News

व्यक्ति विशेष

भाग – 189.

स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू

अल्लूरी सीताराम राजू एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया. वे विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में अपने वीरतापूर्ण संघर्ष के लिए जाने जाते हैं.

अल्लूरी का जन्म 4 जुलाई 1897 को आंध्र प्रदेश में हुआ था. उनकी शिक्षा आंध्र प्रदेश और मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुई. अल्लूरी सीताराम राजू ने ब्रिटिश सरकार द्वारा आदिवासी लोगों पर लगाए गए कठोर कानूनों के खिलाफ विद्रोह किया. विशेष रूप से, 1922 में मद्रास फॉरेस्ट एक्ट के खिलाफ उनका संघर्ष प्रसिद्ध है.

वर्ष 1922-24 के बीच अल्लूरी ने ‘रम्पा विद्रोह’ का नेतृत्व किया. उन्होंने आदिवासी समुदायों को संगठित किया और ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ा. अल्लूरी सीताराम राजू को ब्रिटिश सरकार ने 7 मई 1924 को पकड़ कर गोली मार दी.

अल्लूरी सीताराम राजू को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक वीर योद्धा के रूप में याद किया जाता है. उनकी बहादुरी और बलिदान को सम्मानित करने के लिए उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थान स्थापित किए गए हैं. उनकी जीवन गाथा और संघर्ष ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक माने जाते हैं.

==========  =========  ===========

भूतपूर्व कार्यकारी प्राधानमंत्री गुलज़ारीलाल नन्दा

गुलज़ारीलाल नन्दा एक भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के कार्यकारी प्रधान मंत्री के रूप में दो बार कार्य किया. नन्दा का जन्म 4 जुलाई 1898 को सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उन्होंने लाहौर, आगरा, और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की.

नन्दा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भागीदार थे. वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और 1932 में सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल गए थे. नन्दा ने श्रम और रोजगार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया. वे 1946 में भारत सरकार के श्रम मंत्री बने और श्रम सुधारों के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए. नन्दा ने दो बार कार्यकारी प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया: –

पहली बार 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद,

दूसरी बार 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद.

इन दोनों अवसरों पर उन्होंने जिम्मेदारी से देश का नेतृत्व किया, जब तक कि नए प्रधान मंत्री की नियुक्ति नहीं हुई. नन्दा ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भी सेवा की और देश की योजनाबद्ध विकास नीतियों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1957 -67 तक भारत के गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया.

वर्ष 1997 में गुलज़ारीलाल नन्दा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान , भारत रत्न, से सम्मानित किया गया. उनका निधन 15 जनवरी 1998 को हुआ था.

गुलज़ारीलाल नन्दा अपने सरल जीवन, नैतिकता और सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं. उनके योगदान ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला.

==========  =========  ===========

अभिनेत्री नसीम बानो

नसीम बानो भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री थीं, जिन्हें उनके शानदार अभिनय और सुंदरता के लिए जाना जाता था. उन्हें “ब्यूटी क्वीन” के नाम से भी प्रसिद्धि मिली थी. नसीम बानो का जन्म 4 जुलाई 1916 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता, नवाब अब्दुल वाहिद खान, रईस थे और उनकी माता, शम्सुन्निसा बेगम, एक प्रसिद्ध गायिका थीं.

नसीम बानो ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत 1935 में फिल्म “ख़ून का ख़ून” से की, जो शेक्सपियर के नाटक “हेमलेट” का एक रूपांतर था. उनकी प्रमुख फिल्में शामिल हैं  –  “पुकार” (1939), “अनारकली” (1953), और “चाँदनी रात” (1949). ” पुकार” में उनके अभिनय ने उन्हें एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया वहीँ, ” अनारकली” में उनके शानदार प्रदर्शन ने उन्हें भारतीय सिनेमा की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार कर दिया.

नसीम बानो की खूबसूरती और फैशन सेंस के कारण उन्हें भारतीय सिनेमा की “ब्यूटी क्वीन” कहा जाता था. वे अपनी अदाओं और अभिनय शैली के लिए प्रसिद्ध थीं, जिसने उन्हें दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया.

