स्वतंत्रता सेनानी नरहरि पारिख
नरहरि दामोदर पारिख भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी और महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे. वे गुजरात के निवासी थे और गांधीजी के नेतृत्व में विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. नरहरि पारिख का जीवन और कार्य मुख्य रूप से सादा जीवन, स्वावलंबन, और ग्रामीण सुधारों पर केंद्रित था.
नरहरि पारिख का जन्म 7 अक्टूबर 1891 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था. वे युवा अवस्था से ही गांधीजी के विचारों से प्रभावित थे और उनके विचारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे एक प्रमुख शिक्षक, समाज सुधारक, और स्वतंत्रता सेनानी थे.
नरहरि पारिख ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के साथ विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया, जिनमें असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रमुख थे. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वावलंबन और खादी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे गांधीजी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम में भी सक्रिय थे और आश्रम के महत्वपूर्ण सदस्य रहे.
स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ नरहरि पारिख ने सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी काम किया. वे ग्रामीण शिक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए प्रतिबद्ध थे और इस दिशा में उन्होंने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उनके प्रयासों का उद्देश्य गरीब और पिछड़े वर्गों के उत्थान की दिशा में था.
नरहरि पारिख को उनके योगदान के लिए स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में व्यापक सम्मान मिला. वे गांधीवादी आदर्शों को अपने जीवन में अपनाकर उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने में सफल रहे. नरहरि पारिख का जीवन एक प्रेरणास्त्रोत है, जिन्होंने अपने जीवन को समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए समर्पित किया.
========== ========= ===========
क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी
दुर्गा भाभी (असली नाम दुर्गावती देवी) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया. उनका नाम इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की कुछ प्रमुख महिला क्रांतिकारियों में शुमार है.
दुर्गावती देवी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनका विवाह क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा से हुआ था, जो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के एक प्रमुख सदस्य थे. विवाह के बाद उन्हें “दुर्गा भाभी” के नाम से जाना जाने लगा, और क्रांतिकारियों के बीच उनका बहुत सम्मान था.
दुर्गा भाभी ने कई महत्वपूर्ण क्रांतिकारी घटनाओं में सक्रिय भागीदारी निभाई थीं. वर्ष 1928 में, जब भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की, तो दुर्गा भाभी ने भगत सिंह को अंग्रेज़ पुलिस से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं. भगत सिंह को सुरक्षित दिल्ली से कोलकाता भेजने के दौरान दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी का भेष धारण किया था, और भगत सिंह ने अंग्रेज अफसर के वेश में यात्रा की.
वर्ष 1929 में, भगवती चरण वोहरा के मृत्यु के बाद दुर्गा भाभी ने खुद को क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए समर्पित कर दिया. वर्ष 1929 में, उन्होंने ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन पर गोली चलाने की कोशिश की. हालांकि वे असफल रहीं, परंतु इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को क्रांतिकारियों के खिलाफ और सख्त कर दिया.
दुर्गा भाभी ने अपने पति के साथ मिलकर कई क्रांतिकारियों का समर्थन किया और हथियार व बम बनाने के काम में भी सक्रिय रहीं. उनके घर को क्रांतिकारियों का अड्डा माना जाता था, जहां वे गुप्त रूप से योजनाएँ बनाते थे. दुर्गा भाभी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था. अपने पति भगवती चरण वोहरा की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने बेटे शचीन्द्र की परवरिश की और संघर्षशील जीवन जीया. वे अंग्रेज़ों से लगातार भागती रहीं, परंतु स्वतंत्रता संग्राम से कभी पीछे नहीं हटीं.
स्वतंत्रता संग्राम के बाद दुर्गा भाभी ने समाज सेवा की दिशा में काम किया और महिलाओं की शिक्षा के लिए योगदान दिया. उन्होंने गाजियाबाद में एक स्कूल की स्थापना की, जहाँ उन्होंने बच्चों को शिक्षा दी और समाज के गरीब वर्ग के लोगों की सेवा की. दुर्गा भाभी का निधन 15 अक्टूबर 1999 को हुआ. वे एक सशक्त क्रांतिकारी और प्रेरणास्रोत महिला थीं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया.
दुर्गा भाभी का जीवन साहस, संघर्ष और देशभक्ति का प्रतीक है, और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महान नायिकाओं में से एक माना जाता है.
========== ========= ===========
ग़ज़ल और ठुमरी गायिका बेगम अख़्तर
बेगम अख़्तर काअसली नामअख्तरी बाई फैज़ाबादी था जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया की एक प्रतिष्ठित गायिका थीं, जिन्होंने ग़ज़ल, ठुमरी, और दादरा गायन शैली में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई. उन्हें “मल्लिका-ए-ग़ज़ल” के नाम से भी जाना जाता है. बेगम अख़्तर की गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और दिल को छू लेने वाली अदायगी का मेल था, जो उन्हें भारत की सबसे बड़ी गायिकाओं में से एक बनाता है.
