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व्यक्ति विशेष

भाग – 295.

विलियमसन ए. संगमा

विलियमसन ए. संगमा मेघालय के पहले मुख्यमंत्री थे और उन्हें राज्य के निर्माण में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1919 को हुआ था और वे गारो जनजाति से ताल्लुक रखते थे. संगमा ने मेघालय की जनजातीय पहचान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया.

वह शुरुआत में असम की राजनीति में सक्रिय थे, लेकिन जब मेघालय को असम से अलग एक स्वायत्त राज्य के रूप में बनाने की मांग बढ़ी, तो उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया. संगमा की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कौशल ने उन्हें वर्ष 1972 में मेघालय के गठन के बाद राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया. उनके कार्यकाल में राज्य की विकास योजनाओं और जनजातीय लोगों के कल्याण के लिए अनेक प्रयास किए गए.

विलियमसन ए. संगमा मेघालय और गारो समुदाय के लिए एक प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं. उनका निधन 25 अक्टूबर 1990 को हुआ, लेकिन उनके योगदान को आज भी राज्य में सम्मान के साथ याद किया जाता है.

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पूर्व निदेशक इब्राहिम अल्काज़ी

इब्राहिम अल्काज़ी भारतीय रंगमंच के महान निर्देशक, अभिनेता और शिक्षक थे, जिन्हें आधुनिक भारतीय थियेटर के जनक के रूप में माना जाता है. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1925 को पुणे में हुआ था. वे भारतीय रंगमंच के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले निदेशक थे. उन्होंने वर्ष 1962 – 77 तक एनएसडी के निदेशक के रूप में कार्य किया.

इब्राहिम अल्काज़ी ने भारतीय रंगमंच को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और कई प्रतिष्ठित नाटकों का निर्देशन किया. उन्होंने विलियम शेक्सपियर, गिरीश कर्नाड और मोहन राकेश जैसे लेखकों के नाटकों का मंचन किया और अपने निर्देशन में तकनीकी दक्षता, अभिनव दृष्टिकोण और कला की गहरी समझ का परिचय दिया. उनकी प्रसिद्ध प्रस्तुतियों में “तुगलक” (गिरीश कर्नाड द्वारा लिखित) और “आषाढ़ का एक दिन” (मोहन राकेश द्वारा लिखित) जैसे नाटक शामिल हैं.

अल्काज़ी के निर्देशन में कई भारतीय रंगमंच कलाकार, जैसे ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, रोहिणी हट्टंगड़ी, और मनोहर सिंह, ने अपने कैरियर की शुरुआत की. उनकी सख्त अनुशासनात्मक दृष्टिकोण और उनकी शिक्षण शैली ने उन्हें भारतीय रंगमंच में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया.

इब्राहिम अल्काज़ी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण शामिल हैं. उनका निधन 4 अगस्त 2020 को हुआ, लेकिन उनके योगदान को भारतीय रंगमंच में हमेशा याद किया जाएगा.

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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी

नारायण दत्त तिवारी भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल (अब उत्तराखंड) में हुआ था. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और भारतीय राजनीति में अपने लंबे और विविधतापूर्ण कैरियर के लिए जाने जाते हैं.

नारायण दत्त तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे ( वर्ष 1976-77, वर्ष 1984-85, वर्ष 1988-89). उत्तराखंड (तब उत्तरांचल) के गठन के बाद, वे राज्य के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने और वर्ष 2002 – 07 तक इस पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियों और योजनाओं की शुरुआत की.

नारायण दत्त तिवारी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. वे योजना, उद्योग, वित्त और विदेश मामलों जैसे मंत्रालयों में मंत्री रहे. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए तिवारी ने भारत के औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

नारायण दत्त तिवारी अपने प्रशासनिक कौशल और जनता के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे. उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने विकास के कई क्षेत्रों में सुधार लाने की कोशिश की. उनका राजनीतिक कैरियर में 50 से अधिक वर्षों का अनुभव रहा और उन्होंने कई बार संसद सदस्य और विधानसभा सदस्य के रूप में सेवा की.

उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राज्य की बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में काम किया. साथ ही  वे उत्तराखंड में औद्योगिक निवेश लाने के लिए भी प्रयासरत रहे, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सके. नारायण दत्त तिवारी का निजी जीवन भी काफी चर्चा में रहा. उनके जीवन के आखिरी सालों में एक पितृत्व विवाद भी सामने आया था, जिसे अदालत ने बाद में सुलझाया.

नारायण दत्त तिवारी का निधन 18 अक्टूबर 2018 को उनके 93वें जन्मदिन के दिन हुआ. उन्हें भारतीय राजनीति के एक अनुभवी नेता और प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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अभिनेता ओम पुरी

ओम पुरी  भारतीय सिनेमा के एक दिग्गज अभिनेता थे, जिन्हें भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा दोनों में अपने बहुमुखी अभिनय के लिए सराहा जाता है. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1950 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था. वे थिएटर, बॉलीवुड, हॉलीवुड और ब्रिटिश सिनेमा में अपने उल्लेखनीय काम के लिए जाने जाते थे.