नसीम बानो की शादी एजाजुल हसन से हुई थी. उनकी बेटी, सायरा बानो भी भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं, जिन्होंने दिलीप कुमार से विवाह किया. नसीम बानो ने अपने अभिनय और खूबसूरती के जरिए भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी है, उनकी फिल्मों और अभिनय को आज भी सिने प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है. नसीम बानो का निधन 18 जून 2002 को हुआ था.

नसीम बानो भारतीय सिनेमा की एक महत्वपूर्ण अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपनी कला और खूबसूरती से दर्शकों का दिल जीत लिया और आज भी उनकी यादें सिने प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं.

==========  =========  ===========

अभिनेता सुशील कुमार

सुशील कुमार भारतीय सिनेमा के एक अभिनेता थे, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों में काम किया. उन्होंने 1950 – 60 के दशक में कई महत्वपूर्ण फिल्मों में अभिनय किया और अपनी अभिनय शैली से दर्शकों के बीच लोकप्रियता हासिल की. साठ के दशक की हिट फ़िल्म ‘दोस्ती’ में अपंग रामनाथ का किरदार निभाया था.

सुशील कुमार का जन्म 4 जुलाई, 1945 में कराची के एक सिंधी परिवार में हुआ था. जब सुशील कुमार महज ढाई वर्ष के थे, तब देश का बंटवारा हुआ और उनके परिवार को अपना सब कुछ कराची में छोड़कर भागना पड़ा. सुशील कुमार ने ‘जय हिन्द कॉलेज’ से बी.ए. उत्तीर्ण किया और फिर कुछ ही समय बाद उन्हें एयर इंडिया में नौकरी मिल गई.

सुशील कुमार ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत बाल कालकार के रूप में की थी. उनकी पहली फिल्म का नाम  ‘अबाना’ था. उसके बाद उन्होंने कई और फिल्मों में बाल कालकार के रूप में किया. उनके नाम हैं: – फिर सुबह होगी’ (1958), ‘धूल का फूल’ (1959), ‘मैंने जीना सीख लिया’ (1959), ‘काला बाज़ार’ (1960), ‘श्रीमान सत्यवादी’ (1960), ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ (1960), ‘संजोग’ (1961), ‘सम्पूर्ण रामायण’ (1961), ‘एक लड़की सात लड़के’ (1961), ‘फूल बने अंगारे’ (1963) और ‘सहेली’ (1965).

सुशील कुमार ने कई प्रमुख फिल्मों में अभिनय किया। उनकी कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में शामिल हैं “दोस्ती” (1964), जो कि दो दोस्तों की कहानी है और जिसमें उनके अभिनय को काफी सराहा गया. उन्होंने “भाभी” (1957) और “साधना” (1958) जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. सुशील कुमार अपने भावपूर्ण अभिनय और गंभीर भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे उनकी अभिनय शैली में एक विशेष प्रकार की सादगी और गहराई थी, जो दर्शकों को प्रभावित करती थी.

सुशील कुमार ने अपने अभिनय के जरिए हिंदी सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और उनकी फिल्मों को आज भी याद किया जाता है. उनकी फिल्मों और उनके अभिनय को सिने प्रेमियों द्वारा आज भी सराहा जाता है और वे पुराने जमाने के महान अभिनेताओं में गिने जाते हैं.

सुशील कुमार का अभिनय कैरियर उन दिनों की याद दिलाता है जब भारतीय सिनेमा में सरलता और गहराई से भरपूर कहानियों का दौर था. उनकी फिल्मों ने दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान बनाया और वे भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर के महत्वपूर्ण अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं.

==========  =========  ===========

गायिका श्रद्धा पंडित

श्रद्धा पंडित एक प्रसिद्ध भारतीय पार्श्व गायिका और संगीतकार हैं. वह हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं और उन्होंने कई हिट गाने गाए हैं. श्रद्धा पंडित का परिवार संगीत से गहरा जुड़ा हुआ है, जिससे उनके कैरियर को एक मजबूत आधार मिला. श्रद्धा पंडित का जन्म 4 जुलाई 1976 को मुंबई में हुआ था. उनका परिवार संगीतकारों का परिवार है; उनके चाचा जतिन-ललित, पिता विंदेश पंडित और बुआ जोहरा पंडित सभी संगीत से जुड़े हुए हैं. उनके भाई, यश नार्वेकर, भी एक प्रसिद्ध गायक और संगीतकार हैं.