बेगम अख़्तर का जन्म 7 अक्टूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में हुआ था. उनका असली नाम अख्तरी बाई था. उनका संगीत के प्रति लगाव बचपन से ही था, लेकिन उनके शुरुआती जीवन में कठिनाइयाँ भी रहीं. परिवार ने उनके गायन के कैरियर का विरोध किया, लेकिन अख्तरी बाई ने अपनी लगन और मेहनत से संगीत की दुनिया में प्रवेश किया.
बेगम अख़्तर ने उस्ताद इम्दाद खान, पटियाला घराने के उस्ताद अता मोहम्मद खान, और सरंगी वादक उस्ताद अहमद खान से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. उनके गुरु ने उन्हें खयाल और ठुमरी जैसी शास्त्रीय संगीत शैलियों में पारंगत किया, जिससे उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत की गहरी पकड़ दिखती थी.
बेगम अख़्तर ने ग़ज़ल, ठुमरी और दादरा गायन में अपनी अलग पहचान बनाई. उनकी आवाज़ में दर्द और रोमांस का अद्वितीय मिश्रण था, जो श्रोताओं के दिलों तक पहुंचता था. वर्ष 1930 के दशक में उनकी गायकी ने लोकप्रियता हासिल की और जल्द ही वे ऑल इंडिया रेडियो पर गाने लगीं. उनके गाए ग़ज़लों और ठुमरियों ने उन्हें “ग़ज़ल की मल्लिका” का खिताब दिलाया.
प्रसिद्ध ग़ज़लें और ठुमरियाँ: –
ग़ज़ल: – “हमरी अटरिया पे आओ साँवरिया,” “ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया,” “दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे”
ठुमरी: – “कतरा कतरा मिलती है,” “बाजूबंद खुल खुल जाए”.
बेगम अख़्तर ने कुछ फिल्मों में भी काम किया और गाने गाए. उनकी पहली फिल्म वर्ष 1933 में “एक दिन का बादशाह” थी. उन्होंने “मधुबन,” “रोटी,” और “मीराबाई” जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया. फिल्मों में अभिनय करने के बाद भी उनकी मुख्य पहचान ग़ज़ल और ठुमरी गायिका के रूप में बनी रही.
वर्ष 1945 में उन्होंने बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से विवाह किया, जिसके बाद उन्हें “बेगम अख़्तर” के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि शादी के बाद उन्होंने संगीत से थोड़ी दूरी बना ली, लेकिन संगीत के प्रति उनका प्रेम और श्रोताओं की माँग ने उन्हें फिर से मंच पर लाया.
बेगम अख़्तर को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें से प्रमुख हैं: –
वर्ष 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार,
वर्ष 1975 में पद्म श्री,
वर्ष 1975 में पद्म भूषण (मरणोपरांत)
30 अक्टूबर 1974 को लखनऊ में एक संगीत कार्यक्रम के दौरान बेगम अख़्तर बीमार हो गईं और कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया. संगीत की दुनिया को उनकी मौत से गहरा आघात पहुंचा, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी लोगों के दिलों में गूंजती रहती है.
बेगम अख़्तर की गायकी का भारतीय संगीत पर गहरा प्रभाव पड़ा है. उनकी ग़ज़लें और ठुमरियाँ आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हैं. उनकी अद्वितीय शैली और गहरी संवेदनशीलता ने उन्हें भारतीय संगीत के इतिहास में अमर कर दिया है.
========== ========= ===========
स्वतंत्रता सेनानी बली राम भगत
बली राम भगत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी और स्वतंत्र भारत के एक अनुभवी राजनेता थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया, जिनमें लोकसभा के स्पीकर, केन्द्रीय मंत्री और बिहार के राज्यपाल के पद प्रमुख हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गए.
बली राम भगत का जन्म 7 अक्टूबर 1922 को बिहार के पटना जिले के एक छोटे से गाँव चांदी में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना से प्राप्त की और बाद में वे राजनीति विज्ञान में अध्ययन करने के लिए पटना विश्वविद्यालय चले गए. शिक्षा के दौरान ही उनका झुकाव स्वतंत्रता संग्राम की ओर हो गया और वे महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विचारों से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए.
बली राम भगत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के कई अभियानों में शामिल हुए. विशेष रूप से 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ जन आंदोलन का हिस्सा बने. उनके क्रांतिकारी कार्यों के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा.
भारत की स्वतंत्रता के बाद, बली राम भगत ने राजनीति में अपनी सेवाएं जारी रखीं. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता बन गए और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.
उनके प्रमुख योगदान: –
बली राम भगत 1976 – 77 तक लोकसभा के स्पीकर रहे. इस दौरान उन्होंने भारतीय संसदीय प्रणाली को मज़बूत करने में योगदान दिया और निष्पक्षता से सदन का संचालन किया.
बली राम भगत कई बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रहे, जहाँ उन्होंने विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, और वित्त मंत्रालय जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालीं. विशेष रूप से, 1963 – 67 के दौरान वे विदेश राज्य मंत्री के पद पर थे और इस दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी सक्रिय भाग लिया.
