों का प्रभाव भारतीय राजनीति, समाज, और वैश्विक राजनीति पर गहरा पड़ा. 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन वे भारतीय राजनीति और जनता के दिलों में आज भी अमिट छवि के रूप में जीवित हैं.

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 संगीतकार सलिल चौधरी

सलिल चौधरी भारतीय फिल्म संगीत के एक महान संगीतकार, गीतकार, और लेखक थे. उन्हें भारतीय फिल्म संगीत में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले व्यक्तियों में गिना जाता है. उनकी प्रतिभा का दायरा हिंदी, बंगाली, मलयालम, तमिल और अन्य भाषाओं में फैला हुआ था. उन्हें उनके अनोखे संगीत संयोजन और सामाजिक मुद्दों पर आधारित रचनाओं के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है.

सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर, 1923 ई. को सोनारपुर शहर, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उनके पिता ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी असम में डॉक्टर थे. सलिल ने बचपन में ही विभिन्न प्रकार के संगीत (भारतीय लोक, पश्चिमी शास्त्रीय) के प्रति रुचि विकसित की. उनके साहित्य और संगीत में रुचि बंगाल के प्रगतिशील आंदोलन से प्रभावित थी. बचपन से ही उन्होंने संगीत को समाज के बदलाव का माध्यम माना.

उनका पहला हिंदी फिल्म प्रोजेक्ट था “दो बीघा ज़मीन” (1953). बिमल रॉय द्वारा निर्देशित यह फिल्म सलिल चौधरी के संगीत और उनके संदेशात्मक गीतों के लिए मशहूर हुई. उनके अनोखे संगीत में भारतीय और पश्चिमी शैलियों का संगम था.

लोकप्रिय गीत: –

जिंदगी कैसी है पहेली (आनंद, 1971),

ओ सजना बरखा बहार आई (परख, 1960),

मेरा गोरा अंग लेई ले (बंदिनी, 1963),

छोटी सी बात और अन्य फिल्मों के गानों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है.

वे बांग्ला संगीत (अधिकतर रवींद्र संगीत) में भी एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. उनकी बांग्ला रचनाएँ आज भी बेहद लोकप्रिय हैं. वहीं, मलयालम फिल्मों में उन्होंने लोक संगीत और पश्चिमी संगीत का अनोखा मिश्रण प्रस्तुत किया.

सलिल चौधरी ने न केवल संगीत रचा, बल्कि कई गीत भी लिखे. उनके गीत सामाजिक समस्याओं, न्याय और मानवता जैसे विषयों पर आधारित थे. वे फिल्मों की पटकथा और कहानियाँ लिखने में भी निपुण थे. सलिल चौधरी को कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.  भारतीय संगीत और सिनेमा के लिए उनके योगदान को अमूल्य माना जाता है.

सलिल चौधरी का निधन 5 सितंबर 1995 को हुआ था. उनका योगदान आज भी भारतीय फिल्म संगीत और साहित्य जगत में अमिट है. सलिल चौधरी एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने अपने संगीत और शब्दों से सामाजिक जागरूकता पैदा की. उनकी रचनाएँ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं.

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दारा सिंह

दारा सिंह एक प्रसिद्ध भारतीय पहलवान, अभिनेता, फिल्म निर्माता, और राजनेता थे. उन्हें उनकी अविश्वसनीय शारीरिक शक्ति, अखाड़े में शानदार प्रदर्शन, और हिंदी सिनेमा में “हनुमान” के रूप में निभाए गए यादगार किरदार के लिए जाना जाता है. वे भारतीय कुश्ती और मनोरंजन जगत के एक अमर प्रतीक माने जाते हैं.

दारा सिंह रन्धावा का जन्म 19 नवम्बर 1928 को अमृतसर (पंजाब) के गाँव धरमूचक में बलवन्त कौर और सूरत सिंह रन्धावा के यहाँ हुआ था. दारा सिंह का वास्तविक नाम दीदार सिंह रन्धावा है. उनका बचपन एक किसान परिवार में गुजरा. वे किशोरावस्था से ही शारीरिक ताकत और पहलवानी में रुचि रखते थे.

