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व्यक्ति विशेष

भाग – 203.

पहली महिला फ़िजीशियन कादम्बिनी गांगुली

कादम्बिनी गांगुली भारत की पहली महिला फ़िजीशियन थीं. उनका जन्म 18 जुलाई 1861 को भागलपुर, बिहार में हुआ था. उनके पिता, ब्रजकिशोर बसु, ब्रह्म समाज के एक प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने अपनी बेटी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.

कादम्बिनी गांगुली ने 1883 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जिससे वे भारत की पहली महिला चिकित्सक बनीं. उनके चिकित्सा क्षेत्र में प्रवेश ने न केवल उन्हें व्यक्तिगत रूप से महान बनाया, बल्कि उन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए नए अवसरों के द्वार खोले.

कादम्बिनी गांगुली और चंद्रमुखी बसु पहली दो भारतीय महिलाएँ थीं जिन्होंने 1882 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. वर्ष 1886 में उन्होंने यूरोप जाकर और आगे की शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद वे भारत लौटकर चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने लगीं. कादम्बिनी गांगुली ने नारी शिक्षा और सामाजिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों में भाग लिया और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई.

कादम्बिनी गांगुली की जीवन यात्रा और उनकी उपलब्धियों ने भारतीय समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया. उनकी प्रेरणा और संघर्ष आज भी अनेक महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.

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गजल सम्राट मेहँदी हसन

मेहँदी हसन जिन्हें गजल सम्राट के नाम से जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रतिष्ठित और प्रशंसित गजल गायकों में से एक थे. उनका जन्म 18 जुलाई 1927 को राजस्थान के लूणा गाँव में हुआ था. उनका परिवार संगीत की दुनिया में बहुत प्रतिष्ठित था, और उनके पिता उस्ताद आज़ीम ख़ान और चाचा उस्ताद इस्माइल ख़ान भी प्रसिद्ध गायक थे.

मेहँदी हसन ने बहुत कम उम्र में गाना शुरू किया. उनके परिवार की संगीत परंपरा और शास्त्रीय संगीत में उनकी प्रारंभिक शिक्षा ने उनके गायन को गहराई और विशिष्टता प्रदान की. विभाजन के समय, उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. पाकिस्तान में उन्होंने शुरुआत में कठिनाइयों का सामना किया और ऑटोमोबाइल मैकेनिक के रूप में काम किया, लेकिन उन्होंने संगीत का अभ्यास जारी रखा.

वर्ष 1957 में रेडियो पाकिस्तान से उनका संगीत प्रसारण हुआ और इसके बाद उन्होंने गजल गायकी में कई उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दीं. उनकी गाई हुई गजलें “रंजिश ही सही,” “अब के हम बिछड़े,” “गुलों में रंग भरे,” और “पत्ता पत्ता बूटा बूटा” अत्यधिक लोकप्रिय हुईं.

मेहँदी हसन की गायकी की शैली में शास्त्रीय संगीत का गहरा प्रभाव था. उनकी आवाज़ की गहराई और उनकी गज़लों की भावपूर्ण प्रस्तुति ने उन्हें गजल गायकी का सम्राट बना दिया. मेहँदी हसन को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनकी पहचान  न केवल भारत और पाकिस्तान में, बल्कि विश्वभर में उनके प्रशंसक थे. उनकी गज़लों का प्रभाव अन्य देशों में भी देखने को मिलता है.

वर्ष 2000 के दशक में उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई और उन्होंने गाना बंद कर दिया। 13 जून 2012 को कराची, पाकिस्तान में उनका निधन हो गया. मेहँदी हसन ने अपनी गजल गायकी से न केवल इस संगीत विधा को समृद्ध किया, बल्कि इसे एक नए स्तर पर पहुंचाया.

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शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती कांची कामकोटि पीठम के 69वें शंकराचार्य थे. उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले के इरुलनेकी गाँव में हुआ था. उनका असली नाम सुब्रमण्यम महादेवन था. 22 मार्च 1954 को, 19 वर्ष की आयु में, उन्हें कांची कामकोटि पीठम का शंकराचार्य नियुक्त किया गया.

जयेन्द्र सरस्वती ने धर्म के साथ-साथ समाज के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को समझा और उनके सुधार के लिए कई कदम उठाए. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में अनेक योजनाओं की शुरुआत की. उन्होंने कांची कामकोटि पीठम के कार्यों और प्रभाव को विस्तारित किया. उनकी प्रेरणा से कई शिक्षण संस्थान, अस्पताल और अन्य सामाजिक सेवाएँ स्थापित की गईं.

जयेन्द्र सरस्वती ने विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए काम किया. उन्होंने विभिन्न धार्मिक नेताओं से मिलकर शांति और सद्भावना की दिशा में कार्य किया. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भी सक्रिय भूमिका निभाई और विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के साथ बातचीत की.