ओम पुरी का बचपन आर्थिक कठिनाइयों में बीता. उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से स्नातक किया और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) से अभिनय की पढ़ाई की. NSD में उनकी मुलाकात नसीरुद्दीन शाह से हुई, जो उनके जीवन भर के दोस्त और सहयोगी बने. ओम पुरी ने अपने कैरियर की शुरुआत समानांतर सिनेमा से की. उनकी पहली प्रमुख फिल्में थीं “आक्रोश” (1980) और “अर्ध सत्य” (1983), जिनमें उनके शक्तिशाली और यथार्थवादी अभिनय ने उन्हें पहचान दिलाई. अर्ध सत्य में उनके अभिनय को बहुत प्रशंसा मिली, और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला.

उन्होंने व्यावसायिक सिनेमा में भी सफलतापूर्वक प्रवेश किया और चाची 420, हेरा फेरी, मालामाल वीकली, घायल जैसी फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं. उनकी हास्य भूमिकाएँ भी बहुत सराही गईं, खासकर “चाची 420” में उनके किरदार बंकेलाल का प्रदर्शन दर्शकों को बेहद पसंद आया.

ओम पुरी ने ब्रिटिश और हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया. उनकी कुछ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्में हैं “ईस्ट इज़ ईस्ट”, “सिटी ऑफ़ जॉय”, “गांधी”, और “द घोस्ट एंड द डार्कनेस”. उनकी शानदार अभिनय क्षमता के कारण उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली और वे उन कुछ भारतीय अभिनेताओं में से थे जिन्होंने हॉलीवुड और ब्रिटिश सिनेमा में सफलतापूर्वक काम किया.

ओम पुरी को उनकी उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्मश्री (1990), राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं. उन्हें कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भी बहुत सराहा गया. उनके अभिनय ने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी और समाज के विभिन्न मुद्दों को फिल्म के माध्यम से प्रस्तुत किया.

ओम पुरी ने नंदिता पुरी से शादी की, जिनसे उनका एक बेटा ईशान पुरी है. बाद में, उनके निजी जीवन में कुछ विवाद और कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उन्होंने अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया और हमेशा अपने प्रशंसकों के लिए यादगार अभिनय किया. ओम पुरी का निधन 6 जनवरी 2017 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उनके निधन से भारतीय सिनेमा में एक अपूरणीय क्षति हुई. वे अपनी अद्वितीय अभिनय शैली और सादगी के कारण आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं.

ओम पुरी को उनकी सशक्त अभिनय क्षमता, यथार्थवादी भूमिकाओं और अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

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अभिनेत्री ज्योतिका सरवनन

ज्योतिका सरवनन भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से तमिल सिनेमा में काम करती हैं. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1978 को महाराष्ट्र, मुंबई में हुआ था. ज्योतिका ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1998 में हिंदी फिल्म से की थी, लेकिन वे तमिल सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक बन गईं. उन्हें उनके विविध किरदारों और सशक्त अभिनय के लिए जाना जाता है.

ज्योतिका का जन्म मुंबई में पंजाबी परिवार में हुआ था. उनकी बहन निहारिका एक सफल बॉलीवुड निर्माता हैं, और भाई सुरज एक अभिनेता हैं. उन्होंने अपनी शिक्षा मुंबई से पूरी की और इसके बाद फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा. ज्योतिका ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदी फिल्म “डोली सजा के रखना” (1998) से की, जिसे प्रियदर्शन ने निर्देशित किया था. इसके बाद उन्होंने तमिल सिनेमा की ओर रुख किया.

तमिल सिनेमा में उनकी पहली फिल्म “वाली” (1999) थी, जिसमें वे अजीत कुमार के साथ नजर आईं. इस फिल्म में उनके अभिनय की काफी सराहना हुई. “खुशी” (2000) फिल्म में उनके बेहतरीन अभिनय ने उन्हें तमिल फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया और इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला.

हिट फिल्मों में: – “धूल”, “काका काका”, “पेराझगन”, “चंद्रमुखी” और “मझाई” शामिल हैं. “चंद्रमुखी” (2005) में रजनीकांत के साथ उनका किरदार बेहद प्रसिद्ध हुआ और यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई.

ज्योतिका को चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं निभाने के लिए जाना जाता है. “36 वायाधिनिले” (2015) और “राक्षसी” जैसी फिल्मों में उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े विषयों पर बेहतरीन प्रदर्शन किया. ज्योतिका ने अपनी फिल्मों में कॉमेडी, रोमांस, और गंभीर भूमिकाओं को बखूबी निभाया है. उनकी अभिनय शैली में सादगी और सहजता है, जो दर्शकों के दिलों तक पहुंचती है.

