निर्माता-निर्देशक दादा साहब फाल्के
दादा साहब फाल्के जिनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था. वो भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाते हैं. उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र के त्र्यंबकेश्वर में हुआ था. दादा साहब फाल्के ने भारतीय सिनेमा की नींव रखी और उन्होंने 1913 में भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म, ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई. इस फिल्म ने भारतीय फिल्म उद्योग की दिशा और दशा को आकार दिया.
फाल्के की फिल्मों में मिथकीय कथाओं का प्रमुखता से चित्रण किया गया था, जिससे उन्हें दर्शकों का बड़ा समर्थन मिला. उन्होंने अपने कैरियर में लगभग 95 फिल्में बनाईं और भारतीय सिनेमा की तकनीकी और कलात्मक पहलुओं में अहम योगदान दिया. उनके सम्मान में भारतीय सिनेमा में सर्वोच्च अलंकरण दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की गई है.
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राजनीतिज्ञ आर. शंकर
आर. शंकर केरल के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे और वे 1962 – 64 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे. वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) के सदस्य थे. उनका पूरा नाम रमन शंकर था, और उन्होंने केरल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
उनके शासनकाल में, उन्होंने शिक्षा और सार्वजनिक क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान दिया. आर. शंकर ने केरल के शिक्षा क्षेत्र में विस्तार किया और उन्होंने कई नई विद्यालयों और कॉलेजों की स्थापना की. उनकी नीतियाँ केरल को भारत के सबसे अधिक शिक्षित राज्यों में से एक बनाने में मददगार साबित हुईं.
आर. शंकर ने केरल के विकास के लिए कई अन्य योजनाओं की भी शुरुआत की. वे केरल में समाजिक और आर्थिक न्याय के प्रबल समर्थक थे. उनके योगदान के कारण उनका सम्मान किया जाता है और उन्हें केरल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माना जाता है.
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भूतपूर्व न्यायाधीश फ़ातिमा बीबी
फ़ातिमा बीबी भारतीय न्यायपालिका में एक प्रमुख व्यक्तित्व हैं. उन्होंने इतिहास रचते हुए 1989 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण की. फ़ातिमा बीबी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को केरल में हुआ था, और उन्होंने केरल विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की.
उनके कैरियर में उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में भी काम किया और उनकी न्यायिक योग्यता और निष्ठा के लिए पहचानी गईं. फ़ातिमा बीबी ने न केवल महिलाओं के लिए न्यायिक क्षेत्र में नए मार्ग प्रशस्त किए बल्कि उन्होंने भारतीय न्यायिक प्रणाली में विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों में योगदान दिया.
उनके समय के दौरान और उसके बाद भी उन्होंने महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनकर दिखाया कि कैसे दृढ़ संकल्प और समर्पण से किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है. उनका कैरियर न्यायिक उत्कृष्टता और लिंग समानता के लिए एक बेमिसाल उदाहरण है.
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राजनीतिज्ञ बीसेट्टी वेंकट सत्यवती
बीसेट्टी वेंकट सत्यवती भारतीय राजनीति में एक प्रमुख महिला नेता थीं, जिन्होंने विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे 1919 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर में जन्मी थीं. सत्यवती को विशेष रूप से उनके राजनीतिक कैरियर और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है.
उन्होंने अपनी युवावस्था में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ी और ब्रिटिश राज के खिलाफ सक्रिय रूप से काम किया। सत्यवती ने न केवल महिलाओं के मताधिकार के लिए काम किया, बल्कि वे श्रमिक अधिकारों और सामाजिक न्याय की मुखर समर्थक भी थीं. वे बाल मजदूरी के खिलाफ और मजदूरों के हकों के लिए लड़ती रहीं।
सत्यवती ने कई वर्षों तक संसद सदस्य के रूप में सेवा की और उन्होंने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई। उनके नेतृत्व में, विशेष रूप से महिला अधिकारों और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. उनका जीवन और कार्य भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका के लिए प्रेरणा स्त्रोत बने रहे हैं.
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राजनीतिज्ञ मीनाक्षी लेखी
मीनाक्षी लेखी एक भारतीय राजनीतिज्ञ और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सदस्य हैं. वे नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनी गई हैं और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है. मीनाक्षी लेखी व्यवसाय से वकील भी हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में कानूनी प्रतिनिधित्व किया है.
उनका जन्म 30 अप्रैल 1967 को हुआ था, और उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की. राजनीति में आने से पहले, मीनाक्षी लेखी ने वकील के रूप में विभिन्न कानूनी मामलों में अपनी विशेषज्ञता दिखाई. उन्होंने महिला अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण, और सामाजिक न्याय से संबंधित मुद्दों पर विशेष रूप से काम किया है.
मीनाक्षी लेखी ने अपने कार्यकाल में कई सार्वजनिक मुद्दों पर ध्यान दिया और उन्हें सुधारने की कोशिश की है. उन्होंने विशेष रूप से दिल्ली में स्वच्छता और शहरी विकास पर जोर दिया है. राजनीति में उनकी सक्रिय भागीदारी और विभिन्न पहलों में उनके योगदान ने उन्हें एक पहचानी जाने वाली आवाज बनाया है.
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सरदार हरि सिंह नलवा
सरदार हरि सिंह नलवा सिख साम्राज्य के एक प्रमुख सैन्य नेता और रणनीतिकार थे. उनका जन्म 1791 में पंजाब के गुजरांवाला जिले में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. वे महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिख साम्राज्य के एक महत्वपूर्ण सैन्य कमांडर थे और उन्होंने सिख साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
हरि सिंह नलवा का सबसे प्रमुख योगदान उत्तर-पश्चिमी सीमा पर था, जहाँ उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े. उन्होंने कश्मीर, पेशावर और जमरूद जैसे क्षेत्रों में अभियान चलाए और इन क्षेत्रों को सिख साम्राज्य में मिलाया. उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें “बाघ मार” का उपनाम भी दिया गया था.