वर्ष 1993 – 1995 तक बली राम भगत बिहार के राज्यपाल रहे. इस दौरान उन्होंने राज्य के प्रशासन को सुधारने और जनता के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए.
बली राम भगत का निधन 2 जनवरी 2011 को हुआ. वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पण, राजनीति में ईमानदारी, और राष्ट्र की सेवा के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण है.
बली राम भगत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्र भारत की राजनीति में अपने योगदान के माध्यम से एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया. उनके काम और समर्पण ने उन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक सम्माननीय व्यक्तित्व बना दिया.
========== ========= ===========
कवि एवं आलोचक विजयदेव नारायण साही
विजयदेव नारायण साही हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक और विचारक थे. वे अपने सृजनात्मक लेखन और साहित्यिक आलोचना के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. उनकी कविताओं में गहरी दार्शनिकता, समाज की समस्याओं पर तीक्ष्ण दृष्टि, और मानवता के प्रति समर्पण दिखाई देता है. आलोचना में उनका दृष्टिकोण प्रगतिशील और नवोन्मेषी था, जिसने हिंदी साहित्य के आलोचना सिद्धांत को नया आयाम दिया.
विजयदेव नारायण साही का जन्म 1924 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था. वे बचपन से ही साहित्य और अध्ययन के प्रति समर्पित थे. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ से उनकी साहित्यिक यात्रा ने नई दिशा पकड़ी.
विजयदेव नारायण साही ने अपनी कविताओं और आलोचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका लेखन उस समय के समाजिक और राजनीतिक मुद्दों से प्रेरित था, और उन्होंने साहित्य को समाज के परिवर्तन का माध्यम माना. उनके साहित्यिक योगदान को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है: –
कविता: – विजयदेव नारायण साही की कविताएँ अपनी विशिष्ट शैली और दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं. उनकी कविता में समाज की विसंगतियों, शोषण, और संघर्षों का चित्रण मिलता है. वे उन कवियों में से थे जिन्होंने अपने काव्य में गहरी संवेदनाओं और सजीव चित्रण के माध्यम से समाज के हर वर्ग को अपनी कविताओं से जोड़ा. उनकी रचनाओं में सरलता और गंभीरता का संतुलन देखने को मिलता है.
प्रमुख कविताएँ: – “तुम्हारे लिए”, “कोई ढूंढता है”, “यह प्रदीप जलता रहे”.
आलोचना: – विजयदेव नारायण साही एक बेहतरीन साहित्यिक आलोचक भी थे. उनकी आलोचना दृष्टि प्रगतिशील और समकालीन विचारों से प्रेरित थी. उन्होंने हिंदी साहित्य में आलोचना की एक नई धारा को जन्म दिया, जो केवल साहित्यिक रचनाओं के सौंदर्य को नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों को भी परखती थी. साही का मानना था कि साहित्य को समाज के विकास और परिवर्तन के साथ-साथ चलना चाहिए. उन्होंने कविता और साहित्य के गहन विश्लेषण के साथ-साथ उसमें छिपे समाजिक संदेशों को उजागर किया.
विचारक: – साही एक गहरे विचारक थे और उन्होंने साहित्य के माध्यम से समाज में हो रहे परिवर्तनों पर अपनी चिंतनशील दृष्टि प्रस्तुत की. वे मानते थे कि साहित्यकार का कर्तव्य केवल मनोरंजन करना नहीं है, बल्कि समाज में एक नई चेतना और बदलाव लाना भी है.
विजयदेव नारायण साही ने अपने साहित्यिक जीवन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक थे, जहाँ उन्होंने कई पीढ़ियों के छात्रों को प्रेरित किया और उन्हें साहित्य की नई दिशा दी. उन्होंने साहित्यिक संगोष्ठियों में भाग लिया और साहित्य के नए प्रवृत्तियों पर चर्चा की.
कविता संग्रह: – “तुम्हारे लिए” (यह संग्रह उनके प्रमुख कविता कार्यों में से एक है)
आलोचना: – “साहित्य और समाज,” “आधुनिक कविता और उसके प्रवृत्तियाँ”
विजयदेव नारायण साही का निधन 5 नवम्बर, 1982 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ, लेकिन उनकी साहित्यिक धरोहर आज भी जीवंत है. उनकी कविताएँ और आलोचनात्मक लेखन आज भी हिंदी साहित्य के छात्रों और अध्येताओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. साही ने हिंदी साहित्य में जो योगदान दिया, वह आज भी प्रासंगिक और प्रभावशाली है. उनकी साहित्यिक दृष्टि, विशेष रूप से आलोचना में, ने हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध किया बल्कि उसे सामाजिक परिवर्तन के एक सशक्त माध्यम के रूप में भी प्रतिष्ठित किया. विजयदेव नारायण साही को हिंदी साहित्य के प्रगतिशील और मानवतावादी दृष्टिकोण का प्रतीक माना जाता है.
