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व्यक्ति विशेष

भाग – 324.

शायर अकबर इलाहबादी

अकबर इलाहाबादी उर्दू के शायर थे, जिनका असली नाम सैयद अकबर हुसैन था.. उनका जन्म 16 नवम्बर 1846 को  इलाहाबाद के निकट बारा में हुआ था. अकबर इलाहाबादी अपनी हास्य-विनोद, व्यंग्य और गहरी सामाजिक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. उनकी शायरी में उस समय की राजनीति, संस्कृति और समाज का सजीव चित्रण मिलता है.

अकबर इलाहाबादी की शायरी का प्रमुख तत्व व्यंग्य है. उन्होंने समाज और ब्रिटिश शासन की विसंगतियों पर तीखे तंज किए. उनकी गजलें, नजम, रुबाई या क़ित हो उनका अपना ही एक अलग अन्दाज़ था.

” हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.”

अकबर ने अंग्रेज़ी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण पर तीखे व्यंग्य करते हुए…

इल्म का शौक़ है तो पढ़ो फ़र्ज़ान को,

इंजीनियर बनो या बैरिस्टर बन जाओ.

उनकी शायरी में भाषा सरल और मौलिक होती थी. आम बोलचाल की भाषा में उन्होंने गहरी बातें कही. अकबर इलाहाबादी परंपरागत भारतीय मूल्यों को बनाए रखने के पक्षधर थे और आधुनिकता को आवश्यकता से अधिक अपनाने के खिलाफ़ थे. उनकी ग़ज़लें और शेर आम जनता से लेकर विद्वानों तक में प्रसिद्ध हैं. उनकी शायरी में दिलचस्प भाषा और गहरे विचारों का अनूठा मेल देखने को मिलता है.

अकबर इलाहाबादी ने अपनी शायरी के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास किया. उनका निधन 9 सितम्बर 1921 को इलाहाबाद में हुआ था. आज भी उनकी रचनाएँ आज भी पढ़ी और सराही जाती हैं.

शेर: –

दुनिया में हूं, दुनिया का तलबगार नहीं हूं,

बाज़ार से गुज़रा हूं, ख़रीदार नहीं हूं.

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नर्तक शंभू महाराज

शंभू महाराज कत्थक नृत्य के महान उस्तादों में से एक थे, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया. उनका जन्म 16 नवम्बर 1907 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था और वे लखनऊ घराने से संबंधित थे. उनका असली नाम शंभुनाथ मिश्रा था. शंभू महाराज प्रसिद्ध कथक नर्तक बिंदादीन महाराज और कालिका महाराज के परिवार से थे और उनके पिता अच्छन महाराज भी एक प्रख्यात कथक नर्तक थे.

शंभू महाराज ने अपनी नृत्य शैली में शास्त्रीयता के साथ-साथ भाव-प्रदर्शन (अभिनय) को विशेष महत्व दिया. वे अपने भावपूर्ण नृत्य और मुग्ध कर देने वाली प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते थे. उनकी नृत्य शैली में भक्ति, प्रेम, और नायक-नायिका भावों का अद्भुत मिश्रण था. उन्होंने अपने कथक में ठुमरी, दादरा और भावपूर्ण संगीत का अनोखा प्रयोग किया, जिससे उनकी प्रस्तुतियों में एक गहरी संवेदनशीलता और लयात्मकता दिखाई देती थी.

शंभू महाराज को उनकी कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पद्म श्री प्रमुख हैं. उनके शिष्यों में बिरजू महाराज जैसे प्रसिद्ध नर्तक भी शामिल हैं, जिन्होंने उनके मार्गदर्शन में कथक की बारीकियों को सीखा. शंभू महाराज का योगदान भारतीय शास्त्रीय नृत्य में अमूल्य है, और उनका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है. उनका निधन 4 नवंबर 1970 को हुआ था, लेकिन उनकी कला और विरासत आज भी जीवित है.

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दक्षिण भारतीय सिनेमा के निर्देशक बोमिरेड्डी नरसिम्हा रेड्डी

बोमिरेड्डी नरसिम्हा रेड्डी दक्षिण भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित निर्देशक और निर्माता थे. उन्हें तेलुगु सिनेमा का एक महानायक भी माना जाता है. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को “डॉक्टर बी.एन. रेड्डी” के नाम से पहचाना जाता है. वह तेलुगु सिनेमा के पहले ऐसे निर्देशक थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई.

रेड्डी का जन्म 16 नवंबर 1908 को आंध्र प्रदेश के करनूल जिले में हुआ था. प्रारंभ में उन्होंने कृषि के क्षेत्र में काम किया, लेकिन फिल्म निर्माण में रुचि के कारण उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखा. बी.एन. रेड्डी का फिल्मी कैरियर वर्ष 1930 – 40 के दशक में शुरू हुआ था. उन्होंने समाज के ज्वलंत मुद्दों पर आधारित फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया. उनकी फ़िल्में सामाजिक सुधार, परिवारिक मूल्यों और तेलुगु संस्कृति पर केंद्रित होती थीं.

