क्रांतिकारी प्रमथनाथ मित्रा
प्रमथनाथ मित्रा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रांतिकारी और प्रमुख नेता थे. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1853 को बंगाल में हुआ था. वह एक योग्य वकील, समाज सुधारक, और संगठनकर्ता थे, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे.
प्रमथनाथ मित्रा की प्रमुख उपलब्धियों में अनुशीलन समिति की स्थापना शामिल है, जो बंगाल में एक क्रांतिकारी संगठन था और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की योजना में शामिल था. उन्होंने वर्ष 1902 में अनुशीलन समिति की शुरुआत की, जो आगे चलकर बंगाल और भारत के अन्य हिस्सों में युवाओं को संगठित करने और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने का प्रमुख माध्यम बनी.
प्रमथनाथ मित्रा का उद्देश्य केवल ब्रिटिश शासन का विरोध ही नहीं था, बल्कि भारत के युवाओं को मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाना भी था ताकि वे स्वतंत्रता संग्राम के लिए पूरी तरह से तैयार हों. उनके संगठन का प्रभाव न केवल बंगाल में बल्कि पूरे भारत में पड़ा, और उनके मार्गदर्शन में अनेक युवा क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित हुए.
उनका निधन वर्ष 23 सितंबर 1910 में हुआ, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और योगदान को आज भी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है.
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बंगाली उपन्यासकार सुकुमार राय
सुकुमार राय बांग्ला साहित्य के एक विख्यात लेखक, कवि, चित्रकार और उपहासात्मक साहित्य के जनक माने जाते हैं. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1887 को कोलकाता में हुआ था. सुकुमार राय अपने हास्य, व्यंग्य, और नॉनसेंस साहित्य के लिए प्रसिद्ध थे और बंगाली बाल साहित्य में उनका योगदान अतुलनीय है. वे जाने-माने फिल्मकार सत्यजीत राय के पिता थे.
सुकुमार राय की सबसे प्रसिद्ध कृति “आबोल ताबोल” (Abol Tabol) है, जो हास्यपूर्ण और नॉनसेंस कविताओं का संग्रह है. इस संग्रह में उनकी लेखनी का जादू देखने को मिलता है, जहां बच्चों के लिए अनोखे और कल्पनात्मक चरित्र रचे गए हैं. इनकी कहानियां और कविताएं बांग्ला साहित्य में आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं और पाठकों को हंसी और प्रेरणा से भर देती हैं.
उन्होंने “हजबरल” (HaJaBaRaLa), “पगला दासू” (Pagla Dashu), और “लखोर बंधु” (Lakkhar Bondhu) जैसी लोकप्रिय रचनाएं भी लिखीं, जो बच्चों और बड़ों के बीच समान रूप से लोकप्रिय हैं. उनकी रचनाओं में सहज भाषा और सरल कथानक होने के बावजूद उनमें सामाजिक व्यंग्य और आलोचना भी दिखाई देती है, जो उनके लेखन को गहराई और अर्थ देती है.
सुकुमार राय का जीवन बहुत ही संक्षिप्त रहा; वे 10 सितंबर 1923 को केवल 35 वर्ष की आयु में कालाजार बीमारी के कारण चल बसे. लेकिन उनकी लेखनी का प्रभाव आज भी बंगाली साहित्य में जीवित है और उनकी रचनाओं को कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है.
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आचार्य नरेंद्र देव
आचार्य नरेंद्र देव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी नेता, शिक्षाविद और महान विचारक थे. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1889 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ था. आचार्य नरेंद्र देव भारतीय समाजवादी आंदोलन के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
वे महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, और राम मनोहर लोहिया के करीबी सहयोगी थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा के विकास में अग्रणी थे. आचार्य नरेंद्र देव भारतीय समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और समाजवादी सिद्धांतों को लेकर एक स्पष्ट और आदर्शवादी दृष्टिकोण रखते थे. उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया और कई बार जेल गए.
आचार्य नरेंद्र देव उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी अत्यधिक सम्मानित थे. वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) और लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षक रहे, और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने. वे अपने विचारों और सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान थे और उन्होंने भारत में एक अधिक समानतावादी और समाजवादी व्यवस्था के निर्माण का सपना देखा.
