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व्यक्ति विशेष

भाग – 271.

साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र

प्रताप नारायण मिश्र (1856–1894) हिंदी साहित्य के प्रारंभिक दौर के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिनका साहित्यिक योगदान कविता, निबंध, व्यंग्य और नाटक के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है. मिश्र भारतीय पुनर्जागरण के समर्थक और भारतीय संस्कृति के घोर पक्षधर थे. वे “ब्राह्मण” नामक पत्रिका के संपादक भी थे, जो उस समय की हिंदी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण अंग थी.

प्रताप नारायण मिश्र का जन्म 24 सितम्बर, 1856 ई. में उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में वैजे गाँव में हुआ था. ये कात्यायन गोत्रीय और कान्यकुब्ज ब्राह्मण पण्डित संकटादीन के पुत्र थे. प्रताप नारायण अक्षरारंभ के पश्चात् अपने पिता से ही ज्योतिष पढ़ने लगे.और पिता की मृत्यु के पश्चात् 18-19 वर्ष की अवस्था में उनकी स्कूली शिक्षा अधूरी रह गई.

उनका लेखन सरल, सुबोध और जनसामान्य के लिए समझने योग्य था. उन्होंने अपने व्यंग्य और निबंधों के माध्यम से समाज की कुरीतियों पर करारी चोट की. उनके निबंधों में सामाजिक समस्याओं के प्रति तीखी आलोचना और सुधारवादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है. इसके अलावा, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता और सामाजिक सुधार आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई.

प्रताप नारायण मिश्र का साहित्य हिंदी गद्य के विकास में एक मील का पत्थर है. उनकी भाषा शैली में हास्य, व्यंग्य और सरलता के साथ गंभीरता का भी मिश्रण था, जो उन्हें एक अद्वितीय साहित्यकार के रूप में पहचान दिलाता है.प्रताप नारायण मिश्र का निधन  6 जुलाई, 1894 को हुआ था.

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भीकाजी रुस्तम कामा अथवा ‘मैडम कामा

भीकाजी रुस्तम कामा, जिन्हें ‘मैडम भीकाजी कामा’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं. उनका जन्म 24 सितंबर 1861 को मुंबई में एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने जीवन को भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को पहली बार विदेशी धरती पर फहराने के लिए भी जाना जाता है.

मैडम कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भारत का पहला ध्वज फहराया. यह ध्वज, जिसे बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक माना गया, स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका प्रमुख योगदान था.

उनकी प्रमुख गतिविधियाँ भारत के बाहर, विशेषकर यूरोप में केंद्रित थीं. उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ विदेशी धरती पर जागरूकता फैलाने के लिए प्रचार किया. पेरिस से प्रकाशित “वंदे मातरम” पत्रिका के माध्यम से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया. उन्होंने भारतीय क्रांतिकारियों को वित्तीय सहायता और अन्य संसाधन प्रदान किए, जिससे वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष कर सकें.

मैडम कामा एक उत्साही समाजवादी और नारीवादी भी थीं. वे महिलाओं की समानता और शिक्षा के अधिकारों की भी प्रबल समर्थक थीं. उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक प्रेरणा स्रोत है. भीकाजी कामा का निधन 13 अगस्त 1936 को मुंबई में हुआ, लेकिन उनकी देशभक्ति और योगदान को हमेशा याद किया जाता है.

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चिकित्सा वैज्ञानिक अवतार सिंह पेंटाल

अवतार सिंह पेंटाल एक प्रमुख भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता हैं, जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से कार्डियोलॉजी (हृदय रोग) में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्हें भारत में हृदय विज्ञान (कार्डियोलॉजी) के क्षेत्र में उनके शोध और सेवाओं के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है. वे एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख रहे और अपने नेतृत्व में चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया.

