राजनीतिज्ञ घनश्यामभाई ओझा
घनश्यामभाई ओझा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिज्ञ और गुजरात के भूतपूर्व चौथे मुख्यमंत्री थे. वह 17 मार्च, 1972 से 17 जुलाई, 1973 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे.
घनश्यामभाई ओझा का जन्म 25 अक्टूबर 1911 को हुआ था. उनके पिता छोटालाल ओझा भावनगर के बड़े वकील हुआ करते थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के सदस्य थे और गुजरात के राजकोट क्षेत्र से लोकसभा सांसद रह चुके थे. उन्होंने वर्ष 1957 – 67 तक दूसरी और तीसरी लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया और वर्ष 1971 में पांचवी लोकसभा के लिए भी चुने गए.
वे गुजरात के चौथे मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्यरत रहे, और उन्होंने 17 मार्च 1972 से 17 जुलाई 1973 तक इस पद की जिम्मेदारी संभाली. इसके अलावा, घनश्यामभाई ओझा को औद्योगिक विकास, भूमि सुधार, और हरिजन उत्थान जैसे सामाजिक मुद्दों से गहरा लगाव था. उन्होंने गुजरात औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष के रूप में भी सेवाएं दीं और कई सामाजिक तथा औद्योगिक गतिविधियों में योगदान दिया.
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पार्श्वगायिका शारदा
पार्श्वगायिका शारदा राजन अयंगार, जिन्हें शारदा के नाम से जाना जाता है. वर्ष 1960 – 70 के दशक की एक प्रसिद्ध भारतीय गायिका थीं. शारदा की आवाज़ अपनी अनूठी शैली और विशिष्टता के लिए जानी जाती है.
शारदा का जन्म 25 अक्टूबर, 1937 को तमिलनाडु के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वह मुख्य रूप से अपने सुपरहिट गीत “तितली उड़ी, उड़ जो चली” (फिल्म सुरज, 1966) के लिए लोकप्रिय हुईं, जिसे संगीतकार शंकर-जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था, यह गीत उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गया और उन्हें संगीत जगत में एक खास मुकाम दिलाया,
शारदा को वर्ष 1969 में सुरज के इस गीत के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था. शंकर-जयकिशन के सहयोग से उन्होंने और भी कई गीत गाए, लेकिन उनके कैरियर की सबसे बड़ी सफलता इसी गाने के साथ आई. उनकी गायकी की विशेषता यह थी कि उनकी आवाज़ बाकियों से अलग और ताजगी भरी थी, जिसने उन्हें बाकी पार्श्वगायिकाओं से अलग खड़ा किया. हालांकि उनका कैरियर अधिक लंबा नहीं रहा, लेकिन उनकी आवाज़ की अनोखी गुणवत्ता ने उन्हें अमर बना दिया.
शारदा की अन्य लोकप्रिय प्रस्तुतियों में शामिल हैं “जब भी ये दिल उदास होता है” (फिल्म सीमा, 1971) और “दिल मेरा एक आस का पंछी” (फिल्म आया सावन झूम के, 1969).
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लेखिका मृदुला गर्ग
मृदुला गर्ग भारतीय लेखिका और उपन्यासकार हैं, जो हिंदी साहित्य में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं. उनका लेखन सामाजिक मुद्दों पर गहराई से केंद्रित है, और वे स्त्री विमर्श, पितृसत्ता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे विषयों पर निर्भीकता से लिखती हैं. उनकी भाषा सरल होते हुए भी प्रभावशाली होती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है.
मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938 को कोलकाता में हुआ था. उनके प्रमुख उपन्यासों में “चित्तकोबरा” (1979) और “वसंत के हत्यारे” जैसे कार्य शामिल हैं. चित्तकोबरा को विशेष रूप से सराहा गया था, हालांकि यह अपने समय में विवादास्पद भी रहा क्योंकि इसमें स्त्री की यौन इच्छाओं और स्वतंत्रता को खुलकर प्रस्तुत किया गया था. इसके बावजूद, यह उपन्यास हिंदी साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है.
