बंगाली कवियित्री कामिनी रॉय
कामिनी रॉय बंगाली भाषा की प्रमुख कवियित्री, समाज सुधारक, और शिक्षाविद थीं. वे भारत की पहली महिला थीं जिन्होंने साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी. कामिनी रॉय का जन्म 12 अक्टूबर, 1864 को बंगाल के बसंदा गाँव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश के बारीसाल जिले में पड़ता है.
उन्होंने वर्ष 1886 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कामिनी रॉय की कविताओं में समाज में महिलाओं की स्थिति, नारीवाद, और मानवीय अधिकारों पर गहरा प्रभाव देखा जाता है.
उनकी प्रमुख रचनाओं में “आलोकलता” (1909), “निर्जर” (1914), और “माल्य-ओ-निर्माल्य” (1927) शामिल हैं. कामिनी रॉय की कविताओं में नारी के अधिकारों और स्वतंत्रता की बात की गई है, जो उस समय के समाज के लिए क्रांतिकारी थी. उनका योगदान नारीवाद के क्षेत्र में भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक स्वतंत्रता के लिए अपनी आवाज उठाई. वे वर्ष 1921 में बंगीय साहित्य परिषद की सदस्य बनीं और वर्ष 1933 में उनका निधन हो गया.
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क्रांतिकारी पेरीन बेन
पेरीन बेन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला क्रांतिकारी थीं. उनका पूरा नाम पेरीन फर्दूनजी कैप्टन था, और वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी पारसी महिला क्रांतिकारियों में से एक थीं. पेरीन बेन महात्मा गांधी की करीबी अनुयायी थीं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थीं.
पेरीन बेन का जन्म 12 अक्तूबर 1888 को कच्छ रियासत के मांडवी कस्बे के एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था. उनकी शिक्षा विदेश में हुई, और यूरोप से लौटने के बाद वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं. गांधीजी के सिद्धांतों और विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार जैसे आंदोलनों में भाग लिया.
वे न केवल राजनीतिक रूप से सक्रिय थीं, बल्कि महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई आंदोलनों में हिस्सा लेने के साथ-साथ समाज सुधार के कार्यों में भी जुटी रहीं.
पेरीन बेन का योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, बल्कि वे भारतीय नारी शक्ति का भी प्रतीक हैं. उनके संघर्ष और साहस ने कई महिलाओं को प्रेरित किया, और वे एक सशक्त महिला क्रांतिकारी के रूप में याद की जाती हैं.
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वैज्ञानिक आत्मा राम
डॉ. आत्मा राम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जिन्होंने भारतीय विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे भौतिक रसायनशास्त्र (Physical Chemistry) के विशेषज्ञ थे और भारतीय कांच उद्योग के विकास में उनके योगदान के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. आत्मा राम भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे और उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियों का निर्माण किया.
डॉ. आत्मा राम का जन्म 12 अक्टूबर सन 1908 में उत्तर प्रदेश राज्य के बिजनौर ज़िले में पीलाना नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से प्राप्त की और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) गए, जहां उन्होंने भौतिक विज्ञान (Physics) में स्नातक और परास्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
डॉ. आत्मा राम को भारतीय कांच उद्योग के विकास में उनके कार्यों के लिए जाना जाता है. उन्होंने कांच की तकनीकी गुणवत्ता में सुधार किया, जिससे भारत आत्मनिर्भर हो सका. उनका शोध कांच के विभिन्न प्रकारों, जैसे ऑप्टिकल ग्लास और फाइबर ग्लास, के निर्माण और उपयोग पर केंद्रित था.
आत्मा राम वर्ष 1966-71 तक काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के महानिदेशक रहे. इस दौरान उन्होंने वैज्ञानिक शोध और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कई कदम उठाए. उनके कार्यकाल में सीएसआईआर ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण शोध कार्य किए.
