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व्यक्ति विशेष

भाग – 266.

श्रीपाद दामोदर सातवलेकर

श्रीपाद दामोदर सातवलेकर (1867–1968) एक भारतीय चित्रकार, संस्कृत विद्वान, और भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के समर्थक थे. उन्होंने भारतीय परंपराओं, कला और संस्कृति को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. सातवलेकर ने अपनी चित्रकला में भारतीय देवी-देवताओं और पुरानी भारतीय सभ्यता के दृश्यों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया.

श्रीपाद दामोदर सातवलेकर का जन्म 19 सितम्बर, 1867 में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित ‘सावंतवाड़ी’ रियासत में हुआ था. उनका कला शिक्षण का केंद्र “वेदशास्त्र ज्ञान प्रसारक मंडल” नामक संस्था थी, जहाँ उन्होंने वेद, उपनिषद, और प्राचीन भारतीय ज्ञान पर कार्य किया. इसके साथ ही वे आयुर्वेद और योग के भी विद्वान थे. उनका जीवन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने और उसे आधुनिक समाज में प्रस्तुत करने के लिए समर्पित था.

सातवलेकर का मानना था कि भारतीय कला को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त करना आवश्यक है, और उन्होंने अपने काम में प्राचीन भारतीय शैली को प्रमुखता दी. उनके कार्यों का प्रभाव भारतीय कला और संस्कृति में आज भी देखने को मिलता है. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर का निधन  31 जुलाई, 1969 को हुआ था उस वक्त उनकी उम्र  102 वर्ष थी.

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कवि कुंवर नारायण

कुंवर नारायण (1927-2017) हिंदी साहित्य के महान कवि, कथाकार और आलोचक थे. उन्हें आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है. कुंवर नारायण की कविताएँ गहन संवेदनशीलता, दार्शनिकता, और मानवता से भरी हुई होती थीं. उनके काव्य में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों का अनूठा संगम दिखाई देता है.

कुंवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर 1927  को फ़ैज़ाबाद (उत्तर प्रदेश ) में हुआ और उनका निधन 15 नवंबर 2017 को हुआ था. वर्ष 1973-79 तक कवि कुंवर नारायण  ‘संगीत नाटक अकादमी’ के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे थे.  कुंवर ने 1975-78 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया था.

काव्य कृतियाँ: –

“चक्रव्यूह” (1956): – यह उनकी पहली कविता संग्रह थी, जिसमें उन्होंने अभिमन्यु के चक्रव्यूह के प्रतीक का उपयोग करते हुए जीवन के संघर्षों को व्यक्त किया.

“परिवेश: हम-तुम” (1961): – इसमें व्यक्तिगत और सामाजिक परिवेश के बीच की जटिलताओं को दर्शाया गया है.

“कोई दूसरा नहीं” (1993): – इस संग्रह में मानव जीवन के अनुभवों और अस्तित्व की गहन विवेचना की गई है.

कुंवर नारायण ने कविता के साथ-साथ आलोचना, कहानी, और अनुवाद के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी रचनाओं का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है, और उन्हें साहित्य जगत में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे: -साहित्य अकादमी पुरस्कार (1995), ज्ञानपीठ पुरस्कार (2005).

उनकी रचनाएँ मानवीय करुणा, सहनशीलता, और बौद्धिक विवेक की अभिव्यक्ति करती हैं, और वे एक ऐसे कवि के रूप में याद किए जाते हैं जिनकी कविता आज भी समय और समाज से संवाद करती है.

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संगीतकार और अभिनेता लकी अली

लकी अली एक भारतीय गायक, संगीतकार, और अभिनेता हैं. उनका जन्म 19 सितंबर 1958 को हुआ था. वे मशहूर कॉमेडियन और अभिनेता महमूद के बेटे हैं. उनका वास्तविक नाम मकसूद महमूद अली है. लकी अली अपने अद्वितीय और सुकूनदायक संगीत के लिए जाने जाते हैं, जो 90 के दशक में बेहद लोकप्रिय हुआ. उनकी आवाज़ और संगीत शैली ने उन्हें भारतीय इंडी-पॉप के सबसे प्रभावशाली कलाकारों में से एक बना दिया.

लकी अली का पहला एल्बम “सुनो” (1996) सुपरहिट हुआ, जिसमें उनका सबसे लोकप्रिय गीत “ओ सनम” था. यह गीत आज भी भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में बसा हुआ है. लकी अली की आवाज़ में एक अनूठी गहराई और सादगी है.

एल्बम्स और गाने:“सिफर” (1998), “आक्सिजन” (2000), “कभी ऐसा लगता है” (2004). उनका संगीत जीवन के सरल और वास्तविक अनुभवों को अभिव्यक्त करता है. वह अक्सर अपने गीतों में प्यार, जीवन और अस्तित्व के गहरे प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

लकी अली ने संगीत के अलावा फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने 1970 के दशक में कुछ फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया. इसके अलावा, उन्होंने कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाईं.