मृदुला गर्ग ने उपन्यासों के अलावा कहानियां, नाटक, और निबंध भी लिखे हैं. उनके लेखन में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों की स्पष्ट झलक मिलती है, और वे अपने विचारों को निडर होकर प्रस्तुत करती हैं. उनके लेखन का दायरा बहुत व्यापक है, जिसमें स्त्री अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित विषय शामिल हैं.
उन्हें कई साहित्यिक पुरस्कार भी मिल चुके हैं, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार (2004) भी शामिल है, जो उन्हें उनके उपन्यास “कठगुलाब” के लिए मिला.
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अभिनेत्री नवनीत निशान
नवनीत निशान एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने टेलीविजन और फिल्म दोनों में काम किया है. वह वर्ष 1990 के दशक में लोकप्रिय टेलीविजन शो “तारा” में अपनी मुख्य भूमिका के लिए जानी जाती हैं, जिसने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई. यह शो भारत के शुरुआती प्रोग्रामों में से एक था, जिसमें एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर महिला की कहानी दिखाई गई, और नवनीत निशान की भूमिका ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय कर दिया. नवनीत निशान का जन्म 25 अक्टूबर 1965 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत फिल्म वारिस से वर्ष 1988 में की थी.
फ़िल्में: – दिलवाले, वारिस, जुदाई, हम हैं राही प्यार के, अकेले हम अकेले तुम. हां मैंने भी प्यार किया है, मेला माय नेम इज खान, झूठ बोले कौवा काटे , दिलवाले, और आशिक आवारा. उनके अभिनय कैरियर में कॉमेडी, ड्रामा, और गंभीर भूमिकाओं की विविधता रही है. उनकी प्रतिभा के कारण वे कई वर्षों तक मनोरंजन जगत में सक्रिय रहीं.
उन्होंने टेलीविजन में भी कई अन्य महत्वपूर्ण शो में अभिनय किया है और अपने कैरियर के दौरान कई यादगार किरदार निभाए हैं. नवनीत निशान का अभिनय कैरियर न केवल उनकी अभिनय क्षमता के लिए सराहा गया, बल्कि टेलीविजन में महिलाओं की नई छवि को भी स्थापित करने में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा.
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संत ज्ञानेश्वर
संत ज्ञानेश्वर भारत के एक महान संत, योगी, और कवि थे, जो महाराष्ट्र के भक्ति आंदोलन और वारकरी संप्रदाय के प्रमुख प्रवर्तकों में से एक माने जाते हैं. उनका असली नाम ज्ञानदेव था और वे अपने अद्भुत ज्ञान और दार्शनिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं. संत ज्ञानेश्वर ने बहुत कम आयु में ही आध्यात्मिक और साहित्यिक योगदान दिया, जो आज भी महाराष्ट्र और भारत के सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ “ज्ञानेश्वरी” है, जो भगवद गीता का मराठी भाषा में काव्यात्मक और सरल व्याख्या है. इसे ज्ञानेश्वरी या भावार्थ दीपिका भी कहा जाता है, और यह मराठी भाषा का पहला महत्वपूर्ण साहित्यिक कार्य माना जाता है. इसमें गीता के श्लोकों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है ताकि आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें.
इसके अलावा, संत ज्ञानेश्वर ने “अमृतानुभव” जैसी दार्शनिक कृति भी लिखी, जिसमें अद्वैत वेदांत और योग के सिद्धांतों की गहन विवेचना की गई है. वे योग और भक्ति मार्ग के पक्षधर थे और मानते थे कि ईश्वर की भक्ति के माध्यम से आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है.
संत ज्ञानेश्वर का जीवन बहुत छोटा था—उन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में समाधि ले ली. उनकी समाधि आलंदी, महाराष्ट्र में स्थित है, जो वारकरी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है. उनका योगदान केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी अद्वितीय रहा.