आत्मा राम ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस (Indian Science Congress) में भी प्रमुख भूमिका निभाई और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को एकजुट किया. वे प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे और उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी नीतियों के विकास में योगदान दिया, जो भारत के औद्योगिक और तकनीकी विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ.
डॉ. आत्मा राम को उनके योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें वर्ष 1961 में विज्ञान और इंजीनियरिंग में पद्म श्री पुरस्कार भी शामिल है. उनके नाम पर भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कई प्रतिष्ठित सम्मान और संस्थान हैं, जो उनके वैज्ञानिक योगदान को याद करते हैं. डॉ. आत्मा राम का जीवन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत है, और उनके कार्यों ने देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया.
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क्रिकेट खिलाड़ी विजय मर्चेन्ट
विजय मर्चेन्ट जिनका पूरा नाम विजय माधवजी ठाकरसी मर्चेन्ट था, भारत के महानतम क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक माने जाते हैं. वे भारतीय क्रिकेट के प्रारंभिक युग के सबसे सफल बल्लेबाजों में से एक थे. घरेलू क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड बेहद प्रभावशाली रहा है. मर्चेन्ट को उनकी तकनीकी कुशलता और बल्लेबाजी की उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए.
विजय मर्चेन्ट का जन्म 12 अक्टूबर 1911 को मुंबई के एक संपन्न गुजराती व्यापारी परिवार में हुआ था. उनकी शिक्षा मुंबई के विल्सन कॉलेज में हुई, जहाँ उन्होंने क्रिकेट के प्रति अपने गहरे जुनून को विकसित किया. विजय मर्चेन्ट ने वर्ष 1929 में मुंबई (तब बॉम्बे) की ओर से अपना प्रथम श्रेणी क्रिकेट डेब्यू किया. उन्होंने अपनी शानदार बल्लेबाजी से जल्दी ही नाम कमाया. मर्चेन्ट की बल्लेबाजी शैली तकनीकी रूप से बहुत सुदृढ़ थी, और वे लंबे समय तक क्रीज पर टिके रहने की कला में माहिर थे.
विजय मर्चेन्ट का प्रथम श्रेणी क्रिकेट में बेहद शानदार रिकॉर्ड रहा. उन्होंने 150 मैचों में 71.64 की औसत से 13,470 रन बनाए, जिसमें 45 शतक और 52 अर्धशतक शामिल हैं. यह औसत उन्हें सर्वकालिक महान बल्लेबाजों की श्रेणी में रखता है. विजय मर्चेन्ट ने वर्ष 1933 – 51 के बीच भारत के लिए 10 टेस्ट मैच खेले, जिनमें उन्होंने 47.72 की औसत से 859 रन बनाए. उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ कई बेहतरीन पारियाँ खेलीं. हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध और उनके स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण वे ज्यादा टेस्ट मैच नहीं खेल पाए.
मर्चेन्ट ने रणजी ट्रॉफी में बॉम्बे की टीम का नेतृत्व किया और कई मौकों पर उन्हें जीत दिलाई. रणजी ट्रॉफी में उनका रिकॉर्ड असाधारण था, और वे इस टूर्नामेंट के सबसे महान बल्लेबाजों में गिने जाते हैं. विजय मर्चेन्ट और विजय हज़ारे के बीच की तुलना भारतीय क्रिकेट में प्रसिद्ध है. दोनों ने अपने-अपने समय में भारतीय क्रिकेट को ऊँचाईयों पर पहुँचाया, और कई लोग इस बात पर बहस करते हैं कि दोनों में से कौन बेहतर था.
वर्ष 1951 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद विजय मर्चेन्ट ने क्रिकेट प्रसारण और कमेंट्री में भी अपना योगदान दिया. वे एक उत्कृष्ट कमेंटेटर बने और भारतीय क्रिकेट के प्रति अपने दृष्टिकोण को साझा किया. इसके अलावा, उन्होंने सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाई और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की मदद के लिए काम किया. विजय मर्चेन्ट को भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान के लिए अत्यधिक सम्मानित किया गया. क्रिकेट के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले, और उनके नाम पर भारत में एक महत्वपूर्ण क्रिकेट टूर्नामेंट भी है.