फिल्में: –

“कांटे” (2002) – इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

” सुर: द मेलोडी ऑफ लाइफ ” (2002) – इस फिल्म में लकी अली ने एक संगीत शिक्षक की मुख्य भूमिका निभाई थी, और इसमें उनके गानों ने भी खूब लोकप्रियता पाई.

लकी अली का जीवन सरल और ध्यानपूर्ण है. वे ग्लैमर से दूर रहकर अपने संगीत और परिवार के साथ सादगी भरा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं. उनके गीतों में अक्सर उनके जीवन के अनुभव और आध्यात्मिक विचारधारा की झलक मिलती है.

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अंतरिक्षयात्री सुनीता विलियम्स

सुनीता विलियम्स एक भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में कई महत्वपूर्ण मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा किया है. उनका पूरा नाम सुनीता लिंडा पंड्या विलियम्स है, और उनका जन्म 19 सितंबर 1965 को ओहियो, अमेरिका में हुआ था. उनके पिता, दीपक पंड्या, भारतीय मूल के हैं और उनकी माँ स्लोवेनियाई मूल की हैं. सुनीता विलियम्स नासा (National Aeronautics and Space Administration) की अंतरिक्ष यात्री हैं और उन्होंने अंतरिक्ष में कई रिकॉर्ड स्थापित किए हैं.

सुनीता ने 1987 में यूनाइटेड स्टेट्स नेवल एकेडमी से भौतिक विज्ञान में स्नातक किया और इसके बाद 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग प्रबंधन में मास्टर डिग्री प्राप्त की. वे अमेरिकी नौसेना में पायलट के रूप में शामिल हुईं और बाद में एक परीक्षण पायलट के रूप में भी काम किया.

अंतरिक्ष मिशन: – सुनीता विलियम्स ने दो प्रमुख अंतरिक्ष मिशनों में भाग लिया है.

STS-116 मिशन (दिसंबर 2006): –  सुनीता ने अपने पहले मिशन में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लगभग 195 दिन बिताए, जो उस समय किसी भी महिला द्वारा अंतरिक्ष में सबसे अधिक समय था. इस मिशन के दौरान उन्होंने चार अंतरिक्ष यात्राएँ (Spacewalks) कीं, जो उस समय किसी महिला द्वारा सबसे अधिक थीं.

Expedition 32/33 मिशन (जुलाई 2012): –  उन्होंने अंतरिक्ष स्टेशन पर कमांडर के रूप में काम किया और इस मिशन में 127 दिन बिताए. इस मिशन के दौरान, उन्होंने तीन और स्पेसवॉक किए, और उन्होंने कुल सात स्पेसवॉक के साथ 50 घंटे से अधिक समय बिताया, जो किसी भी महिला अंतरिक्ष यात्री के लिए एक रिकॉर्ड है.

अन्य उपलब्धियाँ: –  सुनीता ने अंतरिक्ष में सबसे अधिक समय बिताने और सबसे अधिक स्पेसवॉक करने वाली महिला के रूप में कई रिकॉर्ड बनाए हैं. वह अंतरिक्ष में कुल 322 दिन बिता चुकी हैं, जो किसी भी अमेरिकी महिला अंतरिक्ष यात्री के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है. वह अंतरिक्ष स्टेशन पर कमांडर बनने वाली दूसरी महिला भी हैं.

सुनीता विलियम्स ने अपने कैरियर में बहुत से पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, और वह विज्ञान और अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं. उनके भारतीय मूल के कारण वे भारत में भी बहुत प्रसिद्ध हैं, और भारतीय समुदाय में उन्हें गर्व और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

उनकी जीवन यात्रा ने दुनिया भर में लोगों को प्रेरित किया है, खासकर उन महिलाओं को जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हैं.

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अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर

ईशा कोप्पिकर एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने बॉलीवुड के साथ-साथ तमिल, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. उनका जन्म 19 सितंबर 1976 को मुंबई में हुआ था.

ईशा ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1998 में तमिल फिल्म Kaadhal Kavithai से की थी, उसके बाद इन्होंने हिन्दी फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 2000 में फिल्म फ़िज़ा से कीं थीं.  उन्हें 2002 में आई फिल्म कंपनी के “खल्लास” गाने से लोकप्रियता मिली. इस गाने ने उन्हें “खल्लास गर्ल” के रूप में पहचान दिलाई.

ईशा ने डॉन (2006), क्या कूल हैं हम (2005), पिंजर (2003), दिल का रिश्ता (2003) जैसी फिल्मों में अभिनय किया है. इसके अलावा, उन्होंने रियलिटी टीवी और समाजसेवा के क्षेत्रों में भी योगदान दिया है.

