स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा
श्यामजी कृष्ण वर्मा एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, और विद्वान थे. वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के मांडवी शहर में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा भारत और इंग्लैंड में पूरी की और वे कानून के विशेषज्ञ थे.
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने भारतीय छात्रों को विदेश में शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से 1905 में लंदन में “इंडिया हाउस” की स्थापना की. यह संस्था ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन करने वाले भारतीयों के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गई. इसी इंडिया हाउस से कई महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी, जैसे विनायक दामोदर सावरकर, जुड़े थे.
श्यामजी वर्मा ने “इंडियन सोशियोलॉजिस्ट” नामक एक पत्रिका भी शुरू की, जिसमें ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की जाती थी और भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया जाता था. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें खतरनाक मानते हुए उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, जिसके बाद वर्मा को स्विट्जरलैंड में शरण लेनी पड़ी.
श्यामजी कृष्ण वर्मा का जीवन और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत ही महत्वपूर्ण था. उनकी मृत्यु 30 मार्च 1930 को स्विट्जरलैंड में हुई, और उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियाँ भारत की आजादी के बाद स्वदेश लाईं गईं.
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साहित्यकार रामचन्द्र शुक्ल
रामचन्द्र शुक्ल हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित आलोचक, निबंधकार, और इतिहासकार थे. उन्हें हिंदी साहित्य के आधुनिक आलोचना-परंपरा का जनक माना जाता है. शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य के विकास और आलोचना के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, और उनका कार्य आज भी हिंदी साहित्य में गहन रूप से अध्ययन किया जाता है.
रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अतरौलिया गांव में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई और बाद में उन्होंने वाराणसी से उच्च शिक्षा प्राप्त की. वे संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और बंगाली भाषाओं के विद्वान थे. रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को एक विधिवत् अध्ययन और समालोचना का ढांचा प्रदान किया. उनके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं: –
शुक्ल का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कार्य “हिंदी साहित्य का इतिहास” है, जिसमें उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास को तात्त्विक दृष्टि से प्रस्तुत किया. इसमें आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक के सभी महत्वपूर्ण कवियों और लेखकों का वर्णन है. शुक्ल जी की यह रचना हिंदी साहित्य के अध्ययन के लिए एक आधारभूत पुस्तक मानी जाती है. शुक्ल ने हिंदी साहित्य में तात्त्विक आलोचना की शुरुआत की. उन्होंने काव्य और साहित्य के मर्म को समझने के लिए तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया. उनके द्वारा लिखा गया “काव्य में रहस्यवाद” और “रस मीमांसा” आलोचना की दृष्टि से महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं.
रामचन्द्र शुक्ल ने कई निबंध भी लिखे, जो सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर आधारित थे. उनके निबंधों में “चिंतामणि” नामक संग्रह बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें जीवन, समाज, और संस्कृति से जुड़े विषयों पर उनके विचार प्रकट होते हैं. शुक्ल का साहित्यिक दृष्टिकोण बहुत ही वैज्ञानिक और तात्त्विक था. उन्होंने रचनाओं का विश्लेषण न केवल भावुकता से किया, बल्कि उनकी तर्कसंगत व्याख्या भी दी. उनके अनुसार, साहित्य का उद्देश्य समाज में जागरूकता फैलाना और लोगों को नैतिक एवं सामाजिक दृष्टि से समृद्ध करना होना चाहिए.
शुक्ल जी का मानना था कि साहित्य केवल भावनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य समाज और जीवन के प्रति जागरूकता पैदा करना है. उन्होंने भक्ति आंदोलन, रीतिकालीन कविता और आधुनिक हिंदी साहित्य के संबंध में महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किए. रामचन्द्र शुक्ल हिंदी साहित्य के महान चिंतक और आलोचक थे, और उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य के विकास और अध्ययन के लिए एक मील का पत्थर मानी जाती हैं.
