वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री
वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, और वक्ता थे, जिन्हें उनके नैतिकता और स्वच्छ छवि के लिए जाना जाता था. उनका पूरा नाम वैक्कम श्रीयेर श्रीनिवास शास्त्री था. उनका जन्म 22 सितंबर 1869 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था.
शास्त्री एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे, हालांकि वे महात्मा गांधी की तरह उग्रवादी न होकर उदारवादी विचारधारा के समर्थक थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और साथ ही ब्रिटिश साम्राज्य के साथ बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्हें उनकी तार्किकता, न्यायप्रियता, और सच्चाई के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उच्च सम्मान प्राप्त था.
श्रीनिवास शास्त्री को वर्ष 1921 में भारतीय विधायिका की कार्यकारी परिषद का सदस्य बनाया गया था. इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार से कई महत्वपूर्ण सुधारों के लिए बातचीत की. वे भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में शामिल हुए. खासकर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
शास्त्री शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों के प्रबल समर्थक थे. वे सामाजिक कुरीतियों और जातिवाद के खिलाफ भी थे और महिलाओं की शिक्षा के समर्थक थे. उन्हें अपनी प्रभावशाली भाषण कला के लिए जाना जाता था. उनके भाषण स्पष्ट, नैतिक और तर्कसंगत होते थे, जिसके कारण उन्हें ‘द ग्रेट इंडियन ओरैटर’ का खिताब मिला.
वी. एस. श्रीनिवास शास्त्री का नाम भारतीय इतिहास में एक नैतिक, शिक्षित और निष्ठावान नेता के रूप में सम्मानित किया जाता है. श्रीनिवास शास्त्री का निधन 76 वर्ष की आयु में 17 अप्रैल को 1946 को मद्रास में देहांत हुआ.
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‘सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट’ के संस्थापक पवन कुमार चामलिंग
पवन कुमार चामलिंग सिक्किम के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री और “सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट” (Sikkim Democratic Front – SDF) पार्टी के संस्थापक हैं. उनका जन्म 22 सितंबर 1950 को हुआ था. वे भारतीय राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति रहे हैं और सिक्किम की राजनीति को बदलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
पवन चामलिंग ने अपनी राजनीतिक यात्रा वर्ष 1980 के दशक में शुरू की थी. उन्होंने वर्ष 1993 में “सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट” की स्थापना की. वर्ष 1994 में उनकी पार्टी ने राज्य चुनावों में जीत हासिल की और वे पहली बार सिक्किम के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने पांच बार लगातार मुख्यमंत्री पद संभाला, जो एक रिकॉर्ड है.
चामलिंग ने अपने कार्यकाल में सिक्किम को देश का पहला “ऑर्गैनिक स्टेट” (जैविक राज्य) घोषित किया. उन्होंने विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दिया. सिक्किम के सामाजिक और आर्थिक विकास में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है. उनके शासनकाल के दौरान सिक्किम में राजनीतिक स्थिरता बनी रही, और राज्य ने विभिन्न विकासात्मक मानकों पर बेहतर प्रदर्शन किया. राज्य की बुनियादी सुविधाओं में सुधार, कृषि सुधार, और पर्यटन के विकास में चामलिंग का प्रमुख योगदान रहा है.
पवन चामलिंग को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उनके कार्यों को सिक्किम के आर्थिक और सामाजिक सुधारों में एक मील का पत्थर माना जाता है. वर्ष 2019 में हुए राज्य चुनावों में एसडीएफ को पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन पवन चामलिंग का सिक्किम की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है.
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अभिनेत्री रिद्धि डोगरा
रिद्धि डोगरा एक लोकप्रिय भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री हैं, जिन्हें उनके टीवी शो और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर काम के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 22 सितंबर 1984 को दिल्ली में हुआ था. रिद्धि ने कई टीवी सीरियल्स में काम किया है और अपने बेहतरीन अभिनय के लिए जानी जाती हैं.
रिद्धि डोगरा ने “मर्यादा: लेकिन कब तक?” (2010-2012) में ” प्रिया” की भूमिका निभाकर खास पहचान बनाई. उनके इस किरदार ने उन्हें घर-घर में लोकप्रियता दिलाई.
रियलिटी शो: – उन्होंने रियलिटी शो “नच बलिए 6” में भी हिस्सा लिया, जहां वे अपने डांसिंग स्किल्स के लिए चर्चा में रहीं.
वेब सीरीज: – रिद्धि ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी काम किया है, जिसमें “असुर” जैसी चर्चित वेब सीरीज शामिल है. वेब सीरीज़ में उनके काम ने उन्हें एक नई पहचान दी.