उनका सबसे बड़ा योगदान “पेसमेकर” के विकास और कार्डियक कैथेटराइजेशन के क्षेत्र में किया गया कार्य है. पेंटाल ने न केवल हृदय रोगों की निदान और उपचार में नए उपकरणों और तकनीकों का विकास किया, बल्कि भारत में चिकित्सा शिक्षा के उन्नयन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

उनके नेतृत्व में कई छात्रों ने कार्डियोलॉजी के क्षेत्र में प्रशिक्षित होकर महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इसके अलावा, वे कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय चिकित्सा विज्ञान का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उनके योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. अवतार सिंह पेंटाल का योगदान चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय और वैश्विक स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

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महिला तैराक आरती साहा

आरती साहा (1940–1994) भारत की एक प्रमुख तैराक थीं, जो अंग्रेजी चैनल पार करने वाली पहली एशियाई महिला के रूप में जानी जाती हैं. उनका यह ऐतिहासिक उपलब्धि 29 सितंबर 1959 को दर्ज की गई, जब उन्होंने लगभग 42 मील लंबी दूरी को तैरकर पार किया. इस उपलब्धि के बाद, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1960 में प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिससे वह यह पुरस्कार पाने वाली पहली महिला एथलीट बनीं.

आरती का जन्म 24 सितंबर 1940 को कोलकाता (तब के कलकत्ता) में हुआ था. बहुत कम उम्र में ही उन्होंने तैराकी शुरू की और सात साल की उम्र में उन्होंने कई तैराकी प्रतियोगिताएं जीतीं. उन्हें तैराकी की प्रेरणा मशहूर भारतीय तैराक मिहिर सेन से मिली, जो अंग्रेजी चैनल पार करने वाले पहले भारतीय थे.

अंग्रेजी चैनल को पार करना तैराकों के लिए सबसे कठिन चुनौतियों में से एक माना जाता है. आरती ने इसे पार करने के लिए कड़ी मेहनत की और पहली बार असफल रहने के बाद, दूसरी बार उन्होंने सफलता प्राप्त की. 16 घंटे और 20 मिनट की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने इस चुनौती को पूरा किया, जिससे वह एशिया की पहली महिला बनीं जिसने अंग्रेजी चैनल पार किया.

आरती साहा की इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने भारत में महिलाओं के खेल में एक नई दिशा दिखाई.उन्हें तैराकी के क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है.

आरती साहा की दृढ़ इच्छाशक्ति और साहस ने उन्हें भारतीय खेल इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया. उनका जीवन यह दर्शाता है कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.

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क्रिकेट खिलाड़ी मोहिन्दर अमरनाथ

मोहिन्दर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट इतिहास के महानतम ऑलराउंडरों में से एक हैं. उनका जन्म 24 सितंबर 1950 को पटियाला, पंजाब में हुआ था. वे पूर्व भारतीय टेस्ट क्रिकेटर लाला अमरनाथ के बेटे हैं, और उनके परिवार की क्रिकेट के प्रति विशेष प्रतिबद्धता रही है. मोहिन्दर अमरनाथ को विशेष रूप से उनके 1983 क्रिकेट विश्व कप में शानदार प्रदर्शन के लिए याद किया जाता है, जहां भारत ने पहली बार विश्व कप जीता था.

मोहिन्दर अमरनाथ ने वर्ष 1969 में अपने टेस्ट कैरियर की शुरुआत की. अपने शुरुआती दिनों में, वे एक मध्यम तेज गेंदबाज के रूप में खेले, लेकिन बाद में बल्लेबाजी में अधिक महारत हासिल की. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के लिए 69 टेस्ट मैच और 85 वनडे खेले, जिसमें टेस्ट में 4378 रन और वनडे में 1924 रन बनाए. उनके नाम टेस्ट क्रिकेट में 11 शतक भी दर्ज हैं.

मोहिन्दर अमरनाथ का नाम भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अमर है, खासकर 1983 के विश्व कप में उनके निर्णायक प्रदर्शन के कारण. सेमीफाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ और फाइनल में वेस्टइंडीज के खिलाफ उनके ऑलराउंड प्रदर्शन (बल्लेबाजी और गेंदबाजी) ने भारत को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फाइनल में उनकी 26 रन की उपयोगी पारी और 3 महत्वपूर्ण विकेटों के साथ वे ‘मैन ऑफ द मैच’ चुने गए. इसके अलावा, सेमीफाइनल में भी उनके प्रदर्शन को सराहा गया और उन्हें मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला.

