बहादुर शाह ज़फ़र
बहादुर शाह ज़फ़र भारत के अंतिम मुग़ल सम्राट थे और वर्ष 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विद्रोहियों के प्रतीकात्मक नेता माने गए थे. उनका पूरा नाम अबू ज़फर सिराजुद्दीन मोहम्मद बहादुर शाह था. वर्ष 1837 में उनके पिता अकबर शाह II की मृत्यु के बाद उन्होंने दिल्ली के सम्राट का पद ग्रहण किया, लेकिन उनकी वास्तविक शक्ति नाममात्र की थी, क्योंकि उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण दिल्ली और पूरे भारत पर हो चुका था.
बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्तूबर, 1775 में हुआ था. उनके पिता अकबर शाह द्वितीय और माँ लालबाई थीं. वर्ष 1857 के विद्रोह में, भारतीय सैनिकों ने उन्हें अपना नेता घोषित किया, और बहादुर शाह ज़फ़र को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का चेहरा बनाया गया. हालाँकि उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया, पर उनकी सैन्य और राजनीतिक शक्ति सीमित थी, और विद्रोह अंततः विफल हो गया. विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह ज़फ़र को गिरफ्तार कर लिया और उन पर मुकदमा चलाया गया. वर्ष 1858 में उन्हें निर्वासित कर बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के रंगून भेज दिया गया, जहाँ वर्ष 07 नवंबर 1862 को उनका निधन हुआ था.
बहादुर शाह ज़फ़र एक कुशल कवि भी थे, और उर्दू में उनकी कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हैं. उनकी कविताओं में दुःख, पीड़ा, और उनके साम्राज्य के अंत की गहरी भावना दिखाई देती है। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है:
“हमारी थी जो दास्तां वो अश्क़ बन के रह गई,
दिल-ए-हासिल का क्या करें, जबतक ज़िंदगी रह गई।”
उनकी ग़ज़लों और कविताओं में उस दर्द की अभिव्यक्ति है, जो उन्होंने अपने साम्राज्य के पतन और अपने अंतिम दिनों में निर्वासन में महसूस किया.
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राजनीतिज्ञ प्रेमनाथ डोगरा
प्रेमनाथ डोगरा एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेता थे. वे जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक थे, जो एक राजनीतिक संगठन था जिसने जम्मू क्षेत्र के लिए समान अधिकारों और जम्मू के लोगों के प्रतिनिधित्व की मांग की थी. डोगरा का राजनीतिक कैरियर उस समय के दौरान खासतौर से महत्वपूर्ण था जब जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहे थे.
उन्होंने जम्मू क्षेत्र के लोगों की आवाज को मजबूती से उठाया और क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए काम किया। प्रेमनाथ डोगरा का योगदान जम्मू और कश्मीर के इतिहास और उसके राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण रहा है. वे एक राजनीतिक विचारक के रूप में भी जाने जाते थे जिन्होंने क्षेत्र के विकास और लोगों के कल्याण के लिए कई पहल की.
उनका कार्य और विचारधारा आज भी जम्मू क्षेत्र के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उनके योगदान को कई सम्मान और स्मारकों के माध्यम से याद किया जाता है.
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राजनीतिज्ञ अशोक मेहता
अशोक मेहता भारतीय राजनीति के एक प्रमुख समाजवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे. वह स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे और भारतीय समाजवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने देश की राजनीति में विशेष रूप से अपने समाजवादी विचारों और दृष्टिकोण के कारण एक पहचान बनाई.
अशोक मेहता का जन्म 24 अक्टूबर 1911 को सूरत, गुजरात में हुआ था. वह युवा अवस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय रहे. मेहता ने समाजवादी विचारधारा को अपनाया और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (CSP) के संस्थापक सदस्यों में से एक बने.