प्रमुख फिल्में: –

मल्लीश्वरम (1938): इस फिल्म में भारतीय सिनेमा की एक ऐतिहासिक कृति मानी जाती है. इसमें पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों का टकराव दिखाया गया था.

स्वर्गसीमा (1945): – यह एक और सफल फिल्म थी जो समाज और राजनीति के मुद्दों पर आधारित थी. इसे तेलुगु सिनेमा की बेहतरीन क्लासिक्स में गिना जाता है.

बंगारू पाप (1955): –  इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा के स्तर को अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहुंचाया. इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे.

गृह प्रवेशम (1956): –  इस फिल्म ने तेलुगु सिनेमा को सामाजिक मुद्दों पर आधारित कहानियों की ओर मोड़ा.

रेड्डी को कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें – भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए वर्ष 1974 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें कला और सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 1974 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया.  रेड्डी  को तेलुगु सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तेलुगु सिनेमा के पितामह की उपाधि दी गई थी.

रेड्डी की फिल्मों में समाज सुधार, भारतीय परंपरा, और प्रगतिशील सोच का समावेश होता था. रेड्डी ने तकनीकी रूप से तेलुगु सिनेमा को समृद्ध किया और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया. बोमिरेड्डी नरसिम्हा रेड्डी का निधन 8 नवंबर 1977 को हुआ. उनकी विरासत आज भी तेलुगु सिनेमा में जिंदा है. उनके काम ने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी.

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अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू

डॉ. श्रीराम लागू भारतीय थिएटर और फिल्म के एक प्रतिष्ठित अभिनेता, निर्देशक और पेशेवर डॉक्टर थे. उन्होंने मुख्य रूप से मराठी, हिंदी, और कुछ गुजराती थिएटर और सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान दिया. अपनी गहन अदाकारी और प्रभावशाली संवाद अदायगी के कारण वे भारतीय कला क्षेत्र में एक आदर्श व्यक्तित्व माने जाते हैं.

श्रीराम लागू का जन्म 16 नवंबर 1927 को सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने पुणे के बी.जे. मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और बाद में ईएनटी (कान, नाक, गला) सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल की. अपनी मेडिकल प्रैक्टिस के दौरान भी वे थिएटर और अभिनय के प्रति बेहद उत्सुक रहे. श्रीराम लागू ने अपने थिएटर कैरियर की शुरुआत मराठी नाटकों से की. उनका नाम मराठी थिएटर के “दिग्गज” अभिनेताओं में गिना जाता है.

नाटक: –  नटसम्राट, घासीराम कोतवाल, हिमालयाची सावली, प्रीतम, और सूर्य पाहिला

डॉ. श्रीराम लागू ने 100 से अधिक हिंदी और मराठी फिल्मों में अभिनय किया. उनकी भूमिकाएँ आमतौर पर गंभीर, प्रभावशाली और सामाजिक संदेश देने वाली होती थीं.

हिंदी फिल्में: –  घरोंदा (1977), आंधी (1975), लावारिस (1981), मुक्ति (1977), सौदागर (1973)…

मराठी फिल्में: – पिंजरा (1972), सिंहासन (1979).

डॉ. श्रीराम लागू को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया जिनमें वर्ष 1978 में थिएटर के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कई हिंदी फिल्मों में बेहतरीन सहायक भूमिकाओं के लिएफिल्मफेयर अवार्ड्स नामांकित किया. मराठी थिएटर और सिनेमा में उनके योगदान को सराहते हुए उन्हें कई राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. डॉ. लागू को  “नटसम्राट” के मंचीय प्रदर्शन के लिए हमेशा याद किया जाता है.

डॉ. लागू ने रैशनलिस्ट मूवमेंट (तर्कवादी आंदोलन) का समर्थन किया और अंधविश्वास, धार्मिक रूढ़िवादिता के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने विज्ञान और तार्किकता के प्रचार में भी योगदान दिया.

डॉ. श्रीराम लागू का निधन 17 दिसंबर 2019 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था.  उनकी कला, वैचारिक दृष्टिकोण, और सामाजिक प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय समाज और सिनेमा में एक अलग स्थान दिया.

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अभिनेत्री मीनाक्षी शेषाद्री

मीनाक्षी शेषाद्री भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री, शास्त्रीय नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वर्ष 1980 – 90 के दशक में बॉलीवुड की प्रमुख अभिनेत्रियों में उनकी गिनती होती थी. अपने अभिनय कौशल, सुंदरता और नृत्य कला के लिए जानी जाने वाली मीनाक्षी ने कई यादगार फिल्में दीं.

