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व्यक्ति विशेष

भाग - 19.

गुरु हरराय

गुरु हरराय सिख धर्म के दसवें सिख गुरु थे और 1661- 64 तक सिख समुदाय के गुरु रहे. उन्होंने सिख समुदाय को धार्मिक और सामाजिक मामलों में मार्गदर्शन दिया और उनकी गुरुगदी (गुरु के पद का सूचना देना) के दौरान सिख समुदाय को शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण में बढ़ावा दिलाया.

गुरु हरराय ने अपने गुरुगदी के दौरान सिख समुदाय के लिए हरायणा और पंजाब के कुछ भागों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विकास किया और उन्होंने वनस्पति चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी रूप से महत्वपूर्ण योगदान किया. गुरु हरराय के बाद, उनके पुत्र गुरु हरकिशन सिंह गुरु बने और सिख समुदाय के आगामी गुरु हुए. गुरु हरराय के योगदान के बावजूद, उनका समय सिख समुदाय के इतिहास में महत्वपूर्ण है और वे सिख धर्म के महान गुरु में से एक माने जाते हैं.

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संगीतकार ओ. पी. नैय्यर

ओमकार प्रकाश नैय्यर, जिन्हें ओ. पी. नैय्यर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख भारतीय संगीतकार थे. उनका जन्म 16 जनवरी 1926 को लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था और उनका निधन 28 जनवरी 2007 को मुंबई में हुआ था. नैय्यर अपने चुलबुले संगीत के लिये जाने जाते थे.

ओ. पी. नैय्यर ने संगीत की दुनिया में अपनी खास पहचान बनाई. उन्होंने 1950-60 के दौरान कई हिट गानों का संगीत दिया, और उनका संगीत मुख्य रूप से उसकी मेलोडियों और आवाज के साथ प्रसिद्ध था. ओ. पी. नैय्यर का संगीत हिट फिल्मों जैसे कि “कभी कभी ” (Kabhi Kabhie), “कश्मीर की कली” (Kashmir Ki Kali), “तुम्हरी कसम” (Tumhari Kasam), “ मेरी सदियों को तुम” (Meri Sadiyon Ko Tum) और “आरजू” (Aarzoo) में प्रमुख था.

ओ. पी. नैय्यर का संगीत उनकी मास्टरपीस परफार्मेंस के लिए भी महत्वपूर्ण है और वे भारतीय संगीत इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उन्होंने अपनी बेहद मेलोडिक और आर्टिस्टिक संगीत स्टाइल के लिए प्रसिद्ध थे.

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अभिनेत्री कामिनी कौशल

कामिनी कौशल एक फ़िल्म अभिनेत्री हैं जिन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत बॉलीवुड से की थी। उन्होंने कई हिट फ़िल्मों में काम किया है और अपनी अदाकारी के लिए प्रशंसा प्राप्त की है. कामिनी कौशल का जन्म 16 जनवरी, 1927 को लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था. कामिनी कौशल का का वास्तविक नाम ‘उमा कश्यप’ था. कामिनी कौशल ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत ‘नीचा नगर’ से की थी. 

कौशल ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत ‘नीचा नगर’ से की थी. कामिनी कौशल ने कई यादगार फ़िल्में दी हैं, किंतु फ़िल्म ‘नीचा नगर’ (1946) और ‘बिराज बहू’ (1955) में निभाई गई भूमिका के लिए उन्हें ख़ासतौर पर जाना जाता है. इन फ़िल्मों में निभाई गई भूमिका के लिए कामिनी कौशल को पुरस्कार भी प्राप्त हुए थे.

उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं:- जेलयात्रा‘, ‘जिद्दी‘, ‘नीचा नगर‘, ‘बिराज बहू‘, ‘हीरालाल पन्नालाल‘, ‘पूरब और पश्चिम‘, ‘लागा चुनरी में दाग‘, ‘शहीदआदि. कामिनी कौशल ने टीवी की दुनिया में कई धारावाहिकों में भी कार्य किया है. कामिनी कौशल ने अपने कैरियर में अपनी विशेष प्रतिभा के लिए महत्वपूर्ण प्रशंसा प्राप्त की है और वह भारतीय सिनेमा में अपनी योगदान से जानी जाती हैं।

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चिकित्सक सुभाष मुखोपाध्याय

 ‘प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी’ के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय थे. वे एक प्रमुख भारतीय गर्भवती विज्ञानी और चिकित्सक थे जिन्होंने पहले विश्व भर में प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी का प्राणन्त करने का प्रयास किया था.

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने 1978 में कोलकाता के निष्क्रिय चिकित्सालय में एक टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिलाने का प्रयास किया था, जिसका नाम “दिनो राणी” था. इस प्रयास में उन्होंने विज्ञान और तकनीक के माध्यम से गर्भावस्था को प्रारंभ से पाया गया था, और इसका परिणामस्वरूप ‘दिनो राणी’ का जन्म हुआ.

हालांकि इस प्रयास के बाद भी विश्व स्तर पर इसे मान्यता नहीं दी गई और डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का काम पहचान नहीं पाया, लेकिन उनका प्रयास बच्चे की जान बचाने में सफल रहा. वे एक महत्वपूर्ण मानविकी और चिकित्सा महात्मा के रूप में याद किए जाते हैं और उनके काम ने टेस्ट ट्यूब बेबी की जनक के रूप में उन्हें स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मान्यता प्राप्त की.