अशोक मेहता भारतीय समाजवाद के प्रमुख प्रवक्ताओं में से थे और उन्होंने समाजवाद को भारत में लोकप्रिय बनाने के लिए कई प्रयास किए. वर्ष 1940 के दशक में, उन्होंने समाजवादी दल का गठन किया और भारतीय राजनीति में एक प्रमुख समाजवादी नेता के रूप में उभरे. उनका मानना था कि समाजवाद के जरिए देश में आर्थिक और सामाजिक समानता लाई जा सकती है.
अशोक मेहता को उनके विचारों के लिए जाना जाता था, जिसमें उन्होंने योजनाओं और विकास की प्रक्रिया में राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने भारतीय योजना आयोग में भी भूमिका निभाई और देश की योजना और विकास नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
वर्ष 1950 के दशक में, उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) की स्थापना की, जो कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के विघटन के बाद बनी थी. उन्होंने भूमि सुधार, श्रमिकों के अधिकार, और सामाजिक समानता जैसे मुद्दों पर काम किया. वर्ष 1967 में, उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार में उप प्रधानमंत्री का पद भी संभाला.
अशोक मेहता को पंचायती राज संस्थाओं के पुनर्गठन की दिशा में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. वर्ष 1977 में, उन्होंने अशोक मेहता समिति का नेतृत्व किया, जिसने द्वि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की सिफारिश की थी. इस समिति ने ग्राम पंचायतों को अधिक शक्ति देने और जिला स्तर पर राजनीतिक विकेंद्रीकरण का सुझाव दिया था. उनके सुझावों ने पंचायती राज व्यवस्था के ढांचे को नया रूप देने में अहम भूमिका निभाई.
वर्ष 1984 में अशोक मेहता का निधन हो गया, लेकिन भारतीय राजनीति में समाजवाद और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में उनके योगदान को आज भी सराहा जाता है.
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स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, और आजाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी – INA) की एक उच्चस्तरीय अधिकारी थीं. उन्हें “कैप्टन लक्ष्मी” के नाम से जाना जाता है और वह सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजिमेंट की कमांडर थीं. लक्ष्मी सहगल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आजादी के बाद भी सामाजिक सेवा के कार्यों में सक्रिय रहीं.
लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था. उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था. उनके पिता एस. स्वामीनाथन एक वकील थे और उनकी मां अम्मुकुट्टी एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. लक्ष्मी सहगल ने मेडिसिन (चिकित्सा) की पढ़ाई की और एक प्रशिक्षित डॉक्टर बनीं. उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की और बाद में स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में काम किया.
वर्ष 1940 के दशक में लक्ष्मी सहगल सिंगापुर गईं, जहाँ उनकी मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई. बोस ने उन्हें आजाद हिंद फौज (INA) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, और लक्ष्मी ने बिना किसी हिचकिचाहट के इसे स्वीकार कर लिया. वर्ष 1943 में, सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजिमेंट की स्थापना की, जो कि आजाद हिंद फौज की महिला सैनिकों की इकाई थी. लक्ष्मी सहगल को इस रेजिमेंट की कमांडर नियुक्त किया गया, और उन्होंने “कैप्टन लक्ष्मी” के नाम से ख्याति प्राप्त की. यह रेजिमेंट अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार की गई थी, और इसकी महिला सैनिकों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अदम्य साहस दिखाया.
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद, लक्ष्मी सहगल ने कानपुर में चिकित्सा सेवाओं का कार्य शुरू किया और गरीबों और शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सेवा प्रदान की. वह राजनीति में भी सक्रिय रहीं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ीं. वर्ष 2002 में, उन्होंने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्होंने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के खिलाफ चुनाव लड़ा.
स्वतंत्रता के बाद लक्ष्मी सहगल ने चिकित्सा क्षेत्र में गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. वह कानपुर में लंबे समय तक गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करती रहीं. उनकी सामाजिक सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिले. वर्ष 1998 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
लक्ष्मी सहगल का 23 जुलाई 2012 को 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनकी देशभक्ति, समाज सेवा, और साहसिक जीवन के कारण वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय समाज में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनीं.
लक्ष्मी सहगल का जीवन भारतीय महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेती थीं बल्कि आजादी के बाद भी देश की सेवा करती रहीं.
