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व्यक्ति विशेष

भाग – 214.

जे. आर. डी. टाटा

जे. आर. डी. टाटा (जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा) भारतीय उद्योगपति और टाटा समूह के प्रमुख थे. उनका जन्म 29 जुलाई 1904 को पेरिस, फ्रांस में हुआ था और उनकी मृत्यु 29 नवंबर 1993 को जिनेवा, स्विट्जरलैंड में हुई थी. जे. आर. डी. टाटा ने भारतीय विमानन उद्योग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और टाटा समूह को एक वैश्विक उद्योग समूह बनाने में अहम योगदान दिया.

जे. आर. डी. टाटा ने वर्ष 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की, जो भारत की पहली वाणिज्यिक विमान सेवा थी. उन्होंने 1938 – 1991 तक टाटा समूह का नेतृत्व किया और इस अवधि में टाटा समूह ने कई प्रमुख क्षेत्रों में विस्तार किया, जैसे इस्पात, मोटर वाहन, बिजली, और सूचना प्रौद्योगिकी. उन्होंने टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान और टाटा मेमोरियल अस्पताल की स्थापना की.

जे. आर. डी. टाटा को उनकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न भी शामिल है, जो उन्हें 1992 में प्रदान किया गया. उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व क्षमता, और सामाजिक योगदान के कारण उन्हें भारतीय उद्योग के एक महानायक के रूप में याद किया जाता है.

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राजनीतिज्ञ माधव सिंह सोलंकी

माधव सिंह सोलंकी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिनका जन्म 30 जुलाई 1927 को हुआ था और निधन 9 जनवरी 2021 को हुआ. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री रहे. सोलंकी को उनके “खाम” (KSHAM: Kshatriya, Harijan, Adivasi, Muslim) सिद्धांत के लिए जाना जाता है, जिसने गुजरात की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव लाए.

माधव सिंह सोलंकी ने चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. उनकी पहली अवधि 1976-1980 तक थी, दूसरी अवधि 1980-1985 तक, तीसरी अवधि 1985-1989 तक, और चौथी अवधि 1990 तक रही.

सोलंकी का खाम सिद्धांत (KSHAM) जातिगत गठबंधन पर आधारित था, जिसने उन्हें चुनावी राजनीति में बड़ी सफलता दिलाई. इस सिद्धांत ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को गुजरात में मजबूत स्थिति में ला दिया. वे 1991-1996 तक प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में भी कार्यरत रहे. सोलंकी के कार्यकाल में गुजरात में शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में कई सुधार और विकासात्मक परियोजनाएं शुरू की गईं.

माधव सिंह सोलंकी को उनके राजनीतिक कौशल, नेतृत्व क्षमता और गुजरात की राजनीति में उनके प्रभावशाली योगदान के लिए याद किया जाता है.

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प्रोफेसर सी.पी. जोशी

प्रोफेसर सी.पी. जोशी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से संबंधित हैं. उनका पूरा नाम चंद्र प्रकाश जोशी है. उनका जन्म 29 जुलाई 1950 को नाथद्वारा, राजस्थान में हुआ था. सी.पी. जोशी ने राजनीति में एक लंबा और प्रभावशाली कैरियर बनाया है और विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.

सी.पी. जोशी ने भारतीय संसद के निचले सदन, लोकसभा, में सांसद के रूप में कार्य किया है. वे राजस्थान के चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उन्होंने राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया है और 2008 में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष बने.

प्रो. जोशी  वर्ष 2009-2013 के बीच मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में ग्रामीण विकास मंत्री और फिर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री के रूप में कार्यरत रहे. राजनीति में आने से पहले, सी.पी. जोशी एक प्रोफेसर और अकादमिक थे. उन्होंने जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है.

प्रोफेसर सी.पी. जोशी अपनी स्पष्टवादिता और राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाने जाते हैं. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख नेता हैं और उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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अभिनेता संजय दत्त

संजय दत्त एक प्रमुख भारतीय फिल्म अभिनेता हैं, जो हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उनका पूरा नाम संजय बलराज दत्त है. उनका जन्म 29 जुलाई 1959 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. संजय दत्त के माता-पिता, सुनील दत्त और नरगिस, दोनों ही प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता थे.