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क्रिकेटर आकाश चोपड़ा

 आकाश चोपड़ा एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान में एक मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर और विश्लेषक हैं. उनका जन्म 19 सितंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. वह मुख्य रूप से एक सलामी बल्लेबाज के रूप में खेले और भारत की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा रहे.

आकाश ने घरेलू क्रिकेट में दिल्ली और राजस्थान की टीमों का प्रतिनिधित्व किया और भारत के लिए 2003-04 में टेस्ट मैच खेले. उनका टेस्ट क्रिकेट में मुख्य योगदान भारत के लिए विदेशों में ओपनिंग बल्लेबाज के रूप में रहा, खासकर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर. उन्होंने टेस्ट मैचों में अपनी दृढ़ता और तकनीकी कौशल से एक मजबूत ओपनर के रूप में पहचान बनाई.

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, आकाश चोपड़ा ने खुद को एक सफल क्रिकेट विश्लेषक और कमेंटेटर के रूप में स्थापित किया. उनके द्वारा लिखी गई क्रिकेट से संबंधित किताबें भी काफी लोकप्रिय हुई हैं, और उन्हें सोशल मीडिया पर उनके क्रिकेट विश्लेषण और विचारों के लिए जाना जाता है.

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कर्नम मल्लेश्वरी

कर्णम मल्लेश्वरी एक भारतीय वेटलिफ्टर (भारोत्तोलक) हैं, जिन्होंने भारत को ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में पदक दिलाने वाली पहली महिला खिलाड़ी के रूप में इतिहास रचा. उनका जन्म 1 जून 1975 को आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में हुआ था.

प्रमुख उपलब्धियाँ: –

मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीता, जिससे वह ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

वर्ष 1994 – 95 में उन्होंने विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते.

इसके अलावा, उन्होंने एशियाई खेलों और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी कई पदक हासिल किए. उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें 1999 में राजीव गांधी खेल रत्न और 1994 में पद्म श्री शामिल हैं.

कर्णम मल्लेश्वरी ने भारतीय खेलों में महिलाओं के लिए एक प्रेरणादायक भूमिका निभाई है, और उनका योगदान भारतीय खेल इतिहास में अमूल्य माना जाता है.

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अभिनेत्री प्रिया तेंदुलकर

प्रिया तेंदुलकर एक भारतीय अभिनेत्री, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जो मुख्य रूप से टेलीविजन और फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 19 अक्टूबर 1954 को हुआ था और वे प्रसिद्ध मराठी लेखक और नाटककार विजय तेंदुलकर की बेटी थीं. प्रिया तेंदुलकर को टीवी धारावाहिक रजनी (1985) से अपार लोकप्रियता मिली, जिसमें उन्होंने एक साहसी और सशक्त महिला की भूमिका निभाई, जो सामाजिक मुद्दों पर आवाज उठाती है. यह शो उस समय के भारतीय समाज में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ था.

प्रिया तेंदुलकर ने फिल्मों में भी काम किया, जैसे कि आंखें (1993) और त्रिमूर्ति (1995), लेकिन उनकी मुख्य पहचान टेलीविजन से बनी. इसके अलावा, उन्होंने थिएटर और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. प्रिया तेंदुलकर को उनकी बेबाकी और सामाजिक मुद्दों पर स्पष्ट दृष्टिकोण के लिए जाना जाता था.

उनका निधन 19 सितंबर 2002 को 47 वर्ष की आयु में हुआ. प्रिया तेंदुलकर को भारतीय टेलीविजन और सिनेमा में उनके योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है.

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पंत की मानस पुत्री सरस्वती प्रसाद

पंत की मानस पुत्री सरस्वती प्रसाद एक प्रमुख हिंदी साहित्यिक व्यक्तित्व हैं, जो कि कवि महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध कविता “सरस्वती” के संदर्भ में उल्लेखित होती हैं. यह कविता महादेवी वर्मा की काव्य कृति “सप्तपर्णा” में शामिल है.

सरस्वती प्रसाद का जन्म  28 अगस्त, 1932 को आरा (बिहार) में हुआ था और उनका निधन 19 सितम्बर, 2013 को हुआ. सरस्वती प्रसाद के पति का नाम रामचन्द्र प्रसाद है.

महादेवी वर्मा ने “सरस्वती” के माध्यम से एक दिव्य और प्रेरणादायक रूप में सरस्वती देवी की पूजा की है, जो ज्ञान, कला, और संगीत की देवी मानी जाती हैं. यह कविता उनकी व्यक्तिगत संवेदनाओं और आध्यात्मिक जुड़ाव को प्रकट करती है, जो साहित्य और कला में गहरी अंतर्दृष्टि और प्रेरणा का स्रोत बनती है.

पंत की मानस पुत्री नाम से साहित्यिक संदर्भ में सरस्वती प्रसाद को महादेवी वर्मा की महानता और उनकी काव्यात्मक कृतियों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है.

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