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अभिनेता जीवन
जीवन जिनका पूरा नाम ओंकार नाथ धर था, एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जिन्होंने बॉलीवुड में खलनायक के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई. उनका जन्म 24 अक्टूबर 1915 को श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख अभिनेता थे, जिन्होंने अपने अद्वितीय अभिनय शैली और खलनायकी के लिए व्यापक रूप से प्रशंसा प्राप्त की.
जीवन का जन्म एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था. उनके पिता का निधन तब हो गया था जब वे बहुत छोटे थे, जिससे उनका बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा. जीवन ने अपना कैरियर मुंबई में शुरू किया, जहाँ वे फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत थे.
जीवन ने 1935 में अपनी पहली फिल्म ‘फैशनेबल इंडिया’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए, लेकिन उन्हें असली पहचान 1940 -50 के दशक में मिली जब उन्होंने कई फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाईं.
जीवन ने अपने कैरियर में लगभग 300 फिल्मों में काम किया. उनकी कुछ प्रमुख फिल्में और भूमिकाएं इस प्रकार हैं: –
अमर अकबर एंथनी (1977): – इस फिल्म में जीवन ने ‘रॉबर्ट’ का यादगार किरदार निभाया था.
धरम वीर (1977): – इस फिल्म में भी उनकी खलनायकी की अदाकारी को खूब सराहा गया.
जॉनी मेरा नाम (1970): – इसमें उन्होंने ‘हीरा’ की भूमिका निभाई थी.
नगीना (1986): – इस फिल्म में उन्होंने ‘भैरवनाथ’ का महत्वपूर्ण किरदार निभाया.
जीवन की अभिनय शैली बेहद प्रभावशाली थी. उनकी आवाज, चेहरे के भाव और संवाद अदायगी ने उन्हें बॉलीवुड का एक प्रमुख खलनायक बना दिया. वे खलनायकी के साथ-साथ हास्य भूमिकाओं में भी नजर आए और दर्शकों को प्रभावित किया.
जीवन को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनके अभिनय को सराहा गया और वे भारतीय सिनेमा के महान खलनायकों में से एक माने जाते हैं. जीवन का विवाह कंवल कौर से हुआ था और उनके तीन बेटे और एक बेटी थे. उनके बेटे कर्ण जीवन ने भी फिल्म उद्योग में अपने पैर जमाए.
जीवन का निधन 10 जून 1987 को हुआ. उनके निधन के बाद भी उनकी अदाकारी और फिल्मों का जादू दर्शकों के बीच कायम है. जीवन का योगदान भारतीय सिनेमा में अद्वितीय है. वे अपने खलनायक किरदारों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे और उनका नाम भारतीय फिल्म उद्योग के इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा.
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कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण
आर. के. लक्ष्मण (रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण) भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित कार्टूनिस्टों में से एक थे. वह अपनी व्यंग्यात्मक और सामाजिक टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे और विशेष रूप से उनके द्वारा बनाया गया किरदार “कॉमन मैन” (आम आदमी) भारतीय समाज का प्रतीक बन गया. लक्ष्मण की कार्टून कला ने भारतीय राजनीति, समाज और आम लोगों की समस्याओं को अनोखे और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया.
आर. के. लक्ष्मण का जन्म 24 अक्टूबर 1921 को मैसूर में हुआ था. उनके भाई आर. के. नारायण, प्रसिद्ध लेखक और “मालगुड़ी डेज़” जैसी पुस्तकों के रचनाकार थे. लक्ष्मण ने बचपन से ही कला और चित्रांकन में गहरी रुचि दिखाई. वह अपने स्कूली दिनों में दीवारों पर और अपनी किताबों के किनारों पर स्केच बनाया करते थे. उनके द्वारा स्कूली पाठ्यपुस्तकों में बनाए गए चित्र यह दर्शाते थे कि वह कितना बड़ा कार्टूनिस्ट बनने वाले हैं.