संजय दत्त ने 1981 में फिल्म “रॉकी” से अपने कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया है, जैसे “नाम” (1986), “साजन” (1991), “खलनायक” (1993), “वास्तव” (1999), “मिशन कश्मीर” (2000), “मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.” (2003), और “लगे रहो मुन्ना भाई” (2006). उनकी अभिनय क्षमता ने उन्हें एक्शन, ड्रामा, और कॉमेडी में समान रूप से कुशल बना दिया है.

वर्ष 1993 में मुंबई बम धमाकों के मामले में अवैध हथियार रखने के आरोप में संजय दत्त को गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने इस मामले में कई सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ी और जेल की सजा भी भुगती. वर्ष 2016 में, उन्होंने अपनी सजा पूरी कर जेल से रिहाई पाई.

संजय दत्त की निजी जिंदगी में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं, जिसमें उनके माता-पिता की मृत्यु, मादक पदार्थों की लत, और कई वैवाहिक विवाद शामिल हैं. उनकी तीन शादियाँ हुईं, और वर्तमान में उनकी पत्नी मान्यता दत्त हैं. उनके तीन बच्चे हैं.

वर्ष 2018 में, संजय दत्त के जीवन पर आधारित एक बायोपिक फिल्म “संजू” रिलीज़ हुई, जिसमें रणबीर कपूर ने संजय दत्त का किरदार निभाया. इस फिल्म ने संजय दत्त के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया और बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता हासिल की.

संजय दत्त भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने अभिनय कौशल और निजी संघर्षों से लोगों का दिल जीता है. उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से “संजू बाबा” कहते हैं.

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अभिनेत्री एली एवराम

एली एवराम एक स्वीडिश-ग्रीक अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग में काम करके लोकप्रियता हासिल की है. उनका पूरा नाम एलिस अवरामिदु है. उनका जन्म 29 जुलाई 1990 को स्टॉकहोम, स्वीडन में हुआ था. एली ने भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय के साथ-साथ रियलिटी शो में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

एली का जन्म स्वीडन में हुआ और उन्होंने वहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की. उनका बचपन से ही अभिनय और नृत्य में रुचि रही है, और उन्होंने स्वीडन में विभिन्न मंच प्रस्तुतियों में भाग लिया. एवराम ने 2013 में हिंदी फिल्म “मिकी वायरस” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म में उन्होंने मिकी की प्रेमिका, कमिश्नर की बेटी की भूमिका निभाई थी. एली ने भारतीय रियलिटी शो “बिग बॉस” के सीजन 7 में भाग लिया, जिससे उन्हें व्यापक पहचान मिली. शो में उनकी भागीदारी ने उन्हें भारतीय दर्शकों के बीच लोकप्रिय बना दिया.

“मिकी वायरस” के बाद, एली ने कई हिंदी फिल्मों में काम किया, जैसे “किस किसको प्यार करूँ” (2015) और “नाम शबाना” (2017). उन्होंने कुछ तमिल और कन्नड़ फिल्मों में भी अभिनय किया है. उन्होंने विभिन्न आइटम सॉन्ग्स में भी अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया है, जैसे कि “चिट्टियां कलाईयां” और “जिला हिलेला”.

एली एवराम ने कई विज्ञापनों और ब्रांड एंडोर्समेंट में भी काम किया है. वह विभिन्न टेलीविजन शो में भी विशेष उपस्थिति देती रहती हैं. एली एवराम का जन्म स्वीडिश माँ और ग्रीक पिता से हुआ था. वह हिंदी, अंग्रेजी, स्वीडिश, और ग्रीक भाषाएँ बोल सकती हैं. एली भारतीय संस्कृति और बॉलीवुड से काफी प्रभावित हैं और उन्होंने भारतीय नृत्य शैलियों को भी सीखा है.

एली एवराम ने भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई है और अपनी मेहनत और प्रतिभा के कारण दर्शकों के बीच लोकप्रियता प्राप्त की है.

