सामाजिक कार्यकर्ता अनसूया साराभाई
अनसूया साराभाई एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्हें भारत में श्रमिक आंदोलन की जननी माना जाता है. गुजरात में श्रमिक वर्ग के अधिकारों के लिए उनके योगदान के कारण वे बेहद सम्मानित हैं. उन्होंने भारत के पहले महिला ट्रेड यूनियन “मजदूर महाजन संघ” (अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन) की स्थापना की, जो श्रमिकों के हक और सुरक्षा के लिए काम करती थी.
अनसूया साराभाई का जन्म 11 नवंबर 1885 को अहमदाबाद में साराभाई परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता का देहांत जल्दी हो गया था, जिसके बाद उनकी परवरिश उनके भाई ने की. उनका विवाह काफी कम उम्र में हुआ, लेकिन जल्द ही वे विधवा हो गईं. वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गईं, जहाँ उन्होंने डॉक्टर बनने का प्रयास किया. हालांकि, वहाँ उन्हें महिलाओं और श्रमिकों की स्थिति को समझने का अवसर मिला, जिसने उन्हें समाज सेवा की ओर प्रेरित किया.
अहमदाबाद वापस लौटने के बाद, अनसूया ने देखा कि टेक्सटाइल मिल में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बेहद दयनीय थी. मजदूरों की बेहतरी के लिए उन्होंने मिल मालिकों के साथ बातचीत शुरू की, जिससे मजदूरों को बेहतर वेतन, काम के घंटे और कार्यस्थल की स्थिति में सुधार हुआ. अनसूया साराभाई ने महिला मजदूरों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया. उन्होंने अहमदाबाद में महिला मजदूरों के लिए कामकाजी माहौल बेहतर बनाने के प्रयास किए, जिससे महिलाएं भी सुरक्षित और सम्मानपूर्वक काम कर सकें. अनसूया साराभाई का गांधीजी से भी संपर्क था, और उनके विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने अहिंसात्मक साधनों का सहारा लिया. गांधीजी ने भी उनके श्रमिक आंदोलन का समर्थन किया था.
अनसूया साराभाई के द्वारा स्थापित मजदूर महाजन संघ आज भी कार्यरत है और उनके योगदान को याद किया जाता है. उनकी भतीजी, एला भट्ट, ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए “सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेन एसोसिएशन” (SEWA) की स्थापना की, जो भारत में स्व-नियोजित महिलाओं के हक के लिए कार्य करता है. अनसूया साराभाई का निधन 1 नवंबर 1972 को हुआ था. अनसूया साराभाई का जीवन संघर्ष और सेवा का प्रतीक है, और भारतीय श्रमिक आंदोलन में उनके योगदान को सदा याद किया जाएगा.
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राजनीतिज्ञ जे. बी. कृपलानी
आचार्य जे. बी. कृपलानी, जिनका पूरा नाम जीवत्राम भगवानदास कृपलानी है, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और भारतीय नेशनल कांग्रेस के एक अग्रणी सदस्य थे. आचार्य कृपलानी 1947 में भारतीय नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष बने और उन्होंने इस पद पर रहते हुए भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया.
आचार्य जे. बी. कृपालानी हैदराबाद (सिन्ध) के उच्च मध्यवर्गीय परिवार में 11 नवंबर 1888 को पैदा हुए थे और उनका निधन 19 मार्च 1982 को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुआ. कृपलानी एक अनुभवी शिक्षक भी थे और उन्होंने युवाओं को राष्ट्रीय आदर्शों और मूल्यों की शिक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे गांधीजी के निकट सहयोगी थे और उनके विचारों और आदर्शों के प्रति गहरा समर्पण रखते थे. आचार्य कृपलानी ने भारतीय राजनीति में नैतिकता और आदर्शवाद की बात की और उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से इन मूल्यों को जीवित रखा.
स्वतंत्रता के बाद, वे भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर उनकी आवाज सुनी गई. उनका जीवन और कार्य भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में माना जाता है.
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अबुल कलाम आज़ाद
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता, महान विद्वान, और आधुनिक भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री थे. उनका जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था, लेकिन उनका जीवन और कार्य भारतीय उपमहाद्वीप के स्वतंत्रता आंदोलन और इसके बाद के विकास से गहराई से जुड़ा हुआ था.