श्रद्धा ने बहुत छोटी उम्र में ही संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 1996 में फिल्म “खामोशी: द म्यूजिकल” के गाने “बाहों के दरमियां” से की, जिसे बहुत सराहा गया. श्रद्धा ने कई हिट गाने गाए हैं, जैसे “पहरेदार पिया की” (सीरियल का टाइटल ट्रैक), “आशिकी में तेरी” (36 चाइना टाउन), “तुम्हारे सिवा” (परेशान) और “जी करदा” (सिंह इज़ ब्लिंग). उनके गाने विभिन्न शैलियों में होते हैं, जिनमें रोमांटिक, पार्टी, और सोलफुल गाने शामिल हैं. गायन के अलावा, श्रद्धा पंडित एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने कुछ गानों के लिए संगीत भी तैयार किया है.

श्रद्धा को उनके उत्कृष्ट गायन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. उन्हें कई संगीत कार्यक्रमों और टीवी शो में भी आमंत्रित किया गया है. श्रद्धा पंडित का निजी जीवन काफी हद तक निजी रहता है, लेकिन वे सोशल मीडिया पर अपने फैंस के साथ जुड़ी रहती हैं और अपने काम की अपडेट्स साझा करती हैं.

श्रद्धा पंडित भारतीय संगीत उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और उनकी आवाज़ ने कई गानों को अमर बना दिया है. उनकी प्रतिभा और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें एक प्रतिष्ठित गायिका के रूप में स्थापित किया है.

==========  =========  ===========

स्वामी विवेकानन्द

 स्वामी विवेकानन्द एक प्रमुख भारतीय संत, विचारक, और समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारतीय दर्शन और वेदांत को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया. वे अपने प्रेरणादायक व्याख्यानों और लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था. उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में पूरी की और बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. नरेंद्रनाथ की मुलाकात उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस से 1881 में हुई. रामकृष्ण परमहंस के साथ उनकी घनिष्ठता ने उनकी आध्यात्मिक यात्रा की दिशा बदल दी. रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद, नरेंद्रनाथ ने संन्यास धारण कर लिया और स्वामी विवेकानन्द नाम धारण किया.

वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भाग लिया, जहां उन्होंने अपने प्रसिद्ध भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” से की, जिसने सभी को प्रभावित किया. इस महासभा में उन्होंने वेदांत और भारतीय संस्कृति के बारे में बताया और विश्व में भारतीय अध्यात्म का प्रसार किया. वर्ष 1897 में स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज सेवा और आध्यात्मिकता का प्रसार था. यह मिशन आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, और समाज सेवा के क्षेत्रों में कार्यरत है.

स्वामी विवेकानन्द ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथ और लेख लिखे, जिनमें “राजयोग”, “ज्ञानयोग”, “कर्मयोग” और “भक्ति योग” शामिल हैं. उनके लेखन में जीवन, अध्यात्म, और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं.

स्वामी विवेकानन्द ने मानवता की सेवा और आत्म-साक्षात्कार पर जोर दिया. उनका मानना था कि हर व्यक्ति में दिव्यता है और इसे पहचानना ही जीवन का लक्ष्य है. उन्होंने सामाजिक समानता, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किया. स्वामी विवेकानन्द का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ, पश्चिम बंगाल में हुआ था.

उनका जीवन और उनके विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देते हैं. उनका संदेश और उनकी शिक्षाएं न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

==========  =========  ===========

अभिकल्पक पिंगलि वेंकय्या

पिंगलि वेंकय्या एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, कृषि वैज्ञानिक, और डिजाइनर थे, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) के डिजाइन के लिए जाना जाता है.