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मध्य प्रदेश की भूतपूर्व राज्यपाल सरला ग्रेवाल
सरला ग्रेवाल एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थीं, जिन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वह मध्य प्रदेश की राज्यपाल बनने वाली पहली महिला थीं और अपनी प्रशासनिक क्षमता तथा नीतिगत निर्णयों के लिए जानी जाती थीं. सरला ग्रेवाल ने एक लंबा और प्रभावशाली कार्यकाल पूरा किया, और वे देश के सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शख्सियत थीं.
सरला ग्रेवाल का जन्म 04 अक्टूबर 1927 को हुआ था. उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल होकर अपने कैरियर की शुरुआत की और विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया. उनके कार्यकाल में उन्होंने देश के कई क्षेत्रों में नीतियों और कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन में भूमिका निभाई.
सरला ग्रेवाल वर्ष 1989 -90 तक मध्य प्रदेश की राज्यपाल रहीं. राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने राज्य के प्रशासनिक कार्यों और जनहित योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया. उनकी कार्यशैली प्रभावशाली और जनहितकारी थी, और उन्होंने प्रशासनिक पारदर्शिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई.
सरला ग्रेवाल केवल राज्यपाल पद तक सीमित नहीं रहीं. वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निजी सचिव भी रही थीं, और इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके प्रशासनिक अनुभव और दक्षता ने उन्हें इस भूमिका में प्रभावी बनाया, और उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णयों में भाग लिया.
सरला ग्रेवाल को उनकी सेवाओं और योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया. उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी महिला अधिकारियों के लिए प्रेरणा के रूप में देखे जाते हैं. उनके प्रशासनिक कैरियर ने यह दिखाया कि महिलाओं की सार्वजनिक सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, और वे जटिल नीतिगत मामलों को कुशलता से संभाल सकती हैं. सरला ग्रेवाल का 29 जनवरी 2002 को निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान भारतीय प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में सदैव याद किया जाता रहेगा.
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पार्श्वगायिका संध्या मुखर्जी
संध्या मुखर्जी जिन्हें संध्या मुखोपाध्याय के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रख्यात भारतीय पार्श्वगायिका थीं, जिनका योगदान मुख्य रूप से बंगाली और हिंदी संगीत जगत में रहा. वे शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित थीं और अपने अनूठे और मधुर गायन के लिए जानी जाती थीं. उनका कैरियर लगभग छह दशकों तक चला, और उन्होंने अपनी गायकी से बंगाली संगीत को समृद्ध किया।
संध्या मुखर्जी का जन्म 4 अक्टूबर 1931 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. वे बचपन से ही संगीत की ओर आकर्षित थीं और उन्होंने पंडित चिन्मय लाहिरी और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान जैसे शास्त्रीय संगीत गुरुओं से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. शास्त्रीय संगीत में उनकी गहरी पकड़ ने उनके गायन में एक विशिष्टता प्रदान की, जिसे बाद में उन्होंने फिल्मी और गैर-फिल्मी गीतों में प्रस्तुत किया.
संध्या मुखर्जी ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदी सिनेमा में की और 1948 में मुंबई में संगीतकारों के साथ काम किया. उन्होंने उस दौर के कई प्रमुख संगीतकारों जैसे अनिल बिस्वास, सलील चौधरी और मदन मोहन के साथ काम किया. हालांकि, हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन में मिली सफलता के बावजूद उन्होंने अपनी प्राथमिकता बंगाली संगीत को दी और कोलकाता वापस लौट आईं.
बंगाली सिनेमा और संगीत जगत में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने बंगाली फिल्मों में कई सदाबहार गाने गाए, जिनमें से उनके गाए हुए “इच्छे नयन”, “आमी कैमन करे”, और “ओ मायलनिर चोलोन” जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं. उनकी आवाज़ में सादगी और गहराई थी, जो श्रोताओं को बहुत प्रिय लगी.