मीनाक्षी शेषाद्री का वास्तविक नाम शशिकला शेषाद्रि है. उनका जन्म 16 नवंबर 1963, सिंध्री, झारखंड के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कथक और ओडिसी जैसे शास्त्रीय नृत्य सीखीं.

मीनाक्षी ने 17 साल की उम्र में “ईव्स वीकली मिस इंडिया” का खिताब जीता और वर्ष 1981 में भारत का प्रतिनिधित्व मिस इंटरनेशनल प्रतियोगिता में किया. इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की. मीनाक्षी ने बॉलीवुड में वर्ष 1983 की फिल्म “पेंटर बाबू” से डेब्यू किया, लेकिन उन्हें असली पहचान सुभाष घई की फिल्म “हीरो” (1983) से मिली.

प्रमुख फिल्में: –  हीरो (1983), मेरी जंग (1985), डांस डांस (1987), दामिनी (1993), घायल (1990), शहंशाह (1988), स्वाति (1986).

फिल्म दामिनी भारतीय न्याय व्यवस्था और महिलाओं के अधिकारों पर आधारित थी. मीनाक्षी ने एक बलात्कार पीड़िता की गवाह बनने वाली महिला का किरदार निभाया. इस फिल्म का डायलॉग: “तारीख पे तारीख…” फिल्म का एक आइकॉनिक हिस्सा बना. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर नामांकन मिला.

मीनाक्षी एक प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांगना हैं और उन्होंने अपनी फिल्मों में भी नृत्य का बेहतरीन प्रदर्शन किया. उन्होंने कई मंच प्रस्तुतियाँ दीं और नृत्य को हमेशा अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना. मीनाक्षी को फिल्म दामिनी (1993) में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का आवार्ड मिला. उनकी फिल्में और अभिनय आज भी सराहे जाते हैं और वे 80-90 के दशक की शीर्ष अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं.

वर्ष 1995 में मीनाक्षी ने इन्वेस्टमेंट बैंकर हरीश मैसूर से शादी की और अमेरिका में बस गईं. उनके दो बच्चे हैं. वे अमेरिका में एक नृत्य स्कूल चलाती हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं. मीनाक्षी शेषाद्री अपनी खूबसूरती, अभिनय और नृत्य के लिए जानी जाती हैं. “दामिनी” जैसी फिल्में उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक यादगार अभिनेत्री बनाती हैं.

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अभिनेत्री मीरा देवस्थले

मीरा देवस्थले भारतीय टेलीविजन उद्योग की एक लोकप्रिय अभिनेत्री हैं, जिन्हें मुख्यतः उनके टीवी शो में भावुक और मजबूत किरदारों के लिए जाना जाता है. मीरा ने कई हिंदी धारावाहिकों में काम किया है और अपनी कड़ी मेहनत और प्रतिभा के चलते छोटे पर्दे पर अपनी खास पहचान बनाई है.

मीरा देवस्थले का जन्म 16 नवंबर 1995 को वडोदरा, गुजरात में हुआ था.  मीरा का झुकाव बचपन से ही अभिनय और नृत्य की ओर था. मीरा ने अपने कैरियर की शुरुआत छोटे-छोटे रोल से की. उन्हें पहला बड़ा ब्रेक टीवी धारावाहिक “दिल जैसे धड़के… धड़कने दो” में मिला.

प्रमुख धारावाहिक: –  उड़ान (2016–2019),  (2019–2020),  दिल जैसे धड़के… धड़कने दो (2020), भीमराव अम्बेडकर (2021).

मीरा अपने किरदारों में गहराई और भावनाओं को बखूबी प्रस्तुत करने के लिए जानी जाती हैं. उनके प्रदर्शन में वास्तविकता और संवेदनशीलता झलकती है. वे सामाजिक मुद्दों पर आधारित कहानियों में विशेष रुचि रखती हैं. “उड़ान” में उनकी भूमिका के लिए उन्हें दर्शकों और आलोचकों से खूब सराहना मिली. उन्हें कई टीवी पुरस्कारों में उनका नामांकन हुआ.

मीरा को नृत्य और पेंटिंग का शौक है. वह फिटनेस को लेकर भी जागरूक हैं और अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखती हैं. मीरा देवस्थले टेलीविजन के साथ-साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म और फिल्मों में भी काम करने की इच्छुक हैं. वह ऐसे किरदार निभाना चाहती हैं जो महिलाओं के सशक्तिकरण और समाज के सुधार से जुड़े हों.

मीरा देवस्थले भारतीय टेलीविजन की उभरती हुई अभिनेत्रियों में से एक हैं. उनके अभिनय और जुनून ने उन्हें दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाया है.

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