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व्यक्ति विशेष

भाग – 317.

वनस्पति विज्ञानी पंचानन माहेश्वरी

पंचानन माहेश्वरी एक प्रसिद्ध भारतीय वनस्पति विज्ञानी थे, जिन्होंने पौधों के ऊतक संवर्धन और प्रजनन विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका जन्म 9 नवंबर 1904 को हुआ था और उन्होंने अपने शोध कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त की. माहेश्वरी का प्रमुख कार्य पौधों के अंगों के विकास और अंगी बीजों के गर्भाशय संबंधी अध्ययन पर केंद्रित था.

उन्होंने विशेष रूप से भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुकूल पौधों के टिशू कल्चर तकनीकों का विकास किया, जिससे पौधों के विकास और प्रजनन में क्रांति आई. उनके काम ने वनस्पति विज्ञान में नई तकनीकों को प्रोत्साहित किया और पौधों के ऊतक संवर्धन के क्षेत्र में नई दिशाएं प्रदान कीं.

माहेश्वरी को उनके वैज्ञानिक योगदानों के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए, और वे भारतीय वनस्पति समाज के संस्थापक सदस्य भी थे. उनकी मृत्यु 18 जून 1966 को हुई, लेकिन उनकी विरासत वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में आज भी प्रेरणादायक है.

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गणितज्ञ शकुन्तला देवी

शकुन्तला देवी, जिन्हें “मानव कंप्यूटर” के नाम से भी जाना जाता है, एक असाधारण भारतीय गणितज्ञ थीं जो अपनी जटिल गणितीय प्रतिभा के लिए विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी थीं. उनका जन्म 4 नवंबर 1929 को बेंगलुरु, भारत में हुआ था. शकुन्तला देवी ने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, फिर भी उन्होंने गणित के क्षेत्र में अपनी असाधारण क्षमता के बल पर विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित की.

उनकी योग्यताओं में बहुत तेजी से और सटीकता के साथ जटिल गणनाएं करना शामिल था. उन्होंने 1980 में दो 13-अंकीय संख्याओं का गुणन करके गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया. इस प्रदर्शन ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई और उन्हें गणित के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया।

शकुन्तला देवी ने गणित पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘फन विथ नंबर्स’, ‘एस्ट्रोलॉजी फॉर यू’, ‘पजल्स टू पजल यू’, और ‘मोर पजल्स टू पजल यू’ शामिल हैं. इन पुस्तकों में उन्होंने गणित को मजेदार और सुलभ बनाने की कोशिश की, जिससे ये सभी उम्र के पाठकों के बीच लोकप्रिय हुईं।

उन्होंने अपने जीवन में गणित के साथ-साथ अन्य विषयों में भी योगदान दिया, जिसमें ज्योतिष और कुकिंग भी शामिल हैं. शकुन्तला देवी का 21 अप्रैल 2013 को निधन हो गया, लेकिन उनकी उपलब्धियाँ और योगदान आज भी उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में याद करते हैं.

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अभिनेत्री तन्वी आज़मी

तन्वी आज़मी एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो अपने सशक्त अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 9 नवंबर 1960 को हुआ था और वे हिंदी फिल्मों और टेलीविजन के साथ-साथ मराठी और मलयालम फिल्मों में भी सक्रिय रही हैं. तन्वी का असली नाम सईदा खान है और वे मशहूर लेखक और कवि कैफ़ी आज़मी की बहू हैं. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर में कई चुनौतीपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, जिससे उन्होंने दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है.

उनकी प्रमुख फिल्मों में “पंचवटी” (1986), “अकेले हम अकेले तुम” (1995), “अंजुमन” (1986), और “बाजीराव मस्तानी” (2015) शामिल हैं. “बाजीराव मस्तानी” में उन्होंने बाजीराव की माँ राधाबाई का किरदार निभाया, जिसके लिए उन्हें काफी सराहना मिली और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।

तन्वी आज़मी को उनके दमदार अभिनय और गहरी समझ के लिए जाना जाता है, और वे भारतीय सिनेमा में महिला सशक्तिकरण की मिसाल मानी जाती हैं.