मोहिन्दर अमरनाथ एक धैर्यवान और तकनीकी रूप से सुदृढ़ बल्लेबाज के रूप में जाने जाते थे. वे तेज गेंदबाजों के खिलाफ खासकर अपने आत्मविश्वास और कुशलता के लिए प्रसिद्ध थे. इसके साथ ही, उन्होंने मध्यम तेज गेंदबाजी में भी अच्छा प्रदर्शन किया और महत्वपूर्ण समय पर विकेट लेने की क्षमता रखी.

अमरनाथ का कैरियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा. उन्हें कई बार भारतीय टीम से बाहर किया गया, लेकिन हर बार उन्होंने शानदार वापसी की. उनके इस जुझारूपन के कारण उन्हें “कमबैक मैन” के रूप में जाना जाता है. मोहिन्दर अमरनाथ ने वर्ष 1989 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया. इसके बाद वे कोचिंग और कमेंट्री के क्षेत्र में सक्रिय रहे. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता के रूप में भी काम किया.

मोहिन्दर अमरनाथ का क्रिकेट कैरियर भारतीय क्रिकेट के लिए प्रेरणादायक रहा है. उनकी धैर्यवान बल्लेबाजी, अहम मौकों पर प्रदर्शन करने की क्षमता, और कभी हार न मानने वाली मानसिकता ने उन्हें भारतीय क्रिकेट का एक अनमोल खिलाड़ी बना दिया है.

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तीरंदाज लिम्बा राम

लिम्बा राम भारत के तीरंदाजों में से एक हैं और उन्होंने भारतीय तीरंदाजी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. उनका जन्म 30 जनवरी 1972 को राजस्थान के उदयपुर जिले में एक गरीब आदिवासी (आहारी) परिवार में हुआ था. लिम्बा राम का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उनके असाधारण समर्पण और प्रतिभा ने उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाजों में शुमार किया.

लिम्बा राम एक गरीब आदिवासी परिवार से थे और बचपन में उन्होंने बहुत ही साधारण परिस्थितियों में अपना जीवन बिताया. उनका झुकाव तीरंदाजी की ओर तभी हुआ जब भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशिक्षण के लिए चुना. उन्हें उनके गांव से निकालकर पेशेवर प्रशिक्षण के लिए भेजा गया, जहां उनकी क्षमताओं को विकसित किया गया.

वर्ष 1990 में बीजिंग एशियाई खेलों में लिम्बा राम ने भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता. यह उपलब्धि तीरंदाजी के क्षेत्र में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई. वर्ष 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में उन्होंने विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की, जब उन्होंने 30 मीटर की प्रतियोगिता में 72 में से 357 अंक हासिल किए. उन्होंने कई एशियाई खेलों, ओलंपिक, और विश्व चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते. वर्ष 1995 में उन्होंने कोलकाता में हुए एशियन आर्चरी चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया.

लिम्बा राम को उनके अद्वितीय योगदान और उपलब्धियों के लिए भारत सरकार ने अर्जुन पुरस्कार (1991) से सम्मानित किया. उन्हें 2012 में पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.

लिम्बा राम ने अपने कैरियर के दौरान कई शारीरिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उनकी दृढ़ता और समर्पण ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया. वे एक प्रेरणा स्रोत रहे हैं, खासकर आदिवासी और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले युवा तीरंदाजों के लिए, जिन्होंने यह देखा कि सीमित संसाधनों और कठिनाइयों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय सफलता प्राप्त की जा सकती है.

लिम्बा राम ने खेल से संन्यास लेने के बाद कोचिंग में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने युवा तीरंदाजों को प्रशिक्षित करने के लिए काम किया और भारतीय तीरंदाजी में नई प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रयास किया. हालांकि बाद में वे स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने लगे, खासकर न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से, लेकिन उनके संघर्ष और योगदान को भारतीय खेल जगत में कभी नहीं भुलाया जा सकता.