========== ========= ===========
शास्त्रीय गायक अरुण भादुड़ी
अरुण भादुड़ी भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान गायक और गुरु थे. वे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा में बेहद सम्मानित माने जाते हैं और उनके गायन में ठुमरी, खयाल, भजन, और अन्य शैलियों का एक गहन मेल देखने को मिलता था. अरुण भादुड़ी की गायकी में एक विशिष्टता थी, जिसने उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं के बीच एक अद्वितीय स्थान दिलाया.
अरुण भादुड़ी का जन्म 7 अक्टूबर 1943 को पश्चिम बंगाल में हुआ था. वे बचपन से ही संगीत में रुचि रखते थे और उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी. वे पंडित उस्ताद अयोध्या प्रसाद मिश्र और उस्ताद इसहाक खान से संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, जो कि किराना और पाटियाला घरानों के जाने-माने उस्ताद थे. इन दोनों घरानों की गायन शैलियों ने उनकी संगीत यात्रा पर गहरा प्रभाव डाला.
अरुण भादुड़ी ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के खयाल गायन में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई. उनकी गायकी में गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति का बेहतरीन समन्वय था. वे रागदारी की जटिलताओं को सहजता से प्रस्तुत करते थे और उनके गायन में रागों की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति देखने को मिलती थी. इसके अलावा, वे ठुमरी, दादरा, और भजन गायन में भी माहिर थे, और शास्त्रीय संगीत के अलावा उप-शास्त्रीय संगीत में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण था.
उनकी गायकी में “खयाल” शैली का विशेष महत्व था, और उन्होंने इस शैली को अपने विशिष्ट अंदाज में प्रस्तुत किया. उनके सुर, ताल, और राग के साथ की गई उनकी प्रस्तुतियों को बहुत सराहा गया. उनकी आवाज़ में मिठास और गहराई का अनूठा मिश्रण था, जिसने उन्हें श्रोताओं के दिलों में विशेष स्थान दिलाया.
प्रमुख शैलियाँ: –
खयाल गायन: – अरुण भादुड़ी की खयाल गायन शैली अत्यंत समृद्ध थी और उन्होंने किराना और पाटियाला घरानों की शैलियों को मिलाकर अपनी विशिष्ट शैली विकसित की.
ठुमरी और दादरा: – वे ठुमरी और दादरा जैसे उप-शास्त्रीय संगीत शैलियों में भी बहुत प्रवीण थे, जहाँ उनकी गायकी में संवेदनशीलता और गहराई का अद्भुत मेल देखने को मिलता था.
भजन: – अरुण भादुड़ी ने कई भजनों को अपनी मधुर आवाज़ में गाया, जो उनके भक्तिपूर्ण गायन का उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
अरुण भादुड़ी न केवल एक महान गायक थे, बल्कि एक उत्कृष्ट शिक्षक भी थे. उन्होंने कई वर्षों तक संगीत की शिक्षा दी और अनेक विद्यार्थियों को शास्त्रीय संगीत की बारीकियों से अवगत कराया. उनके छात्रों में कई जाने-माने गायक और संगीतकार शामिल हैं, जो आज भी उनकी संगीत परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने पश्चिम बंगाल में संगीत की शिक्षा और उसके प्रचार-प्रसार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.
अरुण भादुड़ी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं: –
पद्म श्री: – भारत सरकार ने उन्हें शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया.
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार: – उन्हें शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिला.
अरुण भादुड़ी का निधन 17 दिसंबर 2018 को हुआ. उनके निधन से शास्त्रीय संगीत की दुनिया को गहरा धक्का लगा, लेकिन उनकी गायकी और उनके द्वारा स्थापित संगीत परंपरा ने उन्हें अमर कर दिया.
अरुण भादुड़ी ने अपने जीवन में जो संगीत की धरोहर छोड़ी, वह भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक अमूल्य धरोहर है. उनकी गायकी में जो गहराई, भावना और शास्त्रीयता थी, वह उन्हें भारत के महान शास्त्रीय गायकों में शुमार करती है. वे अपने विद्यार्थियों और श्रोताओं के बीच हमेशा एक आदर्श के रूप में याद किए जाते रहेंगे.
========== ========= ===========
संगीतकार वाजिद ख़ान
वाजिद खान एक भारतीय संगीतकार और गायक थे, जो अपने भाई साजिद खान के साथ मिलकर बॉलीवुड में “साजिद-वाजिद” के नाम से मशहूर संगीतकार जोड़ी के रूप में जाने जाते थे. यह जोड़ी बॉलीवुड की कई हिट फिल्मों के लिए संगीत तैयार करने के लिए प्रसिद्ध थी. वाजिद खान का योगदान विशेष रूप से उनकी ऊर्जा, जोश और म्यूजिक ट्रेंड्स को आधुनिक धुनों में ढालने के लिए पहचाना जाता था.