संध्या मुखर्जी ने रवींद्र संगीत (रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीत) को भी बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया. उनका रवींद्र संगीत गायन आज भी बंगाली संगीत प्रेमियों के बीच अत्यधिक सम्मानित है. इसके अलावा, उन्होंने आधुनिक गीतों और अन्य प्रकार के संगीत शैलियों में भी अपनी कला का प्रदर्शन किया.
संध्या मुखर्जी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें 1970 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्वगायिका) से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उन्होंने बंगाल की सर्वोच्च नागरिक सम्मान “बंगा विभूषण” और कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्राप्त किए. वर्ष 2022 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया, लेकिन उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया.
संध्या मुखर्जी का 15 फरवरी 2022 को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनकी मृत्यु ने संगीत जगत में एक बड़ा खालीपन छोड़ दिया. उन्हें एक ऐसी कलाकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने गायन के जरिए बंगाली और भारतीय संगीत को समृद्ध किया और श्रोताओं के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी.
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अभिनेत्री सोहा अली खान
सोहा अली खान एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 4 अक्टूबर 1978 को हुआ था और वे भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित परिवार से आती हैं. सोहा की मां शर्मिला टैगोर एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं और उनके पिता मंसूर अली खान पटौदी भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान थे. सोहा अली खान बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान की बहन हैं.
सोहा अली खान का जन्म एक शाही परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त करके पूरी की, और बाद में उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर डिग्री प्राप्त की. अभिनय में आने से पहले, सोहा कुछ समय तक कॉर्पोरेट दुनिया में भी काम कर चुकी थीं.
सोहा अली खान ने वर्ष 2004 में बॉलीवुड फिल्म “दिल मांगे मोर” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उनके सह-कलाकार शाहिद कपूर थे. हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन सोहा के अभिनय को सराहा गया.
उनकी पहली बड़ी हिट फिल्म “रंग दे बसंती” (2006) रही, जो उनके कैरियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई. इस फिल्म में उन्होंने एक भारतीय वायुसेना अधिकारी की मंगेतर का किरदार निभाया था. इस फिल्म ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई और उनके अभिनय की काफी प्रशंसा की गई.
फिल्म: –
“तुम मिले” (2009) – जिसमें उन्होंने एक रोमांटिक भूमिका निभाई.
“खोया खोया चांद” (2007) – एक पीरियड ड्रामा फिल्म.
“साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स” (2013) – इस फिल्म में उनकी भूमिका को विशेष रूप से सराहा गया.
“99” (2009) – एक कॉमेडी थ्रिलर फिल्म.
सोहा अली खान ने 25 जनवरी 2015 को अभिनेता कुणाल खेमू से शादी की. यह जोड़ी फिल्म “ढूंढ़ते रह जाओगे” (2009) और “99” में साथ नजर आई थी. दोनों की एक बेटी है, जिसका नाम इनाया नौमी खेमू है, जिसका जन्म 29 सितंबर 2017 को हुआ.
सोहा ने फिल्मों के अलावा लेखन में भी हाथ आजमाया है. वर्ष 2017 में, उन्होंने अपनी पुस्तक “द पेरिल्स ऑफ बीइंग मॉडरेटली फेमस” प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने अपने शाही और फिल्मी परिवार के साथ जीवन के अनुभवों को साझा किया है. इस पुस्तक को पाठकों और समीक्षकों द्वारा सराहा गया.
हालांकि सोहा अली खान ने ज्यादा बड़ी संख्या में व्यावसायिक हिट फिल्में नहीं दी हैं, लेकिन उनके अभिनय को सराहने वाले आलोचक और फिल्म प्रेमी हमेशा रहे हैं. उन्हें उनकी अदाकारी के लिए कई बार पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया, विशेष रूप से “रंग दे बसंती” के लिए, जिसमें उन्होंने सहायक अभिनेत्री के रूप में प्रभावशाली प्रदर्शन किया.