विजय मर्चेन्ट को भारतीय क्रिकेट के “भद्रपुरुष” (Gentleman of Cricket) के रूप में याद किया जाता है, और उनकी बल्लेबाजी की कला आज भी नई पीढ़ी के क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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राजनीतिज्ञ शिवराज पाटील
शिवराज पाटील भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता हैं, जिन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के वरिष्ठ सदस्य रहे हैं और कई दशकों तक भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. शिवराज पाटील विशेष रूप से भारत के लोकसभा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के लिए जाने जाते हैं.
शिवराज पाटील का जन्म 12 अक्तूबर, 1935 को महाराष्ट्र राज्य के लातूर जिले के चाकूर गांव में हुआ था. उनकी शिक्षा महाराष्ट्र में हुई, और वे कानून में स्नातक (LLB) हैं. पाटील एक शिक्षित और सुसंस्कृत नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने राजनीति में प्रवेश करने से पहले कानून की प्रैक्टिस भी की थी.
शिवराज पाटील वर्ष 1977 – 2004 तक महाराष्ट्र के लातूर से कई बार लोकसभा के सदस्य रहे. वे भारतीय संसद के उच्चतम पदों में से एक, लोकसभा अध्यक्ष (वर्ष 1991-96) के रूप में कार्य कर चुके हैं. उनके कार्यकाल को संसदीय प्रक्रियाओं के संचालन में उनकी निष्पक्षता और दक्षता के लिए सराहा गया. उन्होंने सदन को सुचारू रूप से चलाने और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
शिवराज पाटील को वर्ष 2004 में केंद्रीय गृह मंत्री नियुक्त किया गया था, जब कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार बनी थी. वे वर्ष 2008 तक इस पद पर रहे. हालाँकि, उनके कार्यकाल के दौरान कुछ विवाद और चुनौतियाँ भी सामने आईं, विशेष रूप से वर्ष 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के समय उनके नेतृत्व की आलोचना की गई थी. इसके बाद उन्होंने गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. शिवराज पाटील को वर्ष 2010 में पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया. उन्होंने इस भूमिका में भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया और विभिन्न प्रशासनिक कार्यों में योगदान दिया.
शिवराज पाटील को एक सादगीपूर्ण, विनम्र, और ईमानदार नेता के रूप में देखा जाता है. उनका स्वभाव शांत और संतुलित है, और उनकी राजनीतिक शैली में गंभीरता और अनुशासन दिखाई देता है. हालांकि उनकी आलोचना भी हुई, खासकर मुंबई हमलों के समय, लेकिन उनकी छवि एक सुलझे हुए और समर्पित राजनेता की बनी रही.
शिवराज पाटील ने भारतीय राजनीति में अपनी सेवाओं के जरिए एक लंबा और विविधतापूर्ण कैरियर बनाया. उनकी संसदीय प्रक्रियाओं में गहरी समझ, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक क्षमताओं के चलते उन्हें भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है. उनका लंबा और समर्पित राजनीतिक जीवन उन्हें भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तियों में से एक बनाता है, और उनके योगदान को उनके विभिन्न पदों पर याद किया जाएगा.
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उर्दू शायर और गीतकार निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली उर्दू के प्रतिष्ठित शायर और हिंदी सिनेमा के मशहूर गीतकार थे. उनका असली नाम मुक़्तदा हसन था, लेकिन साहित्यिक दुनिया में वे निदा फ़ाज़ली के नाम से मशहूर हुए. फ़ाज़ली साहब की शायरी में सरलता, मानवीय भावनाओं का गहरा चित्रण और जीवन की सच्चाइयों का बारीक अहसास मिलता है, जो उन्हें समकालीन शायरों से अलग पहचान दिलाता है.