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अभिनेत्री पायल रोहतगी

पायल रोहतगी एक अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में अपनी भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 9 नवंबर 1984 को हैदराबाद में हुआ था और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. पायल ने कई सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लिया और मिस इंडिया 2000 प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया था, जहाँ उन्होंने अपनी पहचान बनाई.

पायल ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2002 में “ये क्या हो रहा है?” फिल्म से की. इसके बाद, उन्होंने “प्लान” (2004), “रक्त” (2004), और “36 चाइना टाउन” (2006) जैसी फिल्मों में भी काम किया. हालाँकि वे मुख्यधारा की फिल्मों में बड़े स्तर पर सफलता हासिल नहीं कर पाईं, लेकिन वे रियलिटी टीवी में अपनी उपस्थिति के लिए जानी जाती हैं.

पायल रोहतगी ने कई रियलिटी शो में हिस्सा लिया है, जैसे “बिग बॉस 2″, “नच बलिए 7”, और “फियर फैक्टर: खतरों के खिलाड़ी”. रियलिटी शो के माध्यम से उन्होंने काफी प्रसिद्धि पाई और अपने बेबाक अंदाज के लिए चर्चा में रहीं. पायल सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहती हैं और अपने विचारों को खुलकर साझा करती हैं.

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संस्कृत भाषा के पंडित गंगानाथ झा

पंडित गंगानाथ झा संस्कृत भाषा के महान विद्वान और भारतीय दर्शन के प्रसिद्ध ज्ञाता थे. उनका जन्म 25 सितंबर 1872 को मध्य प्रदेश के एक गाँव में हुआ था. उन्होंने संस्कृत, भारतीय दर्शन, वेद, और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और भारतीय दार्शनिक परंपराओं में अमूल्य योगदान दिया. उनकी विद्वता और शोध कार्यों के कारण उन्हें भारतीय विद्वानों में विशेष स्थान प्राप्त है.

गंगानाथ झा ने विभिन्न संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद और व्याख्या की, जिनमें मीमांसा, वेदांत, और न्याय दर्शन जैसे प्रमुख भारतीय दार्शनिक शास्त्र शामिल हैं. उन्होंने संस्कृत में कई ग्रंथों की टीकाएँ लिखीं और भारतीय तत्त्वज्ञान को आधुनिक विद्वानों और पाठकों के लिए सरल बनाया. उनकी प्रमुख कृतियों में “मीमांसा दर्शन” और “न्याय दर्शन” की टीकाएँ सम्मिलित हैं. उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन किया, जिससे भारतीय दर्शन को विश्व स्तर पर पहचान मिली.

गंगानाथ झा ने अपनी शैक्षणिक और विद्वतापूर्ण सेवाओं के कारण कई सम्मान प्राप्त किए. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी बने और उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन और संस्कृति के अध्ययन को बढ़ावा मिला. उनकी गहरी विद्वता और समर्पण के कारण उन्हें भारत के शीर्ष संस्कृत विद्वानों में गिना जाता है.

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स्वाधीनता सेनानी पूरन चन्द जोशी

पूरन चंद जोशी जिन्हें पी. सी. जोशी के नाम से भी जाना जाता है. वो एक प्रमुख भारतीय कम्युनिस्ट नेता और स्वाधीनता सेनानी थे. उनका जन्म 14 अप्रैल 1907 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था. जोशी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सचिव के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे.

पी. सी. जोशी ने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की और वहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विकास और स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे वर्ष 1935 – 47 तक पार्टी के महासचिव रहे. इस दौरान, उन्होंने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन को मजबूत किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया.