सोहा अली खान ने अपने फिल्मी कैरियर में विभिन्न भूमिकाओं के माध्यम से खुद को एक प्रतिभाशाली और सशक्त अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है, और वे अपने सामाजिक और लेखन कार्यों के माध्यम से भी एक प्रेरणा बनी हुई हैं.
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अभिनेत्री पाओली डैम
पाओली डैम एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से बंगाली सिनेमा और हिंदी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 4 अक्टूबर 1980 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. पाओली को बंगाली सिनेमा में अपने सशक्त अभिनय और बोल्ड किरदारों के लिए पहचान मिली है. उन्होंने कई विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है.
पाओली डैम का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई, और उन्होंने विद्यासागर कॉलेज से रसायन शास्त्र में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने राजाबाजार साइंस कॉलेज से रसायन विज्ञान में मास्टर की डिग्री प्राप्त की. हालांकि वह शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही थीं, लेकिन अभिनय में उनकी रुचि ने उन्हें इस क्षेत्र में खींच लिया.
पाओली डैम ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत बंगाली टेलीविजन से की, जहां उन्होंने “जिबोन नीये खेला” और “तिथिर अतीथी” जैसे धारावाहिकों में काम किया. इसके बाद उन्होंने बंगाली सिनेमा की ओर रुख किया और जल्द ही अपनी अभिनय क्षमता के लिए जानी जाने लगीं.
वर्ष 2009 में पाओली की फिल्म “कालबेला” से उन्हें पहचान मिली, जो उनके कैरियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई. यह फिल्म बंगाली साहित्यकार शीतलाल दास के उपन्यास पर आधारित थी, और इसमें पाओली के प्रदर्शन की सराहना हुई. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और अपनी सशक्त भूमिकाओं से बंगाली फिल्म इंडस्ट्री में एक खास जगह बनाई.
पाओली डैम ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी अपनी पहचान बनाई. उन्होंने वर्ष 2012 में “हेट स्टोरी” फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा, जो अपनी बोल्ड सामग्री और दृश्य के कारण चर्चा में रही. पाओली का किरदार इस फिल्म में बेहद साहसी और चुनौतीपूर्ण था, और उन्होंने इस किरदार को बखूबी निभाया.
इसके अलावा, उन्होंने “अनवर का अजब किस्सा” (2013), “बुलबुल” (2020) जैसी फिल्मों में भी काम किया है, जहां उनके अभिनय की काफी सराहना हुई.
प्रमुख फिल्में: –
“कालबेला” (2009),
“छत्रक” (2011) – इस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म ने उन्हें काफी प्रसिद्धि दिलाई,
“हेट स्टोरी” (2012),
“सिमरन” (2017),
“बुलबुल” (2020) – यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई और इसमें उनके अभिनय की काफी प्रशंसा हुई.
पाओली डैम ने वर्ष 2017 में अरण्यक बसु से शादी की, जो गुवाहाटी के एक बिजनेसमैन हैं. अभिनय के अलावा, पाओली सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी राय रखने के लिए जानी जाती हैं और कई सामाजिक अभियानों से जुड़ी हुई हैं.
पाओली डैम को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, और वे न केवल बंगाली सिनेमा में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण अभिनेत्री मानी जाती हैं. पाओली डैम अपनी सशक्त भूमिकाओं और बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं, और उन्होंने अपने विविध किरदारों के जरिए भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई है.
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अभिनेत्री श्वेता तिवारी
श्वेता तिवारी एक भारतीय अभिनेत्री और टेलीविजन पर्सनैलिटी हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 4 अक्टूबर 1980 को प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में हुआ था. श्वेता को टेलीविजन धारावाहिक “कसौटी ज़िंदगी की” में ‘प्रेरणा शर्मा’ की भूमिका से व्यापक पहचान और लोकप्रियता मिली.