रिद्धि डोगरा को “वो अपना सा,” और “सावधान इंडिया” जैसे शो में भी देखा गया है. वे एक बोल्ड और स्वतंत्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती हैं, जो विविध भूमिकाएं निभाने में विश्वास रखती हैं.
रिद्धि डोगरा ने अभिनेता राकेश बापट से शादी की थी, लेकिन वर्ष 2019 में दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया. रिद्धि अपने काम के प्रति समर्पण और दमदार व्यक्तित्व के लिए जानी जाती हैं और भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान है.
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अभिनेत्री सना सईद
सना सईद एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्हें मुख्य रूप से बॉलीवुड फिल्मों और टेलीविजन शोज़ में उनकी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 22 सितंबर 1988 को मुंबई में हुआ था. सना ने अपने कैरियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी और धीरे-धीरे वे बड़े पर्दे और टीवी पर सक्रिय हो गईं.
सना सईद को सबसे पहली बार वर्ष 1998 की सुपरहिट फिल्म “कुछ कुछ होता है” में शाहरुख खान और काजोल की बेटी “अंजलि” के रूप में देखा गया था. इस भूमिका से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली.
सना ने बाल कलाकार के रूप में “हर दिल जो प्यार करेगा” (2000) और “बादल” (2000) जैसी फिल्मों में भी काम किया. इसके बाद वे करण जौहर की “स्टूडेंट ऑफ द ईयर” (2012) में एक ग्लैमरस भूमिका में नज़र आईं, जो उनका बड़े पर्दे पर वापसी थी.
सना ने कई रियलिटी शोज़ में हिस्सा लिया है, जिनमें “झलक दिखला जा”, “नच बलिए”, और “खतरों के खिलाड़ी” शामिल हैं. उन्होंने टीवी पर भी अपना अभिनय कौशल दिखाया है. सना कई रियलिटी शोज़ में एक प्रतियोगी के रूप में दिखाई दीं और मॉडलिंग में भी सक्रिय रही हैं.
सना ने अपने कैरियर की शुरुआत में ही लोकप्रियता हासिल की और फिर धीरे-धीरे बड़े और छोटे पर्दे पर अपनी उपस्थिति बनाए रखी. उनकी खासियत यह है कि वे बाल कलाकार के रूप में शुरुआत करने के बाद भी इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने में सफल रही हैं. उनकी मासूमियत और परिपक्व अभिनय क्षमता उन्हें एक खास स्थान दिलाती है.
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सिक्खों के पहले गुरु गुरु नानक देव
गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे. उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था. गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में लोगों को मानवता, समानता, प्रेम, और एक ईश्वर के उपदेश दिए. उनका जीवन और उनके उपदेश सदियों से मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं.
गुरु नानक ने एक निराकार, अद्वितीय ईश्वर की उपासना पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ईश्वर सर्वव्यापी, निर्गुण (बिना रूप के), और निरंकार (बिना आकार के) है. उन्होंने सिख धर्म के मूल मंत्र “एक ओंकार” का प्रचार किया, जिसका अर्थ है “एक ही ईश्वर है.”
गुरु नानक जात-पात, धर्म, लिंग, और सामाजिक स्थिति के भेदभाव के खिलाफ थे. उन्होंने सभी इंसानों को समान माना और सभी के लिए बराबरी का संदेश दिया. वे हमेशा समता और भाईचारे की बात करते थे. उन्होंने कर्म (कर्तव्य) और निष्काम सेवा (स्वार्थहीन सेवा) पर बल दिया. उनका मानना था कि अपने कर्तव्यों का पालन करना और दूसरों की सेवा करना जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.
गुरु नानक ने संगत (सामूहिक प्रार्थना) और नाम सिमरन (ईश्वर का ध्यान और स्मरण) पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ईश्वर के नाम का सिमरन (ध्यान) करते हुए जीवन जीना चाहिए. गुरु नानक ने अपने जीवन के दौरान चार प्रमुख यात्राएं (उदासियाँ) की, जिसमें उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ अरब, तुर्की, ईरान, और श्रीलंका तक की यात्रा की. इन यात्राओं के दौरान उन्होंने धार्मिक असमानताओं और अंधविश्वासों के खिलाफ उपदेश दिए और सत्य, प्रेम और सहिष्णुता का संदेश फैलाया.
प्रमुख शिक्षाएँ: –
नाम जपो: – ईश्वर के नाम का जाप करना.
कीरत करो: – ईमानदारी से अपना कार्य करना.
वंड छको: – अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों के साथ बांटना.
गुरु ग्रंथ साहिब: – गुरु नानक की वाणी को सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया है. उनके उपदेश आज भी समाज को दिशा और प्रेरणा प्रदान करते हैं.