जयेन्द्र सरस्वती का जीवन विवादों से भी अछूता नहीं रहा. वर्ष 2004 में उन पर शंकरारमन हत्या मामले में आरोप लगाए गए थे, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. हालांकि बाद में 2013 में उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. 28 फरवरी 2018 को, 82 वर्ष की आयु में, जयेन्द्र सरस्वती का निधन हो गया.

जयेन्द्र सरस्वती का जीवन समाज और धर्म के प्रति उनकी समर्पण भावना का प्रमाण है. उन्होंने धार्मिक नेतृत्व के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश की और अपनी शिक्षा और सेवा के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया.

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अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा एक भारतीय अभिनेत्री, गायिका, और फिल्म निर्माता हैं, जो बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं। उनका जन्म 18 जुलाई 1982 को जमशेदपुर, बिहार (अब झारखंड), भारत में हुआ था।

 प्रियंका चोपड़ा ने भारत के विभिन्न शहरों में अपनी शिक्षा प्राप्त की, क्योंकि उनके माता-पिता भारतीय सेना में डॉक्टर थे. उन्होंने अमेरिका में भी कुछ समय बिताया, जहां उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई की. प्रियंका चोपड़ा ने 2000 में मिस वर्ल्ड का खिताब जीता, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुईं. इस जीत ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रमुख स्थान दिलाया.

प्रियंका ने 2002 में तमिल फिल्म “थमिज़हन” से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की और 2003 में “द हीरो: लव स्टोरी ऑफ़ अ स्पाई” से बॉलीवुड में कदम रखा. उनकी प्रमुख फिल्मों में “मुझसे शादी करोगी,” “ऐतराज़,” “क्रिश,” “डॉन,” “फैशन,” “कमीने,” “बर्फी!,” “मैरी कॉम,” और “बाजीराव मस्तानी” शामिल हैं। फिल्म “फैशन” (2008) में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

प्रियंका ने अमेरिकी टेलीविजन शो “क्वांटिको” में मुख्य भूमिका निभाई, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली. उन्होंने हॉलीवुड फिल्मों जैसे “बेवॉच,” “इज़न्ट इट रोमांटिक,” और “वाइट टाइगर” में भी काम किया. प्रियंका चोपड़ा ने संगीत में भी अपने हाथ आजमाए और “इन माई सिटी” और “एग्ज़ॉटिक” जैसे गानों के साथ अपनी पहचान बनाई. उन्होंने अमेरिकी रैपर पिटबुल और विल.आई.एम के साथ काम किया.

प्रियंका ने 2015 में “पर्पल पेबल पिक्चर्स” नामक अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की, जो क्षेत्रीय फिल्मों के निर्माण पर केंद्रित है. उनकी प्रोडक्शन कंपनी ने कई सफल फिल्में बनाई हैं. प्रियंका चोपड़ा यूनिसेफ की गुडविल एंबेसडर हैं और महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर काम करती हैं. उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में भाग लिया और अपनी आवाज़ उठाई.

प्रियंका चोपड़ा ने दिसंबर 2018 में अमेरिकी गायक और अभिनेता निक जोनास से शादी की. यह विवाह भारत और अमेरिका में बड़ी धूमधाम से मनाया गया. प्रियंका चोपड़ा का जीवन और कैरियर प्रेरणादायक है. उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता हासिल की है और अपने काम के माध्यम से वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन किया है.

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महिला क्रिकेट खिलाड़ी स्मृति मंधाना

स्मृति मंधाना भारतीय महिला क्रिकेट टीम की एक प्रमुख खिलाड़ी हैं, जो अपने आक्रामक बल्लेबाजी शैली और उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 18 जुलाई 1996 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था.

स्मृति मंधाना का क्रिकेट के प्रति रुझान बहुत कम उम्र में ही विकसित हो गया था. उनके पिता और भाई भी क्रिकेटर थे, और वे उन्हें अभ्यास करने में मदद करते थे. स्मृति ने अपनी शिक्षा सांगली, महाराष्ट्र से पूरी की. स्मृति मंधाना ने 2013 में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में पदार्पण किया और उसी साल में टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भी अपनी शुरुआत की.

प्रमुख उपलब्धियाँ: –

2016: मंधाना ने ऑस्ट्रेलिया में महिला बिग बैश लीग (WBBL) में ब्रिस्बेन हीट के लिए खेलते हुए प्रभावित किया.

2018: उन्होंने आईसीसी महिला क्रिकेटर ऑफ द ईयर और आईसीसी महिला वनडे प्लेयर ऑफ द ईयर के पुरस्कार जीते.