दारा सिंह ने पहलवानी की शुरुआत गाँव के अखाड़ों से की. बाद में वे भारतीय पारंपरिक कुश्ती (मल्लयुद्ध) में प्रशिक्षित हुए. दारा सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती जीतने के बाद अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया. उन्होंने अमेरिका, यूरोप, और एशिया में कई मशहूर पहलवानों को हराया. वर्ष 1959 में विश्व चैंपियनशिप जीतकर दुनिया के “वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियन” बने.

उन्होंने किंग कांग जैसे बड़े पहलवानों को हराया. उन्हें “रुस्तम-ए-हिंद” की उपाधि से नवाजा गया. उन्होंने वर्ष 1952 में फिल्मों में कदम रखा. शुरुआत में वे स्टंट और एक्शन फिल्मों में काम करते थे.

प्रमुख फिल्में: –

किंग कांग (1962),

फौलाद (1963),

जग्गा (1964),

पौराणिक फिल्मों में रामायण (टीवी धारावाहिक, 1987) में हनुमान का किरदार निभाया, जो अत्यंत लोकप्रिय हुआ. उनकी फिल्मों में एक्शन और स्टंट सीन मुख्य आकर्षण होते थे. पौराणिक और धार्मिक किरदार निभाने में उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावी था.

दारा सिंह वर्ष 2003 में राज्यसभा सदस्य बने. उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर विशेष ध्यान दिया. वे सरल और विनम्र व्यक्तित्व के धनी थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी, बेटे (विंदू दारा सिंह सहित), और अन्य सदस्य शामिल हैं. दारा सिंह का निधन 12 जुलाई 2012 को मुंबई में हुआ था.  वे लंबे समय तक बीमार रहे और उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल हो गया.

दारा सिंह भारतीय कुश्ती के प्रतीक हैं. वे “अजेय पहलवान” के रूप में जाने जाते हैं. उनके द्वारा निभाया गया हनुमान का किरदार भारतीय टीवी इतिहास का अभिन्न हिस्सा है. दारा सिंह की बहुमुखी प्रतिभा और उनकी उपलब्धियाँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं.

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अभिनेत्री ज़ीनत अमान

ज़ीनत अमान का जन्म 19 नवम्बर 1951 को बम्बई में एक मुस्लिम पिता और हिन्दू मां के घर हुआ था. वो भारतीय सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक हैं. उन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड में एक नए युग की शुरुआत की, जिसमें आधुनिकता, आत्मविश्वास और ग्लैमर का अनूठा मेल देखने को मिला. वे भारतीय सिनेमा की पहली “ग्लैमरस दिवा” मानी जाती हैं.

ज़ीनत के पिता का नाम अमानुल्ला खान है वो पटकथा लेखक थे. उन्होंने “मुगल-ए-आज़म” जैसी फिल्मों में सह-लेखन किया. ज़ीनत ने अपनी पढ़ाई मुंबई और लॉस एंजेलेस (यूएसए) में पूरी की. ज़ीनत ने मिस इंडिया प्रतियोगिता में भाग लिया और “मिस एशिया पैसिफिक” (1970) का खिताब जीता. इस सफलता के बाद वे फैशन और मॉडलिंग की दुनिया में पहचान बनाने लगीं.

उन्होंने वर्ष 1971 में फिल्म ‘हलचल’ से अभिनय की शुरुआत की. उन्हें प्रसिद्धि वर्ष 1971 में ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ से मिली, जिसमें उन्होंने “दम मारो दम” गाने पर शानदार प्रदर्शन किया. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का पुरस्कार मिला.

प्रमुख फिल्में: –   हरे रामा हरे कृष्णा (1971), यादों की बारात (1973), धुंध (1973), रोटी कपड़ा और मकान (1974), अजनबी (1974), सत्यम शिवम सुंदरम (1978),  डॉन (1978), कुर्बानी (1980), लावारिस (1981) और  इंसाफ का तराजू (1980).

ज़ीनत अमान को उनके पश्चिमी लुक और आधुनिक किरदारों के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारतीय सिनेमा में पारंपरिक नायिका की छवि को बदलते हुए ग्लैमरस, बोल्ड और स्वतंत्र महिला के रूप में एक नई पहचान बनाई. उनका फैशन सेंस और स्टाइल ट्रेंडसेटर बन गया.

पुरस्कार और सम्मान: –

फिल्मफेयर अवार्ड (1971): – ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिए.