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गीतकार साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी, जिनका असली नाम अब्दुल हई था, उनका जन्म 8 मार्च, 1921 को पंजाब के लुधियाना में एक पंजाबी मुस्लिम परिवार में हुआ था. वह 20वीं सदी के सबसे प्रमुख उर्दू कवियों और भारतीय गीतकारों में से एक बन गए. उनकी मां सरदार बेगम ने घरेलू मुद्दों के कारण उनके पिता को छोड़ दिया, जिसके कारण साहिर का बचपन और युवावस्था चुनौतीपूर्ण रही. वह अपनी अनूठी कविता के लिए जाने जाते थे, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के साथ रोमांस का मिश्रण था, जिससे उन्हें युवाओं के दिलों को हिलाने की क्षमता और फिल्मों में उनके साहित्यिक योगदान के लिए “अनफवान-ए-शबाब का शायर” की उपाधि मिली.
साहिर की शिक्षा लुधियाना में हुई, जहाँ उन्होंने खालसा हाई स्कूल और बाद में सरकारी कॉलेज में पढ़ाई की. उनकी कविता और भाषणों ने उन्हें अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिय.। हालाँकि, उन्हें अपनी राजनीतिक गतिविधियों और प्रेम जीवन के कारण कॉलेज से निष्कासित होने सहित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उन्हें शुरुआत में वर्ष 1945 में अपने पहले प्रकाशित काम, “तल्खियां” (कड़वाहट) से पहचान मिली. भारत के विभाजन के बाद, साहिर लाहौर से दिल्ली चले गए और अंततः मुंबई में बस गए, जहां उन्होंने खुद को हिंदी फिल्म में एक सफल गीतकार के रूप में स्थापित किया.
साहिर लुधियानवी ने “ताज महल” (1964) और “कभी-कभी” (1977) में अपने गीतों के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. उन्हें वर्ष 1971 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. अपनी सफलता के बावजूद, साहिर फिल्म उद्योग में अपनी मांगों के कारण एक विवादास्पद व्यक्ति बने रहे, जैसे कि इस बात पर जोर देना कि उनके गीत संगीत से पहले लिखे जाएं और उन्हें महान गायिका लता से अधिक भुगतान किया जाए.
साहिर का प्रेम जीवन जटिल और प्रगाढ़ रिश्तों से भरा था, विशेषकर कवयित्री अमृता प्रीतम और गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ, लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की. उन्हें उनके गहरे और विचारोत्तेजक गीतों के लिए याद किया जाता है जो सामाजिक मुद्दों, व्यक्तिगत गुस्से और दार्शनिक चिंतन से संबंधित थे. 25 अक्टूबर 1980 को अचानक दिल का दौरा पड़ने से साहिर की मृत्यु हो गई और उन्हें मुंबई के जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया गया. उनकी विरासत उनकी मार्मिक और कालजयी कविता और गीतों के माध्यम से जारी है.
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विलियमसन ए. संगमा
विलियमसन ए. संगमा मेघालय के पहले मुख्यमंत्री थे और उन्हें राज्य के निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1919 को हुआ था और वे गारो जनजाति से ताल्लुक रखते थे. संगमा ने मेघालय की जनजातीय पहचान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया.
वह शुरुआत में असम की राजनीति में सक्रिय थे, लेकिन जब मेघालय को असम से अलग एक स्वायत्त राज्य के रूप में बनाने की मांग बढ़ी, तो उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया. संगमा की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कौशल ने उन्हें वर्ष 1972 में मेघालय के गठन के बाद राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया. उनके कार्यकाल में राज्य की विकास योजनाओं और जनजातीय लोगों के कल्याण के लिए अनेक प्रयास किए गए.
विलियमसन ए. संगमा मेघालय और गारो समुदाय के लिए एक प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं. उनका निधन 25 अक्टूबर 1990 को हुआ, लेकिन उनके योगदान को आज भी राज्य में सम्मान के साथ याद किया जाता है.