2020: उन्हें बीबीएल में मेलबर्न स्टार्स के लिए खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया.

स्मृति मंधाना एक बाएं हाथ की ओपनिंग बल्लेबाज हैं और अपनी आक्रामक खेल शैली के लिए जानी जाती हैं. वह तेजी से रन बनाने और लंबी पारियां खेलने में सक्षम हैं. उनकी शैली में बेहतरीन टाइमिंग और स्ट्रोक प्ले की विशेषता है. मंधाना ने 2017 महिला क्रिकेट विश्व कप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां भारत फाइनल तक पहुंचा. उन्होंने कई द्विपक्षीय श्रृंखलाओं और टूर्नामेंटों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है.

स्मृति ने महिला टी20 चैलेंज और महिला बिग बैश लीग में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने भारत और विदेश में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है और अन्य लीगों में भी खेली हैं. स्मृति मंधाना को उनके प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें बीसीसीआई द्वारा सर्वश्रेष्ठ महिला क्रिकेटर का पुरस्कार भी शामिल है.

मंधाना क्रिकेट के बाहर भी सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहती हैं और युवा लड़कियों को क्रिकेट में प्रेरित करने के लिए काम करती हैं. स्मृति मंधाना ने अपने बेहतरीन खेल और समर्पण से भारतीय महिला क्रिकेट को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है. वे एक प्रेरणादायक खिलाड़ी हैं और भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

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अभिनेता राजेश खन्ना

राजेश खन्ना जिन्हें “काका” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार माने जाते हैं. उनका जन्म 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. वे 1960 – 70 के दशक में हिंदी सिनेमा के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय अभिनेता थे.

राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना था. उन्होंने अपने चाचा-चाची के द्वारा गोद लिए जाने के बाद अपना नाम बदल लिया. वे 1965 में एक टैलेंट हंट प्रतियोगिता जीतने के बाद फिल्म उद्योग में आए और उनकी पहली फिल्म “आखिरी खत” (1966) थी.

राजेश खन्ना ने 1969 – 71 तक लगातार 15 हिट फिल्में दीं, जिनमें “आराधना,” “दो रास्ते,” “सफर,” “कटी पतंग,” “आनंद,” और “अमर प्रेम” शामिल हैं. उनकी अदाकारी, स्क्रीन प्रेजेंस, और रोमांटिक अंदाज़ ने उन्हें दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया. उन्होंने  अपने कैरियर में तीन फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीते. उन्हें 2005 में भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए “फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड” से सम्मानित किया गया. राजेश खन्ना की फिल्मों के गाने भी बेहद लोकप्रिय रहे. किशोर कुमार द्वारा गाए उनके गाने आज भी सुने जाते हैं और उनकी लोकप्रियता में योगदान करते हैं. राजेश खन्ना ने 1992 में राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में नई दिल्ली लोकसभा सीट से सांसद बने.

राजेश खन्ना ने अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया से 1973 में शादी की. उनकी दो बेटियाँ हैं – ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना. ट्विंकल खन्ना का विवाह अभिनेता अक्षय कुमार हुआ. राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया के बीच बाद में अलगाव हो गया, लेकिन उनका रिश्ता दोस्ताना बना रहा. राजेश खन्ना का निधन 18 जुलाई 2012 को हुआ. राजेश खन्ना ने भारतीय सिनेमा में एक नया मानक स्थापित किया और उनकी फिल्मों और अभिनय ने एक पीढ़ी को प्रेरित किया. उनकी विरासत और योगदान भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किए जाएंगे.

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पार्श्व गायिका मुबारक बेगम

मुबारक बेगम एक प्रमुख भारतीय पार्श्व गायिका थीं, जिन्होंने 1950 – 60 के दशक में हिंदी सिनेमा में अपनी मधुर आवाज़ से लाखों दिलों को जीता। उनका जन्म 5 जुलाई 1936 को राजस्थान के चूरू जिले में हुआ था.

मुबारक बेगम का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था. उनकी शिक्षा और प्रारंभिक संगीत प्रशिक्षण परिवार के सदस्यों और स्थानीय संगीत शिक्षकों के द्वारा हुआ. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1949 में एक रेडियो गायिका के रूप में की. उनका पहला फिल्मी गाना “मोहे आने लगी अंगड़ाई, आजा आजा” फिल्म “आइए” (1949) के लिए था. उनकी आवाज़ की मिठास और भावपूर्ण प्रस्तुति ने उन्हें जल्दी ही एक लोकप्रिय गायिका बना दिया.