उनकी प्रमुख रचनाओं में भारतीय संस्कृति, बौद्ध धर्म, और समाजवादी सिद्धांतों पर आधारित किताबें शामिल हैं. उनका जीवन सादगी, आदर्शवाद और समर्पण का प्रतीक था. आचार्य नरेंद्र देव का निधन 19 फरवरी 1956 को हुआ, लेकिन उनकी विचारधारा और योगदान आज भी भारतीय समाज और राजनीति में आदर्श माने जाते हैं.
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भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर होमी जे. भाभा
प्रोफेसर होमी जहांगीर भाभा भारत के एक महान भौतिक विज्ञानी और भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई में एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था. भाभा ने भारत में परमाणु विज्ञान और अनुसंधान को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में सशक्त बना.
होमी भाभा ने अपनी पढ़ाई मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से की, जहां उन्होंने भौतिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त की. उनकी विशेष रुचि कण भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) में थी, और वे कॉस्मिक किरणों पर अपने शोध के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने ही पहली बार इस विषय में महत्वपूर्ण कार्य किया और भौतिक विज्ञान में योगदान देने वाले वैज्ञानिकों में अपना नाम स्थापित किया,
भारत में परमाणु विज्ञान की नींव रखने के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1945 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की. इसके बाद वर्ष 1954 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) की स्थापना की, जो मुंबई में स्थित है. भाभा का उद्देश्य भारत को एक स्वावलंबी और तकनीकी रूप से सशक्त राष्ट्र बनाना था, और उनकी योजना के तहत ही भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम शुरू हुआ.
भाभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अत्यधिक मान्यता मिली. वे इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और उनके नेतृत्व में भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर जोर दिया.
भाभा का जीवन असमय समाप्त हो गया जब 24 जनवरी 1966 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. इस दुर्घटना के कारणों को लेकर कई विवाद और अटकलें रहीं, लेकिन उनके निधन से भारत को बहुत बड़ी क्षति हुई. उनके योगदान के कारण, भारत उन्हें अत्यंत आदर और सम्मान के साथ स्मरण करता है.
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मध्य प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल भाई महावीर
भाई महावीर एक भारतीय राजनेता, शिक्षाविद और विचारक थे, जिन्होंने मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में सेवा की. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1922 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. भाई महावीर भारतीय जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बना) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सक्रिय सदस्य थे. वे अपने स्पष्ट विचारों और सिद्धांतों के लिए जाने जाते थे.
भाई महावीर ने अपनी शिक्षा लाहौर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राप्त की. वे राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में गहरी रुचि रखते थे और कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षण कार्य से जुड़े रहे. भाई महावीर ने भारतीय राजनीति में एक सक्रिय भूमिका निभाई और राज्यसभा के सदस्य भी रहे, जहां उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाई.
वर्ष 1998 – 2003 तक उन्होंने मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में सेवा की. इस पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई कार्य किए और सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सुधार के प्रयास किए. उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्यपाल के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह उच्च नैतिक मानकों के साथ किया और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया.
भाई महावीर का जीवन समाज और राष्ट्र के प्रति समर्पित रहा. 3 दिसंबर 2016 को उनका निधन हो गया, लेकिन भारतीय राजनीति और समाज में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.
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राजनीतिज्ञ प्रमोद महाजन
प्रमोद महाजन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रमुख नेता और प्रभावशाली राजनेता थे, जिन्हें उनकी रणनीतिक कुशलता और संगठनात्मक क्षमताओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1949 को महाराष्ट्र के महबूबनगर (अब तेलंगाना में) में हुआ था. प्रमोद महाजन भारतीय राजनीति में अपने करिश्माई व्यक्तित्व और आधुनिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे.
प्रमोद महाजन ने भारतीय जनता पार्टी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया. उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया, और उनके कार्यकाल के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में बड़े सुधार किए गए, जिससे भारत में टेलीकॉम और मोबाइल क्रांति आई. उन्होंने वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें उनकी योजना और रणनीति ने पार्टी को व्यापक समर्थन दिलाने में मदद की.
प्रमोद महाजन को उनकी राजनीतिक कुशलता, स्पष्ट वक्तृत्व कला, और नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता था. वे भाजपा के सबसे युवा और ऊर्जावान नेताओं में से एक थे और उन्हें पार्टी में “प्रबंधक” के रूप में देखा जाता था, जो कठिन समय में पार्टी को आगे ले जाने में सक्षम थे.