आज़ाद एक उत्कृष्ट वक्ता, पत्रकार, और लेखक थे. उन्होंने अपने विचारों को विभिन्न भाषाओं में व्यक्त किया, लेकिन मुख्य रूप से उर्दू में. उनकी लेखनी में ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ (भारत आज़ादी की ओर) जैसी कृतियाँ शामिल हैं, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उनके अनुभवों का वर्णन करती हैं. आज़ाद ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंदर एक प्रमुख भूमिका निभाई और वर्ष 1940 – 45 तक इसके अध्यक्ष रहे. वे भारतीय राष्ट्रवाद की साम्प्रदायिकता से परे एकता के पक्षधर थे और हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता की वकालत करते रहे. उन्होंने विभाजन के विचार का विरोध किया और एक संयुक्त भारत के लिए संघर्ष किया.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, आज़ाद ने भारत सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में सेवा की और देश की शिक्षा नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने वैज्ञानिक शोध और उच्च शिक्षा पर जोर दिया और भारतीय संस्थानों की स्थापना की नींव रखी, जिनमें इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IITs) और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) शामिल हैं.
मौलाना आज़ाद का निधन 22 फरवरी 1958 को हुआ. उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में उनके योगदान के रूप में जीवित है. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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राजनीतिज्ञ सुंदर लाल पटवा
सुंदर लाल पटवा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता थे, जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में दो बार कार्यरत रहे. उनकी राजनीति में गहरी पकड़ और साफ छवि के लिए वे जाने जाते थे. पटवा का योगदान भारतीय राजनीति में विशेष रूप से मध्य प्रदेश की राजनीति में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है.
सुंदर लाल पटवा का जन्म 11 नवंबर 1924 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के कुकड़ेश्वर में हुआ था. उनके प्रारंभिक जीवन में साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि थी और उन्होंने कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की. आरंभ से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हुए थे, जिससे उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई.
सुंदर लाल पटवा पहली बार 20 जनवरी 1980 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कार्यकाल केवल 2 महीने का ही रहा. उस समय जनता पार्टी की सरकार थी, लेकिन सरकार जल्द ही गिर गई थी. वर्ष 1990 में, भाजपा ने राज्य में चुनाव जीता, और पटवा को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किये गये. इस बार उन्होंने बड़े पैमाने पर विकास कार्यों और प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान दिया. पटवा का कार्यकाल वर्ष 1992 तक रहा, जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था.
पटवा को मध्य प्रदेश में सड़क निर्माण, सिंचाई परियोजनाओं, और प्रशासनिक सुधारों के लिए जाना जाता है. उन्होंने राज्य की आधारभूत संरचना को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सुंदर लाल पटवा का झुकाव हमेशा राष्ट्रवादी विचारधारा और संघ से जुड़े सिद्धांतों की ओर रहा. वे साधारण जीवन जीने के लिए प्रसिद्ध थे और उनकी छवि एक ईमानदार और सादगीपूर्ण नेता की रही. पटवा ने अपने कार्यकाल के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों के कल्याण के लिए कई योजनाएँ चलाईं. वे मानते थे कि राज्य का विकास तभी संभव है, जब कृषि और ग्रामीण क्षेत्र मजबूत हों.
सुंदर लाल पटवा भाजपा के गठन के समय से ही उसमें सक्रिय थे और उन्होंने पार्टी के संगठन को मजबूत करने में बड़ा योगदान दिया. उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन ने भाजपा को राज्य में लोकप्रिय बनाने में मदद की.सुंदर लाल पटवा का प्रभाव मध्य प्रदेश की राजनीति में हमेशा बना रहा, और उनके अनुयायी आज भी उनकी सादगी और ईमानदारी को याद करते हैं. उन्होंने भाजपा को राज्य में मजबूत बनाने और विकासोन्मुखी राजनीति को बढ़ावा देने का कार्य किया.
5 दिसंबर 2016 को पटवा का निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान और उनके द्वारा स्थापित आदर्श आज भी भारतीय राजनीति और भाजपा में प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.