निदा फ़ाज़ली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था, लेकिन उनका परिवार ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में बस गया था. विभाजन के समय, जब उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, तब निदा फ़ाज़ली ने भारत में ही रुकने का निर्णय लिया. यही अनुभव उनकी शायरी में विभाजन की पीड़ा और जीवन की कठिनाइयों के रूप में उभरकर आया.
निदा फ़ाज़ली का साहित्यिक कैरियर उर्दू शायरी से शुरू हुआ. वे ग़ज़ल, नज़्म, दोहे और गीत लिखने में माहिर थे. उनकी रचनाएँ सरल भाषा में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध थीं. उनकी शायरी में सूफ़ियाना रंग और आध्यात्मिक विचारधारा का भी समावेश था. उन्होंने इंसान के मनोभावों, सामाजिक मुद्दों और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बेहद सहज और सशक्त शब्दों में अपनी बात कही.
उनकी कुछ लोकप्रिय शेर हैं: –
“घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए।”
“कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन तो कहीं आसमां नहीं मिलता।”
“हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना।”
इनकी शायरी को आम इंसान की समस्याओं और जीवन की जटिलताओं से जोड़ा जाता है, और उन्होंने जीवन के दुख-सुख को बहुत सरल और प्रभावी शब्दों में प्रस्तुत किया.
निदा फ़ाज़ली ने हिंदी सिनेमा में गीतकार के रूप में भी बड़ी पहचान बनाई. उनके गीतों में एक सादगी और गहराई थी, जो सुनने वालों को छू जाती थी. उन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में कई लोकप्रिय हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे. उनकी कुछ मशहूर फिल्मों के गीत हैं: –
“तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है” – फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता (1981),
“होशवालों को ख़बर क्या, बेख़ुदी क्या चीज़ है” – फ़िल्म सरफ़रोश (1999),
“कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता” – फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता (1981),
उनके गीतों में मानवीय भावनाओं, प्रेम, विछोह, और जीवन की गहराइयों का सुंदर चित्रण मिलता है.
निदा फ़ाज़ली को उनके साहित्यिक योगदान और फिल्मी गीतों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें वर्ष 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. इसके अलावा, उन्होंने उर्दू साहित्य में योगदान के लिए कई अन्य सम्मान भी प्राप्त किए. निदा फ़ाज़ली का जीवन बेहद सादगीपूर्ण और साहित्य के प्रति समर्पित रहा. उन्होंने जीवन भर उर्दू साहित्य और भारतीय संगीत में योगदान दिया. उनकी शायरी में धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी गहरी समझ दिखती है.
निदा फ़ाज़ली का निधन 8 फरवरी 2016 को हुआ, लेकिन उनकी शायरी और गीत आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं. उनकी रचनाएँ सरल, मानवीय और गहरी हैं, जो हमेशा साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करती रहेंगी.
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सितार वादक शिवनाथ मिश्रा
पंडित शिवनाथ मिश्रा एक भारतीय सितार वादक हैं, जो बनारस घराने (काशी घराने) से ताल्लुक रखते हैं. उन्हें शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपने विशिष्ट शैली और तकनीकी निपुणता के लिए जाना जाता है. पंडित शिवनाथ मिश्रा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है और सितार वादन में अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध हैं.
पंडित शिवनाथ मिश्रा का जन्म बनारस (अब वाराणसी), उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित संगीत परिवार में हुआ था. उनका परिवार कई पीढ़ियों से भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा का पालन करता आ रहा था. वे अपने पिता, पंडित मोहनलाल मिश्रा, से संगीत की शिक्षा प्राप्त करने लगे और कम उम्र में ही उन्होंने सितार पर महारत हासिल कर ली. बनारस घराने की विशेषता उनकी संगीत की जड़ों में रही है, और उन्होंने इस घराने की परंपरा को बहुत ही शानदार तरीके से आगे बढ़ाया.