हालांकि, उनका जीवन असमय समाप्त हो गया. 22 अप्रैल 2006 को उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन ने उन्हें गोली मार दी थी, जिसके बाद गंभीर चोटों के कारण 3 मई 2006 को उनका निधन हो गया. उनकी असामयिक मृत्यु भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति थी, और आज भी उन्हें एक कुशल राजनेता, रणनीतिकार और भविष्यदृष्टा के रूप में याद किया जाता है.
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दयानंद सरस्वती
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती भारतीय संत, धार्मिक नेता, और समाज सुधारक थे. उन्होंने 19वीं सदी के मध्य और अंत में आर्य समाज की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार की प्रेरणा प्रदान करता था. स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी 1824 को टंकारा, गुजरात में हुआ था और उनका निधन 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर, राजस्थान में हुआ.
स्वामी दयानन्द ने वेदों के महत्व को पुनः प्रतिष्ठित किया और संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया. उन्होंने समाज में विश्वास का उत्थान किया और धर्मिक आदर्शों को प्रचारित किया. उनके विचारों में समाज के समर्थन, विश्वास, एकता, और स्वावलंबन को महत्व दिया गया.
स्वामी दयानन्द ने वेदों का अध्ययन किया और वेदांत फिलॉसफी की मानवता और धार्मिकता के सिद्धांतों को उन्नत किया. उनके प्रमुख में “सत्यार्थ प्रकाश” और “ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका” शामिल हैं. स्वामी दयानन्द का योगदान धार्मिक और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और उनके विचार और आदर्शों का अभी भी व्यापक प्रभाव है.
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ग़ज़ल और ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर
बेगम अख़्तर का असली नाम अख्तरी बाई था जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया की एक प्रतिष्ठित गायिका थीं, जिन्होंने ग़ज़ल, ठुमरी, और दादरा गायन शैली में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई. उन्हें “मल्लिका-ए-ग़ज़ल” के नाम से भी जाना जाता है. बेगम अख़्तर की गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और दिल को छू लेने वाली अदायगी का मेल था, जो उन्हें भारत की सबसे बड़ी गायिकाओं में से एक बनाता है.
बेगम अख़्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में हुआ था. उनका संगीत के प्रति लगाव बचपन से ही था, लेकिन उनके शुरुआती जीवन में कठिनाइयाँ भी रहीं. परिवार ने उनके गायन के कैरियर का विरोध किया, लेकिन अख्तरी बाई ने अपनी लगन और मेहनत से संगीत की दुनिया में प्रवेश किया.
बेगम अख़्तर ने उस्ताद इम्दाद खान, पटियाला घराने के उस्ताद अता मोहम्मद खान, और सरंगी वादक उस्ताद अहमद खान से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. उनके गुरु ने उन्हें खयाल और ठुमरी जैसी शास्त्रीय संगीत शैलियों में पारंगत किया, जिससे उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहरी पकड़ दिखती थी.
बेगम अख़्तर ने ग़ज़ल, ठुमरी और दादरा गायन में अपनी अलग पहचान बनाई. उनकी आवाज़ में दर्द और रोमांस का अद्वितीय मिश्रण था, जो श्रोताओं के दिलों तक पहुंचता था. वर्ष 1930 के दशक में उनकी गायकी ने लोकप्रियता हासिल की और जल्द ही वे ऑल इंडिया रेडियो पर गाने लगीं. उनके गाए ग़ज़लों और ठुमरियों ने उन्हें “ग़ज़ल की मल्लिका” का खिताब दिलाया.
प्रसिद्ध ग़ज़लें और ठुमरियाँ: –
ग़ज़ल: – “हमरी अटरिया पे आओ साँवरिया,” “ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,” “दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे”
ठुमरी: – “कतरा कतरा मिलती है,” “बाजूबंद खुल खुल जाए”.
बेगम अख़्तर ने कुछ फिल्मों में भी काम किया और गाने गाए. उनकी पहली फिल्म वर्ष 1933 में “एक दिन का बादशाह” थी. उन्होंने “मधुबन,” “रोटी,” और “मीराबाई” जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया. फिल्मों में अभिनय करने के बाद भी उनकी मुख्य पहचान ग़ज़ल और ठुमरी गायिका के रूप में बनी रही.
वर्ष 1945 में उन्होंने बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से विवाह किया, जिसके बाद उन्हें “बेगम अख़्तर” के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि शादी के बाद उन्होंने संगीत से थोड़ी दूरी बना ली, लेकिन संगीत के प्रति उनका प्रेम और श्रोताओं की माँग ने उन्हें फिर से मंच पर लाया.