हरि सिंह नलवा ने न केवल सैन्य अभियानों में, बल्कि सीमा क्षेत्रों में प्रशासन स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उन्होंने स्थानीय निवासियों के साथ संबंधों को मजबूत किया और क्षेत्रीय सुरक्षा में सुधार किए. उनकी मृत्यु 30 अप्रैल 1837 को जमरूद की लड़ाई के दौरान हुई थी, जहाँ उन्होंने अपने जीवन की अंतिम लड़ाई लड़ी थी.
सरदार हरि सिंह नलवा को एक वीर योद्धा और प्रभावशाली नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने सिख साम्राज्य के इतिहास में अपनी छाप छोड़ी.
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राजनीतिज्ञ दोरजी खांडू
दोरजी खांडू भारतीय राजनीति में अरुणाचल प्रदेश से एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. उन्होंने 2007 – 2011 तक अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 19 मार्च 1955 को अरुणाचल प्रदेश में हुआ था, और उनका देहांत 30 अप्रैल 2011 को एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुआ था.
दोरजी खांडू का राजनीतिक कैरियर बेहद प्रभावशाली था, और उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे पहली बार 1990 में अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा में चुने गए थे और उसके बाद से लगातार अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में सेवा करते रहे. उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के आधारभूत संरचनाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया, जिसमें सड़कें, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं.
दोरजी खांडू को उनकी सादगी और लोगों के प्रति समर्पण के लिए भी याद किया जाता है. उन्होंने राज्य में सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए काम किया. उनके असामयिक निधन से अरुणाचल प्रदेश और भारतीय राजनीति में एक बड़ी क्षति हुई, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी उनकी विरासत के रूप में जीवित हैं.
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अभिनेता ऋषि कपूर
ऋषि कपूर, भारतीय सिनेमा के प्रमुख अभिनेता और कपूर खानदान के सदस्य थे. उनका जन्म 4 सितंबर 1952 को मुंबई में हुआ था. ऋषि कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में 1970 में फिल्म “मेरा नाम जोकर” से की थी. इसके बाद, उन्होंने 1973 में फिल्म “बॉबी” से अपनी पहली फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई और इस फिल्म ने उन्हें एक स्टार बना दिया.
ऋषि कपूर ने अपने लगभग पांच दशकों के करियर में सैकड़ों फिल्मों में काम किया और विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं. उनकी प्रमुख फिल्मों में “अमर अकबर एंथनी”, “कर्ज”, “सागर”, “चांदनी”, और “दीवाना” शामिल हैं. उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता के द्वारा हर तरह के किरदार को जीवंत किया.
ऋषि कपूर को उनके चार्मिंग पर्सनालिटी और नैचुरल अभिनय के लिए जाना जाता था. वे न केवल एक उत्कृष्ट अभिनेता थे बल्कि उन्होंने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को विभिन्न योगदान दिए. उनका निधन 30 अप्रैल 2020 को हुआ, जिसने फिल्म जगत और उनके प्रशंसकों को गहरा दुख पहुंचाया. उनकी फिल्में और उनका योगदान भारतीय सिनेमा की धरोहर के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.
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अभिनेत्री अचला सचदेव
अचला सचदेव एक भारतीय अभिनेत्री थीं जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी विशेष पहचान बनाई. उन्होंने 1930 के दशक में अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की और अगले कई दशकों तक फिल्मों में काम किया.
अचला सचदेव विशेष रूप से मां या दादी के किरदार में बहुत प्रसिद्ध हुईं. उन्होंने ‘वक्त’, ‘प्रेम पुजारी’, ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी कई प्रमुख फिल्मों में अहम भूमिकाएँ निभाईं. उनका जन्म 3 मई 1920 को हुआ था और उनका निधन 30 अप्रैल 2012 को हुआ.
उनका फिल्मों में योगदान और विशेष रूप से ‘कभी खुशी कभी गम’ में उनकी मां की भूमिका आज भी कई लोगों द्वारा याद की जाती है.
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समाचार वक्ता रोहित सरदाना
रोहित सरदाना एक भारतीय टेलीविजन एंकर और मीडिया पत्रकार थे, जो अपनी विशिष्ट प्रस्तुति शैली और गहन बहसों के लिए जाने जाते थे. उनका जन्म 22 सितंबर 1979 को हुआ था और उनका निधन 30 अप्रैल 2021 को कोविड-19 के कारण हुआ था.
रोहित सरदाना ने अपने कैरियर की शुरुआत न्यूज़ प्रोडक्शन से की थी और धीरे-धीरे वे एक जाने-माने न्यूज़ एंकर बन गए. उन्होंने ज़ी न्यूज़ और आज तक जैसे प्रमुख भारतीय न्यूज़ चैनलों के लिए काम किया। उनका सबसे प्रसिद्ध शो “आज की बात” और बाद में “दंगल” था, जहां वे राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विभिन्न पक्षों के साथ गहन चर्चा करते थे.
रोहित सरदाना की प्रस्तुति क्षमता और उनकी क्षमता मुद्दों को सामने लाने की उन्हें उनके पेशे में बहुत मान्यता दिलाई। उनका निधन मीडिया जगत में एक बड़ी क्षति मानी गई और उन्हें उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से सराहा गया.