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अभिनेता कबीर बेदी

कबीर बेदी एक फ़िल्म और टेलीविजन अभिनेता हैं, जिन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत भारतीय सिनेमा से की और फिर अंतरराष्ट्रीय सीन में अपनी पहचान बनाई.

कबीर बेदी का जन्म 16 जनवरी 1946 को लाहौर, ब्रिटिश भारत (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. उन्होंने अपनी कैरियर की शुरुआत हिन्दी फ़िल्म “हकीकत” (1971) से डेब्यू की थी. उनकी अद्वितीय अदाकारी और छवि ने उन्हें जल्दी ही सिनेमा के माध्यम से मान्यता प्राप्त करने में मदद की.

कबीर बेदी ने अंतरराष्ट्रीय फिल्मों व प्रोग्रामों पर भी अपने कदम रखे. उन्होंने हॉलीवुड फ़िल्म “ओक्टोपस” (Octopussy) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और अपने अंतरराष्ट्रीय काम के लिए भी प्रसिद्ध हुए.

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स्वतंत्रता सेनानी महादेव गोविन्द रानाडे

महादेव गोविन्द राणाडे एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे. उनका जन्म 18 जनवरी 1842 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के सातारा शहर में हुआ था, और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

महादेव गोविन्द राणाडे का विशेष ध्यान समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में था. उन्होंने भारतीय समाज के उन्नति और सुधार के लिए विभिन्न प्रकार के समाज सेवा कार्य किए, जैसे कि शिक्षा, महिला शिक्षा, और जाति-वर्ग समाज के निषेध के खिलाफ लड़ा. राणाडे का नाम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. वे बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, और अगरकर समर्थक थे और स्वतंत्रता संग्राम के नेता महात्मा गांधी के साथ भी काम किये थे.

महादेव गोविन्द राणाडे ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी समर्पितता और समाज सुधार के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा हासिल की. उनकी समाज सुधार की यात्रा ने भारतीय समाज को समृद्धि और समाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान किया है.

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उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय एक प्रमुख बंगाली उपन्यासकार थे, जिन्होंने अपने लेखनी के माध्यम से भारतीय साहित्य को महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे भारतीय उपन्यास साहित्य के मशहूर और प्रशंसित लेखकों में से एक माने जाते हैं.

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 15 सितंबर 1876 को हुआ था, और उन्होंने बंगाली भाषा में अपने लेखन कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने अपने उपन्यासों में सामाजिक मुद्दे, मानवीय भावनाएँ, प्यार, परिपर्णता और व्यक्तिगत अनुभवों को गहराई से छूने का प्रयास किया गया.

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के कुछ प्रमुख उपन्यास हैं:

पथेर दाबी (Pather Dabi)

परिणीता (Parineeta)

देवदास (Devdas)

चांद्रमुकी (Chandramukhi)

श्रीमन श्रीमती (Sriman Srimati)

उनके उपन्यासों की अद्वितीय शृंगारिक और मानवीय भावनाओं की छवि ने उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कराया है और उन्होंने भारतीय साहित्य के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण योगदान के लिए स्मरणीय हैं. उनके उपन्यासों का पाठ आज भी भारतीय साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.

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कवि रामनरेश त्रिपाठी

प्राक्छायावादी युग भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण प्रकार का युग था, जिसमें साहित्य के कई नए और विचारशील कौशल प्रयोग किए गए थे. उन्हीं में एक रामनरेश त्रिपाठी भी थे जो इस प्राक्छायावादी युग के कवि और लेखक थे, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने विचारों की अद्वितीयता को उजागर किया.

रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च 1889 को हुआ था. वे हिन्दी कविता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले कवि माने जाते हैं और उन्होंने प्राक्छायावादी साहित्य के दौरान अपने लेखन के माध्यम से समाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर विचार भी किए. उनकी कविताओं में विचारशीलता, समाज के विकल्पों का विचार, और सामाजिक सुधार की मांग को उजागर किया गया.

रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी कविताओं में भारतीय समाज के मुद्दों को छूने का प्रयास किया और उन्होंने अपनी कल्पना के माध्यम से विभिन्न विचारों को प्रस्तुत किया. उनकी कविताएँ अधिकतर अपने समाज के विकल्पों और चुनौतियों के बारे में होती हैं और उन्होंने आधुनिक भारतीय साहित्य को नए दिशाओं में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर एल. के. झा

एल. के. झा भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर थे। वे इस पद को 1 जुलाई, 1967 से 3 मई, 1970 तक सेवानिवृत्त होकर रहे. उनके कार्यकाल के दौरान, वे बैंक के नेतृत्व में बैंक की नीतियों और कार्यक्षेत्र के बदलाव को प्रबलतर बनाने का प्रयास किये.

एल. के. झा का जन्म 22 नवम्बर 1913 को दरभंगा, बिहार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा केंद्रीय विश्वविद्यालय, ओक्सफ़ोर्ड, और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से प्राप्त की थी. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय प्रशासनिक सेवा से की और फिर उन्होंने भारत सरकार के विभिन्न पदों पर सेवाएँ दीं, जिसमें उन्होंने आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में अपनी योगदान दी.

एल. के. झा के गवर्नर के पद पर रहते हुए, उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक की नीतियों को नए सोच और दिशा की ओर मोड़ दिया और आर्थिक प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया. उनका कार्यकाल आर्थिक संवर्धन और वित्तीय स्थिरता को मजबूती से बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था. एल. के. झा का निधन 16 जनवरी 1988 को हुआ था. 

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