वाजिद खान का जन्म 7 अक्टूबर 1977 को एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ था. उनके पिता उस्ताद शरीफ खान एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, जिन्होंने उन्हें और उनके भाई साजिद को संगीत की शुरुआती शिक्षा दी. इस संगीतिक माहौल में पलकर साजिद-वाजिद की जोड़ी ने बॉलीवुड में कदम रखा और जल्दी ही एक प्रतिष्ठित नाम बन गए.
वाजिद खान और उनके भाई साजिद खान ने बॉलीवुड में अपना पहला ब्रेक वर्ष 1998 में सलमान खान की फिल्म “प्यार किया तो डरना क्या” से किया. इस फिल्म में उनका दिया हुआ गीत “तेरी जवानी बड़ी मस्त मस्त है” हिट हो गया और इसके बाद साजिद-वाजिद की जोड़ी ने कई हिट फिल्मों में संगीत दिया.
उनकी जोड़ी ने सलमान खान के साथ कई सफलतापूर्वक प्रोजेक्ट्स किए, जिनमें प्रमुख फिल्में हैं: –
“तेरे नाम” (2003): – इस फिल्म के गाने विशेष रूप से पसंद किए गए और इसके संगीत को बहुत सराहा गया.
“दबंग” (2010): – इस फिल्म का गाना “मुन्नी बदनाम हुई” बेहद लोकप्रिय हुआ और इसने साजिद-वाजिद की जोड़ी को और ऊँचाई पर पहुँचा दिया.
“एक था टाइगर” और “किक” जैसी फिल्मों में भी उन्होंने संगीत दिया, जो सुपरहिट साबित हुए.
साजिद-वाजिद की जोड़ी को विशेष रूप से सलमान खान के फिल्मों में काम करने के लिए जाना जाता है, और उनकी धुनें हमेशा बड़े पैमाने पर दर्शकों के दिलों तक पहुंचती रहीं. उनकी संगीत शैली में पारंपरिक भारतीय संगीत और आधुनिक पश्चिमी धुनों का एक सुंदर संयोजन होता था, जो उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था.
वाजिद खान एक प्रतिभाशाली गायक भी थे और उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी गाए. उनके गाए गए कुछ लोकप्रिय गीतों में शामिल हैं: – “हुड़ हुड़ दबंग” (दबंग), “जलवा” (वॉन्टेड), “चिंता ता चिता चिता” (राउडी राठौर). उनकी आवाज़ में जो ऊर्जा और जोश था, वह उनके गानों को खास बनाता था, और उन्होंने अपने गायन से कई गानों में एक नई जान डाली. वाजिद खान को उनके संगीत के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनकी जोड़ी ने कई फिल्मफेयर अवॉर्ड्स और अन्य प्रतिष्ठित सम्मान हासिल किए. “दबंग” फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला, और उनकी धुनें हमेशा यादगार रहीं.
वाजिद खान का निधन 1 जून 2020 को मुंबई में हुआ. वह कुछ समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और उनका निधन COVID-19 की जटिलताओं के कारण हुआ. उनके निधन से बॉलीवुड के संगीत जगत को गहरा आघात पहुंचा, और उनकी कमी को लंबे समय तक महसूस किया जाएगा.
वाजिद खान का संगीत कैरियर भले ही संक्षिप्त रहा हो, लेकिन उन्होंने अपनी संगीत के माध्यम से भारतीय फिल्म संगीत को समृद्ध किया. उनकी धुनें, उनके गाए हुए गीत, और उनका संगीतमय जुनून उन्हें हमेशा के लिए भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रखेगा. उनकी जोड़ी साजिद-वाजिद ने जो धुनें तैयार कीं, वे बॉलीवुड के संगीत इतिहास का अहम हिस्सा हैं.
========== ========= ===========
अभिनेत्री एवं मिस वर्ल्ड युक्ता मुखी
युक्ता मुखी एक भारतीय अभिनेत्री, मॉडल और मिस वर्ल्ड 1999 की विजेता हैं. उन्होंने सौंदर्य प्रतियोगिता में भारत का नाम रोशन किया और इसके बाद फिल्म और मनोरंजन उद्योग में भी अपनी पहचान बनाई. युक्ता की खूबसूरती और व्यक्तित्व ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, और मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद वह काफी लोकप्रिय हो गईं.
युक्ता मुखी का जन्म 7 अक्टूबर 1979 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उनका परिवार पंजाबी हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखता है. युक्ता ने अपनी शिक्षा मुंबई से प्राप्त की और जीव विज्ञान में डिग्री हासिल की. इसके अलावा, उन्होंने संगीत, कंप्यूटर साइंस और भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी शिक्षा ली. उनकी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा.
युक्ता मुखी ने वर्ष 1999 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और मिस इंडिया वर्ल्ड का ताज जीता. इसके बाद उन्होंने उसी साल मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया और यह प्रतिष्ठित खिताब अपने नाम किया. उनकी लंबाई, व्यक्तित्व और आत्मविश्वास ने उन्हें न केवल जजों का ध्यान खींचा, बल्कि उन्हें प्रतियोगिता का विजेता भी बना दिया.
मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद युक्ता ने फिल्म उद्योग में अपनी किस्मत आजमाई. उन्होंने वर्ष 2002 में बॉलीवुड में फिल्म “प्यासा” से डेब्यू किया. हालांकि फिल्म को ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन युक्ता का फिल्मी कैरियर जारी रहा. उन्होंने वर्ष 2006 में फिल्म “लव इन जापान” में भी अभिनय किया. हालांकि, युक्ता को फिल्मी कैरियर में उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी उन्होंने मिस वर्ल्ड के रूप में प्राप्त की थी, लेकिन उनकी सुंदरता और व्यक्तित्व ने उन्हें लोकप्रिय बनाए रखा.
युक्ता मुखी ने वर्ष 2008 में प्रिंस तुली से शादी की, जो एक व्यवसायी और होटल व्यवसायी हैं. हालांकि, उनका वैवाहिक जीवन विवादों से घिरा रहा, और वर्ष 2013 में उन्होंने अपने पति पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया. इसके बाद वर्ष 2014 में दोनों का तलाक हो गया. युक्ता एक बेटे की माँ भी हैं.
युक्ता मुखी ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद न केवल अपने देश का नाम गर्व से ऊंचा किया, बल्कि उन्होंने समाज सेवा और विभिन्न चैरिटी अभियानों में भी सक्रिय भूमिका निभाई. मिस वर्ल्ड के तौर पर उनके कार्य और योगदान ने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रसिद्धि दिलाई. युक्ता मुखी का नाम भारतीय सुंदरता और संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
========== ========= ===========
क्रिकेटर ज़हीर ख़ान
जहीर खान एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर और दुनिया के सबसे बेहतरीन तेज गेंदबाजों में से एक माने जाते हैं. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में एक प्रमुख तेज गेंदबाज के रूप में लंबे समय तक सेवा की और अपनी स्विंग और गति से कई मैचों में भारत को जीत दिलाई. जहीर खासकर अपनी रिवर्स स्विंग गेंदबाजी के लिए मशहूर थे, और उन्होंने भारतीय तेज गेंदबाजी के स्तर को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया.
जहीर खान का जन्म 7 अक्टूबर 1978 को महाराष्ट्र के श्रीरामपुर में हुआ था. उनका झुकाव बचपन से ही क्रिकेट की ओर था. जहीर ने शुरुआती क्रिकेट ट्रेनिंग पुणे के “न्यू मराठा क्रिकेट क्लब” से ली. उनके पिता ने उन्हें मुंबई भेजा, जहाँ उन्होंने क्रिकेट में बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपनी प्रतिभा को निखारा.
जहीर खान ने वर्ष 2000 में केन्या के खिलाफ नैरोबी में अपना अंतरराष्ट्रीय वनडे डेब्यू किया और जल्द ही भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एक अहम खिलाड़ी बन गए. इसके बाद उन्होंने उसी साल टेस्ट क्रिकेट में भी डेब्यू किया. जहीर खान ने वर्ष 2003 के विश्व कप में भारतीय टीम के लिए बेहतरीन प्रदर्शन किया. भारत उस टूर्नामेंट में उपविजेता रहा, और जहीर ने अपने तेज और स्विंग गेंदबाजी से सबको प्रभावित किया. भारत की वर्ष 2011 विश्व कप जीत में जहीर खान का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था. उन्होंने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाजों में से एक रहे और फाइनल में भी शानदार प्रदर्शन किया.
जहीर खान एक बाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे और स्विंग, खासकर रिवर्स स्विंग में महारत रखते थे. उनकी गेंदबाजी में गति, विविधता और दिशा का अद्भुत तालमेल था, जो उन्हें दुनिया के खतरनाक गेंदबाजों में से एक बनाता था. उन्होंने अपने कैरियर में कई बार शीर्ष बल्लेबाजों को अपनी स्विंग और यॉर्कर गेंदों से परेशान किया.
कैरियर रिकॉर्ड: –
टेस्ट क्रिकेट: – जहीर खान ने 92 टेस्ट मैचों में 311 विकेट लिए.
वनडे क्रिकेट: – उन्होंने 200 वनडे मैचों में 282 विकेट झटके.
टी20 इंटरनेशनल: – जहीर ने 17 टी20 मैचों में 17 विकेट लिए.
आईपीएल कैरियर: –
जहीर खान ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने आईपीएल में मुंबई इंडियंस, रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर और दिल्ली डेयरडेविल्स (अब दिल्ली कैपिटल्स) जैसी टीमों के लिए खेला. वह न केवल एक बेहतरीन गेंदबाज रहे, बल्कि अपने नेतृत्व कौशल के लिए भी जाने गए, खासकर जब उन्होंने दिल्ली डेयरडेविल्स की कप्तानी की.
