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व्यक्ति विशेष

भाग – 153.

निबंधकार कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित निबंधकार, साहित्यकार और पत्रकार थे. उनका जन्म 29 मई 1906 को  सहारनपुर ज़िले के देवबन्द ग्राम में हुआ और उनकी मृत्यु 9 मई 1995 को हुआ था.

प्रभाकर जी ने हिंदी निबंध को एक नया स्वरूप और दिशा दी. उनकी निबंध शैली सरल, प्रवाहमयी और पाठक को प्रभावित करने वाली थी. उनके निबंधों में सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवतावादी दृष्टिकोण प्रमुखता से देखने को मिलता है. उन्होंने हिंदी पत्रकारिता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख नियमित रूप से प्रकाशित होते थे, जिनमें समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर गहन चिंतन और समाधान प्रस्तुत किए जाते थे.

प्रमुख कृतियाँ: – ‘हिन्दी निबंध के विकास में मेरा योगदान’ , ‘प्रभाकर के निबंध ‘और  ‘हिन्दी निबंधकार’.

प्रभाकर जी ने साहित्यिक संस्थानों और संगठनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई और हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का लेखन केवल साहित्यिक मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि वे समाज सुधारक की भूमिका में भी थे. उनकी लेखनी में समाज की समस्याओं का गहन विश्लेषण और उनके समाधान के प्रयास दिखाई देते हैं. उनका योगदान हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य है और उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं.

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व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी

 हुल्लड़ मुरादाबादी हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित व्यंग्य कवि थे, जिनका असली नाम सुदर्शन कुमार चड्ढा था. उनका जन्म 29 मई 1942 को मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अपनी हास्य और व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से उन्होंने हिंदी काव्य में एक अलग पहचान बनाई.

हुल्लड़ मुरादाबादी की कविताओं में समाज की कुरीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार, और रोजमर्रा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर तीखा व्यंग्य देखने को मिलता है. उनकी कविताएँ न केवल हास्य का पुट लिए होती थीं, बल्कि गंभीर सामाजिक संदेश भी देती थीं.

हुल्लड़ मुरादाबादी कवि सम्मेलनों के लोकप्रिय कवि थे. उनकी शैली, भाव-भंगिमा और प्रस्तुति लोगों को हँसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर देती थी. उनकी कविताओं में आम जनता की भाषा और मुहावरे देखने को मिलते थे, जिससे वे जन-जन के कवि बन गए.

प्रमुख रचनाएँ: –  ‘हास्य के हुल्लड़’ , ‘कविता की हत्या’ और ‘व्यंग्य के तीर’.

हुल्लड़ मुरादाबादी के योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया. उनकी लोकप्रियता और साहित्यिक योगदान के कारण वे हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों में गिने जाते हैं. हुल्लड़ मुरादाबादी का निधन 12 जुलाई 2014 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ और कविताएँ आज भी लोगों को हँसाने और सोचने पर मजबूर करती हैं.

हुल्लड़ मुरादाबादी का साहित्यिक योगदान अमूल्य है. उनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी कविता को समृद्ध किया, बल्कि समाज को भी एक नई दिशा देने का काम किया. उनकी हास्य और व्यंग्य कविताएँ आज भी लोकप्रिय हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी.

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कवि मदन कश्यप

मदन कश्यप समकालीन हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि हैं, जिनकी कविताएँ सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित होती हैं. उनकी कविताएँ प्रगतिशील विचारधारा और जनसरोकार से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं. मदन कश्यप का जन्म 29 मई 1954 को  वैशाली, बिहार) में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद साहित्य सृजन में सक्रिय हो गए. मदन कश्यप ने कई महत्वपूर्ण काव्य संग्रह लिखे हैं। उनकी कविताएँ आम जनता के जीवन, संघर्ष और उनकी आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करती हैं.

काव्य संग्रह: –  ‘कायांतरण’ , ‘नीम रोशनी में’, ‘करघे पर ढाई चाल’, ‘दुनिया के कुछ उजाड़ कोने में’,

मदन कश्यप की कविताओं में समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता दिखाई देती है. उनकी रचनाएँ समाज की विडंबनाओं और असमानताओं को उजागर करती हैं. उनकी भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण होती है, जो पाठकों के दिलों तक पहुँचती है. कश्यप की कविताओं में सामाजिक और राजनीतिक चेतना प्रमुख रूप से दिखाई देती है. वे अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हैं.

