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व्यक्ति विशेष

भाग – 149.

रास बिहारी बोस

रास बिहारी बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 25 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था. बोस ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की कई योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें सबसे प्रसिद्ध घटना 1912 में दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम हमला शामिल है.

ब्रिटिश द्वारा पकड़े जाने के खतरे के कारण, रास बिहारी बोस 1915 में जापान चले गए, जहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन और सहयोग जुटाने का काम जारी रखा. जापान में उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की और बाद में सुभाष चंद्र बोस (जिनसे उनका कोई रिश्ता नहीं था) को इस संगठन की कमान सौंपी, जिसने अंततः आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया.

रास बिहारी बोस ने अपनी जिंदगी के अंतिम वर्षों में जापान में ही बिताए और 21 जनवरी 1945 को उनका निधन हो गया. उनके योगदान को भारत और जापान दोनों ही देशों में सम्मानित किया जाता है.

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विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम

काजी नजरूल इस्लाम, जिन्हें अक्सर ‘विद्रोही कवि’ के नाम से जाना जाता है, बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि और संगीतकार थे. उनका जन्म 24 मई 1899 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था. नजरूल की रचनाएँ सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ एक स्पष्ट आवाज उठाती हैं, जिसमें उन्होंने धार्मिक साम्प्रदायिकता और उपनिवेशवाद का विरोध किया.

नजरूल की कविता और संगीत दोनों में उनका विद्रोही स्वभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है. उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ जैसे कि “बिद्रोही” (विद्रोही) और “अग्निवीणा” (अग्नि का वीणा) ने उन्हें बांग्ला साहित्य में अमरता प्रदान की है. उनका साहित्य और संगीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी लोगों के बीच उत्साह और प्रेरणा का स्रोत बना.

नजरूल ने अपने साहित्यिक कैरियर में न केवल कविताएँ और गीत लिखे, बल्कि उपन्यास, नाटक और निबंध भी लिखे जो सामाजिक समस्याओं और नैतिकता के मुद्दों को उठाते हैं. उनकी मृत्यु 29 अगस्त 1976 को हुई, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनका संदेश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक बना हुआ है.

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अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, और पटकथा लेखक करण जौहर

करण जौहर एक भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक और टेलीविजन शो होस्ट हैं, जिन्होंने अपने विविध कैरियर में हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दी हैं. उनका जन्म 25 मई 1972 को मुंबई में हुआ था. करण जौहर ने अपनी फिल्मी यात्रा की शुरुआत अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी निर्देशन क्षमता साबित कर दी.

उनकी पहली फिल्म “कुछ कुछ होता है” (1998) एक बड़ी सफलता थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. इसके बाद, करण ने “कभी खुशी कभी गम” (2001), “कल हो ना हो” (2003), “माय नेम इज खान” (2010), और “ऐ दिल है मुश्किल” (2016) जैसी हिट फिल्में दीं. उनकी फिल्में अक्सर पारिवारिक मूल्यों, प्रेम और दोस्ती के थीम पर केंद्रित होती हैं और भव्य सेट, फैशनेबल पात्र और आकर्षक संगीत से भरपूर होती हैं.

करण जौहर ने न केवल निर्देशन में, बल्कि निर्माण में भी अपनी महारत दिखाई है. उनकी प्रोडक्शन कंपनी धर्मा प्रोडक्शंस ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया है जैसे कि “धड़क” (2018), “राज़ी” (2018), और “गुड न्यूज़” (2019)। इसके अलावा, करण टेलीविजन पर भी सक्रिय रहे हैं, जहाँ उन्होंने “कॉफ़ी विद करण” जैसे लोकप्रिय टॉक शो की मेजबानी की है.

करण जौहर का योगदान हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा और ऊंचाई प्रदान करने में रहा है, और उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है.

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अभिनेता कुणाल खेमू

कुणाल खेमू एक प्रतिभाशाली भारतीय अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय हैं. उनका जन्म 25 मई 1983 को कश्मीर में हुआ था. कुणाल ने अपने कैरियर की शुरुआत बचपन में ही कर दी थी; वह बच्चों के रूप में कई फिल्मों में दिखाई दिए, जिनमें “राजा हिंदुस्तानी” (1996) और “ज़ख्म” (1998) शामिल हैं.