हालांकि, लक्ष्मण को मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला नहीं मिला, लेकिन इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर नहीं हुआ. उन्होंने स्वाध्याय के माध्यम से खुद को प्रशिक्षित किया और कार्टूनिस्ट बनने के अपने सपने को साकार किया.
लक्ष्मण ने अपने कैरियर की शुरुआत फ्रीलांस कार्टूनिस्ट के रूप में की थी. उन्होंने स्थानीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कार्टून बनाने का काम शुरू किया. उनका पहला प्रमुख काम मुंबई स्थित “द फ्री प्रेस जर्नल” के लिए था, जहाँ उन्होंने कुछ समय के लिए बाल ठाकरे (जो बाद में शिवसेना के संस्थापक बने) के साथ काम किया. हालांकि, लक्ष्मण को असली पहचान और प्रसिद्धि तब मिली जब उन्होंने “द टाइम्स ऑफ इंडिया” के लिए काम करना शुरू किया. वहाँ उन्होंने अपने प्रसिद्ध कार्टून कॉलम “यू सैड इट” (You Said It) की शुरुआत की, जो दशकों तक प्रकाशित होता रहा. इस कॉलम में उनके “कॉमन मैन” के पात्र के माध्यम से भारतीय राजनीति और समाज की स्थिति पर व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ की जाती थीं.
आर. के. लक्ष्मण का सबसे प्रसिद्ध योगदान “कॉमन मैन” का चरित्र है. यह एक साधारण भारतीय आदमी का प्रतीक है, जो देश के राजनीतिक और सामाजिक हालातों को बगैर किसी टिप्पणी के देखता रहता है. सफेद धोती-कुर्ता पहने, गंजे सिर और मोटे चश्मे वाला यह चरित्र भारतीय मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है. कॉमन मैन कभी कुछ नहीं कहता, सिर्फ घटनाओं का मूक दर्शक होता है, लेकिन उसके माध्यम से लक्ष्मण सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणियाँ करते थे. यह पात्र भारतीय जनता के लिए एक आइकन बन गया और इसने लक्ष्मण को व्यापक प्रसिद्धि दिलाई. आर. के. लक्ष्मण के कार्टून मुख्य रूप से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होते थे. उनके कार्टूनों में हास्य, व्यंग्य और सच्चाई का अनूठा मिश्रण था. उन्होंने भारतीय नेताओं, नौकरशाही, भ्रष्टाचार, और आम आदमी की कठिनाइयों पर कई कार्टून बनाए.
लक्ष्मण के कार्टून भारतीय समाज में चल रहे बदलावों, राजनीतिक घोटालों, और सामाजिक मुद्दों पर बहुत ही चुटीले और व्यंग्यात्मक तरीके से प्रतिक्रिया देते थे. उनके कार्टून कभी किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के पक्षधर नहीं रहे; उन्होंने सभी पक्षों की आलोचना की और हमेशा निष्पक्ष रहे.
लक्ष्मण को पद्म भूषण (1973) और पद्म विभूषण (2005) से सम्मानित किया गया. वर्ष 1984 में उन्हें रामन मैगसेसे पुरस्कार मिला, जो एशिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है. उन्हें भारतीय कला और कार्टून की दुनिया में उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया. आर. के. लक्ष्मण ने भारतीय टेलीविजन पर भी काम किया और उनके कार्टून पात्रों पर आधारित “मालगुड़ी डेज़” को दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया, जो एक अत्यधिक लोकप्रिय शो बना.
लक्ष्मण का निधन 26 जनवरी 2015 को पुणे में हुआ. उनके निधन के साथ भारतीय कार्टून और व्यंग्य कला के एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय पत्रकारिता और समाज में जीवित है. उनके कार्टून भारतीय जनमानस में गहराई से बसे हुए हैं और वह आज भी एक प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.
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अंतरिक्ष वैज्ञानिक कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन
डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन एक प्रतिष्ठित भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और भारत के अंतरिक्ष मिशनों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. डॉ. कस्तूरीरंगन भारत के कई अंतरिक्ष अभियानों और उपग्रहों के विकास में शामिल रहे हैं और वह भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में एक प्रतिष्ठित नाम हैं.
कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन का जन्म 24 अक्टूबर 1940 को केरल के एर्नाकुलम जिले में हुआ था/ उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा फिजिक्स (भौतिकी) में की और इसके बाद अंतरिक्ष विज्ञान और इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल की/ उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से खगोलभौतिकी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की/
डॉ. कस्तूरीरंगन वर्ष 1994 – 2003 तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष रहे. इस दौरान, उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक नई दिशा दी और ISRO को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई. उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशनों का सफलतापूर्वक संचालन हुआ.
उनके नेतृत्व में ISRO ने भारत के पहले पूर्णत स्वदेशी उपग्रह लॉन्च वाहन (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) का सफल प्रक्षेपण किया. उनके कार्यकाल के दौरान ISRO ने कई दूरसंचार, मौसम, और पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का प्रक्षेपण किया, जिनमें इन्सैट (INSAT) और IRS (Indian Remote Sensing) सैटेलाइट प्रमुख हैं. उनके नेतृत्व में ISRO ने चंद्रमा और मंगल ग्रह के अन्वेषण के लिए मिशनों की नींव रखी, जिनमें चंद्रयान और मंगलयान परियोजनाएं शामिल हैं.
डॉ. कस्तूरीरंगन ने PSLV और GSLV जैसे लॉन्च वाहनों के सफल प्रक्षेपण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में स्वदेशी लॉन्च क्षमता का विकास हुआ. उन्होंने भारत के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम को आगे बढ़ाया और चंद्रयान-1 मिशन की परिकल्पना की, जो भारत का पहला चंद्र अन्वेषण मिशन था.
कस्तूरीरंगन ने इन्सैट और IRS उपग्रह श्रृंखलाओं के विकास का नेतृत्व किया, जिसने भारत के दूरसंचार, मौसम पूर्वानुमान, और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में क्रांति ला दी. वह यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं और उन्होंने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए.
वर्ष 2017 में उन्हें भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) तैयार करने के लिए गठित समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया था. उनकी अगुवाई में तैयार की गई नीति को वर्ष 2020 में लागू किया गया, जो भारतीय शिक्षा प्रणाली में बड़े सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
डॉ. कस्तूरीरंगन को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है, जिनमें प्रमुख हैं: –
पद्मश्री (1982),
पद्मभूषण (1992),
पद्मविभूषण (2000).
इसके अलावा, वह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के सदस्य और फेलो रहे हैं. उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान में उनके योगदान के लिए दुनिया भर में सम्मानित किया गया है.
डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं. उनके नेतृत्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनाने में मदद की. उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण ISRO ने न केवल तकनीकी उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए.
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अभिनेत्री मल्लिका शेरावत
मल्लिका शेरावत (असली नाम: रीमा लांबा) एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो अपनी बोल्ड भूमिकाओं और ग्लैमरस छवि के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने बॉलीवुड में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है. मल्लिका शेरावत का नाम बॉलीवुड की सबसे विवादास्पद और चर्चा में रहने वाली अभिनेत्रियों में शुमार किया जाता है, खासकर उनकी फिल्मों और बोल्ड ऑन-स्क्रीन अवतारों के कारण.
मल्लिका शेरावत का जन्म 24 अक्टूबर 1976 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था. उनका असली नाम रीमा लांबा है. उन्होंने मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की. मल्लिका ने अपने फिल्मी कैरियर से पहले मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा और विज्ञापनों में काम किया.
मल्लिका ने अपने परिवार से अलग होकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा. उनका मानना था कि नाम बदलने से उन्हें पहचान बनाने में मदद मिलेगी, इसलिए उन्होंने अपना नाम “मल्लिका शेरावत” रखा. “मल्लिका” का मतलब है रानी, और “शेरावत” उनकी मां का उपनाम है, जिसे उन्होंने अपनाया.