पंडित शिवनाथ मिश्रा ने बनारस घराने की विशिष्टता को अपने सितार वादन में जीवंत बनाए रखा. बनारस घराने की विशेषता होती है कि यह ठुमरी, ख्याल, और ध्रुपद जैसी शैलियों का गहरा प्रभाव लिए होता है. शिवनाथ मिश्रा ने अपनी कला में इन शैलियों को बखूबी ढाला और इसे अपने सितार वादन में सम्मिलित किया. उनका सितार वादन बहुत ही लयबद्ध और भावपूर्ण होता है, और वे इसे बहुत सूक्ष्मता और सटीकता के साथ प्रस्तुत करते हैं. उनका संगीत सुर, लय और भाव का अद्वितीय संयोजन होता है, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है.
उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया है और शास्त्रीय संगीत के चाहने वालों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए हैं. भारत के अलावा, उन्होंने यूरोप, अमेरिका, और अन्य देशों में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार किया. पंडित शिवनाथ मिश्रा एक महान शिक्षक भी हैं और उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए कई शिष्यों को प्रशिक्षित किया है. उनके पुत्र, पंडित देबाशीष मिश्रा, भी एक प्रसिद्ध सितार वादक हैं और अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
पंडित शिवनाथ मिश्रा को भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं. उनकी कला और संगीत के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच बेहद प्रतिष्ठित बनाया है.
पंडित शिवनाथ मिश्रा की विरासत उनकी संगीत साधना, शिष्य परंपरा और भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति उनके गहरे समर्पण में दिखाई देती है. उन्होंने बनारस घराने की विशिष्टता को कायम रखा है और इसे दुनिया भर में फैलाया है. उनके सितार वादन का प्रभाव कई पीढ़ियों तक महसूस किया जाएगा, और वे भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा के एक महत्वपूर्ण स्तंभ बने रहेंगे.
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अभिनेत्री अक्षरा हासन
अक्षरा हासन एक भारतीय अभिनेत्री और सहायक निर्देशक हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और तमिल फिल्मों में काम करती हैं. वे दिग्गज अभिनेता कमल हासन और अभिनेत्री सारिका की छोटी बेटी हैं, और उनकी बड़ी बहन अभिनेत्री श्रुति हासन हैं. अक्षरा ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने काम से एक अलग पहचान बनाई है, और अपनी अभिनय शैली के लिए सराही जाती हैं.
अक्षरा हासन का जन्म 12 अक्टूबर 1991 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था. उनका परिवार फिल्मी पृष्ठभूमि से जुड़ा है, जिसमें उनके पिता और मां दोनों फिल्मी दुनिया के प्रतिष्ठित नाम हैं. अक्षरा ने मुंबई और चेन्नई में अपनी पढ़ाई पूरी की. वे बहुभाषी हैं और हिंदी, तमिल, और अंग्रेज़ी भाषा बोल सकती हैं.
अक्षरा ने सहायक निर्देशक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया, इससे पहले कि वे एक अभिनेत्री के रूप में सामने आईं. उनकी फिल्मी शुरुआत 2015 में “शमिताभ” से हुई, जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन और धनुष के साथ काम किया. इस फिल्म में अक्षरा ने एक सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई और अपनी पहली फिल्म से ही दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा सफल नहीं रही, लेकिन अक्षरा के काम की सराहना हुई. इसके बाद उन्होंने तमिल सिनेमा में भी काम किया और अपने अभिनय से पहचान बनाई
अक्षरा हासन को फिल्म इंडस्ट्री में एक स्वतंत्र और सशक्त महिला के रूप में देखा जाता है, जो अपनी शर्तों पर काम करना पसंद करती हैं. वे अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी राय साझा करती हैं और अपने परिवार के साथ उनके गहरे संबंध को लेकर चर्चा में रहती हैं. अक्षरा मार्शल आर्ट्स और डांस की भी शौकीन हैं, और वे कला के इन रूपों में भी निपुण हैं. उनके बारे में यह भी जाना जाता है कि वे फिल्मों के तकनीकी पहलुओं में गहरी रुचि रखती हैं, जो उनके निर्देशन के प्रति रुचि को दर्शाता है.