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अभिनेता जॉनी वॉकर
जॉनी वॉकर जिनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी था, एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जो हिंदी सिनेमा में अपनी कॉमिक भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 11 नवंबर 1926 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 29 जुलाई 2003 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ. जॉनी वॉकर ने अपने अद्वितीय हास्य शैली और अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीता. बदरुद्दीन का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. वे मुंबई चले गए थे जहां उन्होंने बस कंडक्टर के रूप में काम करना शुरू किया. उनकी कॉमिक प्रतिभा को बस में यात्रियों का मनोरंजन करने के दौरान खोजा गया.
बदरुद्दीन को गुरु दत्त ने खोजा और उन्हें जॉनी वॉकर नाम दिया. उनकी पहली फिल्म “बाज़ी” (1951) थी, जिसमें उन्होंने कॉमिक भूमिका निभाई. जॉनी वॉकर ने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें से कुछ प्रमुख फिल्में “प्यासा” (1957), “सी.आई.डी.” (1956), “मिस्टर एंड मिसेज़ 55” (1955), “नया दौर” (1957), और “मधुमती” (1958) हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें एक लोकप्रिय हास्य अभिनेता बना दिया.
जॉनी वॉकर ने शराबी, नौकर, और विभिन्न अन्य चरित्रों की भूमिकाओं में अपनी अद्वितीय शैली से दर्शकों को हंसाया. उनकी सबसे प्रसिद्ध गीतों में “सर जो तेरा चकराए” (फिल्म: प्यासा) और “ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ” (फिल्म: सी.आई.डी.) शामिल हैं, जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं. जॉनी वॉकर की शादी नूरजहाँ से हुई थी, और उनके तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं.
उन्होंने अपने कैरियर के अंत में फिल्मों से दूरी बना ली और अपना व्यवसाय शुरू किया. जॉनी वॉकर को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने अपने अनूठे हास्य अभिनय से हिंदी सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई. जॉनी वॉकर ने भारतीय सिनेमा में हास्य अभिनय की एक नई परिभाषा दी. उनका अद्वितीय शैली और प्रदर्शन आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है. उनकी फिल्मों और किरदारों ने उन्हें अमर बना दिया है.
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साहित्यकार कैलाश वाजपेयी
कैलाश वाजपेयी एक प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने मुख्य रूप से कविता लेखन में अपनी विशेष पहचान बनाई. उनका जन्म 11 नवंबर 1936 को हुआ था और उनका निधन 01 अप्रैल 2015 को हुआ. उनकी कविताएँ अक्सर जटिल विचारों और भाषाई प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने अनूठे योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए.
वाजपेयी के साहित्यिक कार्य में गहरी दार्शनिकता और मानवीय मूल्यों की खोज दिखाई देती है. उन्होंने आधुनिकता और पारंपरिकता के बीच संतुलन बनाया और अपनी रचनाओं में विभिन्न विषयों को स्पर्श किया. उनकी कुछ प्रमुख कृतियों में ‘तीसरा अंधेरा’, ‘शहर अभी दूर है’, और ‘समय से बाहर’ शामिल हैं. उनका साहित्य व्यक्तिगत और सामाजिक चेतना के बीच के संवाद को प्रकट करता है.
कैलाश वाजपेयी की कविताओं में भाषा की संवेदनशीलता और सौंदर्य के प्रति उनकी सजगता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. वे अपने लेखन में नई काव्य शैलियों और प्रतीकों का प्रयोग करके हिंदी कविता को नए आयामों तक ले गए.
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अभिनेत्री माला सिन्हा
माला सिन्हा भारतीय सिनेमा की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री हैं, जिन्हें वर्ष 1950 – 60 के दशक की प्रमुख अभिनेत्रियों में गिना जाता है. उनका जन्म 11 नवंबर 1936 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था. वे अपने अभिनय कौशल और खूबसूरती के लिए मशहूर थीं और उन्होंने हिंदी, बंगाली, और नेपाली फिल्मों में भी काम किया है.