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साहित्यकार निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे. उनका जन्म 3 अप्रैल 1931 को शिमला में हुआ था. निर्मल वर्मा ने अपनी लेखनी से कहानी, निबंध, यात्रा वृत्तांत, और डायरी जैसी विधाओं में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई. उन्हें मुख्य रूप से एक कहानीकार के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका उपन्यास ‘वे दिन’ भी काफी चर्चित रहा.
निर्मल वर्मा के साहित्य में आंतरिक जगत की गहराइयों का अन्वेषण, परायेपन की भावना, और मानवीय संबंधों की जटिलताएँ प्रमुख विषय रहे हैं. उनकी रचनाएँ अक्सर विचारशीलता और गहन अनुभवों से परिपूर्ण होती हैं, जो पाठक को अपने आप से और अपने आस-पास की दुनिया से गहराई से जोड़ती हैं.
निर्मल वर्मा के प्रमुख कार्यों में ‘लाल टीन की छत’, ‘एक चिथड़ा सुख’, ‘अंतिम अरण्य’, और ‘खिले हुए वृक्ष के नीचे’ शामिल हैं. उनकी कहानियाँ और उपन्यास भारतीय साहित्य में अपनी अनूठी शैली और गहराई के लिए सराही जाती हैं.
निर्मल वर्मा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्म भूषण शामिल हैं. उनके निधन के बाद भी, उनका साहित्य अध्ययन और अनुसंधान का विषय बना हुआ है.
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अभिनेता जसपाल भट्टी
जसपाल भट्टी एक प्रसिद्ध भारतीय टेलीविजन और फिल्म अभिनेता थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी सटायरिकल हास्य शैली के लिए जाना जाता था. वे वर्ष 1980- 90 के दशक में अपने टीवी शो ‘फ्लॉप शो’ और ‘उल्टा पुल्टा’ के माध्यम से घर-घर में लोकप्रिय हुए. इन शोज में उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं और विसंगतियों को हास्य के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को न केवल हंसाया बल्कि सोचने पर भी मजबूर किया.
जसपाल भट्टी का जन्म 03 मार्च 1955 को अमृतसर में हुआ था और उनका निधन 25 अक्टूबर 2012 को हुआ. भट्टी की हास्य शैली विशेष रूप से उनके समय की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों पर तीखी टिप्पणी प्रस्तुत करती थी. उनके हास्य में व्यंग्य का ऐसा तत्व था जो आम आदमी की दैनिक चुनौतियों और विडम्बनाओं को उजागर करता था.
उन्होंने न केवल टेलीविजन पर बल्कि कई हिंदी और पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया. जसपाल भट्टी की अचानक मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और समकालीन हास्य अभिनेताओं को गहरा दुःख पहुंचाया. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका काम और उनकी शैली भारतीय हास्य कला के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद की जाती है. उनके काम ने उन्हें भारतीय हास्य के एक अमर चरित्र के रूप में स्थापित किया.
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अन्य: –
- गिरफ्तार किया: – 25 अक्टूबर 1924 को ब्रिटिश अधिकारियों ने सुभाषचंद्र बोस को गिरफ्तार कर 2 साल के लिए जेल भेजा.
- पहले आम चुनाव की शुरूआत: – 25 अक्टूबर 1951 को भारत में पहले आम चुनाव की शुरूआत हुई थी.
- पहले स्वदेशी टैंक ‘विजयंत’ का निर्माण: – 25 अक्टूबर 1964 को अवडी (चेन्नई) कारखाने में पहले स्वदेशी टैंक ‘विजयंत’ का निर्माण किया गया था.
- संयुक्त राष्ट्र के 50वें वर्षगांठ सत्र को संबोधित: – 25 अक्टूबर 1995 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र के 50वें वर्षगांठ सत्र को संबोधित किया.
5 . भंडारी को छह माह की सज़ा: – 25 अक्टूबर 2008 को सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी को छह माह की सज़ा सुनाई गई