बेगम अख़्तर को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें से प्रमुख हैं: –
वर्ष 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार,
वर्ष 1975 में पद्म श्री,
वर्ष 1975 में पद्म भूषण (मरणोपरांत)
30 अक्टूबर 1974 को लखनऊ में एक संगीत कार्यक्रम के दौरान बेगम अख़्तर बीमार हो गईं और कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया. संगीत की दुनिया को उनकी मौत से गहरा आघात पहुंचा, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी लोगों के दिलों में गूंजती रहती है.
बेगम अख़्तर की गायकी का भारतीय संगीत पर गहरा प्रभाव पड़ा है. उनकी ग़ज़लें और ठुमरियाँ आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी अद्वितीय शैली और गहरी संवेदनशीलता ने उन्हें भारतीय संगीत के इतिहास में अमर कर दिया है.
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अभिनेता विनोद मेहरा
विनोद मेहरा एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेता थे जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में अपने कैरियर के चरम पर हिंदी सिनेमा में अपनी एक विशेष पहचान बनाई. उनका जन्म 13 फरवरी 1945 को हुआ था और उनका निधन 30 अक्टूबर 1990 को हुआ था. विनोद मेहरा ने अपने कैरियर में विविध भूमिकाएँ निभाईं और उन्हें उनके द्वारा निभाई गई रोमांटिक और चरित्र भूमिकाओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.
उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1958 में बाल कलाकार के रूप में की थी, लेकिन वयस्क अभिनेता के रूप में उनकी पहली सफलता वर्ष 1970 के दशक की शुरुआत में आई. उन्होंने “अनुरोध”, “गृहप्रवेश”, “अमर दीप”, “स्वर्ग नरक”, “खून पसीना”, और “गोल माल” जैसी कई हिट फिल्मों में अभिनय किया।
विनोद मेहरा की निजी जिंदगी भी मीडिया में काफी चर्चित रही. उनकी तीन शादियाँ हुई थीं और उनके जीवन के अंतिम वर्षों में वे कुछ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे. उनका निधन हृदय गति रुकने से हुआ था. विनोद मेहरा को उनके योगदान के लिए हिंदी सिनेमा में आज भी याद किया जाता है.
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अभिनेता और निर्माता-निर्देशक वी शांताराम
वी. शांताराम भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे, जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में उनके अनोखे योगदान के लिए जाना जाता है. उनका पूरा नाम शांताराम राजाराम वंकुदरे था, और उनका जन्म 18 नवंबर 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था. शांताराम का फिल्मी कैरियर छह दशकों से अधिक लंबा था, जिसमें उन्होंने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
वी. शांताराम ने अपने कैरियर की शुरुआत मूक फिल्मों से की और धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा में एक अग्रणी निर्देशक बन गए. वर्ष 1929 में उन्होंने ‘अयोध्या का राजा’ बनाई, जो भारत की पहली बोलने वाली फिल्मों में से एक थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया, जो सामाजिक मुद्दों और नैतिकता पर आधारित थीं. उनकी फिल्में यथार्थवादी कथानकों, संवेदनशीलता, और तकनीकी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध थीं.
प्रमुख फिल्में: –
दो आँखे बारह हाथ (1957): – यह फिल्म एक आदर्शवादी जेलर की कहानी है, जो कैदियों को सुधारने की कोशिश करता है. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया और बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर अवार्ड मिला.
नवरंग (1959): – यह फिल्म रंगीन सिनेमैटोग्राफी और संगीत के लिए मशहूर है, जिसमें रंग और कला की सुंदरता को दर्शाया गया है.
झनक झनक पायल बाजे (1955): – यह एक संगीतमय नृत्य-आधारित फिल्म है, जिसने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की खूबसूरती को पर्दे पर पेश किया.
वी. शांताराम ने प्रभात फिल्म कंपनी की स्थापना की, जो भारतीय सिनेमा के पहले प्रमुख स्टूडियो में से एक था. बाद में, उन्होंने राजकमल स्टूडियो की भी स्थापना की, जहां कई अद्वितीय फिल्में बनीं. वे समाज में फैले अंधविश्वासों, दहेज प्रथा, जातिवाद, और गरीबों की दुर्दशा जैसे मुद्दों को अपनी फिल्मों के माध्यम से उठाते रहे.
वी. शांताराम को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार भी शामिल है, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान है. उनका निधन 30 अक्टूबर 1990 को हुआ, लेकिन उनके काम और सिनेमा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक अमर कलाकार बना दिया.