श्वेता तिवारी का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ, लेकिन उनकी शिक्षा और परवरिश मुंबई में हुई. उन्होंने बुरहानी कॉलेज, मुंबई से अपनी पढ़ाई पूरी की. उनका बचपन से ही अभिनय में गहरी रुचि थी, और उन्होंने बहुत कम उम्र में थिएटर में काम करना शुरू कर दिया था.
श्वेता तिवारी का टेलीविजन कैरियर वर्ष 1999 में शुरू हुआ, जब उन्होंने टीवी शो “कलीरें” में अभिनय किया. लेकिन उन्हें असली सफलता 2001 में स्टार प्लस के लोकप्रिय धारावाहिक “कसौटी ज़िंदगी की” से मिली, जिसमें उन्होंने प्रेरणा की मुख्य भूमिका निभाई. यह शो लगभग आठ साल तक चला और श्वेता को घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई. इसके बाद, श्वेता ने कई अन्य टेलीविजन शो में काम किया, जिनमें: –
“परवरिश – कुछ खट्टी कुछ मीठी”,
“सजन रे झूठ मत बोलो”,
“बेगूसराय” – इसमें उन्होंने ‘बिंदिया’ का नकारात्मक किरदार निभाया, जिसे खूब सराहा गया,
“मेरे डैड की दुल्हन” – यह शो भी काफी लोकप्रिय हुआ.
श्वेता तिवारी ने 2010 में रियलिटी शो “बिग बॉस सीजन 4” में भाग लिया और इस सीजन की विजेता बनीं. उनकी विनम्रता और दृढ़ता ने उन्हें इस शो का खिताब दिलाया. इसके अलावा, उन्होंने “झलक दिखला जा” और “खतरों के खिलाड़ी” जैसे रियलिटी शो में भी हिस्सा लिया. टेलीविजन के अलावा, श्वेता ने कुछ हिंदी और भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया है. हालांकि, उनकी प्राथमिकता हमेशा टेलीविजन रही है.
श्वेता तिवारी की निजी जिंदगी भी मीडिया में चर्चा का विषय रही है. उनकी पहली शादी राजा चौधरी से हुई थी, लेकिन बाद में दोनों का तलाक हो गया. इस शादी से उन्हें एक बेटी है, पलक तिवारी, जो अब खुद भी अभिनय की दुनिया में कदम रख चुकी हैं. बाद में, श्वेता ने अभिनव कोहली से दूसरी शादी की, लेकिन यह शादी भी समस्याओं में रही, और उन्होंने अलग होने का निर्णय लिया. उनका एक बेटा भी है, जिसका नाम रेयांश है.
श्वेता तिवारी को टेलीविजन इंडस्ट्री में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. “कसौटी ज़िंदगी की” के लिए उन्होंने कई सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार जीते. इसके अलावा, बिग बॉस जीतने से भी उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ.
श्वेता तिवारी एक ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपने लंबे और सफल कैरियर के जरिए भारतीय टेलीविजन पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है. वे अपने बेहतरीन अभिनय और दृढ़ संकल्प के लिए जानी जाती हैं, और उनके फैंस उन्हें हमेशा उनकी अदाकारी और विनम्र व्यक्तित्व के लिए सराहते हैं.
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राजनीतिज्ञ भगवत झा आज़ाद
भगवत झा आज़ाद एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के रूप में जाने जाते हैं. वे बिहार राज्य के 20वें मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवा के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका राजनीतिक कैरियर लंबे समय तक चला और उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.
भगवत झा आज़ाद का जन्म 28 नवंबर 1922 को बिहार के भागलपुर जिले के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उनका परिवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा था, और यह पृष्ठभूमि उनके राजनीतिक जीवन की प्रेरणा बनी. उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत शिक्षा के क्षेत्र से की, लेकिन जल्दी ही राजनीति की ओर रुख किया और कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए.