मल्लिका शेरावत ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2002 में फिल्म “जीना सिर्फ मेरे लिए” में एक छोटी सी भूमिका से की, लेकिन उन्हें असली पहचान वर्ष 2003 में आई फिल्म “ख्वाहिश” से मिली. इस फिल्म में उन्होंने बोल्ड सीन दिए, जिससे वह चर्चा में आ गईं. हालांकि, वर्ष 2004 की फिल्म “मर्डर” ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. इस फिल्म में उनके द्वारा निभाई गई बोल्ड और ग्लैमरस भूमिका ने उन्हें एक बड़ी पहचान दी और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. मल्लिका शेरावत ने अपने कैरियर में कई बोल्ड और ग्लैमरस भूमिकाएँ निभाई हैं.
प्रमुख फिल्में: –
“मर्डर” (2004): – इस फिल्म ने मल्लिका को बॉलीवुड में स्थापित कर दिया. उनके और इमरान हाशमी के बीच के बोल्ड सीन काफी चर्चा में रहे.
“प्यार के साइड इफेक्ट्स” (2006): – इस रोमांटिक कॉमेडी फिल्म में उन्होंने राहुल बोस के साथ काम किया, और यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही.
“वेलकम” (2007): – यह कॉमेडी फिल्म मल्लिका के कैरियर की एक और हिट फिल्म थी, जिसमें उन्होंने अक्षय कुमार और नाना पाटेकर जैसे सितारों के साथ काम किया.
“हिस्स” (2010): – इस फिल्म में उन्होंने नागिन का किरदार निभाया. यह फिल्म हॉरर-थ्रिलर शैली की थी और इसमें मल्लिका का एक अलग रूप देखने को मिला.
“डर्टी पॉलिटिक्स” (2015): – इस फिल्म में मल्लिका ने एक राजनीतिक ड्रामा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने अनवर लाल की भूमिका निभाई.
मल्लिका शेरावत ने न सिर्फ बॉलीवुड में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई. उन्होंने कुछ हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया, जिनमें “द मिथ” (2005) प्रमुख है, जिसमें उन्होंने जैकी चान के साथ स्क्रीन साझा की. मल्लिका ने अंतरराष्ट्रीय रेड कार्पेट इवेंट्स में भी हिस्सा लिया, खासकर कान्स फिल्म फेस्टिवल में, जहां उनकी मौजूदगी हमेशा आकर्षण का केंद्र बनी रही.
उन्होंने “पॉलिटिक्स ऑफ लव” (2011) जैसी हॉलीवुड फिल्मों में भी अभिनय किया, जो अमेरिकी राजनीति पर आधारित एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म थी. मल्लिका ने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को बढ़ाने के लिए कई बड़े इवेंट्स और सोशल इवेंट्स में हिस्सा लिया.
मल्लिका शेरावत की छवि हमेशा से ही बोल्ड और विवादित रही है. उनकी फिल्मों में उनकी बोल्डनेस और ग्लैमर ने उन्हें विवादों का केंद्र बना दिया, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है. वह न केवल एक अभिनेत्री के रूप में, बल्कि एक मजबूत और स्वतंत्र महिला के रूप में भी जानी जाती हैं.
मल्लिका अपने निजी जीवन को लेकर भी चर्चा में रही हैं, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तिगत मामलों को हमेशा गोपनीय रखा है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि वह अपने कैरियर को प्राथमिकता देती हैं और अपने लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण मानती हैं.
मल्लिका शेरावत ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी रुचि दिखाई है. उन्होंने महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है. वह महिला सुरक्षा और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर भी मुखर रही हैं.
मल्लिका शेरावत ने अपने कैरियर में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उनकी अद्वितीय छवि और अभिनय ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक विशिष्ट स्थान दिलाया. उन्होंने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाई है और वह हमेशा अपनी बोल्ड और निडर छवि के लिए जानी जाएंगी.