मदन कश्यप की कविताएँ नए कवियों और साहित्यकारों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. उनकी रचनाएँ समाज को जागरूक करने और सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में प्रेरित करती हैं. कश्यप का साहित्यिक योगदान हिंदी कविता को एक नई दिशा देने वाला है. उनकी कविताएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज के प्रति एक जागरूक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती हैं. उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों और सामाजिक चिंतकों के बीच समान रूप से चर्चित और प्रशंसित हैं.

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अभिनेत्री अनुप्रिया गोयनका

अनुप्रिया गोयनका एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जिन्होंने हिंदी और तेलुगू फिल्मों के साथ-साथ वेब सीरीज में भी काम किया है. उनका जन्म 29 मई 1987 को कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की और फिर अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा.

अनुप्रिया गोयनका ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग और विज्ञापन की दुनिया से की. उन्होंने कई प्रमुख ब्रांड्स के लिए विज्ञापन किए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध थी ‘उरी-डॉट’ विज्ञापन, जिसने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई.अनुप्रिया ने फिल्मों में अपने कैरियर की शुरुआत 2013 में तेलुगू फिल्म ‘पोटुगाडु’ से की. इसके बाद उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया.

प्रमुख फ़िल्में: –  ‘पाठशाला’ (2014), ‘ढिशूम’ (2016), ‘टाइगर ज़िंदा है’ (2017), ‘पद्मावत’ (2018) और ‘वार’ (2019).

अनुप्रिया ने वेब सीरीज में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उन्होंने विभिन्न लोकप्रिय वेब सीरीज में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं. ‘सेक्रेड गेम्स’ (2018), ‘क्रिमिनल जस्टिस’ (2019), ‘असुर’ (2020) और  ‘आश्रम’ (2020).

अनुप्रिया गोयनका अपने संवेदनशील और सजीव अभिनय के लिए जानी जाती हैं. वे जिस भी किरदार को निभाती हैं, उसमें पूरी तरह डूब जाती हैं और उसे जीवंत बना देती हैं. उनकी अदाकारी में सहजता और गहराई होती है, जो दर्शकों को प्रभावित करती है.

अनुप्रिया समाज सेवा के कार्यों में भी सक्रिय हैं. वे विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कार्यरत हैं.

 अनुप्रिया का का कैरियर तेजी से प्रगति कर रहा है और वे भारतीय सिनेमा और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर चुकी हैं. उनकी अभिनय यात्रा और उपलब्धियां उन्हें एक बहुमुखी और प्रतिभाशाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित करती हैं.

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पृथ्वीराज कपूर

पृथ्वीराज कपूर भारतीय सिनेमा और रंगमंच के महान अभिनेता थे. उनका जन्म 3 नवंबर 1906 को पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाते हैं और कपूर परिवार के संस्थापक थे, जिसने भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया.

पृथ्वीराज कपूर का असली नाम पृथ्वीनाथ कपूर था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पेशावर में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए. उनकी अभिनय में रुचि बचपन से ही थी और वे स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेते थे.

पृथ्वीराज कपूर ने 1928 में मूक फिल्म ‘सिन्धु’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की.1931 में आई भारत की पहली सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ में भी उन्होंने अभिनय किया, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई.

पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में ‘पृथ्वी थियेटर्स’ की स्थापना की, जो भारतीय रंगमंच के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ. पृथ्वी थियेटर्स के माध्यम से उन्होंने कई महत्वपूर्ण नाटकों का मंचन किया और भारतीय रंगमंच को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया. पृथ्वीराज कपूर ने अपने कैरियर में अनेक यादगार फिल्मों में काम किया.

प्रमुख फिल्मों: –  ‘सिकंदर’ (1941), ‘विद्यापति’ (1937), ‘मुगल-ए-आज़म’ (1960) – इस फिल्म में उनके द्वारा निभाया गया अकबर का किरदार आज भी अमर है और ‘आवारा’ (1951) – इस फिल्म में उन्होंने अपने बेटे राज कपूर के साथ काम किया.

पृथ्वीराज कपूर के तीन बेटे – राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर – भारतीय सिनेमा के प्रमुख अभिनेता बने. कपूर परिवार आज भी भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पृथ्वीराज कपूर को 1969 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया.1971 में उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ से नवाजा गया.