माला सिन्हा का असली नाम आल्डा सिन्हा था. उन्होंने शुरुआती दिनों में कुछ बंगाली फिल्मों में काम किया और बाद में हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाई. हिंदी फिल्मों में आने के बाद उनका नाम माला सिन्हा रखा गया, और जल्द ही वे बॉलीवुड में एक लोकप्रिय अभिनेत्री बन गईं. माला सिन्हा ने कई हिट फिल्मों में काम किया और उनकी जोड़ी कई प्रमुख अभिनेताओं के साथ खूब सराही गई.
प्रमुख फिल्में: –
प्यासा (1957): – गुरु दत्त के साथ उनकी इस फिल्म ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई.
धूल का फूल (1959): – इस फिल्म में उनके अभिनय को बेहद पसंद किया गया.
अनपढ़ (1962): – इसमें उन्होंने अनपढ़ महिला की भूमिका निभाई, जिसने दर्शकों के दिलों में जगह बनाई.
गुमराह (1963): – यह फिल्म उनके कैरियर की एक और उल्लेखनीय फिल्म रही.
हिमालय की गोद में (1965): – इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नामांकन मिला था.
माला सिन्हा अपनी विविध भूमिकाओं के लिए जानी जाती थीं. उन्होंने नायिका, दुखियारी पत्नी, और स्वतंत्र महिला जैसी भूमिकाएँ निभाईं. उन की अभिनय शैली में गहराई और संवेदनशीलता झलकती थी, जो दर्शकों को बांधे रखने में सफल होती थी.
माला सिन्हा ने नेपाली अभिनेता चिदंबर प्रसाद लोहानी से शादी की और उनकी एक बेटी है, प्रतिभा सिन्हा, जो खुद भी एक अभिनेत्री हैं. माला सिन्हा ने धीरे-धीरे फिल्मी दुनिया से दूरियां बना लीं, लेकिन उनकी फिल्मों और उनके योगदान को आज भी सराहा जाता है. माला सिन्हा भारतीय सिनेमा में अपने योगदान के लिए सदैव याद की जाएंगी. उनका सफर हिंदी सिनेमा की समृद्धि का प्रतीक है.
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परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोदकर
डॉ. अनिल काकोदकर भारत के एक प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक और भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं. उन्हें देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है. वे भारतीय परमाणु ऊर्जा अनुसंधान और विकास कार्यक्रम के प्रति अपने समर्पण और नेतृत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं.
अनिल काकोदकर का जन्म 11 नवंबर 1943 को महाराष्ट्र के बारव (अब साठे नगर) में हुआ था. उनकी शिक्षा प्राथमिक स्तर पर मुंबई में हुई. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मुंबई से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की और बाद में परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में अपनी पढ़ाई जारी रखी. डॉ. काकोदकर भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग में लंबे समय तक सक्रिय रहे और उन्हें परमाणु ऊर्जा को सुरक्षित और स्वदेशी बनाने के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण परियोजनाओं में अहम योगदान देने का श्रेय जाता है.
डॉ. काकोदकर ने भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को स्वदेशीकरण की दिशा में मजबूत बनाया. काकोदकर ने देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए डिजाइन और तकनीकी विकास को प्रोत्साहित किया. काकोदकर थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा पर रिसर्च के प्रबल समर्थक रहे हैं.. उनका मानना था कि भारत को थोरियम आधारित ऊर्जा तकनीकों को विकसित करना चाहिए, क्योंकि भारत में थोरियम का विशाल भंडार है, जो ऊर्जा के दीर्घकालिक स्रोत के रूप में कार्य कर सकता है.
वर्ष 1998 के पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में काकोदकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिसके तहत भारत ने परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को अंतिम रूप देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत को विदेशी परमाणु ईंधन और तकनीक की प्राप्ति में सहयोग मिला. डॉ. काकोदकर को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया है, जिनमें प्रमुख हैं: – पद्म विभूषण (2009), पद्म भूषण (1999), पद्म श्री (1998).
डॉ. अनिल काकोदकर ने अपने ज्ञान और अनुभव से भारतीय परमाणु क्षेत्र को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया है. वे युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनके नेतृत्व में, भारत ने न केवल परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया, बल्कि एक वैश्विक परमाणु शक्ति के रूप में अपनी पहचान भी बनाई. डॉ. काकोदकर का जीवन और कार्य भारत के परमाणु वैज्ञानिकों के लिए एक आदर्श हैं, और वे देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के प्रति अपने योगदान के लिए सदा याद किए जाएंगे.
