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व्यक्ति विशेष

भाग – 139.

देवेन्द्रनाथ ठाकुर

देवेन्द्रनाथ ठाकुर (देवेन्द्रनाथ टैगोर)  भारतीय समाज के  एक विद्वान् और धार्मिक नेता थे. उनका जन्म 15 मई 1817 को हुआ था और वे एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से आते थे. देवेन्द्रनाथ ठाकुर को उनके धार्मिक और दार्शनिक विचारों के लिए जाना जाता है. वे ब्रह्मो समाज के संस्थापकों में से एक थे और इस आंदोलन को विकसित करने में उनकी अहम भूमिका थी.

उन्होंने धार्मिक सुधार के लिए कई पहल की थीं, जिसमें वेद और उपनिषदों के अध्ययन पर जोर दिया गया था और साथ ही उन्होंने अंधविश्वास, पुरोहित वाद और जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. देवेन्द्रनाथ के विचारों ने बंगाल और अन्य भारतीय क्षेत्रों में सामाजिक और धार्मिक चेतना को नई दिशा प्रदान की.

उनकी शिक्षा और धार्मिक विचारधारा ने उन्हें अपने समय के अन्य धार्मिक और सामाजिक नेताओं से अलग पहचान दिलाई। देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने ब्रह्मो समाज के माध्यम से भारतीय समाज में धार्मिक सुधार की नींव रखी, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिकीकरण की प्रेरणा बनी.

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क्रान्तिकारी सुखदेव थापर

क्रान्तिकारी सुखदेव थापर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे, जिन्हें आमतौर पर बस सुखदेव के नाम से जाना जाता है. सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सक्रिय सदस्य थे, जो एक क्रांतिकारी समूह था जिसका उद्देश्य ब्रिटिश राज से भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करना था.

सुखदेव को उनकी सबसे प्रसिद्ध कार्रवाई, लाहौर साजिश केस में भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ शामिल होने के लिए जाना जाता है.1928 में, उन्होंने लाहौर में जे.पी. सॉन्डर्स, एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी, की हत्या में भाग लिया, जो लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार माना जाता था.

सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई, और उनकी मृत्यु ने देश भर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक प्रतिक्रिया और विरोध को उत्प्रेरित किया. सुखदेव की वीरता और बलिदान ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में एक प्रमुख स्थान दिलाया है.

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अभिनेता नजीर हुसैन

नजीर हुसैन जिन्हें भारतीय सिनेमा के विशिष्ट कैरेक्टर अभिनेताओं में गिना जाता है. उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं. उनका जन्म 15 मई 1922 को गया, बिहार में हुआ था और उन्होंने लगभग पांच दशकों तक फिल्म उद्योग में काम किया. नजीर हुसैन को अक्सर पिता, चाचा, या अधिकारी जैसी भूमिकाओं में देखा गया, और उन्होंने अपने अभिनय से इन किरदारों को गहराई और प्रामाणिकता प्रदान की.

नजीर हुसैन ने अपने कैरियर के दौरान विभिन्न प्रकार की फिल्मों में काम किया, जिसमें कई सुपरहिट फिल्में शामिल हैं. उन्होंने कई प्रसिद्ध निर्देशकों के साथ काम किया और उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘यादों की बारात’, ‘दोस्ती’, और ‘ज्वार भाटा’ शामिल हैं. उन्होंने अपनी अभिनय शैली से दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान बनाया.

नजीर हुसैन ने न केवल अपनी अभिनय प्रतिभा से बल्कि अपने सौम्य स्वभाव और व्यावसायिकता से भी फिल्म उद्योग में सम्मान प्राप्त किया. उनका निधन 16 अक्टूबर  1987 में हुआ, लेकिन उनका काम और योगदान आज भी भारतीय सिनेमा के प्रेमियों द्वारा सराहा जाता है.