भगवत झा आज़ाद ने वर्ष 1950 के दशक में राजनीति में कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सक्रिय रूप से जुड़े. वे भागलपुर क्षेत्र से लोकसभा के सांसद बने और कई बार चुनाव जीते. उनकी छवि एक सरल और ईमानदार राजनेता की रही, जिन्होंने सादगी से अपना जीवन व्यतीत किया.
भगवत झा आज़ाद वर्ष 1988 – 89 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य के प्रशासन को सुदृढ़ करने और विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. हालांकि, उनके मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल लंबे समय तक नहीं चला, लेकिन उनकी ईमानदारी और प्रशासनिक दृष्टिकोण की सराहना की गई.
भगवत झा आज़ाद ने केंद्र सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया. उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय सहित कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे और उन्हें पार्टी के एक सशक्त नेता के रूप में देखा जाता था. भगवत झा आज़ाद के पुत्र कीर्ति आज़ाद भी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख नाम हैं. कीर्ति आज़ाद ने क्रिकेट और राजनीति दोनों क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है, वे भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य रह चुके हैं और बाद में बिहार से सांसद बने.
भगवत झा आज़ाद का निधन 4 अक्टूबर 2011 को हुआ. उन्हें भारतीय राजनीति में उनके ईमानदारी, सादगी और नीतिगत दृष्टिकोण के लिए याद किया जाता है. उनका राजनीतिक जीवन एक आदर्श के रूप में देखा जाता है, जहां उन्होंने विकास और जनता की सेवा को प्राथमिकता दी. उनका योगदान बिहार और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण रहा है.
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निधन : –
कस्तूरी बाई: – आज ही के दिन वर्ष 1979 में माखनलाल चतुर्वेदी की बहन कस्तूरी बाई का निधन हुआ था.
उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री नीलमणि राउत्रे:- आज ही के दिन वर्ष 2004 में उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री नीलमणि राउत्रे का निधन कटक में हुआ था.
फिल्म निर्देशक एवं निर्माता इदिदा नागेश्वर राव: – आज ही के दिन वर्ष 2015 में फिल्म निर्देशक एवं निर्माता इदिदा नागेश्वर राव का निधन हैदराबाद में हुआ था.
वाजपेयी के निजी सचिव शक्ति सिन्हा: – आज ही के दिन वर्ष 2021 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव शक्ति सिन्हा का निधन हुआ था.
खेल: –
डबल ट्रैप निशानेबाजी में दुनिया के पहले खिलाड़ी: – आज ही के दिन वर्ष 2011 में भारत के निशानेबाज रोंजन सोढ़ी ने संयुक्त अरब अमीरात के अल आईन में विश्वकप मुकाबले में ओलिम्पिक पदक विजेता चीन के बिनयुआन को पराजित कर अपने खिताब की रक्षा करने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी बने थे.
अन्य: –
डेविस कप में भाग लेने से इनकार किया: – आज ही के दिन वर्ष 1974 में भारत ने दक्षिण अफ्रिका की सरकार की रंभेदी नीति का प्रतिरोध करने के लिए वहाँ जाकर डेविस कप में भाग लेने से इनकार कर दिया था.
तेल और गैस की खोज पर साझेदारी संबंधी तीन समझौतों पर हस्ताक्षर: – आज ही के दिन वर्ष 2011 में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई की भारत यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ हुई बैठक में सामरिक मामले, खनिज संपदा की साझेदारी और तेल और गैस की खोज पर साझेदारी संबंधी तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे.
वित्तीय क्षेत्र में सहयोग के लिए द्विपक्षीय समझौता: – आज ही के दिन वर्ष 2011 में भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की यात्रा के दौरान भारत और स्विट्जरलैंड ने वित्तीय क्षेत्र में सहयोग के लिए द्विपक्षीय समझौता किया गया था. इस समझौते के तहत आयकर विभाग के बीच सहयोग बढने और स्विस बैंकों में भारतीयों के खातों का पता लगाने में मदद मिलेगी.