ज्योतिका ने तमिल अभिनेता सूर्या से शादी की, जो तमिल सिनेमा के सुपरस्टार हैं. उनकी शादी वर्ष  2006 में हुई, और उनके दो बच्चे हैं – बेटी दीया और बेटा देव. ज्योतिका और सूर्या को तमिल सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध और पसंदीदा जोड़ों में से एक माना जाता है. ज्योतिका ने शादी के बाद कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक लिया, लेकिन वर्ष  2015 में उन्होंने फिल्म “36 वायाधिनिले” से दमदार वापसी की. इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपने जीवन में आत्मसम्मान और स्वाभिमान के लिए लड़ती है.

ज्योतिका को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 4 फिल्मफेयर पुरस्कार और तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार शामिल हैं. उनके काम को समीक्षकों और दर्शकों द्वारा सराहा गया है. ज्योतिका ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से तमिल सिनेमा में एक विशेष स्थान बनाया है. उनके सशक्त किरदार और महिला केंद्रित फिल्मों के प्रति उनका झुकाव उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाता है.

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अभिनेत्री फ्रीडा पिंटो

फ्रीडा पिंटो भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. उनका जन्म 18 अक्टूबर 1984 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. फ्रीडा को वर्ष  2008 में डैनी बॉयल की ऑस्कर विजेता फिल्म “स्लमडॉग मिलियनेयर” (Slumdog Millionaire) में अपने अभिनय से प्रसिद्धि मिली. इसके बाद उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में काम किया और एक ग्लोबल स्टार बन गईं.

फ्रीडा पिंटो का जन्म एक मध्यमवर्गीय गोअन कैथोलिक परिवार में हुआ. उनके पिता एक बैंक मैनेजर थे, और उनकी माँ एक स्कूल प्रिंसिपल थीं. उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने मॉडलिंग और अभिनय में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. पिंटो ने कुछ समय तक एक टीवी शो “फुल सर्कल” में काम किया, जो भारत के ज़ूम टीवी पर प्रसारित होता था.

वर्ष 2008 में आई फिल्म “स्लमडॉग मिलियनेयर” में फ्रीडा ने लतिका का किरदार निभाया, जो फिल्म के नायक (देव पटेल) की प्रेमिका थी. इस फिल्म ने विश्वभर में जबरदस्त सफलता हासिल की और 8 ऑस्कर पुरस्कार जीते. फ्रीडा का किरदार भले ही छोटा था, लेकिन उनकी सादगी और अभिनय ने उन्हें रातोंरात प्रसिद्ध बना दिया. इसके बाद उन्होंने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और हॉलीवुड में उनके लिए दरवाजे खुल गए.

“स्लमडॉग मिलियनेयर” की सफलता के बाद फ्रीडा ने कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में काम किया. इनमें प्रमुख हैं: – “राइज ऑफ द प्लैनेट ऑफ द एप्स” (2011), “इमॉर्टल्स” (2011), “ट्रिशना” (2011), “डेजर्ट डांसर” (2014). इन फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन किया और एक विश्व स्तरीय अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई.

फ्रीडा पिंटो केवल फिल्मों में ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि वे सामाजिक और मानवीय कार्यों में भी सक्रिय रही हैं. उन्होंने महिला अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए कई अभियानों में भाग लिया. वे गर्ल राइजिंग नामक एक गैर-लाभकारी संगठन के साथ भी जुड़ी हुई हैं, जो शिक्षा के माध्यम से लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए काम करता है.

“स्लमडॉग मिलियनेयर” में उनके सह-कलाकार देव पटेल के साथ उनका संबंध लंबे समय तक रहा, लेकिन वर्ष 2014 में दोनों अलग हो गए. फ्रीडा ने वर्ष  2020 में फोटोग्राफर कोरी ट्रैन से शादी की और उनका एक बेटा भी है.

फ्रीडा पिंटो को उनके काम के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और नामांकन मिले हैं. उनकी फिल्म “स्लमडॉग मिलियनेयर” के लिए उन्हें स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड और कई अन्य प्रमुख अवार्ड्स में नामांकित किया गया. वे फैशन और स्टाइल की दुनिया में भी काफी चर्चित हैं, और उन्हें अक्सर रेड कार्पेट पर उनके बेहतरीन फैशन सेंस के लिए सराहा जाता है.

फ्रीडा पिंटो ने भारतीय सिनेमा से निकलकर वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है और वे भारतीय अभिनेत्रियों के लिए एक प्रेरणा हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ना चाहती हैं.

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अन्य: –

विस्थापित वर्ग मिशन सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना: – महर्षि विट्ठल रामजी शिंदे ने मुंबई में विस्थापित वर्ग मिशन सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना 18 अक्टूबर 1906 में की थी.

बैंगलोर में परीक्षण: –  18 अक्टूबर 1972 को पहले बहुद्देशीय हेलीकॉप्टर एस ए 315 का बैंगलोर में परीक्षण किया गया था.

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