जोशी ने किसानों और मजदूरों के अधिकारों के लिए व्यापक स्तर पर काम किया और उन्होंने भारतीय समाज में समानता और न्याय के लिए संघर्ष किया. उनकी नेतृत्व शैली और दृष्टिकोण ने कई युवा कम्युनिस्टों को प्रेरित किया. पूरन चंद जोशी का निधन 9 नवंबर 1989 को हुआ. उनका जीवन और कार्य आज भी भारतीय राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

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राष्ट्रपति के. आर. नारायणन

कोचेरिल रामन नारायणन (के. आर. नारायणन) भारत के दसवें राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक पद संभाला. वे भारत के पहले दलित राष्ट्रपति थे और एक विद्वान, राजनयिक, और अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 27 अक्टूबर 1920 को केरल के त्रावणकोर (अब उत्तरी केरल) में एक निर्धन दलित परिवार में हुआ था. अपनी कड़ी मेहनत, दृढ़ता और विद्वता के चलते वे भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचे.

नारायणन ने मद्रास विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त की.  लंदन में उनकी पढ़ाई के दौरान प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हेरोल्ड लैस्की उनके शिक्षक थे, जिन्होंने नारायणन की विद्वता की सराहना की और उन्हें एक उत्कृष्ट छात्र बताया. नारायणन ने वर्ष 1949 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में प्रवेश किया. वे म्यांमार, जापान, यूके, थाईलैंड, और वियतनाम जैसे देशों में भारत के राजदूत के रूप में कार्यरत रहे. चीन में राजदूत के रूप में उनकी नियुक्ति बेहद महत्वपूर्ण मानी गई, खासकर जब वर्ष 1976 में दोनों देशों के बीच लंबे समय के बाद राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे.

नारायणन ने वर्ष 1984 में राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी के समर्थन से केरल के ओट्टापलम से सांसद चुने गए. वे राजीव गांधी सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, योजना और विदेश मामलों के राज्य मंत्री भी बने. वर्ष 1992 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने और वर्ष 1997 में देश के पहले दलित राष्ट्रपति बने. उनका कार्यकाल महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति पद की भूमिका को सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं रहने दिया, बल्कि कई मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र सोच को प्रकट किया. उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं के भीतर रहते हुए सामाजिक न्याय, लोकतंत्र, और मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई.

नारायणन ने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति गहरी निष्ठा रखी. उन्होंने कहा था कि भारत में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए. उनके कार्यकाल में वर्ष 2002 के गुजरात दंगे हुए, जिन पर उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी और एक नैतिक उदाहरण पेश करते हुए सरकार के कर्तव्यों पर सवाल उठाए .वे एक विद्वान व्यक्ति थे, जिन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था. उनकी रुचि साहित्य और संस्कृति में भी थी, और उन्होंने कई लेख लिखे जो आज भी अध्ययन का विषय हैं.

के. आर. नारायणन को उनके कार्यों, विचारधारा और दृढ़ता के लिए याद किया जाता है. वे भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों के प्रतीक माने जाते हैं. उनकी विनम्रता और निष्ठा के चलते उन्हें भारतीय लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ माना जाता है, और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं. के. आर. नारायणन का निधन 9 नवंबर 2005 को हुआ, और उन्हें पूरे देश में श्रद्धांजलि दी गई.

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हरगोविन्द खुराना

हरगोविन्द खुराना एक प्रमुख भारतीय-अमेरिकी जैव रसायनशास्त्री थे जिन्होंने वर्गीय विज्ञान और नोबेल पुरस्कार की श्रेय जीते. वे 9 जनवरी 1922 को पाकिस्तान के खुशाब जिले में पैदा हुए थे और 9 नवम्बर 2011 को बोस्टन, मासाचुसेट्स, संयुक्त राज्य अमेरिका में निधन हुआ.

हर गोबिंद खुराना ने डीओक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) की विशेष धारा और उसके कोड को खोजने में महत्वपूर्ण योगदान किया. उन्होंने जन्मसूत्रीय कोड (Genetic Code) के बारे में महत्वपूर्ण खोज की और यह प्रमाणित किया कि कैसे जीवों के जीवन प्रक्रियाओं के लिए विभिन्न उपकारक और अमिनो एसिड्स का उपयोग होता है.

हर गोबिंद खुराना को वर्ष 1968 में नोबेल रसायन शास्त्र का पुरस्कार मिला था, जिसके साथ ही वे इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक बने थे.

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