लिम्बा राम भारतीय तीरंदाजी के एक स्तंभ हैं और उन्होंने देश में इस खेल की नींव को मजबूत किया है. उनकी जीवन यात्रा संघर्ष, समर्पण और सफलता का प्रतीक है, जिससे युवा खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलती है.

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अभिनेत्री अश्लेषा सावंत

अश्लेषा सावंत एक भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री हैं, जो हिंदी टीवी धारावाहिकों में अपनी भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 14 मार्च 1982 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की, जिसके बाद वे टेलीविजन इंडस्ट्री में आईं.

अश्लेषा को विशेष रूप से लोकप्रियता मिली “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” (2002-2008) में उनके किरदार ‘तीना’ के लिए. इसके अलावा, उन्होंने कई अन्य लोकप्रिय धारावाहिकों में भी काम किया है, जैसे: – “पवित्र रिश्ता” (2009-2014), जिसमें उन्होंने ‘उषा’ की भूमिका निभाई, “कसम से” और “कुंडली भाग्य”, जहां उनकी भूमिकाओं को सराहा गया.

अश्लेषा सावंत की अभिनय शैली गंभीर और प्रभावशाली है, और वह अक्सर धारावाहिकों में सशक्त महिला पात्र निभाती हैं. उनके शांत और संयमित अभिनय के कारण उन्होंने टेलीविजन दर्शकों के बीच एक खास पहचान बनाई है.

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अभिनेत्री सृष्टि रोडे

सृष्टि रोडे एक भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री और मॉडल हैं. उनका जन्म 24 सितंबर 1991 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री में कई प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं और विभिन्न रियलिटी शो में भी हिस्सा लिया है.

सृष्टि ने अपने कैरियर की शुरुआत विज्ञापनों और छोटे रोल्स से की. उन्हें टेलीविज़न पर पहला बड़ा ब्रेक शो “ये इश्क हाय” में मिला. इसके बाद उन्होंने “पुनर्विवाह – एक नई उम्मीद”, “छोटी बहू”, और “सरस्वतीचंद्र” जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में अभिनय किया.

सृष्टि को बड़ी पहचान मिली जब उन्होंने “बिग बॉस 12” (2018) में भाग लिया. इस शो में उनकी उपस्थिति ने उन्हें एक व्यापक दर्शक वर्ग के सामने पेश किया. उन्होंने “इश्कबाज़” और “कृष्णा चली लंदन” जैसे शो में भी काम किया है, जिनमें उनके किरदारों को खूब सराहा गया.

सृष्टि का परिवार मनोरंजन जगत से जुड़ा है. उनके पिता टोनी रोडे एक सिनेमैटोग्राफर हैं, और इसी माहौल में सृष्टि का रुझान एक्टिंग की ओर हुआ. सृष्टि रोडे ने अपने अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व से टेलीविजन इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई है.

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गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी भूपति मोहन सेन

भूपति मोहन सेन भारत के एक प्रमुख गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने गणित और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि, उनके बारे में विस्तृत जानकारी और प्रसिद्धि अन्य प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों की तरह नहीं है, लेकिन उनका योगदान शिक्षा और अनुसंधान में सराहनीय माना जाता है.

भूपति मोहन सेन का जन्म 3 जनवरी, सन 1888 को आजादी से पूर्व बंगाल में हुआ था और उनका निधन  24 सितंबर 1978 को हुआ. भूपति मोहन सेन का प्रमुख योगदान गणित और भौतिकी के शोध और शिक्षण के क्षेत्र में था. उन्होंने इन विषयों में गहन अध्ययन किया और अपने छात्रों को शिक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे एक समर्पित शिक्षक थे और उनके द्वारा प्रशिक्षित कई छात्रों ने आगे चलकर विज्ञान और गणित में नाम कमाया.