जहीर खान ने वर्ष 2017 में बॉलीवुड अभिनेत्री सागरिका घाटगे से शादी की. सागरिका घाटगे फिल्म “चक दे! इंडिया” में अपनी भूमिका के लिए जानी जाती हैं. दोनों की जोड़ी क्रिकेट और बॉलीवुड के फैंस के बीच काफी लोकप्रिय है.
जहीर खान को क्रिकेट में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें शामिल हैं: –
अर्जुन पुरस्कार: – वर्ष 2011 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर: – वर्ष 2008 में विजडन ने उन्हें “क्रिकेटर ऑफ द ईयर” के खिताब से नवाजा.
जहीर खान ने वर्ष 2015 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया. हालांकि, वह क्रिकेट के क्षेत्र से पूरी तरह दूर नहीं हुए. उन्होंने कोचिंग और कमेंट्री में कदम रखा, और वे आईपीएल टीमों के साथ जुड़कर तेज गेंदबाजों को मार्गदर्शन भी देते रहे हैं. जहीर अपने अनुभव और क्रिकेट के ज्ञान को अगली पीढ़ी के गेंदबाजों को सिखाने में भी रुचि रखते हैं.
जहीर खान का भारतीय क्रिकेट में योगदान अविस्मरणीय है. उनकी स्विंग गेंदबाजी और उनके अनुभव ने भारतीय टीम को कई जीत दिलाई. उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों में से एक माना जाता है, और उनकी तकनीक और रणनीति को युवा गेंदबाजों के लिए प्रेरणा के रूप में देखा जाता है.
========== ========= ===========
सिक्खों के गुरु ‘गुरु गोविंद सिंह’
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम मानव गुरु थे। वह एक महान योद्धा, कवि, दार्शनिक और आध्यात्मिक नेता थे, जिन्होंने सिख धर्म के उत्थान और सिख समुदाय की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने सिखों को धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया और खालसा पंथ की स्थापना की, जिससे सिख धर्म को नई दिशा मिली. उनके नेतृत्व ने सिख समुदाय को संगठित और सशस्त्र बनाकर उन्हें अत्याचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी.
गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (वर्तमान बिहार) में हुआ था. उनके बचपन का नाम गोविंद राय था. उनके पिता, गुरु तेग बहादुर, सिखों के नौवें गुरु थे और उन्होंने धर्म और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी. गुरु गोविंद सिंह ने अपने पिता के बलिदान से प्रेरणा ली और सिखों के दसवें गुरु के रूप में 11 नवंबर 1675 को गद्दी संभाली, जब वे मात्र 9 वर्ष के थे.
गुरु गोविंद सिंह का सबसे बड़ा योगदान वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना थी. उन्होंने आनंदपुर साहिब में सिखों को संगठित किया और “पाँच प्यारे” नामक पांच निष्ठावान सिखों का गठन किया, जिन्होंने खालसा पंथ के सिद्धांतों को अपनाया. खालसा पंथ सिखों के लिए न केवल एक धार्मिक मार्गदर्शन था, बल्कि उन्हें एक योद्धा समुदाय में भी परिवर्तित किया, जो अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का सामना कर सकता था.
खालसा पंथ के मुख्य सिद्धांत थे: – केश (बाल नहीं काटने), कड़ा (लोहे का कंगन), कृपाण (तलवार), कच्छा (विशेष प्रकार का शॉर्ट्स), कंघा (कंघी).
गुरु गोविंद सिंह ने खालसा के अनुयायियों को “सिंह” (शेर) और “कौर” (राजकुमारी) का उपनाम दिया, जिससे उन्हें उनकी शूरवीरता और प्रतिष्ठा का एहसास हुआ.
गुरु गोविंद सिंह ने मुगल शासकों और पहाड़ी राजाओं के अत्याचार के खिलाफ कई युद्ध लड़े. उन्होंने सिखों को एक संगठित, सशस्त्र समुदाय में परिवर्तित किया, जो धर्म, न्याय और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे। उनका उद्देश्य सिखों को आत्मनिर्भर बनाना और उनके भीतर साहस और शौर्य का संचार करना था.
गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े, जैसे कि: – चमकौर का युद्ध (1704), आनंदपुर साहिब का युद्ध. इन युद्धों में उन्होंने अपने चार बेटों को भी खो दिया, जिन्हें सिख इतिहास में वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. उनके दो छोटे पुत्रों, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को मुगलों द्वारा क्रूरता से मार दिया था, जबकि उनके दो बड़े पुत्र युद्ध में शहीद हुए.
गुरु गोविंद सिंह केवल एक योद्धा ही नहीं थे, बल्कि एक अद्वितीय कवि और विद्वान भी थे. उन्होंने कई काव्य रचनाएँ कीं और सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को अपने साहित्य के माध्यम से व्यक्त किया. उनकी प्रमुख रचनाओं में दशम ग्रंथ (दसवाँ ग्रंथ) शामिल है, जिसमें उनके द्वारा रचित कविताओं और धार्मिक ग्रंथों का संग्रह है. गुरु गोविंद सिंह ने अपनी कविताओं में साहस, न्याय और धर्म के प्रति निष्ठा का संदेश दिया.