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स्वाधीनता सेनानी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक प्रमुख भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे बंगाल पुनर्जागरण के प्रमुख स्तंभों में से एक थे और अपने सामाजिक सुधारों और शैक्षिक योगदानों के लिए जाने जाते हैं. उनका असली नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था, लेकिन उन्हें “विद्यासागर” की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है “ज्ञान का सागर,” उनकी विद्वता के कारण.

ईश्वर चंद्र का जन्म 26 सितंबर 1820 को पश्चिम बंगाल के वीरसिंह गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की और बाद में कोलकाता (तब के कलकत्ता) में संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया. वहां उन्होंने अपनी अद्वितीय विद्वता के कारण “विद्यासागर” की उपाधि प्राप्त की.

विद्यासागर ने बंगाल में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए. उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई. उन्होंने बालिकाओं की शिक्षा को विशेष रूप से बढ़ावा दिया और महिला शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना की. विद्यासागर विधवा पुनर्विवाह के एक प्रमुख समर्थक थे. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने बाल विवाह का विरोध किया और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रयास किए.

विद्यासागर ने कई साहित्यिक और शैक्षिक पुस्तकें लिखीं. उनकी लिखी गई बंगाली पुस्तकें आज भी प्रसिद्ध हैं. उन्होंने संस्कृत व्याकरण और साहित्य को सरल और सुलभ बनाने के लिए भी काम किया. विद्यासागर ने सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों के माध्यम से सामाजिक न्याय और सुधार के लिए लड़ाई लड़ी. वे अपने समय के सबसे बड़े सुधारकों में से एक थे. विद्यासागर की निजी जीवन सादगी और ईमानदारी से भरा था, वे हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे, ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन 29 जुलाई 1891 में हुआ था.

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने भारतीय समाज में सुधार लाने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया. उनका योगदान भारतीय समाज में हमेशा याद रखा जाएगा, और वे एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में इतिहास में अमर रहेंगे.

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स्वाधीनता सेनानी अरुणा आसफ़ अली

अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख नेता थीं. उन्हें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान तिरंगा फहराने के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. उनकी भूमिका और योगदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है.

अरुणा आसफ़ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को कालका, हरियाणा में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा नैनीताल और लाहौर में पूरी की. अरुणा आसफ़ अली ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान उनकी भागीदारी के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया. वे 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थीं. 9 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को फहराया, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक प्रतीकात्मक और प्रेरणादायक कार्य था.

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, अरुणा आसफ़ अली को ब्रिटिश सरकार द्वारा एक खतरनाक क्रांतिकारी माना गया और उन्हें भूमिगत होकर आंदोलन का नेतृत्व करना पड़ा. वे लगातार भूमिगत रहते हुए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कार्यरत रहीं और कई भूमिगत पत्रिकाओं का संपादन भी किया. स्वतंत्रता के बाद, अरुणा आसफ़ अली ने भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने 1958 में दिल्ली की पहली मेयर बनने का गौरव प्राप्त किया. उन्होंने सामाजिक और महिला अधिकारों के मुद्दों पर भी काम किया और कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी रहीं. अरुणा आसफ़ अली को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें 1964 में लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.

अरुणा आसफ़ अली का निधन 29 जुलाई 1996 को नई दिल्ली में हुआ था.  अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक अद्वितीय और प्रेरणादायक नेता थीं. उनकी साहसिकता और समर्पण ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर व्यक्तित्व बना दिया है.

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अभिनेता जॉनी वॉकर

जॉनी वॉकर जिनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काज़ी था, एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जो हिंदी सिनेमा में अपनी कॉमिक भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 11 नवंबर 1926 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 29 जुलाई 2003 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. जॉनी वॉकर ने अपने अद्वितीय हास्य शैली और अभिनय कौशल से दर्शकों का दिल जीता.

बदरुद्दीन का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. वे मुंबई चले गए थे जहां उन्होंने बस कंडक्टर के रूप में काम करना शुरू किया. उनकी कॉमिक प्रतिभा को बस में यात्रियों का मनोरंजन करने के दौरान खोजा गया.