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अभिनेत्री माधुरी दीक्षित नेने

माधुरी दीक्षित नेने, जो अपने मंत्रमुग्ध करने वाले नृत्य और शानदार अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं, भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और प्रिय अभिनेत्रियों में से एक हैं. उनका जन्म 15 मई 1967 को मुंबई में हुआ था. माधुरी ने 1980 के दशक के मध्य से हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई और 1990 के दशक में उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया.

उनकी प्रमुख फिल्मों में “तेज़ाब”, “बेटा”, “हम आपके हैं कौन..!”, “दिल तो पागल है”, और “देवदास” शामिल हैं. माधुरी ने न केवल अपने अभिनय के लिए, बल्कि अपने नृत्य के लिए भी कई पुरस्कार जीते हैं. वह कत्थक और अन्य नृत्य शैलियों में प्रशिक्षित हैं, जिसे उन्होंने अपनी फिल्मों में बखूबी प्रस्तुत किया है.

माधुरी दीक्षित ने श्रीराम नेने से विवाह किया है और उनके दो बेटे हैं। विवाह के बाद, उन्होंने अमेरिका में कुछ समय बिताया, लेकिन बाद में वापस भारत आ गईं और फिल्मों में अपने कैरियर को फिर से शुरू किया. माधुरी दीक्षित ने टेलीविजन पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, विशेष रूप से डांस रियलिटी शोज में जज के रूप में. उनका अभिनय और नृत्य दोनों ही उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक विशेष स्थान पर रखते हैं.

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‘प्रथम आर्मी कमाण्डर इन चीफ़’ के. एम. करिअप्पा

के. एम. करिअप्पा, जिन्हें फील्ड मार्शल कोडंडेरा मदप्पा करिअप्पा के नाम से भी जाना जाता है. वो भारतीय सेना के प्रथम कमांडर-इन-चीफ थे. उनका जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक में हुआ था, और उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दीं और बाद में आजाद भारत की सेना के पहले प्रमुख बने.

करिअप्पा ने 1947 में स्वतंत्रता के बाद जनरल सर फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान संभाली और वे 15 जनवरी 1949 को भारतीय सेना के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ बने. उनके कार्यकाल में, उन्होंने विशेष रूप से कश्मीर में पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौरान सेना की रीस्ट्रक्चरिंग और पुनर्गठन पर विशेष ध्यान दिया.

करिअप्पा ने अपने दृढ़ नेतृत्व और सख्त अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने सेना में उच्च स्तरीय प्रोफेशनलिज्म और ईमानदारी को बढ़ावा दिया और सैन्य बलों में जातिवाद और क्षेत्रीयता को खत्म करने के लिए कड़े प्रयास किए.

उनके योगदान के सम्मान में, भारत सरकार ने उन्हें 1986 में फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया. के. एम. करिअप्पा का निधन 15 मई 1993 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत और सेना के प्रति उनके असाधारण योगदान आज भी भारतीय सेना और देश के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं.

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उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत

भैरोंसिंह शेखावत एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ थे जो भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में सेवा की. उनका जन्म 23 अक्टूबर 1923 को राजस्थान के खाचरियावास में हुआ था. शेखावत ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय जनसंघ से की थी और बाद में वह भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख सदस्य बन गए.

भैरोंसिंह शेखावत ने तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया (1977-1980, 1990-1992 और 1993-1998).  उनके कार्यकाल में उन्होंने राजस्थान के विकास और विभिन्न समाजिक उपक्रमों पर विशेष ध्यान दिया। उनकी नेतृत्व शैली को विशेष रूप से लोगों के प्रति संवेदनशील और जमीनी स्तर पर जुड़ाव वाली माना जाता था.

2002 में वह भारत के उपराष्ट्रपति चुने गए और 2007 तक इस पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य किया। भैरोंसिंह शेखावत की राजनीतिक यात्रा में उन्होंने राजनीतिक स्थिरता और जनहित में नीतियों को बढ़ावा देने की कोशिश की. उनका निधन 15 मई 2010 को हुआ था.  उनकी मृत्यु के साथ ही भारतीय राजनीति ने एक अनुभवी और प्रेरणादायक नेता खो दिया.

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