अक्षरा हासन ने धीरे-धीरे लेकिन मजबूती से भारतीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाई है, और वे अपनी बहन श्रुति हासन की तरह एक प्रतिभाशाली और बहुमुखी अभिनेत्री मानी जाती हैं.
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अभिनेत्री मीनाक्षी दीक्षित
मीनाक्षी दीक्षित एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से तेलुगु, तमिल, मलयालम, और हिंदी सिनेमा में काम करती हैं. मीनाक्षी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत दक्षिण भारतीय फिल्मों से की और धीरे-धीरे अपने अभिनय और खूबसूरती के चलते अलग पहचान बनाई.
मीनाक्षी दीक्षित का जन्म 12 अक्टूबर 1988 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था. उनके पिता, ईश्वर चंद्र दीक्षित, एक वकील हैं, और उनकी माता, गीता दीक्षित, एक गृहिणी हैं. मीनाक्षी बचपन से ही नृत्य, विशेष रूप से कथक और बैले में रुचि रखती थीं, जिससे उनके अभिनय में भी एक कलात्मक तत्व जुड़ा हुआ है.
मीनाक्षी ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और विभिन्न विज्ञापन अभियानों का हिस्सा बनीं. इसके बाद उन्होंने वर्ष 2008 में टीवी डांस रियलिटी शो “नचले वे विद सरोज खान” में हिस्सा लिया, जिससे उन्हें पहचान मिली. इसके बाद उन्हें फिल्मों में काम करने का अवसर मिलने लगा.
मीनाक्षी दीक्षित ने साउथ इंडस्ट्री की कई फिल्मों में काम किया और धीरे-धीरे अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता. उन्होंने प्रमुख रूप से तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम किया.
फिल्में: –
“लाइफ इज़ ब्यूटीफुल” (2012): – यह एक तेलुगु फिल्म थी, जिसमें मीनाक्षी के किरदार की सराहना हुई.
“एक्शन 3D” (2013): – इस तेलुगु फिल्म में उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई.
“तानाजी: द अनसंग वॉरियर” (2020): – इस हिंदी फिल्म में मीनाक्षी दीक्षित ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अजय देवगन स्टारर इस ऐतिहासिक फिल्म का हिस्सा थी.
मीनाक्षी की अभिनय शैली में एक खास सरलता और शालीनता है. वे अपने किरदारों में गहराई और वास्तविकता लाने के लिए जानी जाती हैं. नृत्य में उनकी पृष्ठभूमि भी उनके अभिनय में एक अतिरिक्त आकर्षण जोड़ती है, जो उनके गीतों और डांस सीक्वेंस में दिखाई देता है. मीनाक्षी दीक्षित का जीवन सादगीपूर्ण है और वे अपने कैरियर पर ध्यान केंद्रित करती हैं. वे फिटनेस और डांस के प्रति जुनूनी हैं और सोशल मीडिया पर अपने फैंस के साथ अपनी फिटनेस दिनचर्या और जीवनशैली के बारे में साझा करती रहती हैं.
मीनाक्षी दीक्षित ने दक्षिण भारतीय सिनेमा से लेकर बॉलीवुड तक अपनी छाप छोड़ी है, और उनकी अभिनय यात्रा अभी भी जारी है. उनकी सुंदरता और प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक खास जगह दिलाई है.