गुरु नानक देव का जीवन और उनकी शिक्षाएँ मानवता के कल्याण और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए समर्पित थीं. उनका संदेश आज भी लोगों को प्रेम, करुणा, और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है.
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अभिनेत्री दुर्गा खोटे
दुर्गा खोटे भारतीय सिनेमा की पहली अग्रणी अभिनेत्रियों में से एक थीं और उन्हें हिंदी और मराठी फिल्मों की पथप्रदर्शक कलाकारों में गिना जाता है. उनका जन्म 14 जनवरी 1905 को मुंबई में हुआ था. दुर्गा खोटे ने भारतीय सिनेमा को अपनी बेहतरीन अदाकारी और साहसिक भूमिका-चयन से समृद्ध किया, और खासतौर पर महिलाओं को फिल्मी जगत में प्रवेश करने की प्रेरणा दी. वे एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने उस समय सिनेमा में प्रवेश किया जब महिलाओं का फिल्मों में काम करना समाज में अस्वीकार्य माना जाता था.
दुर्गा खोटे ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1931 में मराठी फिल्मों से की थी, और वर्ष 1932 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी पहली भूमिका निभाई. वे साउंड फिल्मों के युग की पहली बड़ी अभिनेत्री मानी जाती हैं.
प्रमुख फिल्में: –
अयोध्या का राजा (1932): – यह उनकी पहली हिंदी फिल्म थी और भारतीय सिनेमा की पहली ऐतिहासिक फिल्म मानी जाती है. इसमें उन्होंने रानी तारा की भूमिका निभाई थी.
जय भारत (1936): – इस फिल्म में उनकी अदाकारी को बहुत सराहा गया.
मुगल-ए-आज़म (1960): – इस ऐतिहासिक फिल्म में उन्होंने अकबर की पत्नी, जोधा बाई का किरदार निभाया, जो आज भी याद किया जाता है.
बॉबी (1973): – इस राज कपूर की हिट फिल्म में उन्होंने दादी की भूमिका निभाई, जो बहुत लोकप्रिय हुई.
दुर्गा खोटे ने न केवल बतौर अभिनेत्री अपने काम को गंभीरता से लिया, बल्कि सिनेमा के तकनीकी और प्रोडक्शन पक्षों में भी योगदान दिया. उन्होंने न केवल अपने अभिनय के बल पर, बल्कि अपने साहसिक निर्णयों और पेशेवर नैतिकता से फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए एक नई राह बनाई. दुर्गा खोटे ने मराठी थिएटर में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे मंच पर भी सक्रिय थीं और मराठी नाटकों में अपनी बेहतरीन भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध थीं.
दुर्गा खोटे को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें 1968 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी प्राप्त हुआ, जो भारतीय सिनेमा में किसी भी कलाकार को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. दुर्गा खोटे ने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत कठिनाइयों का सामना किया. एक विधवा के रूप में उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया, और अपने परिवार को सहारा दिया. उनका जीवन संघर्ष और साहस का प्रतीक है.
दुर्गा खोटे ने अपने पीछे एक विरासत छोड़ी, जिसने आने वाली पीढ़ी की अभिनेत्रियों को प्रेरित किया. वे न सिर्फ अपने अभिनय के लिए बल्कि एक स्वतंत्र और सशक्त महिला के रूप में भी आदर्श बनीं. उनके योगदान ने भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भूमिका को मजबूत किया. उनकी सरलता, गरिमा, और प्रभावशाली अभिनय क्षमता ने उन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित हस्तियों में शामिल किया. उनका जीवन और कैरियर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा.
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क्रिकेटर मंसूर अली ख़ान पटौदी
मंसूर अली ख़ान पटौदी, जिन्हें “टाइगर पटौदी” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे प्रभावशाली और सम्मानित कप्तानों में से एक थे. उनका जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था और वे पटौदी रियासत के नवाब थे. मंसूर अली ख़ान पटौदी भारतीय क्रिकेट टीम के नौवें टेस्ट कप्तान थे और उनके नेतृत्व में भारत ने विदेशी धरती पर पहली टेस्ट जीत हासिल की.
मंसूर अली ख़ान पटौदी का जन्म एक शाही परिवार में हुआ था. उनके पिता इफ्तिखार अली ख़ान पटौदी भी एक मशहूर क्रिकेटर थे, जिन्होंने इंग्लैंड और भारत दोनों के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला था. मंसूर अली ख़ान ने भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए क्रिकेट में अपना कैरियर बनाया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल से प्राप्त की, और बाद में इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन किया. ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ाई के दौरान वे क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने.