पिंगलि वेंकय्या का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मछलीपट्टनम और मद्रास (अब चेन्नई) में पूरी की. बाद में उन्होंने कोलंबो, श्रीलंका और इंग्लैंड में भी शिक्षा प्राप्त की.

वेंकय्या ने कृषि विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की और किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए काम किया. उन्होंने भूगोल, भूविज्ञान, और कृषि पर कई लेख और पुस्तकों का लेखन किया. वेंकय्या महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए. वे गांधी जी के प्रमुख अनुयायियों में से एक थे और कई आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया.

पिंगलि वेंकय्या ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का डिजाइन तैयार किया. उन्होंने कई वर्षों तक विभिन्न डिजाइनों पर काम किया और अंततः उनके डिजाइन को 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में प्रस्तुत किया. उनके द्वारा प्रस्तुत डिजाइन में केसरिया (साहस और बलिदान), सफेद (सत्य और शांति) और हरा (विश्वास और साहस) रंगों के साथ बीच में चरखा (स्वावलंबन का प्रतीक) था.22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने उनके डिजाइन को कुछ परिवर्तनों के साथ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया. चरखे की जगह अशोक चक्र को ध्वज के केंद्र में रखा गया.

स्वतंत्रता के बाद, पिंगलि वेंकय्या को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया, लेकिन उनकी सादगी और साधारण जीवन के कारण वे गुमनामी में रहे. भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में 2009 में एक डाक टिकट जारी किया. पिंगलि वेंकय्या का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ था.

पिंगलि वेंकय्या का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति उनका योगदान अमूल्य है. उनका नाम भारतीय इतिहास में सदा के लिए अंकित रहेगा और उनके द्वारा डिजाइन किया गया तिरंगा देशभक्ति और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बना रहेगा.

==========  =========  ===========

गीतकार भरत व्यास

भरत व्यास एक भारतीय गीतकार और कवि थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने उत्कृष्ट गीतों के लिए ख्याति प्राप्त की. उनके गीतों में गहरी भावनाएँ और भारतीय संस्कृति की गूंज मिलती है, जिससे वे आज भी लोकप्रिय हैं.

भरत व्यास का जन्म 6 जनवरी 1918 को बीकानेर, राजस्थान में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान में पूरी की और बाद में साहित्य में गहरी रुचि ली. भरत व्यास ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1940 के दशक में की. उनके पहले कुछ गीतों ने ही उन्हें प्रसिद्धि दिलाई और वे हिंदी सिनेमा के प्रमुख गीतकारों में से एक बन गए.

भरत व्यास ने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए गीत लिखे. इनमें “बैजू बावरा” (1952), “नवरंग” (1959), “गूंज उठी शहनाई” (1959), “हरियाली और रास्ता” (1962), “वामन अवतार” (1955), “तूफान और दिया” (1956), “रानी रूपमती” (1957), और “राजा विक्रमादित्य” (1960) जैसी फिल्में शामिल हैं.

उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में “ज्योति कलश छलके”, “ऐ मालिक तेरे बंदे हम”, “जरा सामने तो आओ छलिये”, और “ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया” शामिल हैं.

भरत व्यास के गीतों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की झलक मिलती है. उनके गीतों में सादगी और गहराई होती है, जो सुनने वालों के दिलों को छू लेती है. वे भक्ति, प्रेम, देशभक्ति, और सामाजिक विषयों पर लिखने में निपुण थे.

भरत व्यास को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उनके गीत आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के महान गीतकारों में एक गिने जाते  है. भरत व्यास का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही साधारण और सादगीपूर्ण था. वे अपने काम के प्रति अत्यंत समर्पित थे. उनका निधन 4 जुलाई 1982 को हुआ.

भरत व्यास का योगदान भारतीय सिनेमा और संगीत में अमूल्य है. उनके गीतों ने न केवल फिल्मों को जीवंत बनाया बल्कि भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान बनाया. उनकी रचनाएं आज भी सुनने वालों के दिलों को छू जाती हैं और उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महान गीतकार के रूप में याद किया जाता है.

5/5 - (3 votes)
:

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!