पृथ्वीराज कपूर का निधन 29 मई 1972 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है. पृथ्वीराज कपूर का योगदान भारतीय सिनेमा और रंगमंच के लिए अमूल्य है. उनकी मेहनत, प्रतिभा और समर्पण ने उन्हें एक महान कलाकार और भारतीय सिनेमा का आधार स्तंभ बना दिया. उनके कार्यों और योगदानों को सदैव याद किया जाएगा.

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पाँचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक इस पद पर कार्य किया। वे भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता और किसानों के अधिकारों के प्रबल समर्थक थे.

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के नूरपुर गांव में हुआ था. उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और वकालत के पेशे में प्रवेश किया. चरण सिंह ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ की और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया. वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

चरण सिंह को “किसानों का नेता” कहा जाता था. उन्होंने हमेशा किसानों के अधिकारों और उनके हितों की वकालत की. उनके प्रयासों से ही भूमि सुधार और जमींदारी प्रथा उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण कानून पारित हुए.  वे 1952 में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री बने और बाद में 1967 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उनकी सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ लागू कीं.

चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को भारत के प्रधानमंत्री का पद संभाला. उनकी सरकार अल्पमत में थी, जिसके कारण वे सिर्फ कुछ महीनों तक ही इस पद पर रहे. उन्होंने किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर भारतीय लोकदल की स्थापना की. उनके नेतृत्व में यह पार्टी किसानों और ग्रामीण समाज के मुद्दों को प्रमुखता से उठाती रही.

चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ. उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है, विशेषकर किसानों के अधिकारों के प्रति उनके समर्पण के लिए. उन्हें भारत के किसानों का सच्चा नेता माना जाता है.

चौधरी चरण सिंह के सम्मान में भारत सरकार ने 23 दिसंबर को ‘किसान दिवस’ के रूप में घोषित किया है. चौधरी चरण सिंह के नाम पर लखनऊ का हवाई अड्डा ‘चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ और मेरठ का विश्वविद्यालय ‘चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय’ नामित किया गया है.

चौधरी चरण सिंह को राजनीतिक और सामाजिक योगदान उन्हें भारतीय राजनीति में एक विशिष्ट स्थान दिलाता है. उनके प्रयासों ने किसानों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके सिद्धांत और विचार आज भी प्रासंगिक हैं.

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राजनीतिज्ञ अजीत जोगी

अजीत जोगी एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. उनका जन्म 29 अप्रैल 1946 को बिलासपुर जिले के गौरेला में हुआ था. वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी भी थे और बाद में राजनीति में प्रवेश किया.

अजीत जोगी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर और रायपुर में प्राप्त की. उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई मौलाना आज़ाद कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल (अब मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) से की. बाद में उन्होंने प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने के लिए तैयारी की और IAS अधिकारी बने.

अजीत जोगी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में रहते हुए मध्य प्रदेश में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. उनका प्रशासनिक कैरियर उत्कृष्ट था, और उनकी कार्यकुशलता की सराहना की जाती थी.

वर्ष 1986 में उन्होंने प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल हो गए. उनके राजनीतिक कैरियर की शुरुआत बहुत ही प्रभावशाली रही और वे शीघ्र ही पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री: 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो अजीत जोगी को राज्य का पहला मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ ने प्रारंभिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए. जोगी ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर कार्य किया। वे लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 2016 में, कांग्रेस पार्टी से अलग होकर उन्होंने अपनी पार्टी ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे)’ की स्थापना की.

अजीत जोगी ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें उनकी आत्मकथा “द रोलर कोस्टर” प्रमुख है. इसमें उन्होंने अपने जीवन और राजनीतिक अनुभवों का वर्णन किया है. वर्ष  2004 में एक कार दुर्घटना के बाद, अजीत जोगी को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिसके बावजूद उन्होंने राजनीतिक सक्रियता बनाए रखी.

अजीत जोगी का निधन 29 मई 2020 को रायपुर में हुआ था.  जोगी का जीवन और उनका योगदान भारतीय राजनीति और विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के विकास में महत्वपूर्ण है. उनकी नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक अनुभव और जन हितकारी दृष्टिकोण ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता बनाया. उनकी विरासत उनके समर्थकों और छत्तीसगढ़ के लोगों द्वारा हमेशा याद की जाएगी.

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