मंसूर अली ख़ान पटौदी ने वर्ष 1969 में मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से शादी की. उनके तीन बच्चे हैं—सैफ अली खान, सोहा अली खान, और सबा अली खान. सैफ अली खान और सोहा अली खान ने बॉलीवुड में सफल कैरियर बनाया है. मंसूर अली ख़ान पटौदी को महज 21 साल की उम्र में भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बना दिया गया था, जब 1962 में नियमित कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर घायल हो गए थे. वे भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे युवा कप्तान बने और भारतीय क्रिकेट में एक नया युग लाए.
वर्ष 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दाहिनी आंख की दृष्टि चली गई थी. इसके बावजूद, उन्होंने अद्वितीय धैर्य और प्रतिबद्धता के साथ खेलना जारी रखा और क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया. यह उनके आत्मविश्वास और खेल के प्रति समर्पण का प्रमाण था. उन्होंने भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले और 2793 रन बनाए, जिसमें 6 शतक शामिल हैं. वर्ष 1967 में पटौदी की कप्तानी में भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ विदेशी धरती पर पहली टेस्ट जीत हासिल की. उन्हें भारतीय क्रिकेट में सकारात्मक बदलाव और टीम के आक्रामक खेल को बढ़ावा देने का श्रेय दिया जाता है.
पटौदी भारतीय टीम में फिटनेस और फील्डिंग को प्राथमिकता देने वाले पहले कप्तानों में से एक थे, जिन्होंने टीम में एक नई ऊर्जा और जीतने की इच्छा भरी. मंसूर अली ख़ान पटौदी ने वर्ष 1975 में क्रिकेट से संन्यास ले लिया, लेकिन वे भारतीय क्रिकेट में एक प्रेरक व्यक्ति बने रहे और उनके योगदान को हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाता है.
मंसूर अली ख़ान पटौदी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड और कई अन्य संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया. उन्हें क्रिकेट के प्रति उनके समर्पण और साहस के लिए आज भी याद किया जाता है. भारत में क्रिकेट के लिए उनके योगदान को देखते हुए, बीसीसीआई ने वर्ष 2011 में उनकी याद में “पटौदी ट्रॉफी” का आयोजन शुरू किया, जो इंग्लैंड और भारत के बीच खेली जाती है.
मंसूर अली ख़ान पटौदी का निधन 22 सितंबर 2011 को नई दिल्ली में फेफड़ों के संक्रमण के कारण हुआ. उनके निधन के साथ भारतीय क्रिकेट ने एक महान नेता और प्रेरक व्यक्ति को खो दिया, लेकिन उनकी विरासत और क्रिकेट के प्रति उनका समर्पण आज भी प्रेरणा का स्रोत है.
मंसूर अली ख़ान पटौदी को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में हमेशा एक महान कप्तान, खिलाड़ी, और सच्चे नेता के रूप में याद किया जाता रहेगा.
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अभिनेत्री आशालता वाबगांवकर
आशालता वाबगांवकर एक भारतीय फिल्म और रंगमंच अभिनेत्री थीं, जो मुख्य रूप से मराठी और हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती थीं. उनका जन्म 2 जुलाई 1941 को गोवा में हुआ था. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत मराठी थिएटर से की और बाद में हिंदी फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई.
आशालता वाबगांवकर मराठी सिनेमा और थिएटर की जानी-मानी अभिनेत्री थीं. मराठी रंगमंच पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं और अपने अभिनय के लिए सराही गईं. उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी बेहतरीन काम किया.
प्रमुख फिल्में: – जंजीर (1973), नमक हलाल (1982), शराबी (1984), वो सात दिन (1983). इन फिल्मों में उनके सशक्त अभिनय ने उन्हें हिंदी सिनेमा में भी एक खास स्थान दिलाया.
आशालता वाबगांवकर ने टेलीविजन पर भी कई धारावाहिकों में काम किया और अपनी पहचान बनाई. उनके अभिनय का दायरा बहुत विस्तृत था, जो उन्हें एक बहुआयामी अभिनेत्री के रूप में प्रतिष्ठित करता है. आशालता वाबगांवकर की अदाकारी सादगी, गहराई, और प्राकृतिकता का मेल थी. वे किरदारों में वास्तविकता और जीवन डालने के लिए जानी जाती थीं, और उनके अभिनय में भावनाओं की सजीवता देखने को मिलती थी.
आशालता वाबगांवकर का निधन 22 सितंबर 2020 को हुआ. वे एक फिल्म की शूटिंग के दौरान कोविड-19 संक्रमण से ग्रसित हो गई थीं, और उनका पुणे में इलाज के दौरान निधन हो गया. उनकी सरलता, अद्भुत अभिनय कौशल और सिनेमा एवं रंगमंच में योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.