मुबारक बेगम ने कई हिट गाने गाए, जिनमें “कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी” (हमारी याद आएगी), “मुझको अपने गले लगा लो” (हमराही), और “हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे” (मधुमती) शामिल हैं. उन्होंने प्रमुख संगीत निर्देशकों जैसे कि एस.डी. बर्मन, शंकर-जयकिशन, और मदन मोहन के साथ काम किया. उनकी गायकी में भावनात्मक गहराई और मधुरता की विशेषता थी. उनकी आवाज़ में एक विशिष्ट आकर्षण था जो सुनने वालों को बांध लेता था. उन्होंने ग़ज़ल, भजन, और रोमांटिक गानों में अपनी खास पहचान बनाई. वर्ष 1960 के दशक के बाद मुबारक बेगम के कैरियर में गिरावट आई, और वे आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने लगीं. इसके बावजूद, उनकी कला और संगीत प्रेमियों के बीच उनकी लोकप्रियता बनी रही.

मुबारक बेगम ने व्यक्तिगत जीवन में भी कठिनाइयों का सामना किया. उनके पति का जल्दी ही निधन हो गया था, और उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश अकेले की. उनके जीवन के अंतिम दिनों में, उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और उन्होंने सरकारी और सार्वजनिक सहायता की मांग की.

मुबारक बेगम का निधन 18 जुलाई 2016 को मुंबई में हुआ. उनके निधन के बाद, भारतीय संगीत जगत ने एक महान गायिका को खो दिया. मुबारक बेगम ने अपने संगीत से भारतीय सिनेमा को समृद्ध किया और उनकी गायकी ने अनगिनत संगीत प्रेमियों के दिलों को छू लिया. उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा और उनकी आवाज़ संगीत प्रेमियों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी.

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पार्श्वगायक और ग़ज़ल गायक भूपिंदर सिंह

भूपिंदर सिंह एक भारतीय पार्श्वगायक और ग़ज़ल गायक थे, जिन्होंने अपने विशिष्ट अंदाज और मधुर आवाज़ से भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक खास स्थान बनाया था. उनका जन्म 6 फरवरी 1940 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था.

भूपिंदर सिंह का जन्म एक संगीत-प्रेमी परिवार में हुआ था. उनके पिता, प्रोफेसर नाथ सिंह, एक प्रतिष्ठित संगीतकार और शिक्षक थे. भूपिंदर सिंह ने अपने पिता से ही संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. भूपिंदर सिंह ने ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली में एक संगीतकार और गायक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन के विभिन्न कार्यक्रमों में भी प्रदर्शन किया.

भूपिंदर सिंह का बॉलीवुड कैरियर 1964 में शुरू हुआ जब संगीतकार मदन मोहन ने उन्हें फिल्म “हकीकत” में गाने का मौका दिया. उनका पहला गीत “हो के मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा” था, जिसे उन्होंने मोहम्मद रफी, मन्ना डे, और तलत महमूद के साथ गाया. इसके बाद उन्होंने कई हिट गाने गाए, जैसे “नाम गुम जाएगा” (किनारा), “बीती ना बिताई रैना” (परिचय), “दिल ढूंढता है” (मौसम), और “एक अकेला इस शहर में” (घरौंदा). उन्होंने पार्श्वगायकी के अलावा ग़ज़ल गायकी में भी अपनी पहचान बनाई. उनकी आवाज़ और ग़ज़लों की प्रस्तुति ने उन्हें एक विशेष स्थान दिलाया. उनकी पत्नी मिताली सिंह भी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका हैं, और दोनों ने मिलकर कई ग़ज़ल एल्बम प्रस्तुत किए. उनके ग़ज़ल एल्बम जैसे “वो क्या दिन थे,” “आशियाना,” और “करचियाँ” बहुत लोकप्रिय हुए.

भूपिंदर सिंह ने संगीतकार के रूप में भी काम किया और कई गानों और एल्बमों का संगीत निर्देशन किया. उनकी संगीत शैली में शास्त्रीय संगीत का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है. उनकी आवाज़ में एक गहरी भावनात्मकता और विशिष्टता थी, जो उनके गानों को एक अलग पहचान देती थी. उनके गाने और ग़ज़लें आज भी संगीत प्रेमियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. भूपिंदर सिंह ने ग़ज़ल गायिका मिताली सिंह से शादी की. दोनों ने कई ग़ज़ल कॉन्सर्ट्स और एल्बम्स में एक साथ काम किया. भूपिंदर सिंह का निधन 18 जुलाई 2022 को मुंबई में हुआ. उनके निधन से भारतीय संगीत जगत ने एक महान कलाकार को खो दिया.

भूपिंदर सिंह का योगदान भारतीय संगीत में अमूल्य है. उनकी आवाज़ और गायकी की शैली ने उन्हें एक अमर कलाकार बना दिया है. उनकी ग़ज़लें और गाने सदियों तक संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजते रहेंगे.

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