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गायक मन्ना डे
मन्ना डे जिनका असली नाम प्रबोध चंद्र डे था, भारतीय संगीत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय गायकों में से एक थे. उनका जन्म 1 मई 1919 को कोलकाता में हुआ था, और उन्होंने हिंदी और बंगाली फिल्मों के लिए कई अमर गीत गाए. मन्ना डे को विशेष रूप से उनकी शास्त्रीय संगीत पर आधारित गायकी के लिए सराहा जाता था, लेकिन उनकी आवाज में वह विशेष विविधता थी जो हर तरह के गीत को बखूबी गा सकते थे.
मन्ना डे की कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ में “ऐ मेरे प्यारे वतन”, “जिंदगी कैसी है पहेली”, “लागा चुनरी में दाग”, “पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई” शामिल हैं. इन गीतों में उनकी गायकी की गहराई और उनके संगीत की समझ को देखा जा सकता है.
मन्ना डे ने अपने कैरियर में कई पुरस्कार जीते, जिसमें पद्म श्री (1971) और पद्म भूषण (2005) शामिल हैं, जो भारत सरकार द्वारा दिए गए उच्चतम नागरिक सम्मान हैं. मन्ना डे का निधन 24 अक्टूबर 2013 को हुआ था. उनका संगीत भारतीय सिनेमा और उसके दर्शकों के लिए एक अमूल्य धरोहर है, और उनकी आवाज आज भी कई संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती है.
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ठुमरी गायिका गिरिजा देवी
गिरिजा देवी एक भारतीय ठुमरी गायिका थीं, जिन्हें भारतीय क्लासिकल संगीत की बनारस घराने की प्रमुख हस्तियों में गिना जाता है. उनका जन्म 8 मई 1929 को हुआ था और उनका निधन 24 अक्टूबर 2017 को हुआ. गिरिजा देवी ने ठुमरी के अलावा, ख्याल, चैती, कजरी, और होरी जैसी विधाओं में भी गायन किया और इन्हें अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किया.
उनकी गायन शैली में उनके गहरे भावुक स्वर और शास्त्रीय संगीत के प्रति उनकी गहरी समझ झलकती थी. गिरिजा देवी को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण शामिल हैं.
गिरिजा देवी का निधन 24 अक्टूबर 2017 को हुआ था. उन्होंने न केवल भारतीय संगीत को समृद्ध किया, बल्कि अनेक युवा कलाकारों को प्रशिक्षित करके इस विधा को आगे बढ़ाने का काम किया.
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अन्य: –
- आगरा में गद्दी संभाली: – 24 अक्टूबर वर्ष 1605 में मुग़ल शासक जहाँगीर ने आगरा में गद्दी संभाली थी.
- कल्याण और भिवंडी के शासन के अधीन आए: – 24 अक्टूबर 1657 को शिवाजी महाराज ने कल्याण-भिवंडी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और नौसेना बल बनाने का फैसला किया था.
- पहली टेलीग्राफ लाइन: – 24 अक्टूबर वर्ष 1851 में कलकत्ता और डायमंड हार्बर के बीच पहली टेलीग्राफ लाइन शुरु हुई थी.
- कबाइलियों ने हमला किया: – 24 अक्टूबर वर्ष 1947 में जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तानी कबाइलियों ने हमला किया था.
- सीमा पुलिस बल की स्थापना: – 24 अक्टूबर वर्ष 1962 को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल की स्थापना हुई थी.
- अध्यादेश लाया गया: – 24 अक्टूबर वर्ष 1975 को बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त करने के लिए एक अध्यादेश लाया गया और अगले दिन से यह प्रभाव में आ गया.
- मैराथन में दौड़ने वाली पहली महिला: – 24 अक्टूबर वर्ष 1982 को सुधा माधवन मैराथन में दौड़ने वाली पहली महिला एथलीट बनी थीं.
- पहली मेट्रो ट्रेन: – 24 अक्टूबर वर्ष 1984 को काेलकाता में एस्प्लेनेड और भवानीपुर के बीच पहली मेट्रो ट्रेन (भूमिगत ट्रेन) शुरु हुआ था.
- हवाई सेवा समझौता: – 24 अक्टूबर वर्ष 2005 को न्यूजीलैंड-भारत नया हवाई सेवा समझौता करने पर सहमत.