बड़े होने पर, कुणाल ने वयस्क भूमिकाओं में सफलतापूर्वक प्रवेश किया और उन्होंने “कलयुग” (2005) में अपनी प्रमुख भूमिका से खासा ध्यान खींचा. इस फिल्म में उनके प्रदर्शन की व्यापक प्रशंसा हुई. उसके बाद, उन्होंने “ट्रैफिक सिग्नल” (2007) और “गो गोवा गॉन” (2013) जैसी फिल्मों में काम किया, जिसमें उन्होंने अपनी विविध अभिनय क्षमताओं का प्रदर्शन किया.

कुणाल ने हाल के वर्षों में वेब सीरीज़ और ओटीटी प्लेटफार्मों पर भी ध्यान केंद्रित किया है, जहां उन्होंने “अभय” (2019) जैसी सीरीज़ में मुख्य भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों और समीक्षकों दोनों से सराहना मिली. कुणाल खेमू की फिल्मी चयन और उनके अभिनय ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाया है और उन्हें उनके प्रशंसकों द्वारा उनकी विविधता और प्रतिभा के लिए पसंद किया जाता है.

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अभिनेता एवं राजनीतिज्ञ सुनील दत्त

सुनील दत्त, जिनका वास्तविक नाम बलराज दत्त था, एक प्रमुख भारतीय अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और बाद में राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 6 जून 1929 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुआ था, और उन्होंने भारत के पार्टीशन के बाद मुंबई में बसने के बाद अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी.

सुनील दत्त ने अपने फिल्मी कैरियर में अनेक हिट फिल्मों में काम किया, जैसे कि “मदर इंडिया” (1957), जहां उन्होंने नरगिस के साथ अभिनय किया और जिससे उनकी और नरगिस की प्रेम कहानी शुरू हुई. अन्य प्रमुख फिल्मों में “सुजाता” (1959), “पड़ोसन” (1968), और “मुन्ना भाई एमबीबीएस” (2003) शामिल हैं, जहां उन्होंने अपने असली बेटे संजय दत्त के साथ काम किया.

सुनील दत्त ने फिल्मों में अपनी छाप छोड़ने के साथ-साथ राजनीति में भी खुद को स्थापित किया. उन्होंने 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर मुंबई नॉर्थ वेस्ट से सांसद का चुनाव जीता और उसके बाद कई बार इस सीट से चुनाव जीते.2004 में, उन्होंने यूपीए सरकार में युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री के रूप में काम किया.

सुनील दत्त का निधन 25 मई 2005 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत फिल्म और राजनीति दोनों क्षेत्रों में आज भी जीवित है. उनका जीवन और कैरियर उनके उत्कृष्ट अभिनय, समाज सेवा और राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रमाण हैं.

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संगीतकार लक्ष्मीकांत

लक्ष्मीकांत भारतीय संगीत उद्योग में एक संगीतकार थे, जिन्होंने अपने संगीत साथी प्यारेलाल के साथ मिलकर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी बनाई. यह जोड़ी भारतीय सिनेमा के सबसे सफल और लोकप्रिय संगीत निर्देशकों में से एक मानी जाती है. लक्ष्मीकांत का जन्म 3 नवंबर 1937 को हुआ और उनका निधन 25 मई 1998 को हुआ था.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने 1960 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक हिंदी सिनेमा के लिए हजारों गाने बनाए, जिनमें कई अत्यधिक सफल और यादगार रचनाएं शामिल हैं. उनका संगीत अक्सर उत्सवी, भावपूर्ण और मेलोडियस होता था. इस जोड़ी ने “दोस्ती” (1964), “मिलन” (1967), “बॉबी” (1973), “रोटी कपड़ा और मकान” (1974), और “सत्यम शिवम सुंदरम” (1978) जैसी कई हिट फिल्मों के लिए संगीत दिया.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने न केवल फिल्मी गीतों में, बल्कि भजनों, ग़ज़लों और यहाँ तक कि क्लासिकल संगीत में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. उनके संगीत में विविधता और गहराई दोनों ही थी, और उन्होंने भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी. लक्ष्मीकांत का योगदान भारतीय संगीत जगत में अमिट छाप छोड़ गया है, और उनकी धुनें आज भी लोकप्रिय हैं.

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