बदरुद्दीन को गुरु दत्त ने खोजा और उन्हें जॉनी वॉकर नाम दिया. उनकी पहली फिल्म “बाज़ी” (1951) थी, जिसमें उन्होंने कॉमिक भूमिका निभाई. जॉनी वॉकर ने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया, जिनमें से कुछ प्रमुख फिल्में “प्यासा” (1957), “सी.आई.डी.” (1956), “मिस्टर एंड मिसेज 55” (1955), “नया दौर” (1957), और “मधुमती” (1958) हैं. उनकी कॉमिक टाइमिंग और डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें एक लोकप्रिय हास्य अभिनेता बना दिया.

जॉनी वॉकर ने शराबी, नौकर, और विभिन्न अन्य चरित्रों की भूमिकाओं में अपनी अद्वितीय शैली से दर्शकों को हंसाया. उनकी सबसे प्रसिद्ध गीतों में “सर जो तेरा चकराए” (फिल्म: प्यासा) और “ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ” (फिल्म: सी.आई.डी.) शामिल हैं, जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं. जॉनी वॉकर की शादी नूरजहाँ से हुई थी, और उनके तीन बेटे और तीन बेटियाँ हैं.

उन्होंने अपने कैरियर के अंत में फिल्मों से दूरी बना ली और अपना व्यवसाय शुरू किया. जॉनी वॉकर को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने अपने अनूठे हास्य अभिनय से हिंदी सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई.

जॉनी वॉकर ने भारतीय सिनेमा में हास्य अभिनय की एक नई परिभाषा दी. उनका अद्वितीय शैली और प्रदर्शन आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है. उनकी फिल्मों और किरदारों ने उन्हें अमर बना दिया है.

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महारानी गायत्री देवी

महारानी गायत्री देवी, जिन्हें राजमाता गायत्री देवी के नाम से भी जाना जाता है, जयपुर के शाही परिवार की एक प्रतिष्ठित सदस्य थीं. उनका जन्म 23 मई 1919 को लंदन, इंग्लैंड में हुआ था और उनका निधन 29 जुलाई 2009 को जयपुर, राजस्थान में हुआ. उन्हें उनकी खूबसूरती, शाही अंदाज, और सामाजिक कार्यों के लिए व्यापक रूप से सराहा गया.

गायत्री देवी का जन्म कूचबिहार के शाही परिवार में हुआ था. उनकी माँ, इंदिरा देवी, बड़ौदा की महारानी थीं, और उनके पिता, महाराजा जितेंद्र नारायण, कूचबिहार के महाराजा थे. गायत्री देवी ने महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय से विवाह किया, जो जयपुर के महाराजा थे। वह उनकी तीसरी पत्नी थीं.

गायत्री देवी ने 1962 में भारतीय राजनीति में कदम रखा और भारतीय संसद के निचले सदन, लोकसभा, के लिए जयपुर से चुनाव जीता. उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीता. उन्हें सबसे अधिक मतों से चुनाव जीतने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी शामिल किया गया था. वह तीन बार जयपुर से सांसद रहीं और अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम किया.

गायत्री देवी ने जयपुर में शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए. उन्होंने “महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल” की स्थापना की, जो आज भी एक प्रतिष्ठित स्कूल है. वह भारतीय कला और संस्कृति की संरक्षक भी थीं और उन्होंने कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर काम किया.

गायत्री देवी को उनकी सुंदरता और शिष्टता के लिए जाना जाता था. वह अक्सर अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में “विश्व की सबसे खूबसूरत महिलाओं” में गिनी जाती थीं. उन्होंने शाही परंपराओं और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच एक संतुलन बनाए रखा और अपने समय की अग्रणी महिलाओं में से एक मानी जाती थीं.

गायत्री देवी ने अपनी आत्मकथा “ए प्रिंसेस रिमेम्बर्स” लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन, शाही अनुभवों और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान के समय का विवरण दिया. उनकी विरासत को आज भी सम्मान और श्रद्धा के साथ याद किया जाता है, और उन्होंने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

गायत्री देवी न केवल जयपुर के शाही परिवार की एक प्रमुख सदस्य थीं, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज और राजनीति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके जीवन और कार्यों ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक सम्मानित और प्रेरणादायक व्यक्तित्व बना दिया.

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