ज़ी सिने अवार्ड्स लाइफटाइम अचीवमेंट.

बॉलीवुड में उनके योगदान को कई अन्य सम्मानों से भी सराहा गया.

ज़ीनत अमान ने वर्ष 1985 में अभिनेता मजरूह सुल्तानपुरी से शादी की. उनके दो बेटे हैं: अजान और जहान. उनका वैवाहिक जीवन विवादों और संघर्षों से भरा रहा. ज़ीनत अमान अब अभिनय कम करती हैं, लेकिन सामाजिक मुद्दों और कला से जुड़े कार्यक्रमों में सक्रिय रहती हैं. वे भारतीय सिनेमा के लिए प्रेरणा और एक प्रतीक बनी हुई हैं.

ज़ीनत अमान भारतीय सिनेमा की पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने मॉडर्न और ग्लैमरस किरदारों को सहजता से निभाया. उनका योगदान बॉलीवुड में महिला पात्रों की छवि को बदलने में अहम रहा.

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अभिनेत्री सुष्मिता सेन

सुष्मिता सेन एक भारतीय अभिनेत्री, मॉडल और वर्ष 1994 में मिस यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. अपनी सुंदरता, आत्मविश्वास और बुद्धिमत्ता से उन्होंने भारतीय और वैश्विक मंच पर बड़ी पहचान बनाई. सुष्मिता सेन ने बॉलीवुड में भी अपनी अलग पहचान बनाई है और वे स्वतंत्र सोच व साहसिक फैसलों के लिए जानी जाती हैं.

सुष्मिता सेन का जन्म 19 नवंबर 1975 को हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में एक बंगाली बैद्या परिवार में हुआ था.  सुष्मिता के पिता शूबेर सेन, पूर्व भारतीय वायुसेना विंग कमांडर, और एक गहने डिजाइनर और दुबई स्थित स्टोर के मालिक सुभरा सेन हैं. उसके दो भाई बहन हैं, नीलम-राजीव. सुष्मिता ने शादी नहीं की है, हालांकि उन्होंने दो बच्चियों को गोद लिया है. उन्होंने नई दिल्ली में वायुसेना गोल्डन जयंती संस्थान और सिकंदराबाद में सेंट एन हाई स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की है. उन्होंने पत्रकारिता में भी रुचि ली थी.

सुष्मिता ने ऐश्वर्या राय को हराकर मिस इंडिया का खिताब जीता. उन्होंने वर्ष 1994 में मनीला, फिलीपींस में आयोजित मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता जीती. यह खिताब जीतने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं. उनकी बुद्धिमत्ता और आत्मविश्वास ने उन्हें अन्य प्रतियोगियों से अलग किया.

डेब्यू फिल्म: –

सुष्मिता ने वर्ष 1996 में फिल्म ‘दस्तक’ से अभिनय की शुरुआत की.

प्रमुख फिल्में: – बीवी नंबर 1 (1999),  मैं हूं ना (2004), सिर्फ तुम (1999), आंखें (2002),समय (2003), मैंने प्यार क्यों किया (2005).

सुष्मिता सेन ने शादी नहीं की, लेकिन उन्होंने दो बेटियों को गोद लिया. रेने सेन (2000 में). अलीशा सेन (2010 में). उन्होंने हमेशा स्वतंत्र और आधुनिक सोच को बढ़ावा दिया.

सुष्मिता सेन ने परंपराओं को चुनौती दी और अपने जीवन के हर पहलू में स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को महत्व दिया. वे महिलाओं के सशक्तिकरण और बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती हैं. सुष्मिता अपने सकारात्मक दृष्टिकोण और साहसिक फैसलों के लिए जानी जाती हैं. उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड (सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री) सहित अन्य कई प्रुस्कारों से सम्मानित किया गया.

सुष्मिता हाल के वर्षों में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हैं. उन्होंने वेब सीरीज़ ‘आर्या’ में दमदार प्रदर्शन किया, जिसे दर्शकों और आलोचकों ने सराहा. सुष्मिता सेन न केवल एक शानदार अभिनेत्री हैं, बल्कि एक प्रेरणादायक महिला भी हैं, जिन्होंने लाखों लोगों को अपने जीवन और काम से प्रेरित किया.

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