गुरु गोविंद सिंह का एक और महत्वपूर्ण योगदान गुरु ग्रंथ साहिब (आदि ग्रंथ) का संपादन था. उन्होंने इसे सिख धर्म के अंतिम और शाश्वत गुरु के रूप में घोषित किया. गुरु गोविंद सिंह ने यह घोषणा की कि उनके बाद कोई मानव गुरु नहीं होगा और सिख धर्म का मार्गदर्शन गुरु ग्रंथ साहिब के माध्यम से ही होगा. इस प्रकार, गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण ग्रंथ बन गया.
गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड, महाराष्ट्र में हुई. एक मुगल समर्थक, जिसे गुरु गोविंद सिंह ने माफ कर दिया था, ने उनकी हत्या करने का प्रयास किया, जिससे वे घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका संदेश और योगदान सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक अमूल्य धरोहर बना रहा.
गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के लिए न केवल एक आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि उन्होंने सिख समुदाय को स्वाभिमान और आत्म-सम्मान से जीने का मार्ग दिखाया. उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता, न्याय और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किया और अपने अनुयायियों को भी इसके लिए प्रेरित किया. उनके द्वारा स्थापित खालसा पंथ आज भी सिख धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाएं आज भी सिख समुदाय के लिए प्रासंगिक हैं और उनकी वीरता, साहस, और समर्पण के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता है.
========== ========= ===========
फिल्म अभिनेता अरुण बाली
अरुण बाली एक भारतीय फिल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं, जिनका जन्म 23 दिसंबर 1942 को हुआ था. उन्हें भारतीय सिनेमा और टेलीविजन उद्योग में उनकी विशिष्ट भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. अरुण बाली ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है और उन्हें एक प्रतिभाशाली और अनुभवी अभिनेता माना जाता है.
अरुण बाली का जन्म जालंधर, पंजाब में हुआ. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक थिएटर कलाकार के रूप में की थी और बाद में उन्होंने फिल्म और टेलीविजन में काम करना शुरू किया। उनका अभिनय कौशल और व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत जल्द ही दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया।
अरुण बाली ने कई हिंदी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएँ निभाई हैं. उन्हें अक्सर गंभीर और प्रभावशाली भूमिकाओं के लिए चुना गया. कुछ प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं: –
“धरम वीर” (1977): – इस फिल्म में उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई.
“कर्मा” (1986): – इस फिल्म में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी.
“फिल्म बेताब” (1983): – यह एक प्रमुख फिल्म थी जिसमें उन्होंने सहायक भूमिका निभाई.
अरुण बाली ने टेलीविजन पर भी अपनी छाप छोड़ी है. उन्होंने कई धारावाहिकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, जैसे: –
“महाभारत”: – इस महाकाव्य धारावाहिक में उन्होंने धृतराष्ट्र की भूमिका निभाई, जो एक प्रमुख और यादगार किरदार था.
“कहानी घर घर की”: – इसमें भी उनकी भूमिका को दर्शकों ने सराहा.
**”सहारा One” पर बेताब होने का मेरा नाम जैसे शो में भी उनकी उपस्थिति रही है.
अरुण बाली को उनकी प्रभावी आवाज और अभिनय के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपने कैरियर में कई यादगार और प्रभावशाली भूमिकाएँ निभाई हैं, जो दर्शकों के दिलों में गहराई से बसी हैं. उनकी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा और टेलीविजन में एक सम्मानित स्थान दिलाया.
अरुण बाली का व्यक्तिगत जीवन साधारण और शांतिपूर्ण है. उन्होंने अपने कैरियर में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन वे हमेशा अपने काम के प्रति समर्पित रहे. हाल के वर्षों में, अरुण बाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे थे. उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने प्रशंसकों के प्रति सकारात्मकता और प्रेरणा का संचार किया.
अरुण बाली ने भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण से एक मजबूत विरासत छोड़ी है. उनकी अभिनय की शैली और चरित्र चित्रण ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है, और वे भारतीय मनोरंजन उद्योग के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं. उनके कार्य को आने वाली पीढ़ियों द्वारा याद किया जाएगा.
========== ========= ===========
अन्य: –
कश्मीर में प्रवेश किया : – 7 अक्टूबर 1586 में मुगल बादशाह अकबर की सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया था. बताते चलें कि,चक वंश के शासक युसुफ शाह चक के आत्मसमर्पण करने के कारण कश्मीर पर मुगलों ने कब्जा किया था.
समुद्र में 40 फुट नीचे डूबने से: – 7 अक्टूबर 1737 में बंगाल में 20 हजार छोटे जहाज के समुद्र में 40 फुट नीचे डूबने से तीन लाख लोगों की मौत हुई थी.
मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की स्थापना: – 7 अक्टूबर 1950 में मदर टेरेसा ने कोलकाता में मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की स्थापना की थी.