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स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राममनोहर लोहिया
डॉ. राममनोहर लोहिया भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा, समाजवादी विचारक, और प्रभावशाली राजनेता थे. वे भारतीय समाजवाद के प्रमुख नेता माने जाते हैं और भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में सुधार के लिए अपने दृढ़ विचारों और नीतियों के लिए प्रसिद्ध थे. लोहिया ने भारतीय राजनीति में गरीबों और पिछड़ों की आवाज को बुलंद करने का महत्वपूर्ण कार्य किया.
राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर, अयोध्या में हुआ था. उनके पिता हीरा लाल लोहिया गांधीजी के अनुयायी थे और राममनोहर लोहिया पर उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा. लोहिया की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी और मुंबई में हुई. बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए, जहां उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की.
डॉ. लोहिया स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सक्रिय रूप से शामिल हुए. उन्होंने वर्ष 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़कर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की. वे एक मुखर समाजवादी थे और अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष में समाजवादी विचारधारा का प्रचार किया. लोहिया ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी दृढ़ता और साहस के लिए जाने जाते थे. इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी भेजा गया. लोहिया ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
लोहिया ने हमेशा समाज के निचले तबकों और दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष किया. उनकी विचारधारा “चौखंबा राज” (विकेंद्रीकरण की नीति) पर आधारित थी, जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण चार स्तरों पर (गांव, जिला, राज्य, और केंद्र) पर हो. उनके विचार समाजवाद और मानवतावाद से प्रेरित थे. वे जातिवाद, भाषावाद, और क्षेत्रवाद के कट्टर विरोधी थे.
राजनीतिक विचार और योगदान: –
जाति और वर्ग भेदभाव के खिलाफ आंदोलन: – लोहिया ने भारतीय समाज में व्याप्त जाति और वर्ग भेदभाव का पुरजोर विरोध किया. उन्होंने इसे खत्म करने के लिए कई आंदोलन चलाए और समाज के सभी वर्गों के लिए समानता की वकालत की.
अंग्रेज़ी के स्थान पर भारतीय भाषाओं का समर्थन: – लोहिया अंग्रेज़ी के आधिपत्य के खिलाफ थे और भारतीय भाषाओं के उपयोग के लिए जोर देते थे. वे मानते थे कि भारतीय भाषाओं में शिक्षा और प्रशासनिक कार्य होना चाहिए, जिससे देश की बड़ी आबादी को लाभ हो.
नारी अधिकारों के समर्थक: – डॉ. लोहिया ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई. वे मानते थे कि नारी स्वतंत्रता के बिना समाज का पूर्ण विकास संभव नहीं है.
गैर-कांग्रेसवाद: – लोहिया भारतीय राजनीति में गैर-कांग्रेसवाद के एक प्रमुख प्रवर्तक थे. उनका मानना था कि कांग्रेस के एकाधिकार को समाप्त करके ही भारत में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है. उनके इस विचार के परिणामस्वरूप वर्ष 1967 में कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं.
लोहिया एक प्रभावी लेखक और विचारक थे. उन्होंने कई पुस्तकों और लेखों के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं: –
“मार्क्स, गांधी और समाजवाद”: – इस पुस्तक में उन्होंने समाजवाद की भारतीय परिभाषा और गांधीवादी विचारधारा का समावेश किया.
“इकोनॉमिक्स ऑफ द पूअर”: – इसमें उन्होंने भारतीय समाज की आर्थिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया.
12 अक्टूबर 1967 को डॉ. राममनोहर लोहिया का निधन नई दिल्ली में हुआ. उनके निधन के बाद भी उनकी विचारधारा और योगदान भारतीय राजनीति में जीवित रहे. भारतीय समाजवादी आंदोलन पर उनकी छाप आज भी महसूस की जाती है.
डॉ. लोहिया ने भारतीय राजनीति में न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के समय बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी समाजवाद, समानता और सामाजिक न्याय की आवाज उठाई. उनकी विचारधारा को आज भी कई राजनीतिक दल और समाजवादी नेता प्रेरणा के रूप में मानते हैं.