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अभिनेता आरिफ ज़कारिया
आरिफ ज़कारिया एक प्रतिभाशाली भारतीय अभिनेता हैं, जो अपने विविध किरदारों और अभिनय की गहराई के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 11 नवंबर 1966 को मुंबई में हुआ था. वे थिएटर, टेलीविजन और फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए मशहूर हैं. ज़कारिया ने अपने कैरियर की शुरुआत रंगमंच से की और बाद में फिल्मों और टीवी सीरियलों में अभिनय किया.
आरिफ ज़कारिया ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1990 के दशक में की थी. उन्होंने कई लोकप्रिय फिल्मों और टीवी शो में काम किया है, जिनमें उनके किरदारों को सराहा गया है.
फिल्में: –
दरमियान (1997): – इस फिल्म में उन्होंने एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की भूमिका निभाई, जिसके लिए उनकी सराहना की गई.
ब्लैक फ्राइडे (2004): – यह फिल्म मुंबई में वर्ष 1993 के बम धमाकों पर आधारित थी, और इसमें आरिफ का काम महत्वपूर्ण था.
माई नेम इज खान (2010): – इस फिल्म में उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई.
काय पो छे! (2013): – एक और महत्वपूर्ण फिल्म जिसमें उनका अभिनय सराहा गया.
टीवी शो: –
चाणक्य: – इस ऐतिहासिक सीरियल में आरिफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
भारत एक खोज: – श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित इस शो में भी उन्होंने काम किया.
आरिफ ज़कारिया को उनके संवेदनशील अभिनय और किरदारों की गहराई के लिए जाना जाता है. वे अपने किरदारों में पूरी तरह डूब जाते हैं और हर भूमिका को जीवंत बना देते हैं. रंगमंच के अनुभव ने उनके अभिनय में निखार लाने में मदद की है.
आरिफ ज़कारिया का जीवन बेहद सादगीपूर्ण है, और वे अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने वाले कलाकार हैं. उन्होंने हमेशा ऐसे किरदार चुने हैं, जो चुनौतीपूर्ण रहे हों और उन्हें एक गंभीर अभिनेता के रूप में स्थापित किया है. आरिफ ज़कारिया का नाम भारतीय फिल्म और टीवी जगत में उनके बेहतरीन अभिनय और उनकी अलग पहचान के लिए जाना जाता है.
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अभिनेत्री दिशा परमार
दिशा परमार एक भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से टीवी सीरियल में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 11 नवंबर 1994 को दिल्ली में हुआ था. दिशा ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर मॉडल की और बाद में टेलीविज़न इंडस्ट्री में कदम रखा, जहां उन्होंने अपनी बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों का दिल जीता.
दिशा परमार ने वर्ष 2012 में टीवी सीरियल प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा से अपने कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने पंखुड़ी की भूमिका निभाई. इस शो में उनकी मासूमियत और अभिनय को दर्शकों ने खूब सराहा, और वे घर-घर में पहचानी जाने लगीं. इसके बाद, वर्ष 2021 में दिशा ने बड़े अच्छे लगते हैं 2 में प्रिया कपूर की भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने अभिनेता नकुल मेहता के साथ काम किया. यह जोड़ी दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय रही.
वर्ष 2021 में दिशा परमार ने गायक राहुल वैद्य से शादी की. दोनों ने कई टीवी शोज़ और म्यूजिक वीडियो में एक साथ काम किया है. दिशा की सादगी और आकर्षक व्यक्तित्व के कारण वे सोशल मीडिया पर भी लोकप्रिय हैं और उनकी बड़ी संख्या में प्रशंसक हैं. दिशा परमार का सफर टेलीविज़न इंडस्ट्री में एक सफल अभिनेत्री के रूप में उभरा है. उनकी भूमिकाएँ और अभिनय शैली उन्हें युवा दर्शकों के बीच विशेष स्थान दिलाती हैं.