भूपति मोहन सेन ने गणित और भौतिकी के जटिल पहलुओं पर शोध किया, विशेषकर आधुनिक भौतिकी और गणितीय सिद्धांतों को समझने में. उनका अनुसंधान उन क्षेत्रों में था, जो उस समय के लिए चुनौतीपूर्ण थे और जिनका आगे चलकर विज्ञान की उन्नति में बड़ा योगदान रहा. भूपति मोहन सेन की पहचान एक विनम्र और समर्पित वैज्ञानिक के रूप में की जाती है. उन्होंने अपने जीवन को शिक्षा और अनुसंधान के लिए समर्पित किया और अपने छात्रों के लिए हमेशा प्रेरणा बने रहे.

हालांकि भूपति मोहन सेन के बारे में अधिक विवरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनके योगदान को विज्ञान और गणित के क्षेत्र में मान्यता मिली और उनके शोध ने भविष्य की पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया.

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अभिनेत्री पद्मिनी

पद्मिनी भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री और शास्त्रीय नृत्यांगना थीं, जिन्होंने मुख्य रूप से तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिंदी फिल्मों में काम किया. पद्मिनी का जन्म 12 जून 1932 को केरल के तिरुवनंतपुरम में हुआ था. वे त्रावणकोर के शाही परिवार से थीं और अपने नृत्य और अभिनय कौशल के लिए विख्यात थीं.

पद्मिनी, अपने दो बहनों रागिनी और ललिता के साथ, “त्रावणकोर सिस्टर्स” के नाम से जानी जाती थीं. तीनों बहनें शास्त्रीय नृत्य में निपुण थीं और फिल्मों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थीं. पद्मिनी की खूबसूरती और नृत्य की क्षमता ने उन्हें सिनेमा में विशेष स्थान दिलाया.

पद्मिनी ने अपने कैरियर की शुरुआत मलयालम फिल्मों से की थी, लेकिन उन्होंने जल्द ही तमिल और हिंदी सिनेमा में भी काम करना शुरू किया. उनकी प्रमुख हिंदी फिल्में थीं “झनक झनक पायल बाजे” (1955), जिसमें उनके शास्त्रीय नृत्य ने उन्हें व्यापक प्रसिद्धि दिलाई. इसके अलावा “मेरा नाम जोकर” (1970) और “चोरी-चोरी” (1956) जैसी फिल्मों में भी वे नजर आईं. तमिल सिनेमा में उनकी प्रमुख फिल्में थीं “थिलाना मोहनाम्बाल”, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय और नृत्य से दर्शकों का दिल जीत लिया.

पद्मिनी न केवल एक बेहतरीन अभिनेत्री थीं, बल्कि एक कुशल भरतनाट्यम नृत्यांगना भी थीं. उनकी नृत्य प्रस्तुतियों ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक विशिष्ट स्थान दिलाया. उनका नृत्यकला के प्रति समर्पण उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाता था. उन्होंने नृत्य को फिल्मी अभिनय के साथ जोड़ते हुए उसे एक नई ऊँचाई तक पहुँचाया.

पद्मिनी को उनके अभिनय और नृत्य के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान कई प्रमुख पुरस्कार जीते, जिनमें फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड भी शामिल हैं. पद्मिनी ने अमेरिकी डॉक्टर रमचंद्रन से विवाह किया और बाद में अमेरिका में बस गईं. हालांकि, वे समय-समय पर भारत आती रहीं और कला तथा सिनेमा से जुड़ी रहीं. उनके बेटे शंकर भी भारतीय सिनेमा से जुड़े हुए हैं. पद्मिनी का निधन 24 सितंबर 2006 को चेन्नई में हुआ, लेकिन भारतीय सिनेमा में उनका योगदान और उनका नृत्यकला प्रेम हमेशा याद किया जाएगा.

पद्मिनी भारतीय सिनेमा की एक महत्वपूर्ण हस्ती थीं, जिन्होंने अपने नृत्य और अभिनय से करोड़ों दिलों पर राज किया. उनकी बहुमुखी प्रतिभा और शास्त्रीय नृत्य के प्रति उनका समर्पण उन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक अमर स्थान दिलाता है.

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